05 जुलाई 2017

अच्‍छी बात... गंदी बात


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बात ज्यादा पुरानी नहीं है। राष्ट्रऋषि सात समंदर पार देश अमेरिका गए थे। अच्छी बात है। हाल-फिलहाल के वर्षों में दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के साथ हमारे देश के बेहतर राजनैयिक रिश्ते हो गए हैं। तभी तो हमारे देश के प्रधानमंत्री का इस देश में दौरा 'अक्सर' होता रहता है। अच्छी बात है।

कुछ समय पहले जब बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति थे तो साहेब के बार-बार उनसे मिलने जाने पर मेरे एक परिचित ने यूं ही मुझे कहा, यार! जितने समय में इतने बार साहेब अमेरिका जाकर ओबामा से मिलते हैं, उतनी बार तो मैं सौ-डेढ़ सौ किलोमीटर दूर रहने वाले अपने चचेरे भाई से भी नहीं मिल पाता। गंदी बात। ऐसा मजाक ठीक नहीं। अरे! वो वीडियो क्यों बार बार फारवर्ड करते हो, जिसमें साहेब ने कहा था कि इधर पाकिस्तान हमले करता है और उधर तुम अमेरिका जाकर ओबामा... ओबामा करते हो, अरे जाना है तो पाकिस्तान जाओ ना!!!!! क्या तुम्हे पता नहीं कि उस वक्त साहेब विपक्ष में थे। और हमारे देश में इंसान भले ही अनगिनत धर्मों में बंटे रहे, विपक्ष का एक ही धर्म है और वह है, विरोध। सत्ता में बैठे लोगों की बुराई। चाहे काम अच्छा हो या बुरा, बस विरोध।

हाँ, तो बात हो रही थी, सात समंदर पार की यात्रा की। यात्रा से दिक्कत नहीं। होनी चाहिए। अच्छी बात है। यात्रा की बहुत सी बातें खबरों में आईं। कई नीतिगत बातों पर चर्चा की जानकारी मिली। अच्छी बात है। पर टीवी चैनलों और अखबारों में एक चीज खूब 'हाईलाईट' हुई। तकरीबन सबने छापा और सबने दिखाया, ट्रंप और साहेब तीन बार गले मिले!!!!!! अच्छी बात है। गले मिलना तो अच्छा होता है। पर ये समझ नहीं आया कि इसे इतना 'हाईप' देने की क्या जरूरत? अरे मित्र हैं। बड़े दिनों बाद पहली बार मिले तो गले मिल लिए। एक नहीं तीन बार मिल लिए। खैर!

कुछ नाशुकरे इसका भी विरोध करने लगे। अनाप शनाप लिखने लगे। गंदी बात है। गले मिलने को इतना हाईप देने वाली मीडिया पर मैं भी कुछ कुछ नाराज हुआ था। इसका मतलब यह तो नहीं कि कुछ भी प्रतिक्रिया दी जाए। गंदी बात है। कुछ अतिउत्साही लोगों ने तो हद ही कर दी। अरे बंदों ने दो गिरगिट के गले लगते हुए तस्वीर सोशल मीडिया में डालकर पूछ डाला कि कुछ याद आया??? हद है!!!! गंदी बात है। अरे, शालीनता भी कोई चीज होती है। जमा तो मुझे भी नहीं था, पर कहा कुछ नहीं। कस्सम से कुछ नहीं कहा।

हाँ, अब कहने की स्थिति में हूँ। कहने क्या कुछ दिखाने की स्थिति में हूँ। अभी अचानक मेरे पास एक ऐसा वीडियो आया जिसने सोचने मजबूर कर दिया कि यदि ऐसा आज के दौर में हो जाता तो क्या होता???? अरे बाप रे!!!! कल्पना कर भी रूह काँप जाती है। नूज चैनल कई घंटो का सेगमेंट चला देते। भक्‍त न जाने क्‍या  क्‍या कहते। सोशल मीडिया में हल्‍ला मच जाता। और न जाने क्‍या क्‍या हो जाता। चलिए आप सबको एक टॉस्क देता हूँ। नूज चैनल के सेगमेंट का शीर्षक क्या-क्या होता, जरा कल्पना कीजिए। दौड़ाईए अपनी कल्पना शक्ति। कुछ उदाहरण मैं भी दे देता हूँ।

1. 56 इंच का रूतबा...
2. ट्रंप ने पकड़ा छाता...
3. ऐसा चला जादू...
4. छाता का "ट्रंप" कार्ड...
5. ट्रंप का छाता कार्ड...

#हिन्दी_ब्लॉगिंग

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (06-07-2017) को "सिमटकर जी रही दुनिया" (चर्चा अंक-2657) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बढ़िया व्यंग्य , हार्दिक मंगलकामनाएं !

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  3. ऐसे ही क्लिंटन साहब ने अटल जी के लिए कुर्सी पेश की थी....अब बताइए ये कोई हमारा प्रमुख करता तो विपक्ष ने तो उसे टांग ही देना था..मेजबान मेहमान का ख्याल रखे तो मुसीबत...न रखे तो मुसीबत

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