अन्ना हजारे |
शोहरत इंसान को किस कदर बडबोला बना देती है, इसका उदाहरण हैं अभी हाल ही में मीडिया के माध्यम से हीरो बना दिए गए दो सज्जन। एक हैं गरीब अन्ना हजारे तो दूसरे हैं अमीर बाबा रामदेव। साधनहीन अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार के मुददे पर किए आंदोलन ने देश को रातों रात एक ‘मसीहा’ दे दिया। मीडिया ने बरसों से खामोशी से इसी मुददे को लेकर काम कर रहे समाजसेवी अन्ना हजारे को अचानक बुलंदियों पर पहुंचा दिया। दूसरी ओर काले धन के मुददे को लेकर आंदोलन करने और फिर आंदोलन स्थल से महिला भेष में भागने की कोशिश करते धरे जाने वाले बाबा रामदेव।
माफ कीजिए, मैं अन्ना हजारे और बाबा रामदेव का समर्थक नहीं हूं। मैं इन दोनों का विरोधी भी नहीं हूं। इन दोनों ने देश के ज्वलंत मुददों पर बात की है और अन्ना हजारे के आंदोलन ने तो एक बार फिर से सरकार को सोचने पर मजबूर कर दिया है। लोकपाल बिल अन्ना हजारे के दबाव के कारण शायद जल्द ही पेश भी हो जाए। बाबा रामदेव की बात करें तो विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने के मुददे को लेकर बाबा ने लंबे समय से अनशन की रूपरेखा तय की लेकिन अफसोस जितने दिनों तक उनकी रूपरेखा बनी उतने घंटे भी वे अनशन पर नहीं रह पाए।
मैंने बात की बडपोलेपन की। तो मैं यह कहना चाहता हूं कि अन्ना ने दो दिन पहले जो बात की है वो अपने आप में गैर जिम्मेदाराना बात है और यह देश की आजादी का अपमान ही है। माना कि अन्ना की बात इस समय पूरा देश सुन रहा है, लोग भ्रष्टाचार के खात्मे को लेकर अन्ना से उम्मीदें लगाए हुए हैं लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि अन्ना जो भी बोलें वो सही हो और सब उसे मानें। अन्ना ने इस बार गलत बात कर दी। अन्ना का कहना है कि यदि मानसून सत्र में लोकपाल बिल पेश नहीं हुआ तो वो 16 अगस्त से एक बार फिर अनशन पर बैठ जाएंगे। चलो यहां तक ठीक है लेकिन यह क्या। वे कहते हैं कि 15 अगस्त को रात को आठ बजे से नौ बजे तक लोग घरों की बिजली बंद करें। उनका तर्क है कि ऐसा कर लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ के मुहिम को समर्थन दें। ये क्या बात हुई।
महोदय, 15 अगस्त को देश आजाद हुआ था। कई लोगों की शहादत के बाद अंग्रेजों को देश को छोडने मजबूर होना पडा था। राष्ट्रीय पर्व है यह। दीवाली किसी एक धर्म का त्यौहार है। ईद किसी एक धर्म का। क्रिसमस किसी एक धर्म का और बैसाखी किसी एक धर्म का, लेकिन पूरे देश का कोई त्यौहार है तो वो है 15 अगस्त। स्वतंत्रता दिवस। इस दिन देश आजाद हुआ था। यह शोक मनाने का दिन नहीं, खुशियां मनाने का दिन है। मैं नक्सल इलाके में रहता हूं। इस दिन को नक्सली काला दिन मनाते हैं। हमारी शान के प्रतीक तिरंगे के बजाय नक्सली काले झंडे को फहराते हैं। वो ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि वो देश के संविधान को नहीं मानते। वो मानते हैं कि देश में सच्ची आजादी नहीं आई..... मौजूदा आजादी बेकार है..... वे संविधान विरोधी हैं, देश विरोधी हैं यह बात तय है..... पर अन्ना। उनसे ऐसी उम्मीद नहीं थी।
