कपिल सिब्बल। पेशे से वकील। कांग्रेस के बडे नेता और मौजूदा मनमोहन सरकार में मानव संसाधन मंत्री। डा रमन सिंह। पेशे से चिकित्सक। भाजपा के बडे नेता और वर्तमान में छत्तीसगढ में मुख्यमंत्री। एक ओर जहां कपिल सिब्बल की छवि भडकाऊ, कांग्रेस प्रवक्ता रहने के दौरान अपने ऊट-पुटांग बयानबाजी के कारण हमेशा विवादों में घिरे रहने वाले शख्स की, वहीं डा रमन साफ सुथरे इंसान। पार्षद से शुरूआत कर पहले विधायक और फिर दिग्गज कांग्रेसी मोतीलाल वोरा को लोकसभा चुनाव में शिकस्त देकर केन्द्र में मंत्री पद पाना। इसके बाद प्रदेश भाजपा की कमान और अपनी साफ सुथरी छवि के चलते प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल की इन्होंने। फिर चुनाव आए और इसी छवि ने रमन सिंह को फिर से प्रदेश की सत्ता के शिखर पर पहुंचाया।
कुल मिलाकर इन दोनों शख्सियतों में कोई समानता नजर नहीं आती....फिर ‘सिब्बल बनाम रमन....!!!’ क्यों......???? क्यों मैंने इन दोनों को एक साथ, एक ही जमात में लाने की कोशिश की.....???? क्या दोनों में कुछ ऐसा है जो दोनों को एक सा बनाते हैं..... ???? आप क्या सोचते हैं इस बारे में नहीं पता पर मुझे पिछले दिनों के घटनाक्रमों ने ऐसा करने मजबूर किया। मुझे लगता है कि कहीं न कहीं ये दोनों एक ही साथ हैं। एक ही विचारधारा को मानने वाले हैं। वैसे ये इनकी गलती नहीं। राजनीति होती ही ऐसी है। इस पर सत्ता का नशा....! जो करवाए वो कम है।
पहले बात करें कपिल सिब्बल की। सिब्बल साहब ने पिछले दिनों अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नकेल कसने के लिए सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर लगाम कसने की बात की। उन्होंने सरकार के खिलाफ फेसबुक, आरकुट, गुगल प्लस, यू ट्यूब और अन्य साईटों में की जा रही बातों को सेंसर करने की बात की और इस पर कानून लाने की जरूरत पर बात कर रहे हैं। कपिल सिब्बल की इस सेंसरशिप के पक्ष में बार-बार दी जाने वाली सफाई को समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है क्योंकि सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित सत्तारूढ़ दल की बड़ी हस्तियों की आलोचनाओं से इंटरनेट भरा पडा है। और अब अपने इस कदम के बाद कपिल सिब्बल ने सबको पीछे छोड दिया है। गूगल की ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट ने यह खुलासा किया है कि कंपनी को आपत्तिजनक सामग्री हटाने के लिए सरकार से भेजे गए अनुरोधों में अधिकांश सरकार की आलोचना से जुड़े थे। रिपोर्ट के मुताबिक, गूगल को जनवरी 2011 से जून 2011 के बीच सरकार की ओर से 358 अनुरोध मिले। इनमें से अधिकांश यानी 264 अनुरोध गूगल की नेटवर्किंग साइट ऑरकुट पर उपलब्ध सामग्रियों के बारे में थे। इन 264 में से 236 मामले सरकार की आलोचना, 13 मामले नकली पहचान और दो मामले भड़काऊ भाषण से जुड़े थे। गूगल रिपोर्ट का कहना है, ''हमें कानून लागू करने वाली एक स्थानीय सरकारी एजेंसी की ओर से ऑरकुट से जुड़ी उन 236 'कम्युनिटी' और 'प्रोफाइल' को हटाने का एक अनुरोध प्राप्त हुआ जो एक स्थानीय राजनेता की आलोचना में शामिल थे। हमने उस अनुरोध को मानने से इनकार कर दिया क्योंकि वहां मौजूद सामग्री न तो स्थानीय कानून का उल्लंघन कर रही थी और न ही हमारी 'कम्युनिटी मानकों' के खिलाफ थी। यही नहीं, 'यू-ट्यूब' से जुड़ी 'आपत्तिजनक' सामग्री को हटाने के 48 अनुरोधों में से 19 सरकार की आलोचना, छह-छह मामले क्रमशः मानहानि और भड़काऊ भाषण से संबंधित थे। इस समय भारत में ढाई करोड़ लोग फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं जबकि गूगल के उपभोक्ताओं की संख्या दस करोड़ है। (आंकडे आज तक से साभार)
