शिवसेना सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे नहीं रहे। उनका मुंबई में बीमारी के बाद निधन हो गया। अंत्येष्टि भी कर दी गई। हमारी भारतीय संस्कृति कहती है कि किसी भी व्यक्ति की मौत के बाद चाहे वह कितना भी बुरा क्यों न हो, उसकी बुराई नहीं करते। अपने अहंकार के कारण मौत पाने वाले रावण को भी उसके आखिरी समय में सम्मान मिला था। भगवान राम ने रावण के ब्राम्हणत्व को देखते हुए, उसके पराक्रम को देखते हुए अपने अनुज लक्ष्मण को आदेश दिया था कि रावण के चरण छूकर उसका आशीर्वाद लें। फिर ये तो ठाकरे थे।
ठाकरे के आखिरी समय से लेकर उनकी मौत के बाद भी मीडिया में उनके बखान का दौर जारी रहा। तकरीबन हर एक ने उनके निधन पर शोक जताया। हम भी ठाकरे को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, पर एक ऐसी घटना हुई जिसने सोचने पर मजबूर कर दिया कि ठाकरे भले ही नहीं रहे पर 'ठाकरेपन' अब भी जिंदा है। बाला साहेब ठाकरे क्या थे? उनकी एक विचारधारा थी। वे जो कहते थे, डंके की चोट पर कहते थे और उसके बाद उन्होंने जो भी कहा, उसे ही सच मानकर चलते थे। सच है, मौजूदा दौर में ऐसे नेता कम ही मिलते हैं। कुछ भी कहने के बाद हंगामा मचने के बाद अपनी बात पर टिके रहने का साहस अब देखने नहीं मिलता, लेकिन यह भी सच है कि ठाकरे ऐसी ही बात बोलते थे जिससे विवाद पैदा हो। हंगामा हो। तनाव हो। ठाकरे ने एक बार जो कह दिया, वही सही। एक बार जो कर दिया, वही सही। बाकी सब झूठ। यह थी ठाकरे की विचारधारा।
मुंबई ठाकरे की मौत के बाद से गमगीन है। मुंबई के लिए वे सब कुछ न होते हुए भी बहुत कुछ थे। मुंबई ठप हो चुकी है। कभी न थमने वाली मुंबई पिछले दो दिनों से खामोश है। दुकानें बंद हो गईं। थियेटर बंद हो गए। फिल्मों की शूटिंग रोक दी गई। मुंबई की जान कही जाने वाली लोकल ट्रेनें लगभग थम सी गई।
बस मुंबई के इसी रवैये पर सवाल करना एक युवती को भारी पड़ गया। एक युवती ने मुंबई के बंद होने को लेकर फेसबुक में कुछ टिप्पणी कर दी और इसके बाद शिवसैनिकों ने 'ठाकरेपन' दिखाने में जरा भी देर नहीं की। युवती के घर में तोडफोड की गई। हमला किया गया। इसके बाद नम्बर आया पुलिस का। पुलिस ने भी 'ठाकरेपन' दिखाने में जरा भी देर नहीं की। पुलिस ने इस युवती सहित उसकी पोस्ट को लाईक करने वाली उसकी एक दोस्त को भी गिरफ्तार कर लिया। इस युवती पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगा है। बाद में दोनों को अदालत में पेश करने के बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया। दोनों लड़कियों को आईपीसी की धारा 505 और आईटी एक्ट की धारा 66 ए के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया था। मुंबई के अचानक थम जाने से बहुत से लोगों को आने-जाने में समस्याएं हुई और कई लोगों ने सोशल मीडिया पर अपना गुस्सा निकाला, लेकिन इस मामले में गिरफ्तार की गई 21 वर्षीय युवती ने अपने फेसबुक अकाउंट पर लिखा, ठाकरे जैसे लोग रोज पैदा होते हैं और मरते हैं और इसके लिए बंद नहीं होना चाहिए। बंद को लेकर हुई परेशानी के बदले निकली भावनाओं में शब्द भले ही कड़े रहे हों, पर व्यथा यह सबकी थी और इसे एक ने अपने तरीके से व्यक्त किया।