अब बात बाबा रामदेव की। बाबा ने अनशन किया। पुलिस ने उनके अनशन को दमन कर तुडवा दिया। बाबा आंदोलन स्थल से महिला भेष में भागने की कोशिश में धरे गए। खैर, कोई बात नहीं। बाबा की कोई मजबूरी रही होगी। पर यह क्या जब बाबा ने चुप्पी तोडी तो अपने भागने पर ही पहली बात की। उनके मुताबिक वे इसलिए भागे कि वो गीदड की मौत नहीं मरना चाहते थे। इस देश में अंग्रेजों के खिलाफ भी कई लडाईयां लडी गई थीं और उसमें हमारे सेनानियों ने डटकर मुकाबला किया। कोई भागा नहीं, तो क्या बाबा की नजर में वो सब गीदड थे। बाबा ने एक और बात की, मेरे लिए भ्रष्टाचार से बडा मुददा कांग्रेस पार्टी को हटाना है। ये क्या बात हुई बाबा।
बाबा और अन्ना के समर्थक माफ करें पर जहां तक मुझे लगता है कि इन दोनों को मिले शोहरत ने उन्हें बडबोला बना दिया है और ये दोनों यह सोच रहे हैं कि वे जो कहेंगे सब सही है। माफ करना बाबा रामदेव पर आपने भागकर अपने किस ‘’शौय’’ का परिचय दिया यह मैं नहीं जानता पर देश की आजादी के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले भारत मां के सच्चे सपूत गीदड नहीं ‘’शेर’’ थे और माफ करना अन्ना हजारे 15 अगस्त को आजादी का जश्न आतिशबाजियों के साथ रौशनी कर मनाया जाना चाहिए, यह कोई शोक का दिन नहीं कि अंधेरा किया जाए।
इस बात पर मैं भी सहमत हूँ कि १५ अगस्त को लाइट बंद नहीं करनी चाहिए पर एक सवाल बार बार मन में घूमता है आखिर हम हिंदुस्तानियों को बुराई में तो सब कुछ कबूल है पर अच्छा चाहिए तो पूरा ही अच्छा चाहिए, क्यूँ ? थोड़ी बहुत कमी तो होगी ही उसको नजर अंदाज किया जाना चाहिए
जवाब देंहटाएंऐसा नहीं लगता हमारे देश के वर्तमान हालत इस बात की तरफ संकेत नहीं कर रहे कि ---" चाहे अन्ना हो , घोटालेबाज हों , वर्तमान राजनीतिकार हों या मीडिया हो ..सबमे से देश और धर्म के प्रति सम्मान कम हो गया है ? क्या ये सब हमारे भारत देश और धर्म की अस्मिता को इस दुनिया के नक़्शे से मिटा देगा ? कितने शर्म की बात है आज कोई भी खुल कर गर्व से अपने आप को भारतीय या हिंदू नहीं कहता...? और जो प्रयास करता है ..उसकी आवाज़ दबा दी जाती है ..! क्या हम अपनी पहचान से अपने आप को ही इतना भूल गएँ हैं ..?
जवाब देंहटाएंजय भारत !
Thanks Atul ji aapke blog ka ye vichaar anukarniya hai,aapne ek ek poin ko sahi utaya hai,yadi vyakti vishesh ki baat maani jayegi to hamaari desh bhakti ki bhavna ka kya hoga,baba ramdev ye sochte hai ki yoga ke karan duniya unke pichhe dauri ab vo jo kahenge to duniya unke pichhe daudegi ,lekin hamaara prajatantra bahoot majboot hai,janta turant muh pher bhi sakti hai ,ye baat dono badbolo ko dhyaan rakhni chahiye.
जवाब देंहटाएंAtul ji
जवाब देंहटाएंkaun see azadi ki aap bat kar rahe hain? kya aap ko lagata hai ki desh azad hai ?Adhi rat ko sote huye logon par ramlila maidan men lathiyan baras rahee hon aur aap ki samajh se yahee aazadi hai to mujhe aap ki soch par daya aati hai.Anna ne jo kaha vah aap ko galat lag raha hai aur jo Digvijay Singh anap-shanap bak raha hai, vah kya hai?
