इस तस्वीर पर क्या लिखा जाए? मौका था, संविधान निर्माता भीमराव बाबा साहेब आम्बेडकर की पुण्यतिथि पर आयोजित समारोह का और जगह था लोकतंत्र का मंदिर, यानि कि संसद भवन। बाबा साहेब को इस दुनिया से रूखसत हुए 57 साल हो गए। अपने पूरे जीवनकाल में बाबा साहब ने असमानता का विरोध किया और उनका मूल मर्म था, हर इंसान को उसका वाजिब हक दिलाना। उनको सच्ची श्रद्धांजलि भी यही होती कि उनके बताए रास्ते पर चला जाए और इंसानों के बीच हो रहे भेद को समाप्त करने काम किया जाए लेकिन दुर्भाग्य है कि ऐसा हो नहीं रहा है और उनकी पुण्यतिथि के मौके पर आयोजित समारोह के ठीक बाद ही उनके आदर्शों की धज्जियां उड़ाई गईं और यह तस्वीर सामने आई।
संसद के भीतर आज बाबा साहब की पुण्यतिथि पर बड़ी-बड़ी बातें की गई होंगी। उनके आदर्शों पर चलने की वकालत सबने की होगी। सबने कहा होगा कि बाबा साहब अंतिम पंक्ति पर खड़े व्यक्ति के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए जीवन भर संघर्ष करते रहे लेकिन समारोह के खत्म होने के तुरंत बाद देश के सबसे बड़े संवैधानिक शख्स ने बाबा साहब के आदर्शों को अपने पैरों तलें रौंद देने का काम किया!
माफ करना राष्ट्रपति महोदय। माफ करना प्रणव मुखर्जी जी। पर यह आपने ही किया। आपने बाबा साहब की पुण्यतिथि के दिन ही उनके आदर्शों का मखौल उड़ाने का काम किया। मुझे याद आ रहा है, वह दिन जब आपने राष्ट्रपति पद पर अपनी पहुंच बनाई थी और इसके बाद आपने एक बड़ा काम किया था। राष्ट्रपति के नाम के आगे 'महामहिम' लिखने की बरसों से चली आ रही परंपरा को आपने खत्म किया था। अच्छा लगा था। लगा था कि आपकी सोच बेहतर है। भारत जैसे प्रजातांत्रिक देश में अंग्रेजों के समय से चली आ रही 'महामहिमी' परंपरा को खत्म कर आप लोकतंत्र में अपनी आस्था की प्रगाढ़ता का सबूत दे रहे हैं, लेकिन आपने यह क्या किया? अपने पैरों पर जूता पहनने के लिए आपने किसी को अपने पैरों पर गिरा दिया! वह भी उस समारोह में, जो उस शख्स को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित था जिसने हर मानव को एक समझा था। माना कि आप राष्ट्रपति हैं। पर आप भगवान नहीं। आप भी इंसान हैं और आपको किसी और इंसान की इज्जत का उतना ही ख्याल होना चाहिए, जितना कि आपको अपनी इज्जत का है। आपको यह हक कतई नहीं कि आप किसी को अपने पैरों पर गिरा लें।
नहीं मालूम कि आपके पैरों में जूता पहनाने वाला शख्स कौन है? हो सकता है, वह आपके 344 कमरों वाले आलीशान घर का आपका अपना कारिंदा हो, पर क्या यह सही है! आप देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद पर हैं और आप अपने हर काम से देश के लिए आदर्श बना सकते हैं, लेकिन आपकी इस तरह की तस्वीर का सामने आना क्या गलत नहीं है? आप राष्ट्रपति हैं। आपकी समझ काफी ज्यादा है। अब आप ही तय करें कि क्या आपकी इस तरह की तस्वीर किसी व्यक्ति के मानवाधिकार का उल्लंघन नहीं है?
संसद के भीतर आज बाबा साहब की पुण्यतिथि पर बड़ी-बड़ी बातें की गई होंगी। उनके आदर्शों पर चलने की वकालत सबने की होगी। सबने कहा होगा कि बाबा साहब अंतिम पंक्ति पर खड़े व्यक्ति के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए जीवन भर संघर्ष करते रहे लेकिन समारोह के खत्म होने के तुरंत बाद देश के सबसे बड़े संवैधानिक शख्स ने बाबा साहब के आदर्शों को अपने पैरों तलें रौंद देने का काम किया!
