16 जून 2012

शीर्षक सुझाएं.....


कुछ दिनो पूर्व एक अखबार के शीर्षक और इसे लेकर फेसबुक पर चली लंबी बहस ने काफी कुछ सोचने मजबूर किया। अखबार में एक खबर का फालोअप था और शीर्षक था, ‘फेसबुक से फर्जी मुख्‍यमंत्री की आईडी गायब!’। दरअसल, अखबार में कुछ दिनों पूर्व खबर छपी थी कि छत्‍तीसगढ के मुख्‍यमंत्री डा रमन सिंह फेसबुक पर आईडी बनाकर आए हैं और वो फेसबुक की ‘टैग टेक्‍नालाजी’ से परेशान हैं। इसी अखबार ने दो दिन बाद खबर छापी कि मुख्‍यमंत्री की वह आईडी फर्जी है। इसके बाद फालोआप में यह खबर छपी, जिसका यहां जिक्र कर रहा हूं।
इस खबर से संबंधित खबर, इस अखबार में छपने से एक दिन पहले ही हमने अपने अखबार में प्रकाशित की थी, जिसका  शीर्षक था, ‘मुख्‍यमंत्री फेसबुक पर’। इस खबर में स्‍पष्‍ट तौर पर उल्‍लेख किया गया था, कि यदि यह आईडी वास्‍तव में मुख्‍यमंत्री की है तो यह अच्‍छा संकेत है... खैर.....
खबर को लेकर फालोअप छपा और संदर्भित फालोअप ने फेसबुक पर बहस का माहौल खडा कर दिया। एक सज्‍जन का कहना था कि यह शीर्षक तकनीकी दृष्टि से ठीक नहीं। उनकी आपत्ति थी कि शीर्षक से ऐसा लग रहा है मानो मुख्‍यमंत्री फर्जी हों...! एक अन्‍य का कहना था कि शीर्षक सही है।
जहां तक मेरी बुध्दि काम कर रही है, मुझे यह शीर्षक कुछ ठीक नहीं लग रहा। मैंने इस शीषर्क का पोस्‍टमार्टम किया और इस नतीजे पर पहुंचा कि शीर्षक लिखने वाले से तकनीकी तौर पर गलती हुइ है। यह शीर्षक अपने आप में अधूरा और भ्रम फैलाने वाला लग रहा है। शीर्षक से यह कहीं से स्‍थापित नहीं हो रहा है कि जिस व्‍यक्ति ने फर्जी आईडी बनाई थी, उसने आईडी को गायब कर दिया है।
यदि मैं होता तो मैं शीर्षक देता, ‘फेसबुक से मुख्‍यमंत्री की फर्जी आईडी गायब!’ या फिर लिखता, ‘फेसबुक से फर्जी मुख्‍यमंत्री गायब!
इसी उहापोह में मैंने एक वरिष्‍ठ पत्रकार से बात की। फिलहाल मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल में स्‍वतंत्र पत्रकारिता और लेखन कर रहे डा म‍हेश परिमल, छत्‍तीसगढ में काम कर चुके हैं। उन्‍होंने अखबारों के शीर्षक पर ही पीएचडी की हुई है। उनके सामने मैंने सारी बातों को रखी और उनसे जानना चाहा कि इस खबर में शीर्षक क्‍या होना चाहिए? उनका कहना था कि मुख्‍यमंत्री फर्जी नहीं हो सकता। फर्जी आईडी हो सकती है, इसलिए शीर्षक यही सही होगा, ‘फेसबुक से मुख्‍यमंत्री की फर्जी आईडी गायब।’
डा परिमल का कहना था कि शब्‍दों के हेरफेर से पूरा अर्थ ही बदल जाता है। उन्‍होंने कुछ उदाहरण भी दिए। उनके मुताबिक तीन शब्‍द हैं, सानिया, उम्‍मीद और से.... इन तीन शब्‍दों को यदि ऐसा लिखा जाए कि ‘सानिया से उम्‍मीद’ तो उसका अर्थ अलग होगा और यदि ऐसा लिख जाए कि ‘सानिया उम्‍मीद से’ तो उसका अर्थ ही बदल जाएगा। एक और उदाहरण उन्‍होंने दिया कि ‘फलां व्‍यक्ति चुनाव लडने से अयोग्‍य’ यह गलत होगा, क्‍योंकि कोई भी अयोग्‍य कभी नहीं होता, होना यह चाहिए कि ‘फलां व्‍यक्ति चुनाव लडने अपात्र’। 
इससे हटकर एक उदाहरण डा परिमल ने और दिया। उन्‍होंने बताया कि हिंदी के तीन शब्‍दों 'सफेद', 'लाल' और 'ताजा' का कोई स्‍त्रीलिंग, पुलिंग और बहुवचन-एक वचन नहीं होता। उन्‍होंने कहा कि ये श्‍ाब्‍द कहीं भी उपयोग में आएं, नहीं बदलेंगे। जैसे ताजा दूध, ताजा सब्‍जी ही होंगे, ताजी दूध या ताजी सब्‍जी नहीं होगा। पीले रंग के लिए कहा जा सकता है कि पीले रंग में रंगी, पर सफेद रंग को लेकर या लाल रंग को लेकर बात होगी तो यही कहा जाएगा कि सफेद रंग में रंगा, या लाल रंग में रंगा। 
एक उदाहरण मेरे भी जेहन में आया, ‘ताजा गाय का दूध’ और ‘गाय का ताजा दूध’ .......
आप इस पर क्‍या कहते हैं....... 