आदर्श व्यवस्था के आकांक्षियों द्वारा सुव्यवस्था पर विचार विमर्श के लिए प्रारंभ किया गया पहला विषय आधारित मंच , हम आप के सहयोग और मार्गदर्शन के आकांक्षी हैं |
जवाब देंहटाएंसुव्यवस्था सूत्रधार मंच
http://www.adarsh-vyavastha-shodh.com/"
बाबा की बाबागिरी सबने देख रखी है, डर है कि अन्ना भी कहीं पीपली लाइव के नत्था न बन जाएं...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
श्रीमान अतुल श्रीवास्तव जी...बाबाजी व अन्ना का बडबोला पण आपको दिख रहा है, और जो दिग्गी जैपिग्गी व सिब्बल जैसे कुटिलों ने किया, उनका क्या?
जवाब देंहटाएंबाबाजी महिला वस्त्रों में भागे, तो बंधुवर शिवाजी भी एक बार युद्ध भूमि से महिला वस्त्रों में भागे थे, क्या वे भी कायर थे? महाराणा प्रताप भी भागे थे, क्या वे भी कायर थे? नेताजी बोस भी छुपकर बंगाल, से अफगानिस्तान भागे थे, क्या वे भी कायर थे? क्या फ़ोकट में मर जाना बहादुरी है?
आप जैसे बुद्धुजिवियों के लिए ही मैंने एक पोस्ट लिखी थी...
http://www.diwasgaur.com/2011/06/blog-post_10.html
@योगेन्द्र पाल जी, आपकी बात काफी हद तक सही है।
जवाब देंहटाएं@मनु जी आपकी चिंता जायज है।
@शुक्रिया नासिर बाठी जी
@शुक्ला जी आजादी कितने सघंर्ष के बाद मिली है शायद आप भी जानते हैं पर यदि आपको आजादी को लेकर मेरी सोच पर शर्म आती है तो यह कबूल है मुझे। और यदि एक दिग्विजय सिंह अनाप शनाप बोल रहे हैं तो दूसरे भी ऐसा करें क्या ये जरूरी है।
@अंकित जी शुक्रिया।
@ खुशदीप जी आपका अंदाज जुदा है।
@दिवास गौर जी आप दिग्गी और सिब्बल जो कर रहे हैं उसे सारा देश देख रहा है और उनकी आलोचना भी हो रही है, पर क्या वो कर रहे हैं तो सब कुछ भी कहने लगें? माफ कीजिएगा मुझे आपकी सोच पर तरस आ रहा है कि आप बाबा की तुलना महाराणा प्रताप, नेताजी सुभाष चंद्र बोस से कर रहे हैं, अरे आपने तो भ्रगवान शिव को भी नहीं बख्शा।
@ मैंने एक बात अपनी पोस्ट में साफ कर दी है और फिर कह रहा हूं कि मैं बाबा रामदेव और अन्ना हजारे का विरोधी नहीं, वो अच्छे मकसद के लिए काम कर रहे हैं पर मेरी बात सिर्फ इस बात को लेकर है कि आजादी के पर्व पर अंधेरा क्यों और गीदड वाली बात क्यों.....
खैर आप सब आए अपने विचारों से अवगत कराया, शुक्रिया आप सबका
राष्ट्रीय पर्व है यह।...
जवाब देंहटाएंजी बिल्कुल सच कहा आपने . है तो ये राष्ट्रीय पर्व ही , लेकिन मैं अक्सर पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी को ये सोचता हूं कि ,...राजधानी के तमाम स्कूल , कॉलेज, सार्वजनिक स्थान यहां तक कि दुकानें और बाज़ार तक बंद करके कर्फ़्यूनुमा माहौल में हम किस तरह के राष्ट्रीय पर्व मनाने की आदत पाल चुके हैं पता नहीं । वैसे जब सालों पर पूरे देश में ही अंधेरा हो तो फ़िर एक दिन का अंधेरा क्या उजाला क्या , रही बात अन्ना हज़ारे और रामदेव की तो मुझे लगता है कि वो जो कर रहे हैं वो आम आदमी नहीं कर सकता और ताकतवर लोग करना नहीं चाहते , इसलिए उन्हें आगे ही बढते रहने की शुभकामनाएं दे रहे हैं हम तो और साथ भी यथासंभव देंगे ही
हां , समर्थक मैं भी किसी आम खास का नहीं हूं न संत का न समाज सेवी का ...मुद्दों पर जरूर ही उनके साथ हूं
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंप्रिय अतुल जी ,
जवाब देंहटाएं(१) सामान्यतः अपरिपक्वता , क्रोध और बड़बोलेपन का कारण होती है पर...कुछ लोग 'बोल वचन' को प्रसिद्धि के शार्टकट के तौर पर भी इस्तेमाल कर लेते हैं !
