07 सितंबर 2012

अंडरएचीवर... रोबोट... भ्रष्टों का सरदार

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह लगातार मुसीबत में  नजर आ रहे हैं। एक तरफ संसद में लगातार उनके इस्तीफे की मांग को लेकर कामकाज ठप किया जा रहा है तो दूसरी ओर उनको मीडिया में कोसने का सिलसिला जारी है। इसकी शुरूआत सोशल मीडिया से हुई है। फेसबुक हो या ट्विटर या किसी और प्रकार का सोशल मीडिया हो, हर  जगह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह छाए हुए हैं, पर अच्छी वजह से नहीं, हर कोई उनको अपने स्तर पर 'निपटाने' में लगा हुआ है। सोशल मीडिया में प्रधानमंत्री की बन रही 'खलनायकी' और 'रोबोट' वाली छवि को रोकने की सरकारी कोशिशें बेकार ही साबित हो रही हैं और सोशल मीडिया पर तमाम तरह की बंदिशों के बाद भी इस पर सबसे ज्यादा कोई छाया है तो वो मनमोहन सिंह ही हैं।
और अब तो विदेशी मीडिया ने भी प्रधानमंत्री की मौजूदगी को लेकर सवाल खड़ा करना शुरू कर दिया है।  कुछ समय पहले टाईम मैग्जिन ने प्रधानमंत्री को 'अंडर एचीवर' करार दिया था। उस पत्रिका के मुताबिक प्रधानमंत्री का प्रदर्शन उम्मीद से कम है। अब न्यूयार्क से प्रकाशित होने वाले वांशिगटन पोस्ट ने लिखा है कि मनमोहन सिंह भ्रष्ट सरकार के मुखिया हैं और भ्रष्टाचार को रोकने की दिशा में वे पूरी तरह नाकाम साबित हो रहे हैं। इस अखबार ने साफ तौर पर लिखा है कि मनमोहन सिंह की साख जिस तरह गिर रही है, वह उन्हें इतिहास में एक असफल प्रधानमंत्री के तौर पर दर्ज कर रही है। अखबार के मुताबिक मनमोहन सिंह की छवि उनके दूसरे कार्यकाल में सबसे ज्यादा गिरी है। इस दौरान देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई और एक अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री होते हुए भी देश आर्थिक मामलों में काफी नीचे गिरता चला गया। भ्रष्टाचार के लगातार खुलासों ने इमानदार  कहे जाने वाले प्रधानमंत्री के नेतृत्व पर सवाल खड़ा किया और इस धारणा को बल दिया कि मनमोहन सिंह एक भ्रष्ट सरकार के मुखिया हैं।
वाशिंगटन पोस्ट की इस रिपोर्ट पर कांग्रेस के कुछ मंत्रियों ने नाराजगी जाहिर की है और कुछ ने इस पर आपत्ति भी उठाई है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी इस पर सवाल खड़ा किया है लेकिन इसमें ऐसा कुछ नया नहीं है, जिस पर आश्चर्य जताया जाए। या ऐसा कुछ भी नहीं है जो नया खुलासा कर रहा हो। वाशिंगटन पोस्ट एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र है और उसने काफी अध्ययन के बाद इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया होगा, लेकिन भारत का हर आम आदमी इस बात को अच्छी तरह समझता है और इसे सोशल मीडिया में समय समय पर अभिव्यक्त भी करता रहा है।
प्रधानमंत्री यदि इमानदार भी हैं तो ऐसी इमानदारी का कोई औचित्य नहीं कि उनके नाक के नीचे सब के सब भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार करते रहे और वह अपनी इमानदार छवि के साथ उनका बचाव  करता रहे। कांग्रेस के लिए यह मजबूरी हो सकती है कि उसे एक साफ सुथरी छवि के व्यक्ति की जरूरत हो पर मनमोहन सिंह के लिए यह  कतई जरूरी नहीं कि वह तमाम तरह के घोटालों के मामलों के खुलासे के बाद भी पद पर बने रहें और अपने आसपास के काले कारनामों पर परदा डालते रहें। प्रधानमंत्री को तुरंत अपना पद छोड़ देना चाहिए और जनता को बताना चाहिए कि वे उन कृत्यों का हिस्सा नहीं हैं, जो उनकी सरकार ने किया है, वरना मनमोहन सिंह का नाम जब भी लिया या लिखा जाएगा उसके साथ रोबोट, अंडर एचीवर और भ्रष्टों के सरदार के तौर पर ही लिखा जाएगा।

9 टिप्‍पणियां:

  1. आजकल मजबूरी का दूसरा नाम है ... !

    (आप जानते तो है ... फिर हम अपनी जुबान काहे खराब करें !?)


    मुझ से मत जलो - ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग जगत मे क्या चल रहा है उस को ब्लॉग जगत की पोस्टों के माध्यम से ही आप तक हम पहुँचते है ... आज आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !

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  2. एक और बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाइयाँ !

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  3. बिजली खाने के लिए, है स्वतंत्र रोबोट |
    पन बिजली में आजकल, उत्तरांचल की चोट |
    उत्तरांचल की चोट, ताप बिजलीघर आये |
    है रो बो में खोट, नहीं कोयला चबाये |
    दस जनपथ पर टहल, टहल करता है घर के |
    बिजली रूपी कोल, तानता है भर भर के ||

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  4. मजबूरी है,मिली जुली सरकार चलाना,,,,,,

    बहुत बढ़िया बेहतरीन प्रस्तुति,,,,
    RECENT POST,तुम जो मुस्करा दो,

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  5. काबिले तारीफ ।
    मेरी नयी पोस्ट -"क्या आप इंटरनेट पर ऐसे मशहूर होना चाहते है?" को अवश्य देखे ।धन्यवाद ।
    मेरे ब्लॉग का पता है - HARSHPRACHAR.BLOGSPOT.COM

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  6. प्रचलित नाम तो अब इनका मौन सिंह उर्फ़ पूडल है .आप इनको कुछ कहो शर्म अब इस रिमोटिया सरकार को नहीं आती .हम भ्रष्टों के भ्रष्ट हमारे .

    शुक्रवार, 7 सितम्बर 2012
    शब्दार्थ ,व्याप्ति और विस्तार :काइरोप्रेक्टिक

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  7. अरे नहीं भाई अतुल जी, वह तो मुसीबत अपनी जान बचाने के लिए मौनी बाबा की बगल में छिप गई है।

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  8. बहुत सराहनीय प्रस्तुति.
    बहुत सुंदर बात कही है इन पंक्तियों में. दिल को छू गयी. आभार

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