माफ करना राष्ट्रपति महोदय। माफ करना प्रणव मुखर्जी जी। पर यह आपने ही किया। आपने बाबा साहब की पुण्यतिथि के दिन ही उनके आदर्शों का मखौल उड़ाने का काम किया। मुझे याद आ रहा है, वह दिन जब आपने राष्ट्रपति पद पर अपनी पहुंच बनाई थी और इसके बाद आपने एक बड़ा काम किया था। राष्ट्रपति के नाम के आगे 'महामहिम' लिखने की बरसों से चली आ रही परंपरा को आपने खत्म किया था। अच्छा लगा था। लगा था कि आपकी सोच बेहतर है। भारत जैसे प्रजातांत्रिक देश में अंग्रेजों के समय से चली आ रही 'महामहिमी' परंपरा को खत्म कर आप लोकतंत्र में अपनी आस्था की प्रगाढ़ता का सबूत दे रहे हैं, लेकिन आपने यह क्या किया? अपने पैरों पर जूता पहनने के लिए आपने किसी को अपने पैरों पर गिरा दिया! वह भी उस समारोह में, जो उस शख्स को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित था जिसने हर मानव को एक समझा था। माना कि आप राष्ट्रपति हैं। पर आप भगवान नहीं। आप भी इंसान हैं और आपको किसी और इंसान की इज्जत का उतना ही ख्याल होना चाहिए, जितना कि आपको अपनी इज्जत का है। आपको यह हक कतई नहीं कि आप किसी को अपने पैरों पर गिरा लें।
नहीं मालूम कि आपके पैरों में जूता पहनाने वाला शख्स कौन है? हो सकता है, वह आपके 344 कमरों वाले आलीशान घर का आपका अपना कारिंदा हो, पर क्या यह सही है! आप देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद पर हैं और आप अपने हर काम से देश के लिए आदर्श बना सकते हैं, लेकिन आपकी इस तरह की तस्वीर का सामने आना क्या गलत नहीं है? आप राष्ट्रपति हैं। आपकी समझ काफी ज्यादा है। अब आप ही तय करें कि क्या आपकी इस तरह की तस्वीर किसी व्यक्ति के मानवाधिकार का उल्लंघन नहीं है?
अपने देश का यह दुर्भाग्य रहा है कि देश के नेताओ की कथनी और करनी मे अक्सर ही अंतर मिलता है ... यह घटना भी कोई अपवाद साबित नहीं हुई !
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने शिवम जी
हटाएंअतुल जी ये कोई बड़ी बात नहीं है जिसे आप इतनी तूल दे रहे हैं और ये भी ज़रूरी नहीं की ऐसा करने को राष्ट्रपति जी ने कहा हो .हमारी संस्कृति हमें बड़ों के पैर छूना सिखाती है इसमें कुछ भी गलत नहीं है ऐसा तो बहुत सी बार घरों में भी हो जाता है की अपने बड़ों की परेशानी देख हम खुद ही उनकी चप्पल ये जूते ठीक कर देते हैं .इसलिए इससे ये साबित नहीं होता की राष्ट्रपति जी की मंशा बाबा भीमराव आंबेडकर के आदर्शों का मखौल उड़ने की रही होगी आप मीडिया वाले व्यर्थ के प्रलाप कुछ ज्यादा ही करते हैं काम के काम कम .उन्होंने कहा क्या ये बताते तो ज्यादा अच्छा था.शोध -माननीय कुलाधिपति जी पहले अवलोकन तो किया होता .
जवाब देंहटाएंशालिनी जी सही है, जरूरी नहीं कि राष्ट्रपति जी ने ऐसा करने से कहा हो, पर ऐसा करने से मना वो जरूर कर सकते थे,
हटाएंऔर हां, घर में बुजुर्गों की सेवा से इस मामले की तुलना ठीक नहीं
साधारण स्थितियों में मैं आपसे सहमत होती, लेकिन आज नहीं । ऐसा नहीं कि मैं प्रणव मुखर्जी जी के समर्थक वगैरह हूँ, फिर भी - आज मैं आपसे सहमत नहीं ।
जवाब देंहटाएंजब तक हम कारण न जानें कि कोई भी बात क्यों हुई - उस पर अपने निष्कर्ष ऐसे सार्वजनिक मंच पर लिखना मुझे उचित नहीं लगता । वह भी तब जब हमारा मत किसी और के बारे में नकारात्मक हो ।
प्रणव जी की उम्र क्या होगी आपके ख्याल से ? हो सकता है कि उन्हें कमर में तकलीफ हो - झुका न जा रहा हो ? वह व्यक्ति जो भी है - वह इंसानियत के नाते एक बुजुर्ग व्यक्ति की सहायता कर रहा हो ? इसमें उनके राष्ट्रपति होने का कोई अर्थ नहीं हो ? यह भी हो सकता है कि वह प्रणव मुखर्जी जी का फैन वगैरह हो और उसकी बरसों की तमन्ना पूरी हो रही हो ? यह भी हो सकता है कि उसे यह करने से उसे सुख मिला हो ?
