साहित्य वाचस्पति श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की द्वितीय कन्या श्रीमती सरस्वती देवी श्रीवास्तव का पिछले दिनों निधन हो गया। सरस्वती देवी ने विधिवत तौर पर स्कूल का मुंह नहीं देखा था, लेकिन उनके खून में साहित्य रचा बसा था और इसी के चलते उन्होंने अपने जीवन काल में तीन किताबें लिखीं। उनके निधन पर रिटायर्ड व्याख्याता डा नलिनी श्रीवास्तव ने एक संस्मरण लिखा है, जिसे साभार यहां प्रस्तुत कर रहा हूं। डा नलिनी श्रीवास्तव बख्शी जी के बडे बेटे श्री महेन्द्र बख्शी की सुपुत्री हैं और उन्होंने बख्शी जी के बिखरे पडे लेखों का समायोजन कर बख्शी ग्रंथावली का प्रकाशन किया है। यह ग्रंथावली चार भागों में प्रकाशित हुई है। सरस्वती देवी मेरी छोटी बहन की दादी सास थी, इसलिए मेरा भी उनसे रिश्ता रहा है, यह मेरा सौभाग्य है।
श्रीमती सरस्वती देवी श्रीवास्तव |
तीन दिनों से वर्षा की ऐसी झडी लगी हुई है। जिधर देखो उधर पानी ही पानी है। ऐसी स्थिति में खिडकी के पास बैठी हुई वर्षा का मजा ले रही थी। झूम झूम कर मेरे आंगन की फुलवारी एक दूसरे से हवा के झोंके से गले मिल रहे थे। इस दृश्य को देखकर मुझे कितनी ही बातें याद आने लगीं। कितना अच्छा होता, समस्त जनमानस के मन में एक दूसरे के प्रति सद्भावना व सदाचार की भावना से प्रेरित होकर गले मिलते रहते। ऐसी स्थिति में कितना अच्छा लगता। तभी फोन की घंटी बजी। मेरी तंद्रा भंग हुई और मैंने फोन उठाया। वह ईला का फोन था। भर्राई हुई आवाज में उसने कहा, नलिनी दीदी अम्मा नहीं रहीं। अचानक मेरे मुंह से निकला, क्या.....? मैं हतप्रभ हो गई। कुछ कहने और सुनने की स्थिति में नहीं थी.......।
मुझे याद आने लगा, जब भी मैं राजनांदगांव जाती तो जल्दी ही लौटने की कोशिश करती। इसका एक बहुत बडा कारण यह था कि लौटते वक्त मैं दुर्ग में पंचशील नगर अवश्य जाती। पंचशीलनगर में ही बुआ का मकान था। मैं जब भी बुआ जी से मिली, मुझमें हमेशा एक जोश और उत्साह वर्धन होता था। क्योंकि बुआ जी के स्वभाव में निराशा उनसे कोसो दूर रहती। विषम से विषम परिस्थितयों में उन्होंने अपने जीवन से आशा व उत्साह को कभी विलग नहीं किया। बुआ जी का स्वभाव इतना अधिक स्नेहिल था कि वे स्नेहवश ऐसी सच्चाई भी कह जाती थीं, जो कभी कभी कटु सत्य का प्रतिमान बन जाता। उनके स्वभाव की बडी विशेषता थी कि वे दृढ संकल्प की धनी थी और उसे जीवन पर्यंत निभाया।
बख्शी जी अपनी दोनों पुत्रियों के साथ |
बुआ जी एक प्रतिष्ठित परिवार में पैदा हुईं। साहित्य वाचस्पति पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी की द्वितीय कन्या के रूप में उनका जन्म हुआ। यह सुखद संयोग की बात थी कि बख्शी जी सन् 1920 में इलाहाबाद से निकलने वाली ‘सरस्वती पत्रिका’ के सहयोगी संपादक थे। उसी वर्ष बुआ का जन्म हुआ। इसी से बख्शी जी ने बुआ का नाम सरस्वती रखा। नाम ही उनका सरस्वती नहीं था, गुण और कर्म में भी वे सरस्वती का पर्याय थीं। उन्होंने आधुनिक परिवेश की विद्या की डिग्री नहीं ली थी लेकिन उनका ज्ञान और अध्ययन सूर, तुलसी और मीरा की परंपरा की सहज याद दिला देती है। लिखने में उन्हें सचमुच खुशी मिलती थी। वे प्रतिदिन डायरी लिखती थीं। भोगे हुए अतीत की यादों को वे पन्नों में अपनी संवेदना के साथ लिपिबद्ध करती जातीं। उनका यह लेखन कार्य अनजाने ही सजीव जीवंत कहानी के आकार में परिलक्षित होने लगी। उनका पहला कहानी संग्रह ‘नारी का रूप’ निकला। वे इतनी अधिक खुश हुईं मानों उन्हें कोई अनमोल रत्न मिल गया हो। यह खुशी और उत्साह ही उनके जीवन का संबल था।
जीवन के आखिरी पडाव में फूफाजी उन्हें अकेले छोडकर अनन्त पथ के पथिक बन गए। ऐसी दुखद घडी में बुआ जी को पति-वियोग की दारूण दुख ने उन्हें घर की चार-दीवारी के बाहर कदम रखने की जरूरत नहीं समझी। यह उनके एक निष्ठ पति प्रेम का प्रत्यक्ष प्रमाण है। गृहस्थ जीवन में चाहे उनके पोते की शादी हो या नाती की शादी हो, या घर में किसी बालक का जन्म हो, घर बैठे ही सबको सुखद जीवन की आशीर्वाद की वर्षा करती रही परंतु घर से बाहर कहीं नहीं गईं।
