1706। ये अधिकृत आंकडा था आज दोपहर करीब सवा दो बजे से पहले। जी हा! भारत में बाघ यानि राष्ट्रीय पशु की मौजूदगी का आंकडा। सवा दो बजे के बाद ये आंकडा कम हो गया...... एक बाघ कम हो गया। राजनांदगांव के छुरिया इलाके के एक गांव बखरूटोला में आज ग्रामीणों की उग्र भीड ने एक मादा बाघ को लाठी डंडों से पीट पीट कर मार डाला। फारेस्ट का अमला हाथ में हाथ धरा बैठा रहा। डीएफओ और उनकी पूरी टीम इस ‘हत्याकांड’ को लाईव देखती रही.... पर कोई कुछ नहीं कर सका। क्या बात सिर्फ इतनी थी कि करीब डेढ दो महीने से छत्तीसगढ और महाराष्ट्र की सीमा पर इस बाघिनी ने आतंक मचा रखा था और ग्रामीण अपने आसपास इसकी मौजूदगी से इतने दहशत में थे.... इतने भयभीत थे कि उन्हें इसे मारने का फैसला करना पडा और आखिरकार वो अपने मकसद में कामयाब हो गये।
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कहानी सिर्फ इतनी नहीं है। इस बाघिन को सिर्फ उससे भयभीत ग्रामीणों ने नहीं मारा है। वो तो सिर्फ माध्यम बने हैं... मौत के... दरअसल में इस बाघिन की मौत तो वन्य प्राणियों की रक्षा का दायित्व निभाने वालों ने खुद ही लिख दी थी। बस....वो तारीख आनी थी और आज वो आ गई। कहानी शुरू होती है, महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले से। अप्रैल महीने में इस जिले में इस बाघिन ने दो ग्रामीणों को मार दिया था और दो लोगों को जख्मी कर दिया था। इसी दौरान इस बाघिन पर किसी ने हमला किया था और उसकी आंख के पास टंगिए से मार पडी थी। इसके बाद से यह बाघिन कमजोर हो गई थी और चंद्रपुर के वन अमले ने इस बाघिन को ट्राइंकुलाईजन गन के जरिए बेहोश कर इसे पकडा था और इसका इलाज किया था। इसके बाद इस बाघिन को महाराष्ट्र के ही नवेगांव नेशनल पार्क में छोड दिया गया था। इसके बाद से ही कमजोर हो चुकी इस बाघिन ने पालतू मवेशियों और इंसानों को निशाना बनाना शुरू किया।
वाईल्ड लाईफ प्रोटेक्शन सोसायटी आफ सेन्ट्रल इंडिया के संचालक श्री नितिन देसाई कहते हैं, ‘बाघ जब कमजोर हो जाता है तब वह जंगल में रहने वाले जानवरों जैसे हिरण आदि का शिकार नहीं कर पाता तब वह पालतू मवेशियों की तरफ कूच करता है और इस बाघ के साथ भी यही हुआ।’ वे बताते हैं कि खुद पर हुए हमले के बाद यह बाघिन इतनी कमजोर हो गई थी कि वह ठीक से मवेशियों का शिकार भी नहीं कर पाती थी और इस वजह से वह इंसानों की ओर आकर्षित हुई। उनके मुताबिक इस बाघिन के कमजोर होने का प्रमाण यह है कि इसने किसी भी मवेशी को मारकर खाया नहीं, इसकी मार से मवेशी या तो चोट की वजह से मर जाते थे या फिर सिर्फ घायल होते थे, इसी से साबित होता है कि इसमें मवेशियों को भी पूरी तरह मारने की ताकत नहीं बची थी। ऐसे हालात में इसके सामने एक ही चारा बचा था वह था इंसानों को अपना शिकार बनाना.... लेकिन वह इस काम में भी पूरी तरह कामयाब नहीं हुई। उसने महाराष्ट्र के एक गांव मुडमाडी में भी महिला को मारा लेकिन वह इसे खा नहीं सकी।
