भारत के खिलाफ युद्ध छेडऩे के दोषी पाए गए मुंबई हमले के एकमात्र जीवित पकड़े गए आतंकी अजमल कसाब को आखिरकार बुधवार की सुबह फांसी दे दी गई। पुणे के यरवदा जेल में बेहद गोपनीय तरीके से कसाब की फांसी की घटना को अंजाम दिया गया। इस कवायद को आपरेशन एक्स का नाम दिया गया था और सरकार ने पूरी गोपनीयता के साथ कसाब को उसके अंजाम तक पहुंचाया। खबर तब बाहर आई जब कसाब को फांसी दे दी गई। यह एक बेहतर तरीका था। नवम्बर 2008 में मुंबई में हुए हमले के बाद एकमात्र जीवित पकड़े गए आतंकी कसाब की फांसी को लेकर लगातार दबाव बढ़ता जा रहा था और एक के बाद एक अदालतों से उसकी फांसी पर मुहर लग जाने के बाद सारा दारोमदार राष्ट्रपति पर था। इससे पहले भी कई आतंकियों और अन्य अपराधियों की दया याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित थी, इससे अनुमान लगाया जा रहा था कि कसाब का मामला भी लंबा लटक सकता है और इसे लेकर सरकार की आलोचना भी हर स्तर पर होती थी लेकिन जिस तरीके से कसाब के मामले में कार्रवाई की गई और सारी कार्रवाई को गोपनीय रखा गया, उसने मसले पर निर्णय लेने और उस पर अमल करने की एक ठोस रणनीति को दर्शाता है।
अब जब कसाब को फांसी दे दी गई है और कसाब को युद्ध के लिए भारत की सरजमीं में भेजने वाले पाकिस्तान ने कसाब की लाश को लेने से इंकार कर दिया है, एक बात तो साफ हो गई है कि पाकिस्तान, जो सारी आतंकी गतिविधियों का केन्द्र रहा है, शुरू से इससे बचने की कोशिश करता रहा है और आखिर में भी उसने खुद को इससे अलग करने की रणनीति अख्तियार कर रहा है लेकिन इतना तय है कि वह पूरी तरह बेनकाब हो चुका है। मुंबई हमले मामले में अदालत में हर स्तर पर यह साबित हो चुका है कि कसाब पाकिस्तान का ही है और पाकिस्तान में ही भारत पर हमले की रणनीति तैयार की गई थी। पाकिस्तान खुद को कितना भी बचाने की कोशिश करे, उसकी नालायकी जगजाहिर हो चुकी है और अब जरूरत है, उसे जवाब देने की।
कसाब की फांसी के बाद राजनीतिक हल्कों में एक सवाल उठ रहा है, अफजल गुरू को लेकर। अफजल गुरू देश की संसद पर हमले का मास्टर माइंड है। उसे भी अदालत ने फांसी दे दी है, लेकिन उसका मामला भी लटका हुआ है। अफजल को फांसी दिए जाने की मांग उठने लगी है। कितना आश्चर्यजनक है कि एक दिन पहले ही संयुक्त राष्ट्र में सजा ए मौत पर प्रतिबंध लगाने के लिए वोटिंग कराई गई थी और इस प्रस्ताव के विरोध में भारत सहित करीब 39 देशों ने मतदान किया था। दुनिया के करीब 110 देश प्रस्ताव के समर्थन में थे। भारत ने कल ही प्रस्ताव का विरोध किया और एक दिन बाद देश के गुनहगार को फांसी दे दी। राष्ट्रपति ने सात नवम्बर को ही कसाब की फांसी माफी की अपील ठुकरा दी थी और उसी दिन फांसी की तारीख (21 नवम्बर) तय हो गई थी, लेकिन सब कुछ गोपनीय रखा गया। यह जरूरी भी था। और तय समय पर कसाब को अंजाम पर पहुंचा दिया गया।
देश के खिलाफ युद्ध छेडऩे वाले किसी भी व्यक्ति को माफी नहीं मिलनी चाहिए। कसाब की फांसी स्वागत योग्य है लेकिन सरकार को यहीं पर मामले को खत्म नहीं समझना चाहिए। कसाब तो एक मोहरा भर था। असली लोग तो अब भी पाकिस्तान में छुपे हुए हैं। पाकिस्तान ने कसाब के शव को लेने से इंकार कर एक तरह से भारत के कानून के फैसले से अपनी असहमति जाहिर की है, अब जरूरत है पाकिस्तान पर दबाव बनाने की, उन सारे लोगों को पकड कर सजा दिलाने की, जिन लोगों ने मुंबई हमले की साजिश रची थी। यदि इस काम में पाकिस्तान मदद नहीं करता, जैसे की उम्मीद है तो भारत को पाकिस्तान के साथ उसी तरह का बर्ताव करना चाहिए, जैसा एक दुश्मन देश के साथ किया जाता है और इसके लिए सजा ए मौत के प्रस्ताव में भारत के साथ साथ राय रखने वाले अमेरिका का उदाहरण भारत के सामने है।
अब जब कसाब को फांसी दे दी गई है और कसाब को युद्ध के लिए भारत की सरजमीं में भेजने वाले पाकिस्तान ने कसाब की लाश को लेने से इंकार कर दिया है, एक बात तो साफ हो गई है कि पाकिस्तान, जो सारी आतंकी गतिविधियों का केन्द्र रहा है, शुरू से इससे बचने की कोशिश करता रहा है और आखिर में भी उसने खुद को इससे अलग करने की रणनीति अख्तियार कर रहा है लेकिन इतना तय है कि वह पूरी तरह बेनकाब हो चुका है। मुंबई हमले मामले में अदालत में हर स्तर पर यह साबित हो चुका है कि कसाब पाकिस्तान का ही है और पाकिस्तान में ही भारत पर हमले की रणनीति तैयार की गई थी। पाकिस्तान खुद को कितना भी बचाने की कोशिश करे, उसकी नालायकी जगजाहिर हो चुकी है और अब जरूरत है, उसे जवाब देने की।
