08 दिसंबर 2015

इस पर बोलिए हुजूर...

लोकसभा में सांसद अभिषेक सिंह
बड़े दिनों बाद टीवी पर लोकसभा की कार्रवाई का सीधा प्रसारण देखा, देखने की वजह थी, सांसद (राजनांदगांव) कार्यालय से आया एसएमएस।

इस एसएमएस में लिखा गया था कि सांसद अभिषेक सिंह संसद में छत्तीसगढी़ भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में रखने की मांग रखेंगे।

राजनांदगांव के सांसद सोमवार को लोकसभा में प्रश्नकाल पर बोले। करीब दो से तीन मिनट, या शायद साढ़े तीन मिनट। कागज हाथ में था और बोलते समय ज्यादातर समय उनकी आंखें कागज पर थी। शायद लिखकर लाए थे और उसे पढ़ रहे थे।

संसद में सोमवार को एक और युवा को सुना। ज्योतिरादित्य सिंधिया। सूखे पर करीब आधा-पौन घंटा वो बोले। छत्तीसगढ़ के सूखे पर भी सिंधिया ने काफी कुछ कहा। देश के आधे से ज्यादा राज्यों में सूखे, ओलावृष्टि और अतिवृष्टि से कुल रकबे के २० फीसदी से ज्यादा के प्रभावित हो जाने पर चिंता जताते हुए उन्होंने कई आंकड़े प्रस्तुत किए।

छत्तीसगढ़ी भाषा को लेकर संसद में बोला गया उनका वक्तव्य पर आपत्ति नहीं लेकिन जब पेट भरा न हो तो पेट भरने के विषय पर चर्चा हो तो ज्यादा बेहतर। सूखे की मार के चलते छत्तीसगढ़ के अधिकांश इलाके त्रस्त हैं। राजनांदगांव के सभी ब्लाक सूखाग्रस्त घोषित हो चुके हैं, ऐसे में यदि अपने सांसद को सूखे पर बोलते सुनता तो अच्छा लगता और यदि सासंद इस विषय पर बोलते तो शायद उनको लिखकर लाने की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि सूखे के कारण अपनी जान दे चुके एक किसान के घर होकर वो खुद आ चुके हैं।

कितनी अजीब बात है ना?
राजनांदगांव जिले में सूखे के कारण करीब आठ किसान आत्महत्या कर चुके हैं और यहाँ के सूखे पर यहाँ से काफी दूर दूसरे प्रदेश गुना के सांसद बोल रहे हैं और हमारे सांसद इस पर नहीं, किसी और विषय पर...!!!

शायद इसलिए कि राज्य में और केन्द्र में सरकार उसी पार्टी की है, जिस पार्टी के सांसद हमारे प्रतिनिधि हैं, पर कुछ विषय पार्टी और विचारधारा से हटकर होना चाहिए, ये सामाजिक सरोकार के विषय हैं, इस पर बोलने से परहेज नहीं करना चाहिए।

5 टिप्‍पणियां:

  1. 100 फीसदी सही बात। सांसद को पहले अपने जिले की ज्वलंत समस्याओं पर चिंतन करना चाहिए।

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  2. पहुंचविहीन नेताओं के साथ अनेक दिक्कतें हैं भाई साहब ।समस्याओं का असल उन तक पहुंच ही नहीं पाता है।इसलिये वे वही मुद्दे उठाते हैं जो उन्हें बाक़ायदा भाड़े पर नियुक्त लोग लिख कर देते हैं ।।

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  3. पहुंचविहीन नेताओं के साथ अनेक दिक्कतें हैं भाई साहब ।समस्याओं का असल उन तक पहुंच ही नहीं पाता है।इसलिये वे वही मुद्दे उठाते हैं जो उन्हें बाक़ायदा भाड़े पर नियुक्त लोग लिख कर देते हैं ।।

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  4. नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!

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