छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री और राजनांदगांव के विधायक डा रमन सिंह का पिछले कुछ सालों पहले लिया इंटरव्यू मुझे खूब याद आ रहा है। मुझे याद आ रहा है, उस वक्त डाक्टर साहब ने केन्द्र में मंत्री पद से इस्तीफा दिया था और छत्तीसगढ में ‘कोमा’ की हालत में आ चुकी पार्टी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का पद संभाला था। एक ‘डाक्टर’ के अध्यक्ष बनने के बाद कोमा में जा चुकी पार्टी में जान आने लगी और इसके बाद इस पार्टी ने प्रदेश में सरकार बनाई और यही डाक्टर सरकार का मुखिया बना।
खैर मैं बात कर रहा हूं, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और सांसद डाक्टर रमन सिंह से लिए एक इंटरव्यू का। मुझे जहां तक याद है एक सवाल के जवाब में डाक्टर साहब ने कहा था, ‘मैं इकलौता ऐसा दुस्साहसी सांसद हूं, जो अपनी निधि के वितरण की सूची पुस्तक के रूप में प्रकाशित करता हूं।’(यह इंटरव्यू 3 अगस्त 2003 को हरिभूमि अखबार में प्रकाशित हुआ है और वर्ष 2004 में डाक्टर साहब पर लिखी मेरी किताब ‘मेरी स्याही में डाक्टर रमन’ में भी शामिल है।) इस इंटरव्यू को याद मैंने इसलिए किया क्योंकि अब यदि मुख्यमंत्री बनने के साढे सात साल बाद यदि डाक्टर साहब अपने मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान के वितरण को लेकर यदि पुस्तक के रूप में प्रकाशित करते तो शायद इस पुस्तक का नाम ‘डा. रमन के हम्माम में नेता पत्रकार सब नंगे’ ही होता।
सूचना के अधिकार के तहत मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान के बंटवारे की जानकारी जब मैंने निकाली और इस सूची का अवलोकन किया तो मुझे डाक्टर साहब का बरसों पुराना इंटरव्यू याद आ गया और साथ ही जेहन में इसका शीर्षक भी आ गया। मैं बता दूं कि मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान की जो सूची मेरे पास है उसमें वर्ष 2003 से लेकर 2009 तक के वितरण की जानकारी है। पूरे प्रदेश भर की जानकारी है लेकिन उसमें से मैंने राजनांदगांव जिले के कुछ प्रमुख और चर्चितनेताओं और पत्रकारों की सूची को ही छांटी है। शेष प्रदेश की सूची भी यदि यहां मैं दे दूं तो कई पन्ने भर जाएंगे और इसमें एक दिक्कत यह भी है कि प्रदेश भर के लोगों में कौन किस पार्टी का है, किस पद पर है इस पर काफी ‘होमवर्क’ करना पडेगा। पत्रकारों के अखबारों को लेकर भी तगडा होमवर्क करना पडेगा। इस लिए मैंने सिर्फ ‘ट्रेलर’ के तौर पर सिर्फ राजनांदगांव के पत्रकारों, नेताओं की सूची तैयार की है। अब ट्रेलर देखकर ही पूरी फिल्म का अंदाजा लगा लिया जाए।
जहां तक मेरी समझ है, किसी भी मंत्री या मुख्यमंत्री को ‘स्चेच्छानुदान’ का अधिकार दिया जाता है, क्षेत्र की जनता की मदद के लिए। चाहे वह इलाज के लिए हो या जीविकोपार्जन के लिए। जनता भी ऐसी जो सक्षम न हो, गरीब हो, जिसे वास्तव में मदद की दरकार हो। पर मुख्यमंत्री साहब की निधि के वितरण को देखकर ऐसा कतई नहीं लगता। मालदार नेता जिनमें कुछ तो दो तीन हजार रूपए की मदद लेने के बाद अब विधायक भी बन गए हैं। लालबत्ती धारी हो गए हैं। पत्रकार भी ऐसे जो सक्षम हैं। जिनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि आर्थिक रूप से मजबूत है।
