आज सात दिसम्बर है। वैसे तो हमेशा की तरह सामान्य दिन। पर मेरे लिए यह दिन खास है। आज ठंड कुछ ज्यादा ही पड रही है। सुबह छह बजे जब मैं सोकर उठा और गैलेरी के बाहर नजर डालने पर कोहरा ही कोहरा नजर आया। इस मौसम में ऐसा पहली बार हुआ है। वैसे हर साल ठंड अक्टूबर के आखिर से शुरू हो जाती है और जनवरी तक रहती है लेकिन इस बार ठंड का इंतजार काफी करना पडा। चलो ठंड आई तो। मेरी बिटिया सुबह अब स्वेटर पहन कर स्कूल जाने लगी है। अब सुबह नींद नहीं खुलती। खुल भी जाती है तो रजाई में सिमटे रहने का मन करता है। बिस्तर छोडने का मन नहीं करता।
अरे मैं कहां मौसम की बात करने लग गया। मैं तो आज याद कर रहा हूं, सात दिसम्बर सन् 2000 को। उस दिन से लेकर आज यानि सात दिसम्बर 2010 तक। पूरे दस साल। इन दस सालों में मैंने काफी कुछ खोया है तो काफी हद तक पाया भी है। विश्वसनीय और बेहतर दस साल। मुझे याद आ रहा है रायपुर की भीड भरी वह दुपहरी जब मेरी ‘बारात’ निकली थी, अपने एक मित्र की हीरो पुक में पिछली सीट पर अपनी होने वाली अर्धांगिनी को बिठाकर मैं रायपुर के बैजनाथपारा के आर्य समाज भवन में लेकर गया था और वहां चंद घंटों में ही मैं एक से दो हो गया था। मेरे साथ काम करने वाले चंद साथी मौजूद थे। सहकर्मी गवाह बने मेरी शादी के और मेरे संपादक महोदय ने कन्यादान किया। हर समय खबरों के पीछे भागने वाले और घटना होने के बाद वहां पहुंच कर उसकी तस्वीरें उतारने वाले मेरे साथी प्रेस फोटोग्राफर ने शायद पहली बार किसी ‘घटना’ के पहले से वहां मौजूद रहकर हर वाक्ये (रस्म) की तस्वीरें उतारीं। मुझे याद आ रहा है वह सात दिसम्बर 2000।
इन दस सालों में मैंन काफी कुछ देखा है, झेला है। वैसे मुझे यह कहने में जरा भी संकोच नहीं कि मुझे हर पल संबल मिला है मेरी अर्धांगिनी से। सफर काफी लंबा हो, लेकिन सफर के दौरान हर धूप छांव से निपटने की ताकत हमें मिलती रहे इन्ही आकांक्षाओं के साथ अपनों के शुभकामनाओं के इंतजार में ..........
शादी की सालगिरह मुबारक हो ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
जवाब देंहटाएंऐसी दुर्घटना को वयां करने में बहुत समय लगाया , शादी की वर्ष गांठ बहुत बहुत मुबारक हो
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