मेरे घर का माहौल कल से खराब है! मेरी पत्नी थोडी थोडी देर में चिल्ला रही है! जिस वक्त देश में इमरजेंसी लगी थी उस वक्त मैं महज चार साल का था और वो पैदा भी नहीं हुई थी पर घर के हालात इस वक्त ऐसे ही हो गए हैं! टेलीविजन ने चलना बंद कर दिया है..... मुझे भी साफ निर्देश है कि यदि आपको खबर भी देखनी हो तो अपने कम्प्यूटर में वेब पोर्टल पर देख लें.... मैच, फिल्म और अन्य कार्यक्रम तो दूर की बात। ये इमरजेंसी के हालात कल दोपहर दो बजे के आसपास से हैं। उस वक्त मेरी बिटिया स्कूल से लौटी और साथ में लाई अपना रिजल्ट। इस रिजल्ट को देखकर मेरी पत्नी का गुस्सा चरम पर पहुंच गया और फिर हंसी खुशी का माहौल तनाव में बदल गया!
मेरी बेटी के सिर्फ 91 फीसदी मार्क्स आए हैं और वो अपनी कक्षा में सातवें रैंक पर आई है। यह उसका फर्स्ट टर्मिनल का रिजल्ट है। इससे पहले की कक्षाओं में उसका प्रदर्शन 99 फीसदी और सौ फीसदी के बीच ही रहा है.... लेकिन इस बार.....! ! ! ! बस फिर क्या.... तनाव होना लाजिमी था। उधर मेरी पत्नी चिल्ला रही है... ये क्या रिजल्ट है और इधर बेटी दबे स्वर में सफाई दे रही है... मैंने तो सब सही सही लिखा पर पता नहीं मैडम ने नम्बर क्यों कम दिए। अब मैं इन दोनों के बीच का माहौल शांत करने की कोशिश कर रहा हूं....... स्थिति विकट है।
पिछली कक्षा में अपनी क्लास और स्कूल में पहले रैंक में आने वाली मेरी बेटी का रिजल्ट इतना ‘डाऊन’ कैसे हो गया, श्रीमती इस चिंतन में घुलती जा रही है तो बेटी सहमी सी है और मैं.... मैं इन दोनों के बीच सुलह का माहौल बनाने की असफल कोशिश कर रहा हूं। बेटी के रिजल्ट शीट पर हर बार दस्तखत करने वाली पत्नी ने साफ कह दिया है कि वह इस पर दस्तखत नहीं करेगी..... आप करें..... वो अब तक रिजल्ट को देखने के बाद के सदमे से नहीं उबर पाई है।
इन सब बातों के बीच मैं यह बताना तो भूल ही गया कि मेरी बेटी किस कक्षा में पढती है...? वो अभी के जी 2 में है! इससे पहले उसने के जी1 और इससे भी पहले नर्सरी में अपनी कक्षा में फर्स्ट टर्मिनल से लेकर एनुवल इक्जाम में सबसे अव्वल रहकर शाबासी पाई थी पर इस बार..... ! माहौल तनावयुक्त पर नियंत्रण में है..... क्या आपके साथ इस तरह के वाक्ये हुए हैं......? ऐसी स्थितियों से सामना हुआ है कभी....? क्या इस उम्र में बच्चों पर पढाई का इस तरह का तनाव सही है....? क्या कहना है आपका....?
Nice post .
जवाब देंहटाएंआंखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा ,
कश्ती के मुसाफिर ने समन्दर नहीं देखा |
पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला ,
मैं मोम हूँ उसने मुझे छू कर नहीं देखा |
http://mushayera.blogspot.com/
pata nahi aaj kal ke baccho ko kya ho gaya hai muje dekho mei lagtar 1st term o 2 nd term mei fail hoti ayi yeni 1st class se 9th class tak ....or muje bada dukh hua tha jab mei 10 mei 1st or 2nd dono term mei pass ho gayi meri 10 saal ki mhanat par pani fir gaya or mei 10 saal lagatar feil hone ko record nahi bana payi
जवाब देंहटाएंअंको में उलझी वर्तमान शिक्षा पध्दति ......व्यक्तित्व विकास और कौशल वृध्दि के अपने उद्देश्य से भटककर ...केवल.... निरंक साबित हो रही है .....
जवाब देंहटाएंअंको में उलझी वर्तमान शिक्षा पध्दति ......व्यक्तित्व विकास और कौशल वृध्दि के अपने उद्देश्य से भटककर ...केवल.... निरंक साबित हो रही है .....
