दिसम्बर 1971। भारत और पाकिस्तान का युध्द। 39 साल हो गए इस वाक्ये को, पर न ही देश भूला है इस घटना को और न ही भूला है पूरा विश्व। किस तरह पाकिस्तान ने धोखे से भारत पर हमला किया और फिर एक लंबी लडाई के बाद आखिरकार पाकिस्तान को भारत की ताकत के सामने झुकना पडा। आत्मसमर्पण करना पडा। दिसम्बर महीने की 3 तारीख थी वह जब पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया था। भारत के कई जाबांज सपूत इस लडाई में शहीद हुए थे। इन्हीं में से एक थे ले. अरविंद शंकर दीक्षित।
छत्तीसगढ के इस वीर सपूत ने 1971 के भारत पाकिस्तान युध्द के दौरान 20 दिसम्बर को शहादत दी थी। उस समय महज 23 साल के अरविंद शंकर दीक्षित ने अपनी वीरता और पराक्रम का प्रदर्शन करते हुए दुश्मनों को मीलों पीछे ढकेल दिया था। अरविंद के पराक्रम से उनके रेजीमेंट के उच्चाधिकारी भी चमत्कृत थे। जंग में ले. अरविंद दीक्षित ने कई बारूदी सुरंगों को निष्क्रिय करते हुए दुश्मनों के किले को बेधते रहे लेकिन 20 दिसम्बर 1971 को जम्मू कश्मीर के राजौरी सेक्टर में एक बारूदी सुरंग को निष्क्रिय करने के प्रयास में हुए एक भयंकर विस्फोट में उन्हें गंभीर चोटें आईं और इसी तारीख को रात के पौने 11 बजे इस वीर सैन्य अधिकारी ने अंतिम सांसे लीं।
घर में प्यार से मुन्नु के नाम से पुकारे जाने वाले ले. अरविंद शंकर दीक्षित का रणभूमि में ही दूसरे दिन पूरे सैनिक सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया और फिर वायु सेना के विशेष विमान से उनके अस्थिकलश को रायपुर लाया गया। रायपुर में आम जनता के दर्शन और पारिवारिक रस्मों को पूरा करने के बाद इलाहाबाद में उनकी अस्थियों को विसर्जित कर दिया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी, तत्कालीन जनरल स्व. एस.एच.एफ.जे. मानेकशा, 1971 की विजय के मुख्य शिल्पकार स्व. ले. जगजीत सिंह अरोरा, ले. जनरल सरताज सिंह, ले. जनरल पी एस भगत(सेंट्रल कमान), मेजर जनरल बी पी बधेरा, कर्नल आर के धवन(पूना) और ले. कर्नल एस सी एन जठार ने शहीद ले. अरविंद दीक्षित की माता स्व. श्रीमती सुशीला दीक्षित को भेजे संदेश में राष्ट्र की ओर से उनके प्रति कृतज्ञता अर्पित की थी। बाद में भारतीय थल सेना ने शहीद ले. अरविंद शंकर दीक्षित के पराक्रम को ‘ पश्चिम वीर चक्र’ से नवाजा।
महज 23 साल की उमर में देश के लिए जान न्यौछावर करने वाले अरविंद शंकर दीक्षित का जन्म 16 जून 1948 को रायपुर के बैरन बाजार स्थित उनके घर में हुआ था। पिता स्व. हरीशंकर दीक्षित टेक्निकल स्कूल रायपुर के प्राचार्य थे। अरविंद दीक्षित के तीन भाई और दो बहनें थीं। सबने प्यार से नाम दिया था मुन्नू। प्रारंभिक शिक्षा रायपुर के सेंटपाल्स स्कूल में हुई। प्रारंभ से मेघावी रहे अरविंद ने आठवीं की परीक्षा में रायपुर संभाग में प्राविण्य सूची में नाम दर्ज कराने के बाद 1963 में मेट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसके बाद रायपुर के इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला लिया। एनसीसी में सार्जेन्ट और सीनियर अंडर अफसर की रैंक के साथ सी सर्टिफिकेट हासिल किया। अरविंद को इंजीनियरिंग से ज्यादा लगाव देश की सेवा करने को लेकर था। इसी लिए उन्होंने 1968 में इंजीनियरिंग की परीक्षा पास करने के बाद जबलपुर के सर्विस सेंटर सेंट्रल बोर्ड में प्रशिक्षणार्थी के रूप में प्रवेश ले लिया। 1970 में देहरादून में 105 इंजीनियर्स रेजीमेंट में कमीशन प्राप्त किया और जनवरी 1971 से लेकर अगस्त 1971 तक पूना में प्रशिक्षण हासिल किया। इसके बाद सीमा में तैनाती का आदेश लेकर सीमा पर गए और फिर अरविंद दीक्षित ने दिसम्बर की 20 तारीख को देश के लिए शहादत दे दी।
राजनांदगांव से अरविंद शंकर दीक्षित का काफी लगाव रहा। और यही वजह है कि हर साल 20 दिसम्बर को राजनांदगांव में शहीद ले. अरविंद शंकर दीक्षित का शहादत दिवस पूरे सम्मान के साथ आयोजित होता है और भारत मां के इस वीर सपूत को श्रध्दासुमन अर्पित किया जाता है। सच ही कहा गया है, ‘ शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा होगा।’
वीर शहीद को श्रध्दांजलि।
भारत मां के इस वीर सपूत को श्रध्दासुमन !
जवाब देंहटाएंशहिदों कॊ मेर सलाम ! !
जवाब देंहटाएंशहीदों को सत सत नमन .
जवाब देंहटाएंachhi post...mere janm se pehle ki baat hai ye..islie kuch nahi keh sakti..par desh k lie wahi zazbaa aaj bhi hai hum me..
जवाब देंहटाएंnaman sabhi shahido ko
अमर शहीद ले. अरविंद दीक्षित को शत शत नमन !
जवाब देंहटाएंजय हिन्द ... जय हिन्द की सेना !