अब चलिए नाम भी दे ही देता हूं। पहले नेताओं का उसके बाद पत्रकारों का। मई 2004 में संघ से जुडे नेता रामेश्वर जोशी को हृदय रोग के उपचार के लिए 25 हजार रूपए, श्री जोशी को जून 2007 में फिर से इलाज के लिए 25 हजार रूपए, जुलाई 2004 में राजनांदगांव नगर निगम में पार्षद रहीं डा रेखा मेश्राम को इलाज के लिए 20 हजार रूपए, अगस्त 2004 में मौजूदा जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक के अध्यक्ष शशिकांत व्दिवेदी की पत्नी विदया व्दिवेदी को हृदय रोग के इलाज के लिए 25 हजार रूपए, श्री व्दिवेदी को इससे पहले जून 2004 में पुत्री रानू के इलाज के लिए 15 हजार रूपए, जून 2005 में भाजपा नेता योगेश दत्त मिश्रा को दुर्घटना में घायह होने पर इलाज के लिए 20 हजार रूपए, अगस्त 2005 में भाजपा नेता और कृषि उपज मंडी के उपाध्यक्ष कोमल सिंह राजपूत को पुत्र के इलाज के लिए 10 हजार रूपए, डोंगरगढ क्षेत्र के जनपद सदस्य रहे राजकुमार व्दिवेदी को स्वयं के इलाज के लिए 25 हजार रूपए, मई 2005 में डोंगरगढ के मौजूदा विधायक रामजी भारती को इलाज के लिए 10 हजार रूपए, मार्च 2006 में डोंगरगांव के मौजूदा विधायक खेदूराम साहू को पुत्र खेमचंद के मानसिक रोग के इलाज के लिए 5 हजार रूपए, इसी काम के लिए खेदूराम साहू को मई 2006 में 10 हजार रूपए, अगस्त 2007 में 3 हजार रूपए और फरवरी 2008 में पांच हजार रूपए, फरवरी 2008 में भाजपा नेता गुलाब गोस्वामी को पत्नी अनिता के इलाज के लिए 50 हजार रूपए, जून 2008 में भाजपा उपाध्यक्ष धनराज शर्मा को पत्नी निर्मल के इलाज के लिए 30 हजार रूपए, जून 2008 में भाजपा नेता मुकेश बघेल को इलाज के लिए 25 हजार रूपए, जुलाई 2008 में भाजपा पार्षद सलमा बेगम को पुत्र की शादी के लिए 10 हजार रूपए मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान से जारी किए गए। समाजिक संस्थाओं से जुडे लोगों की बात की जाए तो राजनांदगांव में चक्रधर कत्थक कल्याण केन्द्र के नाम से संस्था चलाने वाले कृष्ण कुमार सिन्हा को दिसम्बर 2008 में हृदय रोग के इलाज के लिए 20 हजार रूपए और फिर मई 2009 में पुस्तकालय और वादय यंत्र के लिए 50 हजार रूपए दिए गए। रघुवीर रामायण समिति के उपाध्यक्ष गुरूचरण मखीजा को मानस गान प्रतियोगिता के लिए 10 हजार रूपए दिए गए। स्टेट बैंक में अधिकारी और लोक सांस्कृतिक संस्था चलाने वाली कविता वासनिक को वाष्प यंत्र हेतु 11 हजार रूपए जुलाई 2003 में दिया गया। जून 2003 में शैक्षणिक इंस्टीटयूट चलाने वाले सुशील कोठारी को उच्च शैक्षणिक योग्यता के लिए 11 हजार रूपए दिए गए।(यह आबंटन अजीत जोगी के मुख्यमंत्रित्व काल में हुआ)
अब पत्रकारों की बात की जाए तो जुलाई 2005 में खुद का अखबार निकालने वाले सुरेश सर्वेद को दुर्घटना में घायल होने पर 10 हजार रूपए, अगस्त 2005 में डोंगरगढ के पत्रकार नैनकुमार जनबंधु को अत्यंत गरीब बताते हुए 5 हजार रूपए, दिसम्बर 2005 में जागरण के पत्रकार रवि मुदिराज को पैर की हडडी के उपचार के लिए 15 हजार रूपए, दिसम्बर 2006 में स्वयं का अखबार निकालने वाले श्रीपाल शर्मा को पौत्र ध्रुव के इलाज के लिए 20 हजार रूपए, अप्रैल 2007 में सबेरा संकेत की पत्रकार प्रेरणा तिवारी को 25 