नागपुर में रहकर वाइल्ड लाईफ के क्षेत्र में काम करने वाले श्री देसाई कहते हैं कि उस वक्त उनकी सोसायटी ने यह बात की थी कि इस घायल बाघिन को नेशनल पार्क में न छोडा जाए... क्योंकि वह शिकार करने में सक्षम नहीं, इसे जू(चिडियाघर) में रखा जा सकता है लेकिन इस राय पर ध्यान नहीं दिया गया और इस बाघिन को जंगल में छोड दिया गया। शिकार करने में अक्षम बाघिन ने गांवों और शहरों का रूख किया और इसकी कीमत उसे अपनी जान देकर चुकानी पडी। वे कहते हैं कि इस घटना को रोका जा सकता था।
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इस तरह कहा जा सकता है कि इस बाघिन की मौत के पीछे कहीं न कहीं उन अफसरों का दोष है जिन्होंने इसे घायल होने के बाद भी चिडियाघर में रखने के बजाय खुले में छोडने का निर्णय लिया और इसके बाद लगातार गल्तियां की जाती रहीं... ऐसी गल्तियां जो ग्रामीणों के गुस्से का कारण बनती रहीं और आखिरकार वही हुआ जिसका भय था।
ताजी बात करें तो करीब डेढ महीने पहले जब यह बाघिन पहली बार राजनांदगांव जिले में दिखी थी। छुरिया क्षेत्र के पंडरापानी गांव में यह सबसे पहले नजर आई। उस वक्त यहां का वन अमला इसे पकडने पहुंचा तो पर पर्याप्त तैयारी के अभाव में इसे पकडा नहीं जा सका। इसके बाद से लगातार यह लोगों को छकाती रही और शनिवार को जब यह बखरूटोला में दिखी तो फारेस्ट की लापरवाही ने ग्रामीणों के गुस्से की आग में घी डालने का काम किया। आज सुबह करीब पांच बजे यह एक खेत में दिखा। छह बजे तक हम तक खबर पहुंच गई। इस समय तक वन अमले को भी खबर हो गई थी। हम सुबह आठ बजे के आसपास गांव में पहुंच भी गए पर वन विभाग के अमले को गांव में पहुंचने में दोपहर के दो बज गए। कारण यह बताया गया कि ट्राइंकुलाईजन गन चलाने वाले एक्सपर्ट को रायपुर से बुलाया गया है, उनके आने के बाद अमला पहुंचेगा। तब तक ग्रामीणों ने शायद फैसला कर लिया था और उन्होंने फिर पंडरापानी की घटना न दोहराई जाए इस आशंका से बाघ को खुद ही मार डाला।
बहरहाल, अब डीएफओ यह कह रहे हैं कि इस मामले में वन्य प्राणी अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी पर बडा सवाल यह है कि यह कार्रवाई किस पर की जाएगी.....? छत्तीसगढ और महाराष्ट्र के दस हजार से ज्यादा की भीड पर..... ? या फिर उन लोगों पर जिन्होंने इस देश की राष्ट्रीय पशु के देखरेख में लापरवाही बरती और उसे कमजोर होने के बाद भी जंगल में एक तरह से मरने के लिए छोड दिया.... ? सवाल काफी हैं। इन सवालों का जवाब शायद ही मिले.... पर आज मैं भी उस घटना का साक्षी बना जिसमें बाघ को लोगों ने पीट पीटकर मार डाला। आखिर में लोग मृत बाघ के साथ अपनी तस्वीरें खिंचवाते रहे मानों उन लोगों ने कोई साहस का काम किया हो.......................!!!!!!!!
