संसद में सवाल पूछने के बदले रूपए लेने के आरोप में साल 2005 में संसद से बर्खास्त हुए राजनांदगाँव के तत्कालीन सांसद प्रदीप गाँधी इन दिनों फिर चर्चा में हैं। प्रदीप गाँधी हाल ही में दिल्ली में सांसदों और पूर्व सांसदों के लिए बने क्लब कांस्टीट्यूशन क्लब आफ इंडिया में निर्वाचित हुए हैं।
कांस्टीट्यूशन क्लब का चुनाव आमतौर पर सचिव (प्रशासन), खेल सचिव, संस्कृति सचिव, कोषाध्यक्ष और 11 कार्यकारी सदस्यों के लिए कराया जाता है।
कांस्टीट्यूशन क्लब के पदेन अध्यक्ष लोकसभा अध्यक्ष होते हैं। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला इसके अध्यक्ष हैं। केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर उपाध्यक्ष, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश महासचिव के पद पर हैं। राजीव प्रताप रूड़ी सचिव (प्रशासन), राजीव शुक्ल सचिव(खेल), तिरुची शिवा सचिव (संस्कृति), एपी जीतेंद्र रेड्डी कोषाध्यक्ष हैं। कार्यकारिणी सदस्यों में सुरेंद्र नागर, केसी त्यागी, संदीप दीक्षित, केआर मोहन राव, डी राजा, एपी जीतेंद्र रेड्डी, केएन सिंह देव, अजय संचेती, सुप्रिया सुले, तारीक अनवर और सतीश चंद्र मिश्रा. अरविंद कुमार इसके निदेशक हैं।
इस बार खेल सचिव के पद पर कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला और बीजेपी के राज्यसभा सांसद प्रदीप कुमार वर्मा की दावेदारी थी लेकिन अंतिम समय में बीजेपी के उम्मीदवार पीछे हट गए। इससे शुक्ल निर्विरोध खेल सचिव का चुनाव जीत गए। इसी तरह डीएमके सांसद तिरुचि सिवा बीजेपी के पूर्व सांसद प्रदीप गांधी की उम्मीदवारी वापस लेने के बाद संस्कृति सचिव चुने गए। डीएमके सांसद पी विल्सन कोषाध्यक्ष चुने गए हैं। टीआरएस के पूर्व सांसद एपी जितेंद्र रेड्डी ने कोषाध्यक्ष पद पर अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली थी इससे विल्सन कोषाध्यक्ष बने।
कांस्टीट्यूशन क्लब का चुनाव जीतने के बाद राजनांदगाँव लौटने पर प्रदीप गाँधी का सम्मान किया गया। सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए विधानसभा अध्यक्ष और राजनांदगाँव के विधायक डा रमन सिंह ने कहा कि प्रदीप गाँधी ने विधायक रहते हुए डोंगरगाँव विधानसभा की सीट उनके लिए छोडी़ थी और फिर सांसद रहते हुए संघर्षशीलता बनाए रखी। डा रमन ने कहा कि अब कांस्टीट्यूशन क्लब के चुनाव में जीतकर उन्होंने साबित कर दिया कि सतत गतिशील रहकर कार्य करने वाला व्यक्ति नए मुकाम हासिल करता है। गाँधी की सम्मान सभा में राजनांदगाँव के मौजूदा सांसद संतोष पांडे, पद्मश्री डा पुखराज बाफना सहित कई गणमान्यजन मौजूद रहे।
गाँधी से जुडा़ एक बडा़ मामला साल 2005 में हुआ था। 2005 में 11 सांसदों को पैसे लेकर सवाल पूछने का दोषी पाए जाने के बाद उनकी संसद सदस्यता रद्द कर दी गई थी। इनमें एक राज्यसभा सांसद भी शामिल थीं। 12 दिसंबर 2005 को एक निजी चैनल ने स्टिंग ऑपरेशन किया था जिसमें खुफिया कैमरों में कुछ सांसद संसद में सवाल पूछने के बदले पैसे लेते हुए कैद हुए थे। देश के संसदीय इतिहास में ये पहली घटना थी। ये 11 सांसद किसी एक पार्टी के नहीं थे। इनमें से छह बीजेपी से, तीन बसपा से और एक-एक राजद और कांग्रेस से थे। बीजेपी से सांसद सुरेश चंदेल, अन्ना साहेब पाटिल, चंद्र प्रताप सिंह, छत्रपाल सिंह लोध, वाई जी महाजन और प्रदीप गांधी, बीएसपी से नरेंद्र कुमार कुशवाहा और राजा राम पाल और लालचंद्र, आरजेडी से मनोज कुमार और कांग्रेस से राम सेवक सिंह शामिल थे।
उस समय स्टिंग ऑपरेशन के दौरान कुछ पत्रकारों ने एक काल्पनिक संस्था के प्रतिनिधि बनकर सांसदों से मुलाकात की थी। पत्रकारों ने सांसदों को उनकी संस्था की ओर से सवाल पूछने की बात कही और रिश्वत लेते हुए सांसदों का वीडियो बना लिया था।
इस पूरे कांड के सामने आने के 12 दिन बाद ही 24 दिसंबर 2005 को इन सांसदों की सदस्यता रद्द करने को लेकर संसद में वोटिंग कराई गई थी। बाकी सभी पार्टियां आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई के पक्ष में थीं पर बीजेपी ने वॉक-आउट कर दिया था। उस समय विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि सांसदों ने जो किया, वो बेशक भ्रष्टाचार का मामला है, लेकिन निष्कासन की सजा ज्यादा है।
पिछली लोकसभा यानि 2019 से 2024 के दौरान भी 'कैश फॉर क्वेरी' का एक मामला हुआ था। साल 2023 की दिसम्बर में त्रिणमूल सांसद महुआ मोइत्रा को पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में लोकसभा से निष्कासित कर दिया गया था। महुआ के निष्कासन के संसद के एथिक्स कमेटी की सिफारिश पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सहमति जताते हुए महुआ की उस मांग को ठुकरा दिया था जिसमें उन्होंने लोकसभा में अपनी बात रखने समय मांगा था। इसके बाद उन्हें निष्कासित कर दिया गया था।
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