बख्शी जी की पुरानी तस्वीर और उनकी हस्तलिपि |
जीवन की संध्याबेला में उन्हें अर्थ का अभाव नहीं रहा। जीवन में मिलने और बिछडने के अकाट्य सत्य का उन्हें विशेष सामना करना पडा। इससे वे दुखी नहीं होती थीं। प्राय: वे एक दार्शनिक की भांति कहतीं, मैं क्या कर सकती हूं। मेरा उनका साथ सिर्फ इतने दिन का ही था। जनम, लगन, मरण पर किसी का वश नहीं रहता है। यह उनका विश्वास था। जन्म होते ही हमारे मृत्यु का दिन भी निश्चित है। हम उससे अंजान रहते हैं। इस संसार रूपी रंगमंच पर अपने कर्तव्यबोध को साथ लेकर मात्र कठपुतली की भांति जीवन निर्वाह करते चले जाते हैं। बुआ जी ने कभी मृत्यु की चिंता नहीं की। वे सदैव अपने वर्तमान में खुश रहतीं और जीवन जीने की कला से पूर्ण रूप से परिचित थीं। तभी तो उन्होंने अपने जीवन काल में सिर्फ पति-वियोग को ही नहीं झेला, एक बेटा और दो बेटियों को भी इस संसार से विदा किया। ऐसी विषम परिस्थिति में उनकी आंखों में अश्रु की बूंदे उढक पडती पर दूसरे ही पल अपने को संभाल भी लेती थीं।
जीवन की अंतिम बेला में उन्होंने इच्छा प्रकट की कि जब मैं अंतिम सांस लूं, मेरे साथ मेरे पतिदेव की तस्वीर को भी रख लेना। यह उनका असीम पति-प्रेम का प्रत्यक्ष प्रमाण है। बुआ जी का संपूर्ण जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा का श्रोत था। इतना ही नहीं, उनके जीवन की अंतिम यात्रा भी दर्शनीय बन गई....।
वर्षा की झडी में उनके आत्मीय स्नेहिल रिश्तेदारों की भीड इकट्ठी हो गई थी। किसी को वर्षा की परवाह नहीं थी। जो भी आत्मीयजन आ रहे थे, सभी बुआ जी के पार्थिव शरीर में कफन ओढाते और अपनी श्रध्दासुमन अर्पित करते हुए आंसुओं का अर्ध्य दे रहे थे। मैं अलग एक कोने में खडी थी, यह दृश्य देख रही थी। बुआजी ने जिस शांति से अपना जीवन व्यतीत किया, वैसे ही गरिमामय उनकी अंतिम यात्रा भी हुई। फूलों से लदी बुआ जी के पार्थिव शरीर की सभी आत्मीय स्नेहिल बेटे बेटियों ने आरती उतारी। राम नाम सत्य के साथ बुआ जी का पार्थिव शरीर वाहन में रख दिया गया। पीछे पीछे आठ दस कारों की रैली धीरे धीरे चलने लगी। बुआ की अंतिम यात्रा में भी आंसूओं की झडी लग गई। हम सब अपनी स्नेहिल बुआ को अंतिम बिदाई देते हुए वहीं खडे रहे और उनका कारवां बढते चला गया।
कालाय तस्मै नम:।
सरस्वती देवी जी को विनम्र श्रद्धांजलि, आशा है आगे यहां उनकी कुछ रचनाएं भी देखने को मिलेंगी.
जवाब देंहटाएंनाम भी सरस्वती और उस पर माँ सरस्वती की साक्षात कृपा। ऐसे गरिमामय व्यक्तित्व के निधन के समाचार से बहुत दुःख हुआ। बुआ जी को विनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंअतुल, ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व के बारे में जानना और जानने से पूर्व ही उनकी विदाई के समाचार शोक संतप्त कर गए। ऐसे जीवट चरित्रों से ही यह दुनिया संचालित है वरना आज के युग में तो पढे-लिखे लोगों को भी अक्सर रोते-धोते ही देखती हूं। बुआजी को विनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंसरस्वती देवी जी को विनम्र श्रद्धांजलि!!
जवाब देंहटाएंजानकर काफी दुःख हुआ .....बुआजी को मेरी तरफ से विनम्र श्रधांजलि
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि ...।
जवाब देंहटाएंइतना सुंदर लेख देने के लिए शुक्रिया, बख्शी जी से जुड़ी स्मृतियाँ और भी दें तो अच्छा लगेगा। बुआजी को विनम्र श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर एक अच्छा ही नहीं बहुत अच्छा साहित्य पढ़ने को मिला, खुद को सौभाग्यशाली समझता हूं।
जवाब देंहटाएंबुआजी को विनम्र श्रद्धांजलि!
आभार।
जवाब देंहटाएंस्वधा
बहुत अच्छी और नई जानकारी दी है |आभार
जवाब देंहटाएंआशा