प्रशासनिक लापरवाही से बाघिन की जान चली गयी। जब बाघिन 3 लोगों की जान ले चुकी थी और शासन के ध्यान न देने के कारण आक्रोशित ग्रामीणों ने इसकी जघन्य हत्या जैसा कार्य अपनी जान बचाने के लिए कर डाला। अपराध उन पर दर्ज होना चाहिए जिन्होने लापरवाही की।
जवाब देंहटाएंयह हत्या है ..विशुद्व हत्या ..पर इसके लिए जिस विभाग को आप दोषी ठहरा रहे है ..मैं उससे सहमत नही हूं ..जंगल को उद्योग के हवाले कर दिया गया ...बहुतेरे ईलाके को इंसानों के हवाले कर दिया गया कि, लो इस पर खेत बना लो, घर बना लो ..जमीन की और दौलत की हवस ने जंगल को खत्म कर दिया ..मगर यह सब करते वक्त किसी ने यह नही सोचा कि, जंगल केवल पेडों की बस्ती नही है ..यहां इन जानवरों की शक्ल में जिंदगीयां भी है ..इन जानवरों की रिहाइश पर डकैती हुई ..ये जाएगे कहां ...बेहतर होता कि, आप इस बात को, जो कि, इस हत्याकांड की मूल वजह है उसे सामने लाते .. बाघिन को मेरी शोक संवेदना इन शब्दों के साथ कि, ..तूम सबको आतंकवादी मत समझना हालांकि यह सच है कि, अधिकांश आतंकवादी ही है ..
जवाब देंहटाएं@ ललित जी आपने सही कहा। असली गुनहगार तो वो लोग हैं जिन्होंने इस मामले में लापरवाही बरती।
जवाब देंहटाएं@ याज्ञवलक्य जी, सच कहा आपने यह हत्या है... विशुध्द हत्या। आपकी ये बात भी सही है कि जंगलों को जिस गति से खत्म किया जा रहा है उस कारण जंगल में रहने वाली जिंदगियों का ऐसे ही भटकते हुए रिहाईशी इलाकों में पहुंचना मजबूरी है.... पर फिलहाल मैंने इस विषय पर न लिखकर सिर्फ इस बाघिन पर लिखा है और इस बाघिन की कहानी पर लिखा है। एक कमजोर और घायल बाघिन को एक बार पकडने के बाद फिर से खुले में छोड देने का मुद्दा यहां पर है.... और शायद यही वजह बनी इसकी हत्या की... आपकी बात व्यापक परिदृश्य में सही है, इससे इंकार नहीं, और यह गंभीर चिंतन का विषय भी है पर इस 'हत्याकांड' की मूल वजह मुझे वही लगी जिसका मैंने यहां उल्लेख किया है।
जवाब देंहटाएंवन विभाग के द्वारा ट्रेंकिलाइजर गन के प्रभाव मे बेहोश किये गए शेर को मार डाला गया और वन विभाग - पुलिस का अमला हाथ पर हाथ बांधकर देखता रहा.सरकार है जिम्मेदार स्थिति को नियंत्रित न कर पानेके लिए. इसी कारण लुप्तप्राय हो रही प्रजाती "शेर" की ह्त्या हुयी.
जवाब देंहटाएंइस विलुप्त होते जा रहे प्राणी की संरक्षा के लाख वायदे और नियम क़ानून रहने के वाबज़ूद इन पर अत्याचार हो ही रहा है। बेहद चिंताजनक स्थिति है।
जवाब देंहटाएंभाई अतुल ,
जवाब देंहटाएंएक बेहद ज़रूरी विषय पर लिखा आपने। मानसिकता संकुचित होती जा रही है। हत्याएं आम हो रही हैं , इंसानों की हो या फिर पशु की । लोग sadistic pleasure पाने लगे हैं ऐसे कृत्यों में। अति निंदनीय एवं घृणित कार्य।
हैवानियत का दौर आज किस क़दर हावी है इस कृत्य से कुछ-कुछ स्पष्ट है...प्रशासनिक तंत्र की नाकामी से हुई इस बाघिन की जघन्य हत्या से भारत के "सेव टाईगर प्रोजेक्ट" को क्षति पहुंची है ! नक्सल प्रभावित क्षेत्र की वारदात समझ कर इस प्रकरण को भी काग़ज़ी पुलिन्दों की आड़ में दबा दिया जायेगा....अफसोस नाक़ामी की दास्तानें आख़िर इस तथाकथित प्रगतिशील राज्य में आख़िर कब तक यूं ही बदस्तूर लिखी जाती रहेंगी.........
