15 अप्रैल 2015

सिसकियाँ

मैं कैसे रचूं कोई प्रेमगीत
कैसे लिखूं नगमें
कैसे मेरे कलम से निकले
अफसाने
जब हर दिन आंखों के सामने
खूनी मंजर
बेटे की लाश पर
आंसू बहाती माँ
पति को निर्जीव देख
सुध-बुध खोई पत्नी
पिता को तिरंगे में लिपटा देखकर
कुछ न समझने वाला मासूम
आंखों से ओझल नहीं होते
ये छत्तीसगढ़ है
यहाँ
नक्सलवाद का खूनी खेल चलता है
और
चलती है
सरकार और विपक्ष की
राजनीति
यहाँ
प्रेम-गीत नहीं
यहाँ
कलम से निकल सकती है
तो
सिर्फ और सिर्फ
सिसकियाँ
- अतुल श्रीवास्तव

(माफ कीजिएगा, कविताएं करना बरसों पहले बंद कर दिया था, आज न जाने कैसे उंगलियां चलने लगीं और यह लिख डाला)

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