30 मई 2020

जोगी बनना आसान है, अजीत बनना भी, पर अजीत जोगी बनना असंभव


शीर्षक चौंका सकता है, लेकिन बकौल अजीत जोगी ठान लो तो कुछ भी असंभव नहीं। और छत्तीसगढ़ के एक बेहद पिछडे़ इलाके गोरेला-पेंड्रा के जोगीसार गांव में देश की आजादी के करीब सवा साल पहले पैदा हुए एक बच्चे ने ठान लिया और वो अजीत जोगी बन गया।

अजीत जोगी अब इस दुनिया में नहीं हैं। छत्तीसगढ़ के तकरीबन हर शख्स के पास जोगी से जुडी़ स्मृतियाँ हैं और जोगी के जीवन से जुडी़ कई सारे बातें इस वक्त हो रही हैं। जोगी को पसंद करने वाले और नापसंद करने वाले सब आज जोगी की ही बातें कर रहे हैं। 

जोगी को लेकर एक बात होती थी कि या तो आप उन्हें पसंद करेंगे या नापसंद, पर आप उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते। जोगी को मैंने दूसरी बार तब नोटिस किया था जब उनका नाम अचानक नए बने छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्री के लिए उनका नाम दिल्ली से आया। पहली बार जोगी से मुलाकात इससे काफी पहले तब हुई थी जब वे पदयात्रा पर निकले थे और राजनांदगांव पहुंचे थे। उस वक्त उनके पुराने समर्थक फ्रांसिस के घर उनका साक्षात्कार लेने का मौका मिला था। सीएम बनने के बाद जोगी की खासियत यह रही कि उनको फोन करो तो वो खुद उठाते थे और सीधे नाम से संबोधित करते थे। उनके समय मिडिएटर का जमाना नहीं था।

 तमाम तरह के विवादों में रहने के बावजूद (राजनीति में प्रवेश से लेकर अब तक) मैं अजीत जोगी से बहुत प्रभावित हूँ... 

 इंसान अपनी जिंदगी में एक अफसर बनना चाहता है, एक इंसान प्रोफेसर, कोई पुलिस वाला तो कोई वकील, कोई राजनीतिज्ञ तो कोई मजदूर रहकर खुश है...

एक इंसान एक उम्र में यदि ये सब हासिल कर ले और फिर भी जूझने की प्यास बाकी रहे, तो उसे अजीत जोगी ही कहा जाएगा...

इंजीनियर, प्रोफेसर, वकील, कलेक्टर, एसपी, थानेदार, विधायक,सांसद, मुख्यमंत्री, देश की सबसे पुरानी पार्टी का राष्ट्रीय प्रवक्ता और इन सबसे पहले तेंदूपत्ता तोड़ने वाला मजदूर... ये सब अनुभव रहा है अजीत जोगी के पास...

जोगी अपने आप में एक विश्वविद्यालय हैं...

01 मई 2020

मजदूर... मजबूर

मजबूर... एक मई मजदूर दिवस है। इस दिवस से करीब महीने भर पहले से मजदूर मजबूर हो गए हैं और अब भी मजबूर हैं। कोरोना वायरस के कहर ने उनसे उनका काम छीन लिया है और वो चिलचिलाती धूप में कभी पैदल तो कभी ट्रकों के उपर सवार होकर अपने घर जाने की कोशिश कर रहे हैं। इस मजदूर दिवस पर कोई समारोह नहीं होगा। यदि होता तो भी मजदूरों की हालत शायद ही बदलती। अपने कार्यक्षेत्र में पसीना बहाना ही इनकी नियति रही है लेकिन इस बार पसीना बिना काम के बह रहा है और मजदूरों का सफर जारी है। मजदूरों का यह सफर अंग्रेजी के "सफर" की तरह है...