जवाब देंहटाएं@शैलेष जी प्रशासनिक लापरवाही का नजीता है यह घटना। वन अमले को तो इसे ट्राइंकुलाईज करने का मौका ही नहीं मिल पाया। वैसे स्थिति ऐसी थी कि यदि इस काम में वन अमला सफल भी हो जाता तो ग्रामीण उन्हें बाघ को जिंदा ले जाने नहीं देते।
जवाब देंहटाएं@मनोज जी सच में चिंताजनक स्थिति है यह।
@ दिव्या जी शुक्रिया। सही कहा आपने निंदनीय घटना।
@ अली जी। सेव टाईगर प्रोजेक्ट के नाम पर कारोडों रूपए आ रहे हैं, पर इस दिशा में काम उतनी इमानदारी से नहीं हो रहा है। शुक्रिया आपका।
sirf afsos hi kiya ja sakta hai.
जवाब देंहटाएंप्रशासनिक लापरवाही का नतीजा है | सरकार को कुछ कदम उठाने चाहिए|
जवाब देंहटाएंइंसानों और हैवानों दोनों को बचाने की ज़रूरत है. मेनका गाँधी के एनजीओज़ को भी शिक्षा की ज़रूरत है जिन्होंने जानवरों को बचाने के बहाने इंसानों को अधिक पीड़ा दी है.
जवाब देंहटाएंयह कैसा अन्याय है ?
जवाब देंहटाएंhttp://hbfint.blogspot.com/
बहुत ही उम्दा प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंदुखद
जवाब देंहटाएंसरकार ही जिम्मेदार है, इस स्थिति को नियंत्रित न कर पाने और इस हत्या के लिए भी. सिर्फ कानून बना देना ही अपने दायित्व की इतिश्री नहीं है और यही कारण है, कि लुप्तप्राय होती जा रही है यह प्रजाती...
जवाब देंहटाएंयह सच है कि बाघिन इंसानों के जैसे सोच नहीं सकती थी, लेकिन इंसानों की सोच भी बाघिन के जैसी हो गई यह तथ्य सोचनीय है, बाघिन सिर्फ अपनी व्यवहार को जी रही थी, लेकिन इंसानों को बाघिन के जैसा व्यवहार करना उचित नहीं था, यह बात भी सच है कि इंसानों को बाघिन के व्यवहार का अनुकरण करने के लिए यहां की सरकार ने जानबूझ कर विवश किया। बेहद ही दुखद घटना है अतुल जी।
जवाब देंहटाएंतथ्यपरक उम्दा प्रस्तुती...
जवाब देंहटाएं@ अनिल भैया शुक्रिया।
जवाब देंहटाएं@ सुनील जी पूरी तरह प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा है यह। पर सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। जब से इस बाघ को लोग आदमखोर समझने लगे थे और मीडिया भी इस बात को लिखने लगी थी तब ही वन्य प्राणी संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वालों ने वन मंत्री तक यह बात पहुंचाई थी कि इस भ्रम को दूर कीजिए.... पर वो कुछ नहीं कर पाए और ये हादसा हो गया।
@ भूषण जी शुक्रिया।
@ अनवर जमाल जी धन्यवाद।
@ सोनू जी धन्यवाद।
@ अरूण जी शुक्रिया।
@ संध्या जी आपने सही कहा। सिर्फ कानून बना देने से कुछ नहीं होने वाला। इसका पालन सुनिश्चित करना भी सरकार की जिम्मेदारी है... और यही नहीं हो पा रहा है जिस वजह से देश में राष्ट्रीय पशु की संख्या कम होते जा रही है।
जवाब देंहटाएं@ नीरज जी आपने बेहतरीन बात की कि बाघिन सिर्फ अपने व्यवहार को जी रही थी, लेकिन सरकार की लापरवाही ने आम लोगों को बाघिन के व्यवहार का अनुसरण करने विवश कर दिया।
@ गुरजीत जी आपका धन्यवाद।
बहुत क्षोभपूर्ण दुखद घटना.