इस तरह साफ है कि कपिल सिब्बल सोशल साईटों पर सेंसरशिप लगाकर अघोषित इमरजेंसी लगाना चाह रहे हैं। वो चाहते हैं कि लोग वही चीजें लिखें जो वो चाहते हैं। जो उनकी सरकार चाहती है। जो उनके लिए घातक न हो। जो उनकी सरकार के लिए नुकसानदेह न हो। उन्होंने यह अनुभव कर लिया है कि कुछ महीने पहले देश में अन्ना हजारे का जो आंदोलन चला था उसकी सफलता के पीछे एक कारण ये सोशल साईटें भी थीं। इन साईटों ने अन्ना के पक्ष में माहौल बनाने का काम किया था और सरकार की किरकिरी इससे हुई थी। बाबा रामदेव के समय भी यही हुआ था। इन साईटों के असर के लिए एक यही उदाहरण काफी है कि एक ओर दिल्ली में बाबा रामदेव को रातों रात गिरफ्तार किया गया और उसी वक्त ये बात फेसबुक, टयूटर और आरकुट के माध्यम से पूरे देश में फैल गई थी और सरकार के खिलाफ माहौल बनना शुरू हो गया।
अब बात करें एक और इमरजेंसी की। मीडिया पर नकेल कसने की कवायद छत्तीसगढ में भी शुरू हो गई है। शांत और सौम्य कहे जाने वाले मुख्यमंत्री रमन सिंह के राज में ऐसा हो रहा है और ऐसा कर रहे हैं उनकी पार्टी के लोग। पिछले दिनों मध्यप्रदेश में खनिज ठेके अपने रिश्तेदारों को अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर दिलाने का आरोप छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री डा रमन सिंह पर लगा। उन्होंने आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया और इन आरोपों को लगाने वाले कांग्रेस नेताओं और इस खबर को सामने लाने वाले मीडिया संस्थानों पर कानूनी कार्रवाई की बात की। यहां तक तो ठीक था... यह उनका अधिकार है कि वो खुद पर आरोप लगाने वालों पर कानूनी कार्रवाई का रास्ता अख्तियार कर सकें पर उन्होंने बयान दिया, ‘मैं मीडिया को देख लूंगा....।’ इतना ही नहीं, रातों रात केबल के माध्यम से ई टीव्ही का प्रसारण ठप करा दिया गया। आबकारी विभाग सरकार की जेब में है.... उसने सरकार की ‘आज्ञा’ का पालन किया।
अब मुख्यमंत्री ने मीडिया को देख लेने की धमकी दे दी तो उनकी पार्टी के कार्यकर्ता कहां चुप रहने वाले थे.... राजधानी रायपुर में भाजपा कार्यकर्ताओं ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित करने वाले अखबार ‘पत्रिका’ की प्रतियां जला डालीं तो मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र राजनांदगांव में अति उत्साही कार्यकर्ताओं ने इस खबर को दिखाने वाले प्रादेशिक न्यूज चैनल ‘ई टीव्ही’ का पुतला ही दहन कर दिया...!
अब इसे क्या कहें....? कपिल सिब्बल ने सोशल मीडिया पर सेंसरशिप की बात की और इधर मुख्यमंत्री डा रमन सिंह लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया पर इस तरह के हमले पर खामोश हैं। खुद पर लगाए आरोपों को लेकर वो अदालत जाने स्वतंत्र हैं और वो वहां जा भी रहे हैं पर मीडिया पर खबरों के बाद इस तरह की प्रतिक्रिया क्या सही है.....? एक ने सोशल मीडिया के पर कतरने की बात की तो दूसरे ने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर ही हमले की नीव रख दी.....!!!!! क्या अब भी गलत है, सिब्बल बनाम रमन....!!!!!!????
सरकार की अपनी मजबूरियां भी होती है आख़िर नेता तो नेता है :):)
जवाब देंहटाएंविरेद्र दा की बात याद आ रही है, उन्होने कहा - इस रमन काल को देखने समझने के बाद जोगी देवता लगता है ..
