पायल। उमर महज 9 साल। दुनियादारी से हटकर खेलने कूदने, मौजमस्ती करने की उमर में यह लड़की अल सुबह घर से निकल जाती है और फिर शुरू होता है ट्रेन दर ट्रेन का सफर। देश के सबसे समृध्द राज्य गुजरात के सूरत और बडोदरा के बीच हाथों में लकडी के दो टुकडे रखकर उससे अलग अलग तरह के संगीत निकालकर गाना गाते हुए इस नन्ही लडकी को देखा जा सकता है।
शिरडी वाले साईं बाबा और देख तमाशा लकडी का जैसे गाने गाकर पायल पहले लोगों का दिल खुश करती है और इसके बाद उनसे जो भी मिल जाए खुशी से ले लेती है। इस तरह पायल हर दिन तकरीबन सौ से लेकर दो सौ रूपए कमा लेती है और फिर निकल पडती है अपने घर की ओर। सूरत से लगे गांव उदना की रहने वाली पायल वैसे तो खुद बच्ची है लेकिन हालात ने उसे बडा कर दिया है। वह कहती है, ‘’ घर में उसकी मां है, एक बहन और दो भाई हैं। उनमें वह सबसे बडी है सो घर की सारी जिम्मेदारी उस पर ही है।‘’ वह बताती है कि एक बहन है जो सूरत की सडकों में चमचमाती कारों के लाल बत्तियों पर रूकने का इंतजार करती है और कारों के शीशों में पडे धूल को साफ कर कुछ कमा लेती है, मां घर में ही सिलाई कढाई का काम करती है, पडौस में चौका बरतन करती है, कुछ कमाई हो जाती है। एक भाई अभी मां की गोद में है और दूसरा स्कूल जाता है। वह बताती है कि वह अपने भाई को पढा लिखाकर बडा आदमी बनाना चाहती है इसलिए उसे अपने साथ नहीं लाती, स्कूल भेजती है। पांच साल का है उसका भाई। शायद पहली में पढता हो लेकिन पायल मासूमियत से इस सवाल पर कि भाई कौन सी क्लास में है, कहती है, नहीं मालूम, आज घर जाकर पूछूंगी।
बाप नहीं है, इस सवाल पर पायल कहती है, है लेकिन उसने हमें छोड दिया है, दिन भर दारू पीता है, झगडे के बाद घर से अलग रह रहा है।
ट्रेन में गाना गाते हुए पायल को जब मैंने देखा तो ऐसा लगा कि उससे बात करनी चाहिए, और जब उससे बात शुरू की तो उसने अपनी पूरी जिंदगी जो महज नौ साल की है, परत दर परत खोल कर रख दी। पायल वैसे तो एक आम लडकी है, जो दिन भर की मेहनत के बाद सौ रूपए कमाती है लेकिन उससे बात कर उसकी बातें सुनकर ऐसा लगा कि पायल से काफी कुछ सीखा जा सकता है। पायल 21 सदी के भारत के सामने कई सवाल भी खडे करती है।
अतुल यही वो भारत का बचपन है जो जाने कितने शहरों में देखा जा सकता है। कई बार समझ नहीं आता की स्कूल जाने की उम्र में कमाने में लगे इन बचपन के लिए दोषी कौन है..क्या सरकार. या फिर समाज। फिर पाता हूं कि दोनो ही ओर मुख्यरुप से समाज। फिर देश कि विशाल जनसंख्या जो हमारे हर प्रयास को कुंद कर देता है। इसिलए जीतना हो सके उतना करने की कोशिश करनी चाहिए हमें..जो न कर सकें उस पर हलकान होने की जगह कोई छोटा सा ही प्रयास एक बड़े कदम की शुरुआत हो सकता है। अच्छी पोस्ट के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंओह!
जवाब देंहटाएंवह पिता इंसान है कि कोई जानवर!
अतुल जी, अच्छी दास्तान है। लोग पेट भरने के लिए कितना कुछ करते हैं। यही शायद दुनिया है।
जवाब देंहटाएंjiawan ka kadawa sach !
जवाब देंहटाएंhimmat aur jajve ko salam .....
जवाब देंहटाएंAPKI RACHANA BEHATARIN HAI..DELHI SE PRAKASHIT 'METRO UJALA' ME VYANG-VISHESHANK ISSUE KE LIYE APKI EK VYANG RACHANA YA VYANG KAVITA KA SAHYOG MILE TO HUM APKE ABHARI HONGE...
जवाब देंहटाएंPlz CONTACT- 09899413456
samdariya.manoj@gmail.com
Manoj Dwivedi
Sr. Sub-editor
(Metro Ujala)
लेख बहुत ही प्रेरणा दायक है|
जवाब देंहटाएंDastaane aur bhi hai is jahan me..sirf nazar aur akl chahiye haqikat ko samjhne k liye
जवाब देंहटाएंपायल जैसे और न जाने कितने बच्चे है जिन्हें पेट भरने के लिए न जाने क्या क्या करना पड़ता हैं।
जवाब देंहटाएंइस बढ़िया और प्रेरणा दायक पोस्ट के लिए आभार अतुल जी