(२) हम तो सिर्फ इतना जानते हैं कि अगर बोध हो तो बुद्ध हो जाया जाता है !
(३) आपका आलेख / आपकी सोच अच्छी हो तो भी ये ज़रुरी नहीं कि उसपे सार्थक बहस / चिंतन हो पायेगा ! भक्त लोग इसे पटरी से उतार ही देंगे !
(४) सदाचार के ताबीज बांटना अलग बात है पर बांटने वाला बन्दा खुद भी सदाचारी हो ये बिलकुल भी ज़रुरी नहीं है !
(५) बेचारी देशभक्ति...कुछ लोग उसे अपनी ज़र खरीद लौंडी समझते हैं :(
अतुल जी और बाकि सभी लोगो का पोस्ट मैंने पढ़ा , अतुल भाई के विचारो से मै पूरी तरह सहमत हु की देश की आजादी के दिन लाइट बंद करना हमारी आजादी का अपमान है और संविधान के खिलाफ भी कहे तो गलत नहीं होगा i मै अन्ना हजारे का विरोधी नहीं हु लेकिन मै उनसे अऔर उनके समर्थको से ये पूछना चाहूँगा जनना चाहूँगा की क्या देश में लोकपाल बना दिए जाने से क्या देश में भ्रस्त्त्राचार समाप्त हो जायेगा ? अगर ऐसा हो सकता है तो लोकपाल के सामन राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति की गयी है इस दिशा में महारास्त्र पहला राज्य है जहा १९७१ में लोकायुक्त नियुक्य किया गया i २००४ तक देश के १७ राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति की गयी है लोकायुक्त का कम राज्यों में वही है जो देश में लोकपाल का होगा लेकिन क्या अपने आज तक कभी इन १७ राज्यों के बारे में सुना की यहाँ लोकायुक्त ने किस बहुत बड़े घोटाले को उजागर किया ? देश में आज २८ राज्य है अगर १७ राज्यों में लोकायुक्त घोटालो, भ्रस्त्त्राचार को ख़त्म कर देते तो आधे से जयादा देश में भ्रस्त्त्राचार ख़त्म हो जाता सोचो देश के नागरिको जब एक लोकायुक्त एक राज्य से भ्रस्त्त्राचार ख़त्म नहीं कर पा रहा है तो क्या एक लोकपाल बना दिए जाने से पुरे के पुरे देश का भ्रस्त्त्राचार ख़त्म हो जायेगा ?अऔर ऐसे लोकपाल की अमंग के लिए आजादी के दिन अँधेरा करने की बात करना सस्ती लोकप्रियता पाने का तरीका नहीं तो और क्या है ? अन्ना हजारे जी लगभग ७० साल के होने को आ रहे होंगे अपनी इतनी लम्बी उम्र में उन्हें अभी कैसे लोकपाल की याद आने लगी है ? जबकि सबसे पहली बार देश की संसद में ९ मई १९६८ को पहली बार लोकपाल बिल लाया गया था तब से लेकर आज तक अन्ना हजारे अऔर उनके समर्थक क्या कर रहे थे ? कही ऐसा तो नहीं की समाजसेवी के लगे लेबल को जिसे लोग भूलने लगे थे उसे वापस जीवित बनाये रखने , अपनी पहचान बनाये रखने के लिए किया जा रहा अभियान तो नहीं है ? लोकपाल होना चाहिए इस से मै सहमत हु पर उसके लिए इतना तमाशा क्यों ? मै उन राजनीती करने वालो से भी कहना चाहूँगा की लोकपाल से मत घबराओ ये सोच कर की जब १७ लोकायुक्त ने किसी मंत्री किसी नेता को आज तक घोटाले में नहीं पकड़ पाई तो आप एक लोकपाल से क्यों डर रहे है कर दो बिल पास और कर दो अन्ना हजारे को खुश
जवाब देंहटाएं@अजय झा जी मुददों पर तो हम भी उनके साथ हैं, उनके विरोधी नहीं, पर उनके अंधभक्त भी नहीं कि उनकी हर बात को सिर आंखों पर रखें।
जवाब देंहटाएं@अली साहब आपसे सौ फीसदी सहमत।
@अनीस जी आपने काफी गंभीर मुददा उठाया। इस पर भी विचार होना चाहिए। सिर्फ हलचल पैदा करने के लिए कुछ नहीं होना चाहिए।
you are absolutely right .we have problems but this is not the right way to show our anger .15th august is very historic day in our life .do'nt do politics on this day .celebrate this day with great enthusiasm .great post .thanks ATUL ji
जवाब देंहटाएंatul ji..I'm fully agree wid ur views...All are busy in taking political advance in one way or another way...now it's all play of propaganda...
