30 अप्रैल 2011

बरगद और मैं....


सेकंड,
मिनट,
घंटा,
दिन,
महीना,
और साल.....।
न जाने
कितने कैलेंडर
बदल गए
पर मेरे आंगन का
बरगद का पेड
वैसा ही खडा है
अपनी शाखाओं
और टहनियों के साथ
इस बीच
वक्‍त बदला
इंसान बदले
इंसानों की फितरत बदली
लेकिन
नहीं बदला  तो
वह बरगद का पेड....।
आज भी
लोगों को 
दे रहा है
ठंडी छांव
सुकून भरी हवाएं.....
कभी कभी
मैं सोचता हूं
काश इंसान भी न बदलते
लेकिन
फिर अचानक
हवा का एक  झोंका आता है
कल्‍पना से परे
हकीकत से सामना होता है
और आईने में
खुद के अक्‍श को देखकर
मैं शर्मिंदा हो जाता हूं

17 टिप्‍पणियां:

  1. .कभी कभी मैं सोचता हूं काश इंसान भी न बदलत Atul ji bahut khoob likha hai aapne .badhai .

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  2. कल्‍पना से परे
    हकीकत से सामना होता है
    और आईने में
    खुद के अक्‍श को देखकर
    मैं शर्मिंदा हो जाता
    bahut sundar prastuti.

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  3. हकीकत से सामना होता है
    और आईने में
    खुद के अक्‍श को देखकर
    मैं शर्मिंदा हो जाता
    बहुत संवेदनशील रचना , वृक्ष से कुछ सीखने को तो मिला आछा सन्देश दे रही है यह रचना , बधाई ....

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  4. मैं सोचता हूं
    काश इंसान भी न बदलते
    लेकिन
    फिर अचानक
    हवा का एक झोंका आता है
    कल्‍पना से परे
    हकीकत से सामना होता है
    और आईने में
    खुद के अक्‍श को देखकर
    मैं शर्मिंदा हो जाता हूं ...

    Excellent creation with a beautiful message in it.

    .

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  5. भाई अतुल पहले तो शिकायत सुन लो कि इतने दिन कहाँ थे? बरगद पर लिखी रचना अच्‍छी लगी।

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  6. vaah atul bhaai yqin maniye aapki is rchnaa pr daad dene ke liyen mujhe kaafi dhundhne ke bad bhi alfaz nhin mil rahe hain isliiyen in alfaazon men hi daad qubul kijiye aek soda prstaavit hai aapki yeh rchnaa muche de do or mere blog ke 2600 rchnaaye le lo or zindgi bhr bhi aaadaa tedaa likh kar detaa rhungaa mnzur ho to bolo bhaai vaaqyi itni saadgi se itni bhtrin or bdhi baat koi kmaal kaa rchnaakar hi likh sktaa hai jo aap hain mubaark ho . akhtar khan akela kota rajsthan

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  7. खुद के अक्‍श को देखकर
    मैं शर्मिंदा हो जाता
    bahut acche bhaav

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  8. aur aaine main apne aksh ko dekh ke sharmindaa ho jaataa hoon main !Bahut khoob Atul bhai .
    Kaash main bhi vriksh kee tarh apni hi khaad ban paataa ,bargad ko pasand aataa .
    veerubhai .

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  9. मैं सोचता हूं
    काश इंसान भी न बदलते
    लेकिन
    फिर अचानक
    हवा का एक झोंका आता है
    कल्‍पना से परे
    हकीकत से सामना होता है
    और आईने में
    खुद के अक्‍श को देखकर
    मैं शर्मिंदा हो जाता हूं

    बहुत संवेदनशील रचना.... इंसान पल-पल में रंग बदलता हुआ पर वृक्ष कल जैसा था आज भी वैसा ही... सार्थक सन्देश..

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  10. आपका अंदाज़ खूब है.
    सटीक है.
    सुन्दर है.

    मेरे ब्लॉग पर आयें, स्वागत है.
    चलने की ख्वाहिश...

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  11. अपनी बात कहने के लिए बरगद एक बेहतर बिम्ब है !

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  12. बरगद बना कविता का आधार...वाह जनाब..

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  13. अपनी शाखाओं
    और टहनियों के साथ
    इस बीच
    वक्‍त बदला
    इंसान बदले
    इंसानों की फितरत बदली
    लेकिन
    नहीं बदला तो
    वह बरगद का पेड....।

    acha laga apke blog par aaker

    http://shayaridays.blogspot.com

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  14. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 27 मार्च 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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