महीनेभर से ज्यादा समय से चल रहे लॉकडाउन के बीच एक तस्वीर तकरीबन लगातार नजर आ रही है और वह तस्वीर है सिर में सामान ढोए और गोद में बच्चा लिए मजदूरों के पैदल चलने की। लॉकडाउन ने काम धंधा छीन लिया और ऐसी स्थिति में घर पहुंचने की ललक में मजदूर सैकड़ों किलोमीटर के सफर पर पैदल ही निकल पड़े हैं। 

छत्तीसगढ़ के प्रवेश द्वार पर बसे राजनांदगांव में यह तस्वीर हर दिन नजर आ रही है। हाईवे पर पहरा है, ऐसी स्थिति में मजदूर गांवों की कच्ची सड़कों का उपयोग कर जिला मुख्यालय तक पहुंच रहे हैं और फिर यहां से छत्तीसगढ़ के अलग-अलग शहरों की ओर बढ़ रहे हैं।
मजदूरों का मजबूर होकर सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल ही तय कर अपने घर लौटने का सिलसिला थम नहीं रहा है। हर दिन मुंबई, पुणे, हैदराबाद और नागपुर जैसे बड़े शहरों से लोग यहां पहुंच रहे हैं।

हर साल बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ से मजदूर दूसरे राज्य पलायन कर जाते हैं। प्रशासन के पास मौजूद आंकड़ों के अनुसार अकेले राजनांदगांव जिले से करीब 9 हजार मजदूर हैदराबाद, मुंबई, पुणे, तेलंगाना और नागपुर में फंसे हुए हैं। इनमें सबसे ज्यादा बुरी स्थिति अकुशल मजदूरों की है। विभिन्न जगहों पर फैक्ट्रियों या निर्माणाधीन भवनों में काम करने वाले अकुशल मजदूरों के पास उनका बैंक खाता स्थानीय है और उनके पास एटीएम भी नहीं है। उनका राशनकार्ड उनके गांव में है। ऐसे लोगों तक चाह कर भी आर्थिक मदद नहीं पहुंचाई जा सक रही है।

20 सितंबर 2017

कौन लोग हैं ये?

file photo
सरकार ने किसानों के लिए एक बडा़ ऐलान हाल के दिनों में किया था। 2100 करोड़ रुपए की राशि की घोषणा। प्रति क्विंटल 3 सौ रुपए का  बोनस। इस ऐलान से किसान-जगत इतना उत्साहित हुआ कि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का उनके विधानसभा मुख्यालय में नागरिक अभिनंदन तक हो गया। हजारों की संख्या में जुटे लोगों ने राजनांदगांव में मुख्यमंत्री को फूल-मालाओं से लाद दिया। ये अलग बात है कि स्कूली बसों, दिगर संसाधनों से भर-भर कर भीड़ आई। कहा गया ये किसान थे।

जब अभिनंदन के पहले हजारों की संख्या में मोटर-साइकलों की रैली निकल गई... जब किसानों ने ऐतिहासिक रूप से अपने मुख्यमंत्री का अभिनंदन किया... जब किसान सरकार की घोषणाओं से इतना उत्साहित थे... जब सब कुछ अच्छा-अच्छा हो रहा है तो फिर बड़ा सवाल खड़ा होता है कि आखिर ये लोग कौन हैं जिनने पूरे सरकारी तंत्र को हलाकान कर दिया? ये कौन लोग हैं जो किसानों के लिए फायदे (?) के लिए इतनी बड़ी घोषणा करने वाले सरकार को परेशान किए हुए हैं? ये कौन हैं, जिनको रोकने के लिए सरकार को धारा 144 लगाना पड़ गया? ये कौन लोग हैं, जिनको एक जगह जमा होने से पहले उनके घरों में नजरबंद कर दिया गया... रास्ते से उठा लिया गया... जेल भेज दिया गया...? आखिर कौन लोग हैं ये?

कहा जा रहा है कि ये किसान हैं जो सरकार की वादाखिलाफी के विरोध में राजधानी कूच करने वाले थे। कहा जा रहा है कि ये किसान हैं जो सरकार से बीते तीन साल के बोनस की मांग कर रहे हैं, जिसकी सरकार ने खुद घोषणा की थी। ये किसान हैं, जो लगातार आत्महत्याएं कर रहे किसानों को उनकी फसल का वाजिब हक दिलाने संघर्ष कर रहे हैं। ये किसान हैं, जिनका संघर्ष एक दिन का नहीं, महीनों या ये कहें, साल भर से ज्यादा समय से चल रहा है।

फिर सवाल खड़ा होता है कि आखिर वे कौन लोग थे जिन लोगों ने मुख्यमंत्री का अभिनंदन किया? क्या वे किसान नहीं थे? किसान ही थे तो क्या वे किसान किसी दल विशेष के थे? किसानों की समस्याएं भी क्या दल के आधार पर तय होती हैं? किसानों की मांगें भी क्या दल विशेष के आधार पर बदलती रहती हैं?