जवाब देंहटाएंडोगी राजा के थोथना मा पैरा ला गोंजवा दे, तहाँ एखरो मन के मुंह मा तारा देवा जाही।
जवाब देंहटाएंअतुल भाई ..
जवाब देंहटाएंबत्तियां बुझाने की बात से मैं भी असहमत हूँ..
मगर बाबा की तुलना गीदड़ से करना समझ नहीं आया..मतलब जो कोई भी अपनी जान बचने के लिए भागता है वो गीदड़ है...
बलिदान देना पुनीत कार्य है मगर नरभक्षी का चारा बनना मुर्खता..
बाबा ने मुर्खता से बचने हेतु ये कृत्या किया..और बाबा के साथ ५० हजार और भी थे उन्होंने कुछ प्रश्न नहीं उठाये..हम और आप गीदड़ बना रहें है..
आप का १५ अगस्त वाला मुद्दा सार्थक है...मैं बत्तियां जलाऊंगा...
क्युकी मर कर और अँधेरा कर के विजय नहीं मिलती
@शिखा जी शुक्रिया।
जवाब देंहटाएं@ईरा जी धन्यवाद।
@ललित जी आपका जवाब नहीं।
@आशुतोष जी आपने सही कहा, बत्तियां बुझाने की बात गलत है। आपके दूसरे बात पर मैं साफ कर दूं कि मैंने बाबा रामदेव को गीदड की संज्ञा नहीं दी। शायद आपने बाबा का अनशन समाप्त होने के बाद का पहला बयान नहीं पढा, देखा। उसमें बाबा ने खुद ये कहा कि वो गीदड की मौत नहीं मरना चाहते थे, इसलिए भागे। मैंने बाबा की उसी बात को लेकर टिप्पणी की है। मैं इस काबिल नहीं कि उन पर इस तरह की टिप्पणी करूं।
पूरे तरह सहमत हूँ आपसे, बाबा रामदेव सच कहें तो चोर है, और अन्ना शायद मतिभ्रष्ट हो चुके हैं,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
sahi kaha atul kuchh baton se main tumharisahmat hun,magar chahe baba ho ya anna,agar bhrashtachar ke virodh me aage aate hain to isme burai hi kya hai?main bhi tumhari tarah kisi ka samarthak ya virodhi nahi hun lekin bhrashtachar ke mudde uthane wale har hath ke saath hun.raha sawal azadi ke mahaparv par bizli gul karne ka to,main manta hun aisa karna galat hai,lekin kya us din saara desh me raushni rehti hai?kya bizli katauti wale ilaakon me ek din ke liye hi sahi sarkar raushanikarti hai?kya us din kisi ke ghar me andhera bahi rehta?kya sara desh us din azadi ka jasn manata hai?kya us din koi bhuka nahi sota?kya us din koi dard se nahi rota?kya us din sharaab aur shavab ka daur nahi chaltaa?kya us din humare desh ke thekedaar rata-rataya bvhashan dekar thak jaane ke baad rangreliyan nahi manate?kya us din sach me sara desh azaadi ke jashn me dooba hua hota hai?jagamagata hai?saikdo-hazaron-lakho logon ke gharon bhukh us din bhi bil-bilati hai,us din bhi karodo haath ghulamo ki hi tarah gharon me bartan dhon se lekar kapde dhone taq ki naukri karte hain?kya raashtriya parv unke liye nahi hota?kya unhe chhutti milti hai?kya we ise tyohar ki tarah manate hain?bahut se saal hain atul jo ye sochn par mazboor kar dete hai ki is desh me aazadi sirf bade yani ameeron ke liye hi