जवाब देंहटाएंमेरा एक शेर है:-
जवाब देंहटाएंबच्चों को अपना बचपन तो जीने दो
यूँ बस्तों का बोझ बढ़ाना, ठीक नहीं
आज के इस आपाधापी भरे युग में हमने अपने बच्चों से उनका बचपन छीन लिया है...मासूम उम्र में उन्हें बस्तों के बोझ तले दबा दिया है...इस अंधी दौड़ का सबसे बड़ा खामियाजा उन्हें ही भुगतना पड़ा है...हम सब कुछ जान कर भी अनजान बने बस भेड़ चाल में चले जा रहे हैं...बहुत दुखद स्तिथि है...
नीरज
भाई अतुल बड़ी विकट परिस्थिति है। कल ही अपनी बेटी से बात हो रही थी, वह अपनी ढाई वर्षीय बेटी के लिए आगामी सत्र हेतु स्कूल ढूंढ रही थी। मैंने उसे याद दिलाया कि जैसा हमने तुम्हें स्कूल दिया था वेसा ही इसके लिए भी ढूंढना। अर्थात जहां नर्सरी और हायर केजी तक परीक्षा ही नहीं होती हो। अभी से बच्चों की स्वतंत्रता मत छीनो। उसका विकास प्राकृतिक रूप से ही होने दो। घुडदौड में शामिल होने वाले बच्चे जीवन में बहुत कुछ खो देते हैं। ये रेस के घोड़े नहीं हैं।
जवाब देंहटाएं@ शुक्रिया अनवर जी।
जवाब देंहटाएं@ लहर जी आपका तो अंदाज ही जुदा है.....
@ कैलाश चंद्र शर्मा सर आभार.....
@ नीरज जी सच कहा आपने बस्ते के बोझ तले बचपन दबा जा रहा है
बहुत अच्छी कोशिश इस समाज के दोगुले रवैय्ये पर...
जवाब देंहटाएंआजकल सच कहें तो शायद संस्कार इसलिए ही कम होते जा रहे है क्युकी कोई इस तरफ ध्यान नहीं दे रहा है. सब ध्यान देते है तो bas सिर्फ दौड पर , चाहे उस दौड में बच्चे को कितनी ही चोट लगे वो कितना ही गिर जाये...पर सबको बस फर्क रहता ही है तो बस फर्स्ट आने से .कैसे भी आयो फर्स्ट आयो...
अतुल सर आपसे भी यही कहेंगे की अप देवी को इस फ़ालतू की दौड से अलग रखिये ..कोई फायदा नहीं होता है इस दौड से...अगर हो सके तो जीवन की दौड में फर्स्ट आने के लिए प्रोत्साहित कीजिये न की इन देखावे की परीक्षायों में आने की......
@ अजीत जी आभार। सच में इस 'घुडदौड' में शामिल बच्चे काफी कुछ खो देते हैं। इन्हीं विसंगतियों पर चर्चा का माहौल देना ही इस पोस्ट का उद्देश्य है। आपके विचार उत्तम हैं।
जवाब देंहटाएं@ अर्चना जी आपने बहुत अच्छी और सार्थक बात की। आपके विचार सिर आंखों पर....
बच्ची को हमारी उम्र लग जाए और इस शिक्षा प्रणाली को हमारी नज़र लग जाए. और क्या कहा जाए.
जवाब देंहटाएंhar ghar mae yae hi ho rahaa haen
जवाब देंहटाएंprarthna haen aap syaam rakhegae kyuki badaa mushkil hotaa haen kisi bhi pita kae liyae beti kae aansu daekhna
kyun sahi keh rahii hun naa
sir ek si kahani hai.......har jagah.. marks me kya rakha hai,,telent hona chahiye...
जवाब देंहटाएंअक्सर माँ परेशान हो जाती हैं....पर धीरे-धीरे वे भी समझ जायेंगी....और स्वीकार कर लेंगी कि क्लास बढ़ने के साथ-साथ...अंकों के प्रतिशत घटते जाते हैं.
जवाब देंहटाएंमाँ तो हमेशा ही अपने बच्चे को अव्वल ही देखना चाहतीं हैं .....
जवाब देंहटाएंलेकिन हमें अपनी महत्वाकांक्षा को मासूम बच्चों पर नहीं थोपना चाहिए
अतुल जी वाकई ही विकट परिस्थिति है ................ बच्चे बड़े हो कर माता पिता का सम्मान/देखभाल नहीं करते इसके पीछे यही मनोविज्ञान तो काम नहीं करता? बच्चों को मानसिक तौर पर मजबूत और शारीरिक तौर पर तंदुरुस्त बनाएं और ये दवाब बनाना छोड़ दें की वो कितने प्रतिशत अंक लाये कितने नहीं! बच्ची तो समझ जायेगी आप श्रीमती जी को समझाइये थोडा सा :)
जवाब देंहटाएंओह,
जवाब देंहटाएंवैसे वाकई विकट स्तिथि है.... समझाइये भाई..