हो सकता है कि जो आप कह रहे हैं - कि "मानवाधिकार हनन" वह न हो रहा हो ?
कोई जबरदस्ती किसी से अपनी पग्पूजा करवाए - शक्ति के बल पर - कोई किसी के जीवन को मानवेतर कर दे अपनी शक्ति के बल पर - तब उसे मानवाधिकार हनन कहते हैं - किसी बुजुर्ग की सहायता को मानवाधिकार हनन नहीं कहा जाता । अपने घर में बुजुर्गों के पाँव छू कर हम सब आशीर्वाद लेते हैं - तो क्या वे बुजुर्ग हमें नीचा दिखाने के लिए हमसे यह जबरी करवा रहे होते हैं या हमारे मानव अधिकारों पर प्रहार कर रहे होते हैं ?
शिल्पा जी किसी बुजुर्ग की सेवा से इस मामले की तुलना मुझे सही नही लग रही, बाकी आपके अपने विचार.....वैसे भी आपने शुरूआत में ही यह सफाई दे दी कि आप प्रणव दा की समर्थक नहीं....!!! यहां आपको यह बात बताने की आवश्यकता नहीं थी....
हटाएंJab Sanjay Gandhi ke talwe chaatte hue tasveer kheenchee gayee thee,to ye to umrdaraz hain!
जवाब देंहटाएंक्षमा जी, वो भी अपने दौर में गलत था और यह भी गलत है
जवाब देंहटाएंअपने इस पोस्ट को लेकर टिप्पणियों और कुछ लोगों से व्यक्तिगत चर्चा के बाद एक बात मेरी समझ में नहीं आई कि बुजुर्ग और शारीरिक रूप से कमजोर की दुहाई क्यों दी जा रही है? इस मसले पर एक मित्र की बात मुझे गौर करने वाली लगी कि राजनीतिक सभाओं में लोग अपने से कम उम्र के बडे ओहदेदार नेता के पैर सार्वजनिक रूप से छूते हैं और वो नेता भी खुद गर्वीला महसूस करता है, यह जानते हुए भी कि पांव छूने वाला उससे उम्र में कहीं बडा है...... राजनीति में यह चमचागिरी की एक अदा है, लोगों ने इसे स्वीकार कर लिया है, पर जब इसके खिलाफ बात हो तो विरोध होता ही है।
जवाब देंहटाएंसही है।
i m agree wid shalini kaushik ji.....as she saying its very obvious doing to our elder... its nt necesarry to take the things always in wrong way... ho sakta hai unhone aisa socha hi na ho..media ka kam hi hai ajkal chhoti si bat ko badhha dena. in bato se bhi jyada jaruri bahut se issue hai..jin par bahas honi chahie.
जवाब देंहटाएंस्वधा जी बिल्कुल इन जरूरी बातों पर भी बहस होनी चाहिए, लेकिन आप यह तय कैसे कर सकती हैं कि इस पर बहस न हो..... आपने अपनी राय बना ली कि यह किसी की बुजुर्ग को लेकर सम्मान की प्रक्रिया मात्र है और सब इसे मान लें!!!!
जवाब देंहटाएंआपको पता होना चाहिए कि प्रणव मुखर्जी जी जिस वर्ग से आते हैं, जिस स्तर के नेता हैं, उनको यदि सर्दी जुकाम भी हो जाए तो वे अपने घर से न निकलें और राष्ट्रीय खबर बन जाए उनकी बीमारी.... फिर क्या कमर दर्द जैसी स्थिति में वे किसी कार्यक्रम में शामिल हो सकते हैं???
मीडिया का काम है, खबरें बनाना.... हां किसी मुददे को बढाचढाकर पेश कर दिया जाता है तो किसी को कमतर कर दिया जाता है, यह आरोप सही है पर जरूरी नहीं कि आपकी सोच जो हो, वही सबकी हो.........
खैर, जमाने बाद मेरे ब्लाग में आप आईं, आपका शुक्रिया..........
बुजुर्गों के पैर छूना सही है , लेकिन साथ ही बुजुर्ग आशीर्वाद देते हुए भी तो दिखने चाहिए , यहाँ तो ऐसा नहीं दिख रहा |
जवाब देंहटाएंसबसे अहम बात कि प्रणब मुखर्जी एक बुजुर्ग बाद में , पहले इस देश के राष्ट्रपति है | उनकी छोटी से छोटी बात का प्रभाव भी देशव्यापी है | अगर वह शख्स ऐसा कुछ करना भी चाहता था तो उनको एक राष्ट्रपति और एक बुजुर्ग के नाते उसे रोक देना चाहिए था | ऐसा भी शायद मुझे तस्वीर में नजर नहीं आ रहा |
और राजनीति में चापलूसी की बात से तो मैं पूर्णतः सहमत हूँ ही |
सादर