यदि वे भी किसान थे, जिन लोगों ने अभिनंदन किया... यदि वे लोग भी किसान थे जो राजधानी कूच करना चाहते थे... तो फिर सवाल खड़ा होता है कि ये रोकना, नजरबंद करना किसलिए? बहुत सारे सवाल हैं... सारे सवालों का जवाब सरकार को देना होगा...

#हिन्दी_ब्लॉगिंग

07 अगस्त 2017

आखिर कब तक????



दो और जवान शहीद हो गए। राखी के‍ एक दिन पहले दो बहनों ने अपने भाईयों को खो दिया। राखी की सुबह दोनों शहीदों को गार्ड आफ ऑनर दिया गया। पुलिस, प्रशासन और शहीदों के परिजनों की आंखों से आंसू बहता देख हर आंखें नम रहीं। पर एक बात तय हो गई कि राजनीति क्षेत्र में संवेदनाएं मर गई हैं। शहीदों को अंतिम‍ बिदाई देने भी उंगलियों में गिने जाने वाले नेता मौजूद थे। क्‍या हुआ, मुख्‍यमंत्री ने अपने विधानसभा क्षेत्र में पांच पांच लालबत्तियां बांटी है। उपस्थिति एक की ही रही। 

आज रक्षाबंधन का त्‍यौहार है। हम सब इतराएंगे... सब अपनी कलाई पर अपनी बहनों का प्रेम देख इतराएंगे 

बहनें भी इतराएंगी कि हमारी रक्षा करने वाले भाई की कलाई पर मैंने डोर बांधी है और मेरा भाई हमेशा मेरे लिए, मेरी हर मुश्किल हालात में मेरे साथ होगा, लेकिन उस बहन का क्या, जिसके लिए रक्षाबंधन का त्योहार उसके भाई की मौत की खबर लेकर आया। 






नक्सल आतंक से जूझ रहे छत्तीसगढ़ में एक बार फिर शहादत हुई है! राजनांदगाँव जिले में रविवार को नक्सलियों के हमले में दो जवान शहीद हो गए!! एक एसआई और एक आरक्षक नक्सलवाद की बलि चढ़ गए!!! कब तक? आखिर कब तक?? 

फिर वही निंदा! फिर वही चेतावनी!! फिर वही शहादत व्यर्थ नहीं जाने देने के बयान!!! आखिर कब तक???? 

शहीद हुए एसआई युगल किशोर वर्मा के संबंध में पता चला है कि वे दो भाई थे और उनकी एक बहन थी... अब क्या बहन कभी रक्षाबंधन का त्योहार मना पाएगी? शहीद आरक्षक कृष साहू के परिवार में त्योहार की खुशी मनेगी?? सिर्फ कल नहीं, सालों साल इनके घरों में मातम रहेगा!!! 

सोमवार की सुबह हम जुटेंगे, शहादत को नमन करेंगे, पुलिस विभाग गाड आफ आनर देगा और इसके बाद फिर अगली शहादत का इंतजार....

बस, आप और हम इतराएँ कि हम रक्षाबंधन का त्योहार मना रहे हैं!!! हर दिन बहनों से भाई छिन रहा है!!!! सुहागिनों की मांग का सिंदूर मिट रहा है!!!!! माँ की गोद सूनी हो रही है!!!!! बच्चों के सिर से पिता का साया उठ रहा है!!!!!! इससे क्या...!!!!!!!!

जवाब बहुत छोटा हो सकता है (यदि देना चाहें), पर सवाल बहुत बडा़ है कि क्या नक्सल आतंक कभी खत्म होगा?????

