सावरगांव आश्रम शाला |
राजनांदगांव के मानपुर इलाके में तैनात आईटीबीपी(इंडो तिब्बत बार्डर पुलिस) शुक्रवार को खुद पर हुए एक हमले में बौखला गई। अपने जवानों पर नक्सलियों की ओर से किए एक ब्लास्ट ने आईटीबीपी को इस कदर झुंझलाकर रख दिया कि देश की इस प्रतिष्ठित और सुलझी हुई समझी जाने वाले सुरक्षा बल को लेकर मेरे मन में कई सवाल खडे कर दिए।
दहशतजदा बच्चे और ग्रामीण |
दरअसल, राजनांदगांव के मानपुर क्षेत्र में कोई सवा साल पहले जुलाई महीने की 12 तारीख को नक्सलियों ने एक बडा हमला किया था। इस हमले ने राजनांदगांव के जाबांज एसपी श्री विनोद कुमार चौबे सहित पुलिस विभाग के 30 जाबांज सिपाहियों को हमसे छीन लिया था। इस समय तक नक्सल प्रभावित इस जिले में सीआरपीएफ की तैनाती थी। इस घटना के बाद आपरेशन ग्रीन हंट के तहत राजनांदगांव में आईटीबीपी की तैनाती की गई और ‘’हिमवीर हैं हम’’ के नारे के साथ आईटीबीपी ने यहां दस्तक दी। मेरी पहली मुलाकात आईटीबीपी के कुछ अफसरों से हुई तो उनके विचार जानने का मौका मिला। उनका कहना था कि नक्सली कौन हैं हमारे बीच के ही इंसान हैं। रास्ता भटक गए हैं। उन्हें मुख्यधारा में लाना उनका मकसद है। इस दिशा में काम करते हुए आईटीबीपी दिखी भी लेकिन यहां उस पर हुए एक हमले ने आईटीबीपी का शायद विचार ही बदल दिया।
नकसली हमले में शहीद हुए आईटीबीपी के जवानों को सलाम। पर कुछ बातें हैं जो कहनी हैं। अव्वल तो यह कि नक्सलियों के घात लगाकर किए गए हमले के बाद आईटीबीपी और नक्सलियों के बीच फायरिंग हुई। इस फायरिंग में एक राकेट लांचर छूटा। किसने छोडा यह जांच का विषय है लेकिन इस राकेट लांचर ने महाराष्ट के सावरगांव के आदिवासी आश्रम शाला में कहर बरपा दिया और वहां के दो मासूम आदिवासी बच्चों सहित पांच लोगों की मौत हो गई। राकेट लांचर किसका था यह बाद में तय होगा लेकिन सावरगांव के लोगों की मानें तो यह उसी दिशा से आया जिस दिशा में आईटीबीपी ने पोजिशन ले रखी थी।
इस बात को हम नहीं मानते। मानने का मन भी नहीं करता यदि आईटीबीपी का आज का रवैया हमने नहीं देखा होता। हमेशा की तरह नक्सली घटना की जानकारी होने पर उसे कवर करने के लिए हम निकल पडे। राजनांदगांव से मानपुर और मानपुर से कोहका का सफर। करीब 110 किलोमीटर का सफर कर जब हम छत्तीसगढ और महाराष्ट की सीमा पर बने पुल पर पहुंचे तो वहां तैनात आईटीबीपी के जवानों ने सारी हदें पार कर दीं। उन्होंने हमें घटनास्थल में जाने से रोका और यहां तक कहा कि यदि जिद की तो गोली मार देंगे, हमारा दिमाग सरका हुआ है। घटनास्थल हमसे महज दो से तीन सौ मीटर दूर था, कैसे रूकते हमें तो वहां जाना ही था, सो रास्ता बदला और एक दूसरे रास्ते से जो करीब तीन किलोमीटर दूर था वहां पहुंचे। वहां पहुंचकर गांव में पता चला कि लोगों की मौत आश्रम शाला में हो गई है और यह मौत आईटीबीपी और नक्सलियों के बीच हुई फायरिंग के कारण हुई है। धीरे धीरे माजरा समझ में आने लगा कि आईटीबीपी मीडिया को हर कीमत पर घटनास्थल पर जाने से रोकने की कोशिश क्यों कर रही थी।
बात पुलिस या आईटीबीपी पर आरोप लगाने की नहीं है, लेकिन जब दो चार सौ रूपए का सटटा या किसी टुटपुंजुए चोर को पकड कर उसके साथ अपनी हंसती मुस्कुराती तस्वीरें खिंचवाकर अखबारों के दफतरो में भिजवाने वाली पुलिस से यह तो उम्मीद की ही जा सकती है कि वे किसी घटना के बाद उसकी जानकारी भी मीडिया को दे, लेकिन अफसोस ऐसा नहीं होता।
बहरहाल, नक्सलियों के खिलाफ एक बडी लडाई चल रही है और जंग में जहां फतह मिलती है वहीं शहादत भी हाथ आती है। आईटीबीपी से एक घटना के बाद बौखलाहट की उम्मीद नहीं की जा सकती। आखिर में आईटीबीपी के शहीदों को सलाम और हादसे में मारे गए सावरगांव आश्रम शाला के बच्चों और स्टाफ को श्रदधांजलि।
atul tumhara post padha naxli to dahashat faila rahe hai lekin itbp ke jawano ne bhi apna dhairya kho kar thik nahi kiya patrkaro ke saath badsaluki our dhamki ne itbp jaisi pratisthit bal ki hakikat samne la di
जवाब देंहटाएंबड़े भाई को नमस्कार,
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आपका ब्लॉग और लंबे अर्से बाद आप का एसएमस पाकर।
is saari arajakta ka nuksan kulmilakar desh ko hi hai Atul..... aapne bahut prasangik aur saarthak vishay par baat ki....
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