जवाब देंहटाएंऐसी नृशंसता को रोकने को लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए. फिर बाघ लुप्त होने के संकटों से घिरी प्रजाति है, यह ध्यान रखना ही होगा.
अतुल श्रीवास्तव जी,
जवाब देंहटाएंफालोवर्स का आप्शन खुला है. संभवतः किसी तकनीकी कारण से नहीं दिखा होगा. कृपया री-लोड कर लें.
मेरे सभी ब्गॉग्स पर आपका हार्दिक स्वागत है.
@ डा. शरद सिंह जी आपने सही कहा ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इसके लिए कठोर कदम उठाने होंगे वरना बाघ की प्रजाति इतिहास की बात बनकर रह जाएगी। आभार आपका।
जवाब देंहटाएंहमारा समाज कुछ वर्ष पूर्व तक बाघों को मारने पर शिकारियों को सम्मान देता था। इसलिए अभी समाज का नजरिया बदला नहीं है। किसी भी घातक प्राणी को वे मारने को उतारू हो जाते हैं। सांप देखे या बिच्छू या कुछ और, बस इस सृष्टि पर केवल मनुष्य को ही सुरक्षित रहना है, इसलिए जहाँ भी खतरा हो उसे समाप्त कर दो। यह सृष्टि सभी जीवों के लिए बनी है, इसपर सभी का हक है। लेकिन आज दुर्भाग्य से हमने केवल इसे मनुष्यों के रहने के लिए ही संरक्षित करने का निश्चय किया है। इसी का परिणाम ऐसी घटनाओं का होना है।
जवाब देंहटाएंतुम्हारा आलेख कई बातों को सोचने पर मजबूर करता है, इसे समग्र चिंतनपरक आलेख की श्रेणी में रखा जा सकता है। ऐसी ही पत्रकारिता की आज आवश्यकता है। जो समाज का सम्पूर्ण चिंतन सामने रखे। बहुत बधाई और आशीष।
@ अजीत जी आभार आपका। आपने सही कहा। आज भी पुराने राजा महाराजाओं के घरों में बाघों और जंगल में रहने वाले जानवरों की भूंसे भरी खालें और उनके साथ लाश के साथ राजा महाराजाओं के तैल चित्र इस बात का प्रमाण है। सृष्टि के संतुलन को बनाए रखने के लिए सभी जीवों को समान अधिकार है, लेकिन अपने हित के लिए मनुष्य वन्य जीवों के क्षेत्रों में अतिक्रमण कर रहे हैं और इसके बाद जब वन्य जीव अपने स्वभाव को जी रहे हैं तो उन्हें खत्म करने का काम किया जा रहा है। दुर्भाग्य यह है कि वन्य जीवों के संरक्षण का दायित्व निभाने वाले इस मुद्दे को लेकर लापरवाह बने हुए हैं। यह बडे चिंता का विषय है।
जवाब देंहटाएंसरकार ही जिम्मेदार है,प्रशासन को कुछ कदम उठाने चाहिए |
जवाब देंहटाएं"जानवर कोन " हे |
जवाब देंहटाएंhumm...ye logo ko galat bhi nhi kaha ja sakta..ye kami adhikariyon ki hain...
जवाब देंहटाएं@संजय जी सही कहा, घटना के लिए सरकार ही जिम्मेदार है।
जवाब देंहटाएं@शास्त्री जी आपका आभार।
@विजय जी सच में बडा सवाल है.... जानवर कौन....?
@शुक्रिया रीना जी।
सुन्दर प्रस्तुति पर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई ||
प्रशासनिक लापरवाही, लोगों का भय और भीड़ का गुस्सा...इन तीनों का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा हमारे राष्ट्रीय पशु को...
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक लेखन... अभी यही गीत गूंज रहा था मन में रोशनी जी पोस्ट पढ़ते हुए....
जवाब देंहटाएंसादर...
प्रशासनिक लापरवाही से हुई ह्त्या है यह तो
जवाब देंहटाएंजिम्मेदार सरकारी अमले पर निश्चित ही कार्यवाही होनी चाहिए
fghkghlh
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