#हिन्‍दी_ब्‍लाॅगिंग 

05 जुलाई 2017

अच्‍छी बात... गंदी बात


वीडियो यू टयूब में देखने यहां क्लिक करें

बात ज्यादा पुरानी नहीं है। राष्ट्रऋषि सात समंदर पार देश अमेरिका गए थे। अच्छी बात है। हाल-फिलहाल के वर्षों में दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के साथ हमारे देश के बेहतर राजनैयिक रिश्ते हो गए हैं। तभी तो हमारे देश के प्रधानमंत्री का इस देश में दौरा 'अक्सर' होता रहता है। अच्छी बात है।

कुछ समय पहले जब बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति थे तो साहेब के बार-बार उनसे मिलने जाने पर मेरे एक परिचित ने यूं ही मुझे कहा, यार! जितने समय में इतने बार साहेब अमेरिका जाकर ओबामा से मिलते हैं, उतनी बार तो मैं सौ-डेढ़ सौ किलोमीटर दूर रहने वाले अपने चचेरे भाई से भी नहीं मिल पाता। गंदी बात। ऐसा मजाक ठीक नहीं। अरे! वो वीडियो क्यों बार बार फारवर्ड करते हो, जिसमें साहेब ने कहा था कि इधर पाकिस्तान हमले करता है और उधर तुम अमेरिका जाकर ओबामा... ओबामा करते हो, अरे जाना है तो पाकिस्तान जाओ ना!!!!! क्या तुम्हे पता नहीं कि उस वक्त साहेब विपक्ष में थे। और हमारे देश में इंसान भले ही अनगिनत धर्मों में बंटे रहे, विपक्ष का एक ही धर्म है और वह है, विरोध। सत्ता में बैठे लोगों की बुराई। चाहे काम अच्छा हो या बुरा, बस विरोध।

हाँ, तो बात हो रही थी, सात समंदर पार की यात्रा की। यात्रा से दिक्कत नहीं। होनी चाहिए। अच्छी बात है। यात्रा की बहुत सी बातें खबरों में आईं। कई नीतिगत बातों पर चर्चा की जानकारी मिली। अच्छी बात है। पर टीवी चैनलों और अखबारों में एक चीज खूब 'हाईलाईट' हुई। तकरीबन सबने छापा और सबने दिखाया, ट्रंप और साहेब तीन बार गले मिले!!!!!! अच्छी बात है। गले मिलना तो अच्छा होता है। पर ये समझ नहीं आया कि इसे इतना 'हाईप' देने की क्या जरूरत? अरे मित्र हैं। बड़े दिनों बाद पहली बार मिले तो गले मिल लिए। एक नहीं तीन बार मिल लिए। खैर!

कुछ नाशुकरे इसका भी विरोध करने लगे। अनाप शनाप लिखने लगे। गंदी बात है। गले मिलने को इतना हाईप देने वाली मीडिया पर मैं भी कुछ कुछ नाराज हुआ था। इसका मतलब यह तो नहीं कि कुछ भी प्रतिक्रिया दी जाए। गंदी बात है। कुछ अतिउत्साही लोगों ने तो हद ही कर दी। अरे बंदों ने दो गिरगिट के गले लगते हुए तस्वीर सोशल मीडिया में डालकर पूछ डाला कि कुछ याद आया??? हद है!!!! गंदी बात है। अरे, शालीनता भी कोई चीज होती है। जमा तो मुझे भी नहीं था, पर कहा कुछ नहीं। कस्सम से कुछ नहीं कहा।

हाँ, अब कहने की स्थिति में हूँ। कहने क्या कुछ दिखाने की स्थिति में हूँ। अभी अचानक मेरे पास एक ऐसा वीडियो आया जिसने सोचने मजबूर कर दिया कि यदि ऐसा आज के दौर में हो जाता तो क्या होता???? अरे बाप रे!!!! कल्पना कर भी रूह काँप जाती है। नूज चैनल कई घंटो का सेगमेंट चला देते। भक्‍त न जाने क्‍या  क्‍या कहते। सोशल मीडिया में हल्‍ला मच जाता। और न जाने क्‍या क्‍या हो जाता। चलिए आप सबको एक टॉस्क देता हूँ। नूज चैनल के सेगमेंट का शीर्षक क्या-क्या होता, जरा कल्पना कीजिए। दौड़ाईए अपनी कल्पना शक्ति। कुछ उदाहरण मैं भी दे देता हूँ।

1. 56 इंच का रूतबा...
2. ट्रंप ने पकड़ा छाता...
3. ऐसा चला जादू...
4. छाता का "ट्रंप" कार्ड...
5. ट्रंप का छाता कार्ड...

#हिन्दी_ब्लॉगिंग