आन्दोलन कीजिए.
mata - pita to apne baccho ko hamesha hi top par dekhana chahate hai..mam ki narajgi bhi thik hai par unko kahe ki itni pyari beti se naraj nahi hote...
जवाब देंहटाएंagali bar ke liye beti ko prerit kare..
jisase wo 100% marks laye..
@ भूषण जी वास्तव में मौजूदा शिक्षण पध्दति ही अजीब सी है।
जवाब देंहटाएं@ रचना जी सही कहा आपने।
@ आशा जी आपसे सहमत टैलेंट महत्वपूर्ण होना चाहिए।
@ रश्मि जी शुक्रिया।
@ रेखा जी आपने सही कहा।
@ अज्ञानी जी आभार।
@ दीपक जी बहुत खूब।
@ रीना जी शुक्रिया।
सच में आजकल यही हाल है हर अभिभावक और बच्चे का....
जवाब देंहटाएंsach me 'vikat' hai situation...bt plz mummy ko samjhae ki bachho par indirectly pressur aa jata hai..behtar hoga ki aap unko child psychology ki book gift kare...
जवाब देंहटाएंRTE lagoo hone k baad socha tha ki bachho ki halat sudharegi par ye to aur bigad gai hai...
anyway bahut achha likha hai aapne..
मैंने इस विषय पर कभी सोचा ही नहीं।
जवाब देंहटाएं@ मोनिका जी शुक्रिया।
जवाब देंहटाएं@ स्वधा जी आपके सुझाव पर जरूर अमल करूंगा।
@ मनोज जी आभार।
आपका अंदाज़ सोचने को विवश करता है!
जवाब देंहटाएंविकट परिस्थिति है....
जवाब देंहटाएंआजकल यही हाल है हर बच्चे का
क्या आपके साथ इस तरह के वाक्ये हुए हैं......? ऐसी स्थितियों से सामना हुआ है कभी....?
.... लेकिन हमें अपनी महत्वाकांक्षा को मासूम बच्चों पर नहीं थोपना चाहिए
यदि संभव हो तो, अपनी पत्नी को हमारा यह संदेश पहुंचा दीजिएगा अभी से बच्चों की स्वतंत्रता मत छीनो। उसका विकास प्राकृतिक रूप से ही होने दो। घुडदौड में शामिल होने वाले बच्चे जीवन में बहुत कुछ खो देते हैं। ये रेस के घोड़े नहीं हैं।अर्थात अजित जी की बातों से सौ प्रतिशत सहमत हूँ।
जवाब देंहटाएं@ शास्त्री जी आभार आपका।
जवाब देंहटाएं@ संजय जी आपने सही कहा। बच्चों पर अपनी महत्वाकांक्षा नहीं थोपना चाहिए।
@ पल्लवी जी शुक्रिया।
ekdam satik varnan .............sab kuch kah gaye aap ...yahi to hai aaj ka durbhagye .
जवाब देंहटाएंhttp/sapne-shashi.blogspot.com
अभी बच्ची बहुत छोटी है बस उसे बचपन जीने की पूरी आज़ादी मिलना चाहिए . अंको का दबाव उसकी मासूमियत को छीन लेगी.. बड़ी होने के क्रम में वो खुद ही समझने लगेगी..वैसे भी अंको का अचार तो नहीं बनाना है..
जवाब देंहटाएं@ शशि जी शुक्रिया आपका।
जवाब देंहटाएं@ अमृता जी ठीक कहा आपने, अंकों की समझ बडी होने के क्रम में वह खुद समझने लगेगी। बच्चों पर इस तरह का बोझ नहीं डालना चाहिए। आभार...
बच्चों पर शिक्षा का दबाव बढ़ता ही जा रहा है । कभी महत्वाकांक्षा तो कभी बदलते समय की जरूरत , बचपन खोता जा रहा है कहीं ।
जवाब देंहटाएंकहाँ नंबर के चक्कर में पड़ गयी भौजाई ..कहिये उनसे ई नम्बरवा से कुछ नहीं होना है..
जवाब देंहटाएंबिटिया के व्यक्तित्व और दिमाग कुशाग्र हुआ तो ७०% से ऊपर सब बढ़िया है..
छोडिये ये मैकाले की गुलामी और बच्चे पर बहुत जयादा दबाव डालना उचित नहीं है..
बचपन का मजा लेने दे..
जय श्री राम
@ रजनीश जी सही कहा आपने महत्वाकांक्षा और बदलता समय बचपन को लील रहा है।
जवाब देंहटाएं@ आशुतोष जी सही है कुछ नहीं रखा है मैकाले की गुलामी में.....।
बच्चों पर घोर अत्याचार।
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