शीर्षक चौंका सकता है, लेकिन बकौल अजीत जोगी ठान लो तो कुछ भी असंभव नहीं। और छत्तीसगढ़ के एक बेहद पिछडे़ इलाके गोरेला-पेंड्रा के जोगीसार गांव में देश की आजादी के करीब सवा साल पहले पैदा हुए एक बच्चे ने ठान लिया और वो अजीत जोगी बन गया।
अजीत जोगी अब इस दुनिया में नहीं हैं। छत्तीसगढ़ के तकरीबन हर शख्स के पास जोगी से जुडी़ स्मृतियाँ हैं और जोगी के जीवन से जुडी़ कई सारे बातें इस वक्त हो रही हैं। जोगी को पसंद करने वाले और नापसंद करने वाले सब आज जोगी की ही बातें कर रहे हैं।
जोगी को लेकर एक बात होती थी कि या तो आप उन्हें पसंद करेंगे या नापसंद, पर आप उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते। जोगी को मैंने दूसरी बार तब नोटिस किया था जब उनका नाम अचानक नए बने छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्री के लिए उनका नाम दिल्ली से आया। पहली बार जोगी से मुलाकात इससे काफी पहले तब हुई थी जब वे पदयात्रा पर निकले थे और राजनांदगांव पहुंचे थे। उस वक्त उनके पुराने समर्थक फ्रांसिस के घर उनका साक्षात्कार लेने का मौका मिला था। सीएम बनने के बाद जोगी की खासियत यह रही कि उनको फोन करो तो वो खुद उठाते थे और सीधे नाम से संबोधित करते थे। उनके समय मिडिएटर का जमाना नहीं था।
तमाम तरह के विवादों में रहने के बावजूद (राजनीति में प्रवेश से लेकर अब तक) मैं अजीत जोगी से बहुत प्रभावित हूँ...
इंसान अपनी जिंदगी में एक अफसर बनना चाहता है, एक इंसान प्रोफेसर, कोई पुलिस वाला तो कोई वकील, कोई राजनीतिज्ञ तो कोई मजदूर रहकर खुश है...
एक इंसान एक उम्र में यदि ये सब हासिल कर ले और फिर भी जूझने की प्यास बाकी रहे, तो उसे अजीत जोगी ही कहा जाएगा...
इंजीनियर, प्रोफेसर, वकील, कलेक्टर, एसपी, थानेदार, विधायक,सांसद, मुख्यमंत्री, देश की सबसे पुरानी पार्टी का राष्ट्रीय प्रवक्ता और इन सबसे पहले तेंदूपत्ता तोड़ने वाला मजदूर... ये सब अनुभव रहा है अजीत जोगी के पास...
जोगी अपने आप में एक विश्वविद्यालय हैं...