हजार रूपए, अगस्त 2007 में हरिभूमि के पत्रकार आलोक तिवारी को फूफा के हृदय रोग के इलाज के लिए 25 हजार रूपए, जनवरी 2008 में हरिभूमि के पत्रकार सचिन अग्रहरि को चाचा के इलाज के लिए 1 लाख रूपए, जून 2008 में सबेरा संकेत के पत्रकार प्रेम प्रकाश साहू को भाई उपेन्द्र के इलाज के लिए 30 हजार रूपए, जनवरी 2009 में साहित्यकार आभा श्रीवास्तव को इलाज के लिए 10 हजार रूपए, आभा को ही फरवरी 2007 में कविता संग्रह के प्रकाशन के लिए 10 हजार रूपए, अप्रैल 2007 में पत्रकार लालाराम सोनी को पत्नी के इलाज के लिए 10 हजार रूपए दिए गए।
ये सूची तो महज एक उदाहरण है। राजनांदगांव जिले भर के भाजपा के छोटे औ बडे नेताओं को इलाज या फिर दिगर कामों के लिए मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान से जारी की गई राशि का उल्लेख किया जाए या फिर पूरे पत्रकारों का, सामाजिक संस्थाओं का नाम लिखा जाए तो मैंने पहले ही कहा कई पन्ने भर जाएंगे। ये तो प्रतीक भर हैं, ये दिखाने के लिए कि ऐसी निधियों का क्या हाल होता है।
क्या कहेंग आप ? और क्या जवाब है इसका सांसद रहने अपनी निधि के किताब के रूप में प्रकाशित कराने का दंभ भरने वाले मुख्यमंत्री डा रमन सिंह का। जवाब का इंतजार रहेगा।
सही kah rahe हो atul जी in nidhiyon ka यही hashr hota है.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति ...।
जवाब देंहटाएंहम्माम में सब नंगे हैं।
जवाब देंहटाएंकोई भी पार्टी हो नेता एक से ही चोर हैं। अच्छा आलेख। आभार।
जवाब देंहटाएंश्रीमान ये तो हर जगह की ब्यथा कथा है..
जवाब देंहटाएंचलो यें आंकड़े कुल जोड़ कर भी कुछ लाख या १-२ करोड़ होंगे..
लेकिन यहाँ तो केंद्र से ही लाखो करोडो खाने का पथ पढाया जा रहा है...
सच कहा आप ने..हमाम में सब नंगे...
इस तरह के अनुदान राजशाही परंपरा की याद दिलाते हैं
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही ...हकीकत का आइना पोस्ट....
जवाब देंहटाएंहकीक़त का खुलासा खूबसूरती से करती रचना |
जवाब देंहटाएंयह बिल्कुल ग़लत हो रहा है।
जवाब देंहटाएंआपकी निर्भीक और सजग पत्रकारिता स्वागतेय है।
सटीक विश्लेषण और बेहतरीन आकड़ों के साथ सफेदपोशी की पोल खोलती बेहतरीन पोस्ट ।
जवाब देंहटाएंBrother,
जवाब देंहटाएंLet them enjoy...
Symbiotic relation hai....
Ha ha ha!
स्थिति गंभीर और चिंताजनक।
जवाब देंहटाएंअनुदान लेने की क्षमता जिनमें है, वह उन्हें ही मिलते हैं। आभार।
जवाब देंहटाएंवर्तमान व्यवस्था को आईना दिखाती पोस्ट , आपने जो तथ्यों सहित वर्णन किया है यह आपकी जानकारी को दर्शाता है .
जवाब देंहटाएंअज के हालात का आईना दिखाती पोस्ट। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंअंधा बांटे रेवडी, अपने-अपनों को दे...
जवाब देंहटाएंअच्छी पत्रकारिता का उदाहरण पेश किया है आपने। इमानदार बंटवारा ऐसा है तो....!
जवाब देंहटाएंसटीक विश्लेषण के साथ वर्तमान व्यवस्था का
जवाब देंहटाएंखुलासा करती बेहतरीन पोस्ट
शाबाश अतुल...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
वर्तमान अव्यवस्था का सटीक विवरण व विश्लेषण ...निर्भीक लेखन के लिए आपका आभार ...
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