aai hai,gareeb ka kya hai,yedesh ghulaam bhi rhta to bhi wahi karta ji azaad dseh me kar raha hai,to farq kya pada use?dusri aazaadi ko main bhi zaruri manta hun,jis din sach me desh ka har nagrik azad hoga,angrezon se nahi,gareebi se,bhook se,bhrashhtachar se avyavastha se,asamaanata se..................aur bhi baut kuchh haikehne ko par shayad aaj kuchh jyada hi ho gaya hai,maaf karna dost us din agar koi kahega light bujhao to yakeen manana sabase pehle uska virodh karne walon mai bhi shamil hounga.baki to sab thik hi hai,andolan hote rahenge,bill banate rahenge.mera sawal ye hai ki kya farq paega bina dant-naakhoon ka sher banakar,chunaav aayog banaya,kya ek bhi neta ko debaar kiya?kar sakta hai?chhodo jane do gareeb ka gussa khood use hipitwa deta hai,apna hi k hoon jalane se kya fayda.aapki sadbhavana kaa mai kayal hun.bura laga ho to maaf karana.
जवाब देंहटाएं@ विवेक जी बाबा क्या हैं इस पर मैं कुछ भी नहीं कहना चाहता, ना ही इस पर कि अन्ना की मति को क्या हो गया है। मेरी बात तो सिर्फ इतनी है कि देश की आजादी का पर्व इन सबसे ऊपर है और देश के शहीद सर्वोपरि।
जवाब देंहटाएं@ अनिल भैया आपने जिन सवालों को उठाया वो वास्तव में अनसुलझे हैं। आजादी तो मिली पर उस आजादी का दुरूपयोग किया गया। देश आजाद हो गया है अंग्रेजों से पर आजादी के परवानों ने जिस सोच के साथ देश को आजाद कराया था वो अधूरा रह गया है। आपकी बात से पूरी तरह सहमत।
अब जनता को दोनों ही नौटंकी लगने लगे है
जवाब देंहटाएंआपके तर्कों से कुछ सीमा तक और विचार से काफी हद तक सहमत.
जवाब देंहटाएंइस बारे मे यह कहा जा सकता है कि अन्ना के दिमाग मे ये बात नही आयी होगी वरना वे भी यह कदम नही उठाते उन्होने अपने अनशन के एक दिन पहले का समय चुना होगा । वैसे यह बात भी सत्य है कि ऐसे आंदोलन का नेत्र्त्व करने वाले व्यक्ति को सोझ समझ कर बोलना और काम करना चाहिये वरना नुकसान आंदोलन का होता है जिसे जनता मुख्य्तः मुद्दे पर समर्थन देती है बाबा के बेवकूफ़यो से काला धन का मुद्दा ही हाशिये पर चला गया है अन्ना भी कुछ मामलो मे अनावश्यक बयान बाजियां कर रहे हैं बचना चाहिये
जवाब देंहटाएंआप लोग अन्ना और बाबा के विचारों से सहमत है इसका मतलब आपलोग उनका समर्थन कर रहे है . अब सवाल यह है कि आखिर समर्थन आप कर कैसे रहे है . कुछ लोग आन्दोलनों में उनके साथ जा कर समर्थन कर रहे है . कुछ लोग घर बैठ कर अप्रत्यक्ष रूप से इन्टरनेट /फ़ोन के माध्यम से कर रहे है. अब किस तरह से आप उनका समर्थन करना चाहते है.?ये तो आप को ही मालूम होगी . मेरे विचार से अगर हम एक घंटा बिजली बंद करे तो उससे हमारी आजादी के दिन का अपमान तो नहीं ही होगा .आखिर हमारी आज़ादी इतनी महान है कि उसका( एक घंटे से) अपमान हो ही नहीं सकता . चाह कर भी कोई उसका अपमान कर ही नहीं सकता है.