(मैं बहस नहीं करना चाहता, अपना ज्ञान बढाना चाहता हूं, इसलिए इस पर बहस न कर अपने हिसाब से शीर्षक सुझाने का कष्‍ट करें।)

17 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ विद्वान ये भी कह सकते हैं कि बासी दूध होता ही नहीं है वो दही हो जाता है इसलिए जो ताजा होगा वही दूध के रूप में होगा इसलिए ताजा दूध शब्द सही नहीं ..उनके हिसाब से ताजा गाय का ही दूध होना चाहिए .. जैसे फर्जी मुख्यमंत्री की आईडी । मैं चाहता तो ये था कि ये टिप्पणी मैं अपने फर्जी आईडी से करूँ लेकिन फिर आप लिख देते कि फर्जी संजय महापात्र की आईडी से टिप्पणी आई है इसलिए ओरिजनल से ही करना उचित समझा ।




    खैर इन बातों से इतर मूल मुद्दा ये है कि आपके इस ब्लाग के लिए शीर्षक सुझाने का अनुरोध किया है तो मेरे विचार से सर्वोत्तम शीर्षक तो यही होगा .....

    """"" त्वरित टिप्पणी """"""""

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  2. ‘फेसबुक से मुख्‍यमंत्री की फर्जी आईडी गायब!’
    अतुल जी! सही शीर्षक यही होगा

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  3. ‘फेसबुक से मुख्‍यमंत्री की फर्जी आईडी गायब!’

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  4. हरिभूमि ने यह कमाल किया था। वर्तमान में विज्ञापन के पीछे दौड़ते अखबारों की खबरों के शीर्षक सनसनी फ़ैलाने के लिए होते है तथा समाचार में भी वर्तनी की त्रुटियों के साथ भाषा की बहुत अशुद्धियां होती है।

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  5. ‘ताजा गाय का दूध’ यही शीर्षक सही है ... बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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  6. ताजी सब्‍जी bahut prachlit haen hamesha kehaa jaataa haen

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  7. फेसबुक से मुख्‍यमंत्री की फर्जी आईडी गायब!
    यह शीर्षक सही है...

    और दूसरा..मेरे हिसाब से...
    गाय का ताजा ढूध......
    मेरे हिसाब से...
    :-)

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  8. रंगों का जेंडर वाली बात जमी नहीं......
    सफ़ेद रंग में रंगी चादर...
    लाल रंग में रंगी गाय.....
    कहाँ गलत है ये???
    लिंग तो जो संज्ञा प्रयुक्त हुई है उसके अनुसार रहता है...
    सफ़ेद रंग में रंगा दरवाज़ा/रंगी खिड़की
    लाल रंग में रंगा रुमाल...
    :-)

    सादर

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  9. हमारी बड़ी मेहनत से की गयी टिप्पणी कहाँ है???

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  10. शब्दों के हेर फेर से ही नहीं नुक्ते के हेर फेर से भी गड़बड़ी या अर्थ का अनर्थ हो जाता है ---
    उसे सजा दो
    उसे सज़ा दो
    उसकी जंग
    उसकी ज़ंग

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  11. गाय का ताजा ढूध......लिन्ग के बारे में भी एक्सप्रेशन का एक्सपेशन ही सही है ...डा परिमल का गलत... विशेषण विशेष्य-कर्ता से पहले आना चाहिये....

    ---वैसे आलेख का सबसे अच्छा शीर्षक.."मैं बहस नहीं करना चाहता" ...होना चाहिये..... बिना बहस कहीं ग्यान को पन्ख मिलते हैं यार ...............

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  12. शीर्षक तो वही सही है जो आपने बताया।

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  13. मुख्‍यमंत्री की फर्जी आईडी गायब फेसबुक से

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