बेशर्मी की हद है। अपना खुद का सिक्का खोटा है और दोष दूसरों पर दे रहे हैं। कांग्रेस की यह फितरत ही है और शायद इसी वजह से वह पिछले सात सालों से प्रदेश की सत्ता से दूर है। आने वाले तीन साल और उसे सत्ता से दूर रहने हैं और यही हाल रहा तो तीन साल बाद भी उसे सत्ता शायद ही हासिल हो।
कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी और केन्द्रीय मंत्री वी नारायण सामी पर कालिख उछालने की घटना मंगलवार को प्रदेश की राजधानी रायपुर में घटी। इस तरह की घटना कांग्रेस में ही हो सकती है। कांग्रेस का इतिहास भी इसी तरह की घटनाओं से भरा पडा है। बेशर्मी की सच में हद है। बेशर्मी तब और बढ जाती है जब अपनी पार्टी के कार्यक्रम में पार्टी के लोगों व्दारा पार्टी के बडे नेता पर कालिख फेकें जाने की घटना के बाद उस पार्टी ने नेता इसे लेकर दिगर पार्टी पर या ये कहें कि सत्तासीन पार्टी को कोसें। इन जनाबों को क्या अपनी पार्टी का इतिहास याद नहीं। अरे कुछ तो शर्म करो। आपके अपने घर में नालायकों की फौज है और आपके अपनी पार्टी के बडे नेता सुरक्षित नहीं हैं और आप हैं कि किसी और को कोसने का काम कर रहे हैं।
वी नारायण सामी पर कालिख फेंकी गई। मुझे आश्चर्य नहीं हुआ। ये तो इस पार्टी की फितरत है। आश्चर्य और कोफत हुई इस घटना के बाद पार्टी नेताओं के बयानों पर। चुनाव हारकर जनाधारविहीन होने के बाद भी प्रदेश कांग्रेस की कमान संभाल रहे धनेन्द्र साहू का लगता है और कुछ काम नहीं। रात को वे सोते होंगे तो यही सोचते होंगे कि सुबह जब उठूंगा तो भाजपा को कोसने के लिए क्या नया मिलेगा। सुबह उठकर भगवान की पूजा करते हुए भी वे यही कामना करते होंगे और जब उन्हें कुछ विशेष मिलता तो बेसिरपैर की बातों को कर अपना ही मजाक बना लेते होंगे। उनका बचकानापन है यह। या ये कहूं कि उनका बेहूदापन है। धनेन्द्र साहू जब से अपने ही साहू समाज के चंद्रशेखर साहू से चुनाव हार चुके हैं वे उनको कोसने और सरकार को कोसने का कोई मौका जाने नहीं देते। कई बार वे ऐसी बातें कर देते हैं मानों वे किसी प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नहीं कोई टुटपुंजुए नेता हैं। मौजूदा मामले में वे एक बार फिर सरकार को कोस रहे हैं। जनाब कहते हैं कि नारायण सामी केन्द्रीय मंत्री हैं। उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार की थी। महाशय ने घटना पर नाराजगी भी जताई है। अब इन महाशय को कौन समझाए कि यह घटना सडक में नहीं उन्हीं की पार्टी के कार्यक्रम में हुआ है। उनसे दो कदम आगे जाकर कार्यकारी अध्यक्ष चरणदास महंत ने घटना को शर्मनाक और निंदनीय बताते हुए इसे भाजपा शासन की कानून और व्यवस्था का मखौल उडाने वाला करार दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी कहते हैं कि कोई भी सच्चा कांग्रेसी ऐसा कार्य कर ही नहीं सकता।
अरे जनाबों ऐसा कार्य कांग्रेसी ही कर सकते हैं। यह मेरा कहना नहीं है। यह तो इतिहास कहता है। कांग्रेस का इतिहास। जहां तक मुझे याद है मध्यप्रदेश से अविभाजित प्रदेश का वर्ष 1998 का वह विधानसभा चुनाव जब कांग्रेस के कोषाध्यक्ष और दिग्गज नेता मोतीलाल वोरा राजनांदगांव के सांसद थे, चुनाव में राजनांदगांव से उदय मुदलियार की हार पर कांग्रेसी इस कदर बौखला गए थे कि उन्होंने श्री वोरा को उन्हीं के बंगले में घेर लिया था। उनकी धोती तक खींचने की कोशिश की गर्इ। तमाम तरह की अभद्रता उनके साथ की गई। श्री वोरा पर कांग्रेस प्रत्याशी को हराने का आरोप लगाकर कांग्रेस के कथित लोगों ने श्री वोरा और कई वरिष्ठ कांग्रेसियों को राजनांदगांव के सांसद आवास में घेर लिया था। कुछ पत्रकारों की समझदारी के चलते कई वरिष्ठ कांग्रेसी पिटने से बच गए थे। वह तो बडप्पन था वोरा जी का कि उन्होंने उन उपद्रवी कांग्रेसियों को माफ कर दिया। हे पार्टी के कर्णधारों अब ये न कहना कि यह कांग्रेस के लोगों ने नहीं किया। उस समय सत्ता में भाजप नहीं कांग्रेस ही थी।
थोडा आगे बढते हैं। मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ राज्य बना। 31 अक्टूबर 2000। छत्तीसगढ में कांग्रेस की सरकार बन रही थी और मध्यप्रदेश में कांग्रेस ही सत्ता में थी। कांग्रेसियों ने अपने ही मुख्यमंत्री को नहीं छोडा। राज्य निर्माण के बाद नए मुख्यमंत्री के नाम को लेकर विवाद इस कदर बढा कि कांग्रसियों ने मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को भी नहीं छोडा। रायपुर में श्री सिंह वरिष्ठ नेता विदयाचरण शुक्ल के फार्म हाऊस में पिट गए। उनके कपडे फाड दिए गए।
इससे पहले और इससे बाद भी घटनाएं और भी हैं। कई पन्ने भरे जा सकते हैं कांग्रेस के कारनामों के नाम। हर घटना यह सिद्ध करते मिलेगी कि कांग्रसियों का चरित्र ही ऐसा है कि वह मन की हो तो अच्छा मानता है और मन की न हो तो किसी भी हद तक जा सकता है। अब ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस के नेताओं को अपनी ही पार्टी के लोगों का चरित्र ही न मालूम हो। न मालूम हो तो वे कांग्रेसी होने का हक नहीं रखते और यदि मालूम है तो इस तरह की बातें कर क्यों बचकानापन प्रदर्शित करते हैं, यह समझ से परे है। भगवान ऐसे कांग्रेसियों को सदबुद्धि दे।
अतुल जी..
जवाब देंहटाएंयकीनन जब किसी राजनीतिक पार्टी का जन्म होता है तो उसमें निहीत सिद्धांतो के कसीदे रचे जाते हैं..नैतिकता के नवीन पाठ्यक्रमों का सृजन किया जाता है..पर निरंतर फाका मस्ती करते हुए आगे बढ़ते जाने की होड़ में शामिल लोगों नें सारे सिद्धांतो को मटियामेट करने का बीड़ा उठाया हुआ है..जिनमें क्या कांग्रेसी और क्या........सब के सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं!! बहरहाल सार्थक रपट के लिये बधाई....
अतुल जी...
जवाब देंहटाएंइस घटना के लिए कांग्रेस की जितनी भत्र्सना की जाए कम है। इन नेताओं को जूते मारने का मन करता है। तभी आजकल नेताओं की सभाओं में जूते चलते हैं।
... is tarah kee ghatnaayen raipur ko nirantar sharmsaar kar rahee hain ... dukhad va afsosjanak !!!
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