जवाब देंहटाएंअतुल जी आपको तो पता होगा ही हमारा देश गरीब प्रधान देश ही है. हमारे सरकारी आंकड़े ये कहते है कि बीस रूपये से कम कमाने वाला गरीबी की रेखा के नीचे है और हमारे देश की अधिकांश जनता गरीब ही है. इसका मतलब यह है की अधिकांश लोग चाह कर भी बिजली में नहीं रह सकते है . मेरी नज़र में आजादी और बिजली का दूर दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं है. रही बात बाबा रामदेव की तो उन्होंने अब आवासीय शिविर भी हरिद्वार में मुफ्त कर दिया है. आप हरिद्वार में जाइये वहां रहकर बाबा के बारे में थोडा अच्छे से जानिए .
मैं दिवस जी के विचारों से भी पूरी तरह सहमत हूँ . वे थोड़े आक्रामक हैं पर उनकी बातें सही और सटीक होती है.
आपको यदि कुछ जानकारी बढ़ानी हो तो मेरे ब्लॉग भी पढ़े
अतुल जी आपने बिलकुल सही लिखा है, आपको बहुत साधुवाद, जरा मेरा ब्लॉग भी देखिए
जवाब देंहटाएंक्या बाबा रामदेव खुद को भी माफ कर पाएंगे?
अन्ना हजारे की अक्ल आ गई ठिकाने
http://eyethe3rd.blogspot.com
@ रतन जी जनता समझदार है, उसे ज्यादा दिनों तक उलझाए नही रखा जा सकता।
जवाब देंहटाएं@राहुल जी शुक्रिया।
@अरूणेश जी अन्ना ने अनशन के एक दिन पहले का समय अंधेरा करने के लिए नहीं चुना, स्वतंत्रता दिवस के दिन को चुना है, अब ये अलग बात है कि दोनों एक ही दिन पड रहा है 15 अगस्त को। शेष आपकी बातों से सहमत।
@ रेखा जी आपका शुक्रिया। आपके ब्लाग में जरूर आऊंगा। आपने दिवस जी की बात से सहमति जताई है तो उनकी बात को लेकर मैंने उपर कमेंट में अपनी बात कर दी है।
@ तेजवानी जी आपका शुक्रिया। आपका ब्लाग सच में काफी अच्छा है।
जो सोच लिया तो
जवाब देंहटाएंफिर बोल कहां पाएंगे ?
प्रिय अतुल
जवाब देंहटाएंयहां एक लिंक के सहारे चला आया था, तुम्हारे अन्ना हज़ारे जी के बारे में विचार पढ़कर मन में असंतोष व्याप्त हुआ । शायद मैं अपने मन की बात न भी कहता पर कुछ एक बातें है जिनका उत्तर दिये बिना रह पाना मेरे लिये संभव नही है । हो सकता है कि तुम्हे यह ज्ञात न हो कि हमारे नेताओं ने किस कदर अपना काला धन विदेशी बैंकों में जमा कर रखा है, हो सकता है कि तुम्हें यह बात विचलित न भी करती हो, पर यह सत्य है कि अगर यह काला धन वापस आ जाये तो देश की गरीबी ही मिट जाये, मंहगाई की मार झेल रहे निचले वर्ग को कमरतोड़ बढ़ती कीमतों से निजात मिल जाये, देश के पिछड़े वर्ग को समुचित निशुल्क शिक्षा के अवसर मिल जायें । अब जहां तक प्रश्न बाबा रामदेव या अन्ना हज़ारे के समर्थन या विरोध का है उस विषय पर तुम्हें अपनी राय रखने का अधिकार है, पर दूसरों पर अपनी निजी राय थोपने का अधिकार इस संविधान में नही दिया गया है । जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के विषय में लिखता है तब उसे कही सुनी बातों पर ध्यान न देकर तथ्यों पर आधारित होकर ही लिखना उचित है । मसलन जिस तरह तुमने कहा है कि क्या हमारे स्वतंता सेनानी