मजबूर... एक मई मजदूर दिवस है। इस दिवस से करीब महीने भर पहले से मजदूर मजबूर हो गए हैं और अब भी मजबूर हैं। कोरोना वायरस के कहर ने उनसे उनका काम छीन लिया है और वो चिलचिलाती धूप में कभी पैदल तो कभी ट्रकों के उपर सवार होकर अपने घर जाने की कोशिश कर रहे हैं। इस मजदूर दिवस पर कोई समारोह नहीं होगा। यदि होता तो भी मजदूरों की हालत शायद ही बदलती। अपने कार्यक्षेत्र में पसीना बहाना ही इनकी नियति रही है लेकिन इस बार पसीना बिना काम के बह रहा है और मजदूरों का सफर जारी है। मजदूरों का यह सफर अंग्रेजी के "सफर" की तरह है...
महीनेभर से ज्यादा समय से चल रहे लॉकडाउन के बीच एक तस्वीर तकरीबन लगातार नजर आ रही है और वह तस्वीर है सिर में सामान ढोए और गोद में बच्चा लिए मजदूरों के पैदल चलने की। लॉकडाउन ने काम धंधा छीन लिया और ऐसी स्थिति में घर पहुंचने की ललक में मजदूर सैकड़ों किलोमीटर के सफर पर पैदल ही निकल पड़े हैं।
छत्तीसगढ़ के प्रवेश द्वार पर बसे राजनांदगांव में यह तस्वीर हर दिन नजर आ रही है। हाईवे पर पहरा है, ऐसी स्थिति में मजदूर गांवों की कच्ची सड़कों का उपयोग कर जिला मुख्यालय तक पहुंच रहे हैं और फिर यहां से छत्तीसगढ़ के अलग-अलग शहरों की ओर बढ़ रहे हैं।
मजदूरों का मजबूर होकर सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल ही तय कर अपने घर लौटने का सिलसिला थम नहीं रहा है। हर दिन मुंबई, पुणे, हैदराबाद और नागपुर जैसे बड़े शहरों से लोग यहां पहुंच रहे हैं।
हर साल बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ से मजदूर दूसरे राज्य पलायन कर जाते हैं। प्रशासन के पास मौजूद आंकड़ों के अनुसार अकेले राजनांदगांव जिले से करीब 9 हजार मजदूर हैदराबाद, मुंबई, पुणे, तेलंगाना और नागपुर में फंसे हुए हैं। इनमें सबसे ज्यादा बुरी स्थिति अकुशल मजदूरों की है। विभिन्न जगहों पर फैक्ट्रियों या निर्माणाधीन भवनों में काम करने वाले अकुशल मजदूरों के पास उनका बैंक खाता स्थानीय है और उनके पास एटीएम भी नहीं है। उनका राशनकार्ड उनके गांव में है। ऐसे लोगों तक चाह कर भी आर्थिक मदद नहीं पहुंचाई जा सक रही है।
सदा से इनकी यही स्थिति है ... बस जज्बा है कि हर युग में हमारा साथ देने को खड़े हो जाते हैं !
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 01 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंमजदूर दिवस को सार्थक करती सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआज यही स्थिति कमोबेश पूरे देश क्या विश्व भर की है । ऐसी महामारियां तो इनके लिए दोहरी आपदा जैसी होती हैं ।
जवाब देंहटाएंलोग साथ दें तो सारी मुश्किलों से पार पाया जा सकता है पर समस्या यह है कि ऐसी किसी आपदा के समय लोग अपना ही ध्यान रखने लगते हैं, बाकी सबको पीछे छोड़ देते हैं।
जवाब देंहटाएंहर विपदा को मजदूर के घर का पता सबसे पहले लगता है
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी सामयिक चिंतन प्रस्तुति
अंततः सरकार नें ज़रा सी सुध ली, मई दिवस पर कुछ ट्रेन चली जिसमें कामगारों को उनके प्रांत पहुँचाया गया. यह कदम अगर शुरू में सरकार ने लिए होता तो वे जो सैकड़ों किलोमीटर चल कर भी घर न पहुँच पाए, वे जीवित होते. अच्छी पोस्ट.
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