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16 अक्टूबर 2010

संस्‍कारधानी का संस्‍कार

शहीद रितेश झा को अंतिम सलामी
मुख्‍यमंत्री का मना जन्‍मदिन
 दो तस्‍वीरें हैं। दोनों अलग अलग मौकों की हैं। एक में गम है तो दूसरे में खुशी है। माफ करना मैंने दोनों तस्‍वीरों को एक साथ ले लिया, लेकिन क्‍या करूं मन नहीं माना और दोनों तस्‍वीरों को साथ रख कर लिखना ही पडा। पहली तस्‍वीर है 14 अक्‍टूबर की। दूसरी 15 अक्‍टूबर की। 14 अक्‍टूबर को मैंने जो देखा उसे लिखने का मन हुआ लेकिन मैंने सोचा चलो संस्‍कारधानी का संस्‍कार और यहां के नेताओं जनप्रतिनिधियों का संस्‍कार शायद काफूर हो गया होगा उसे क्‍या लिखना। हालांकि अफसोस जरूर हुआ था इस शहर के व्‍यवहार पर, लेकिन फिर भी नहीं लिखा। लेकिन 15 अक्‍टूबर को मैंने जो देखा उसके बाद मन नहीं माना और लिखना ही पड गया।
अब मैं बता दूं कि 14 अक्‍टूबर वाली तस्‍वीर राजनांदगांव के एक जाबांज सपूत रितेश झा की शहादत के बाद की तस्‍वीर है। बस्‍तर के बीजापुर में रितेश नक्‍सली हमले का शिकार हो गया था और राजनांदगांव में उसके घर में जब उसका शव पहुंचा तो पुलिस ने उसे सलामी दी। इस मौके पर पुलिस के आला अफसर और प्रशासन के आला अफसर मौजूद थे। पर अफसोस संस्‍कारधानी कहे जाने वाले राजनांदगांव के किसी नेता, किसी जनप्रतिनिधि या समाजसेवियों से भरे इस शहर में किसी को फुर्सत नहीं मिली इस जाबांज को अंतिम बिदाई देने की और उसके परिवार को ढांढस बधाने की। मेरी नजरें सलामी के कार्यक्रम में  हर ओर घूमती रही पर वाह रे समाजसेवियों का शहर, जिसकी दुहाई हर मौके पर दी जाती है एक अदद चेहरा नहीं दिखा। मौके बे मौके राजनीति करने वाले कांग्रेस, भाजपा और दिगर पार्टियों के नेताओं को भी फुर्सत नहीं मिली शहीद को अंतिम बिदाई देने की। खैर रितेश झा जाबांज युवक था। उसने फर्ज के लिए जान दे दी। उसकी शहादत तब भी महत्‍वपूर्ण थी और अब भी महत्‍वपूर्ण है जब नेता उसके दरवाजे नहीं पहुंचे लेकिन एक कसक रह गई कि शहीद के सम्‍मान के लिए भी  यहां के ‘महानुभावों’ के पास समय नहीं निकल पाया। यह लिखता भी नहीं मैं। यदि 15 अक्‍टूबर का नजारा  मैंने नहीं देखा होता।

बात दूसरी तस्‍वीर की करूं तो इस दिन प्रदेश के मुखिया और राजनांदगांव के विधायक डा रमन सिंह का जन्‍मदिन था। प्रदेश के मुखिया को उनके जन्‍मदिन की बधाई हो। वे शतायु हों लेकिन मैंने देखा कि शहीद के सम्‍मान में जिन नेताओं, समाजसेवियों के पास दो मिनट का वक्‍त भी नहीं था वे मुखिया को जन्‍मदिन की बधाई देने घंटो इंतजार करते रहे। वैसे तो राजनांदगांव काफी वीआईपी जिला है। इस जिले में आधा दर्जन से ज्‍यादा लालबत्तियां हैं लेकिन शहीद के दरवाजे पर प्रशासनिक अफसरों की पीली बत्तियां ही दिखीं लालबत्तियां तो मुखिया के इंतजार में ही खडी रहीं। मुख्‍यमंत्री को बधाई देने के लिए हर कोई उमड पडा था।

कोई अन्‍यथा न ले लेकिन बात सच है। किसी नेता या ये कहें कि पद में बैठे नेता के जन्‍मदिन पर अस्‍पताल में जाकर रक्‍तदान करने वालों, वृदधाश्रम में जाकर फल बांटने वालों से  कभी यदि ये पूछा जाए कि अपने माता पिता के जन्‍मदिन में आपने क्‍या कभी इस तरह के सार्वजनिक आयोजन किए हैं तो काफी कम ही होंगे जिनका जवाब हां होगा।

एक बार फिर मुख्‍यमंत्री को जन्‍मदिन की बधाई हो लेकिन इस संस्‍कारधानी कहे जाने वाले शहर से यह तो उम्‍मीद की ही जा सकती है कि वे अपने शहर के शहीद जवान को भी अपने कीमती समय में से एक मिनट दे देते। शहीद रितेश झा को सलाम।