गीदड़ थे बात ठीक नही लगती, इस तरह की महज कल्पना भी करना निरपराध नही हो सकता । फिर वह चाहे बाबा रामदेव के आचरण को ध्यान में रखकर उनकी खिल्ली ऊड़ाने के लिये ही क्यों न लिखी गई हो । तुमसे बहस नही करना चाहता इसीलिये अधिक कुछ नही कह रहा । जहां तक अपनी बात (मसलन बाबा रामदेव ने अपना अनशन क्यों तोड़ दिया) पर कायम रहने का सवाल उठता है क्या सरकार के पास इस बात का जवाब है कि क्यों उन्होने पहले मनीष तिवारी से अनर्गल बातें अन्ना हज़रे के भ्रष्ट होने के विषय में कहलाईं फिर बाद में क्षमा-याचना पर उतर आये ? क्यों सरकार ने अन्ना को जेल में सुरेश कलमाडी के साठ रखा या उनकी टीम के सदस्यों को राजा या कन्निमॊई के साथ रखा गया और क्यों उन्हे उसी दिन रिहा करने का भी कदम उठाया, अगर रिहा करना हि था तो पहले जेल में डाला ही क्यों था ?
हां शायद मैं तुम्हारी इस बात से सहमत हो सकता हू कि पंद्रह अगस्त शोक मनाने का दिन नही है, हालांकि कुछ देर के लिये ही सही हमें यह नही भूलना चाहिये कि हमारी आज़ादी के साथ साथ लाखों लोग बंटवारे में मारे गये थे उनके लिये सहानुभूति प्रकट करने में कोई हर्ज़ नही होना चाहिये। मै तो यहां तक कहूंगा कि पहले हमें शोक सभा आयोजित करनी चाहिये उसके बाद ही आज़ादी का जश्न मनाना चाहिये । यहां अगर अन्ना हज़ारे आज़ादी की दूसरी लड़ाई की बात कर रहे थे तो सर्वथा गलत नही थे । आज भी देश की गरीब जनता गरीबतम होती जा रही है, भ्रष्टाचार के चलते उनकी हालत बद से बदतर होती जा रही है, हमारे कुछ च्चंद भारतीय विश्व के उच्चतम धनवानों में गिने जाते है वहीं लाखों लोग ऎसे भी है जिन्हे यह पता नही होता कि अगले वक्त का खाना उन्हे नसीब होगा भी या नही । आप कहते है कि हमें आज़ादी का जश्न मनाना चाहिये मै कहता हूं कि हमें अपनी दूसरी आज़ादी के लिये लड़ना चाहिये । मै जिस शहर में रहता हूं उसे भारत की व्यावसायिक राजधानी माना जाता रहा है, यहां कुछ लोगों के पास छह मंज़िल मात्र पार्किंग के लिये उपलब्ध है और कुछ लोग ऎसे भी है जिन्हे टांग फैलाने के लिये छह फुट जमीन भी नसीब नही होती । अगर तुम्हारे जैसे पढे लिखे लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ जन आंदोलन का विरोध करते है तो इससे बढकर दुख का अन्य विषय देश के लिये क्या हो सकता है ।
अभय शर्मा
@अभय जी आपका धन्यवाद। आप मेरी पोस्ट पर आए।
जवाब देंहटाएंआपने मेरी पोस्ट को शायद ध्यान से नहीं पढा। मैंने अन्ना हजारे के आंदोलन का न ही विरोध किया है न ही बाबा रामदेव के विदेशी धन वापस लाने के मुददे पर मै विरोध में कह रहा हूं। मैंने तो सिर्फ 15 अगस्त को अंधेरा करने के खिलाफ अपना मत दिया है। इसके साथ ही मैंने गीदड वाली बात नहीं की... ये बात स्वयं बाबा रामदेव ने कही थी कि वे गीदड की मौत नहीं मरना चाहते थे.... उन्हीं के शब्दों को उठाकर मैंने अपनी बात की है।
शेष आपकी बातों से सहमत।
एक बार फिर आपका आभार।