इस तरह अभिव्यक्ति को लेकर किसी पर हमला और फिर किसी की गिरफ्तारी करना कहीं से उचित नहीं है। पुलिस को किसी की भावनाओं को रोककर 'ठाकरेपन' दिखाने के बजाए सोशल मीडिया में वास्तव में गंदगी फैलाने वाले तत्वों पर लगाम कसने की ओर ध्यान देना चाहिए और साथ ही समाज में पनप रहे असमाजिक तत्वों में अपना डर बिठाना चाहिए। ऐसा होने पर ही लोगों का पुलिस पर भरोसा मजबूत हो सकता है।
ठाकरे के आखिरी समय से लेकर उनकी मौत के बाद भी मीडिया में उनके बखान का दौर जारी रहा। तकरीबन हर एक ने उनके निधन पर शोक जताया। हम भी ठाकरे को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, पर एक ऐसी घटना हुई जिसने सोचने पर मजबूर कर दिया कि ठाकरे भले ही नहीं रहे पर 'ठाकरेपन' अब भी जिंदा है। बाला साहेब ठाकरे क्या थे? उनकी एक विचारधारा थी। वे जो कहते थे, डंके की चोट पर कहते थे और उसके बाद उन्होंने जो भी कहा, उसे ही सच मानकर चलते थे। सच है, मौजूदा दौर में ऐसे नेता कम ही मिलते हैं। कुछ भी कहने के बाद हंगामा मचने के बाद अपनी बात पर टिके रहने का साहस अब देखने नहीं मिलता, लेकिन यह भी सच है कि ठाकरे ऐसी ही बात बोलते थे जिससे विवाद पैदा हो। हंगामा हो। तनाव हो। ठाकरे ने एक बार जो कह दिया, वही सही। एक बार जो कर दिया, वही सही। बाकी सब झूठ। यह थी ठाकरे की विचारधारा।
मुंबई ठाकरे की मौत के बाद से गमगीन है। मुंबई के लिए वे सब कुछ न होते हुए भी बहुत कुछ थे। मुंबई ठप हो चुकी है। कभी न थमने वाली मुंबई पिछले दो दिनों से खामोश है। दुकानें बंद हो गईं। थियेटर बंद हो गए। फिल्मों की शूटिंग रोक दी गई। मुंबई की जान कही जाने वाली लोकल ट्रेनें लगभग थम सी गई।
बस मुंबई के इसी रवैये पर सवाल करना एक युवती को भारी पड़ गया। एक युवती ने मुंबई के बंद होने को लेकर फेसबुक में कुछ टिप्पणी कर दी और इसके बाद शिवसैनिकों ने 'ठाकरेपन' दिखाने में जरा भी देर नहीं की। युवती के घर में तोडफोड की गई। हमला किया गया। इसके बाद नम्बर आया पुलिस का। पुलिस ने भी 'ठाकरेपन' दिखाने में जरा भी देर नहीं की। पुलिस ने इस युवती सहित उसकी पोस्ट को लाईक करने वाली उसकी एक दोस्त को भी गिरफ्तार कर लिया। इस युवती पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगा है। बाद में दोनों को अदालत में पेश करने के बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया। दोनों लड़कियों को आईपीसी की धारा 505 और आईटी एक्ट की धारा 66 ए के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया था। मुंबई के अचानक थम जाने से बहुत से लोगों को आने-जाने में समस्याएं हुई और कई लोगों ने सोशल मीडिया पर अपना गुस्सा निकाला, लेकिन इस मामले में गिरफ्तार की गई 21 वर्षीय युवती ने अपने फेसबुक अकाउंट पर लिखा, ठाकरे जैसे लोग रोज पैदा होते हैं और मरते हैं और इसके लिए बंद नहीं होना चाहिए। बंद को लेकर हुई परेशानी के बदले निकली भावनाओं में शब्द भले ही कड़े रहे हों, पर व्यथा यह सबकी थी और इसे एक ने अपने तरीके से व्यक्त किया।
इस तरह अभिव्यक्ति को लेकर किसी पर हमला और फिर किसी की गिरफ्तारी करना कहीं से उचित नहीं है। पुलिस को किसी की भावनाओं को रोककर 'ठाकरेपन' दिखाने के बजाए सोशल मीडिया में वास्तव में गंदगी फैलाने वाले तत्वों पर लगाम कसने की ओर ध्यान देना चाहिए और साथ ही समाज में पनप रहे असमाजिक तत्वों में अपना डर बिठाना चाहिए। ऐसा होने पर ही लोगों का पुलिस पर भरोसा मजबूत हो सकता है।