कसाब की फांसी के बाद राजनीतिक हल्कों में एक सवाल उठ रहा है, अफजल गुरू को लेकर। अफजल गुरू देश की संसद पर हमले का मास्टर माइंड है। उसे भी अदालत ने फांसी दे दी है, लेकिन उसका मामला भी लटका हुआ है। अफजल को फांसी दिए जाने की मांग उठने लगी है। कितना आश्चर्यजनक है कि एक दिन पहले ही संयुक्त राष्ट्र में सजा ए मौत पर प्रतिबंध लगाने के लिए वोटिंग कराई गई थी और इस प्रस्ताव के विरोध में भारत सहित करीब 39 देशों ने मतदान किया था। दुनिया के करीब 110 देश प्रस्ताव के समर्थन में थे। भारत ने कल ही प्रस्ताव का विरोध किया और एक दिन बाद देश के गुनहगार को फांसी दे दी। राष्ट्रपति ने सात नवम्बर को ही कसाब की फांसी माफी की अपील ठुकरा दी थी और उसी दिन फांसी की तारीख (21 नवम्बर) तय हो गई थी, लेकिन सब कुछ गोपनीय रखा गया। यह जरूरी भी था। और तय समय पर कसाब को अंजाम पर पहुंचा दिया गया।
देश के खिलाफ युद्ध छेडऩे वाले किसी भी व्यक्ति को माफी नहीं मिलनी चाहिए। कसाब की फांसी स्वागत योग्य है लेकिन सरकार को यहीं पर मामले को खत्म नहीं समझना चाहिए। कसाब तो एक मोहरा भर था। असली लोग तो अब भी पाकिस्तान में छुपे हुए हैं। पाकिस्तान ने कसाब के शव को लेने से इंकार कर एक तरह से भारत के कानून के फैसले से अपनी असहमति जाहिर की है, अब जरूरत है पाकिस्तान पर दबाव बनाने की, उन सारे लोगों को पकड कर सजा दिलाने की, जिन लोगों ने मुंबई हमले की साजिश रची थी। यदि इस काम में पाकिस्तान मदद नहीं करता, जैसे की उम्मीद है तो भारत को पाकिस्तान के साथ उसी तरह का बर्ताव करना चाहिए, जैसा एक दुश्मन देश के साथ किया जाता है और इसके लिए सजा ए मौत के प्रस्ताव में भारत के साथ साथ राय रखने वाले अमेरिका का उदाहरण भारत के सामने है।
बहुत से गुनहगार बाकी है अभी ! जब से कसाब की फांसी की खबर आई मैं तो बेसब्री से इसी इन्तजार में हूँ कि कब इनके बड़े -बड़े प्रवक्ता कैमरे के सामने आयें और ये कहें कि कसाब "जी" को राजकीय सम्मान के साथ दफनाया जाना चाहिए था। :)
जवाब देंहटाएंअब उसी का नम्बर है!
जवाब देंहटाएंबकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी!
शुरू कहानी जब हुई, करो फटाफट पूर ।
जवाब देंहटाएंझूलें फांसी शेष जो, क्यूँ है दिल्ली दूर ??
क्यूँ है दिल्ली दूर, कड़े सन्देश जरूरी ।
एक एक निपटाय, प्रक्रिया कर ले पूरी ।
कुचल सकल आतंक, बचें नहिं पाकिस्तानी ।
सुदृढ़ इच्छा-शक्ति, हुई अब शुरू कहानी ।।
vah din bhi aayega bas thoda intjar .....
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा है |
जवाब देंहटाएंआशा
बढ़िया आलेख | अफजल गुरु के फांसी की सजा पर भी जल्द से जल्द अमल कर देना चाहिए | और इस बार सबको बता कर फांसी देना चाहिए ताकि आतंकी ताकतों को कड़ा से कड़ा संदेश मिले |
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट-गुमशुदा
परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,
जवाब देंहटाएंहवा में सनसनी घोले हुए हैं .
अफज़ल गुरु एक नियोजित षड्यंत्र कारी है उसे राष्ट्रपति की दया याचिका के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए .ये भारत देश सेकुलर होने दिखने की और कितनी कीमत चुकाना चाहता है .और क्या कसाब को अपने ही देश में गुरुतर जघन्य अपराध के लिए फांसी पे लटकाया जाना अपराध था ?यदि नहीं तो यह लुकाछिपी गोपन क्यों उसे तो लालकिले पे फांसी देनी चाहिए थी सीधा प्रसारण होना चाहिए था बहुत हो चुका नंगा नांच इस देश में सेकुलर वोट खोरों का .
Aisi wardaton ke asli gunehgar to kabhibhi nahee pakde jate!
जवाब देंहटाएंvaise hi jaise parde ke pichhe vale game khelkar bhag jate hai.....kasab to sirf ek mohra tha. asli gunahgar shayad hi pakde jaye.
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