जवाब देंहटाएं@ सुनील जी सही कहा आपने
जवाब देंहटाएं। उनकी अपनी कुछ मजबूरियां होती हैं। मजबूरियां खुद को सुपर पावर समझने की, मजबूरियां खुद को भगवान समझने की, मजबूरियां जनता को, मीडिया को अपने तारीफ में ही बात करने वाला समझने की......।
@ याज्ञवलक्य सही कहा। एक इंटरव्यू में मुझे भी वीरेन्द्र पांडे जी ने यह कहा था। इसे के यहां पढा जा सकता है।
नेता अगर सीधी चाल चले तो नेतागिरि का क्या फायदा।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई ||
media ko na koi daba saka hai aur na daba sakega.awaz azaad thi hai aur rahegi.
जवाब देंहटाएंyadi kapil sibbaal ya raman singh apne shetra ke maharthi haen to bhi ve meadiya par koi lagam nahin lga skte haen..........
जवाब देंहटाएंBada sashakt aalekh hai.
जवाब देंहटाएं'नेताओं का सीधा और सरल स्वभाव' - सुन्दर आलेख.
जवाब देंहटाएंसारगर्भित लेख बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत अच्छा लिखे हो ...
जवाब देंहटाएं@ शास्त्री जी सही कहा। नेता और सीधी चाल.....रेगिस्तान में पानी ढूंढने जैसा है।
जवाब देंहटाएं@ रविकर जी आभार।
@ अनिल पुसदकर जी सौ फीसदी सच है, मीडिया को न कोई दबा सका है और न दबा सकेगा।
@ संगीता जी आपकी बातों से सहमत। थोडा बहुत आघात जरूर लगा सकते हैं पर आखिर में मीडिया की ही जीत होगी।
@ क्षमा जी आभार।
@ केवल जी, नेताओं का सीधा और सरल स्वभाव!!!!!!
@ आशा जी आभार।
@ पाईंट, शुक्रिया।
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जवाब देंहटाएंये सब चलता रहता है यहाँ।
जवाब देंहटाएंराजनीति होती ही ऐसी है। इस पर सत्ता का नशा....! जो करवाए वो कम है...
जवाब देंहटाएंसशक्त आलेख...
ढाई चाल चलने वाले हैं सब।
जवाब देंहटाएंसशक्त संतुलित विवेचन ..... न जाने कब तक ऐसे खेल चलते रहेंगें ......
जवाब देंहटाएंक्या दिखाना है क्या छुपाना है इनको बहुत पता होता है . सार्थक आलेख..
जवाब देंहटाएं@ चंदन जी चलता तो रहता है पर बडा सवाल ये है कि कब तक चलता रहेगा ये सब....?
जवाब देंहटाएं@ चंद्रभूषण मिश्रा जी आभार आपका।
@ संध्या जी शुक्रिया।
@ मनोज जी सही कहा। पर कई बार ढाई चाल चलने के लिए भी खाने खाली नही होते, तब क्या होगा इनका....?
@ मोनिका जी शुक्रिया।
@ अमृता जी शुक्रिया।
सार्थक आलेख !
जवाब देंहटाएंपोस्ट की शुरु की कुछ लाइन पढ़ कर झटका लगा कि क्या ये अतुल ही लिख रहा है...
जवाब देंहटाएंलेकिन नीचे आकर पूरी पोस्ट पढ़कर तसल्ली हुई कि अतुल अपने तेवर में ही है...बेबाक पत्रकारिता के तेवर...
बधाई...
जय हिंद...
बहुत सार्थक और संतुलित विश्लेषण...
जवाब देंहटाएंअतुल जी पत्रिका और इ टीवी रमण सिंह के खिलाफ जो अभियान चला रहे है उसके पीछे का वास्तविक कारण जानने का भी प्रयास करे . मीडिया की रचनात्मकता की सारी पोले खुल जाएगी.
जवाब देंहटाएंविनाश काले विपरीत बुद्धि...
जवाब देंहटाएं@ मनीष जी शुक्रिया।
जवाब देंहटाएं@ खुशदीप जी आपका आभार। आपसे काफी कुछ सीखने मिल रहा है। कोशिश है कि पत्रकारिता में अपना तेवर बरकरार रखूं।
@ कैलाश सी शर्मा जी शुक्रिया।
@ उजागर जी मेरी पोस्ट पत्रिका और ई टीव्ही के अभियान पर नहीं है, डा रमन सिंह के कदम पर है। यदि वो गलत कर रहे हैं तो रास्ते और भी हैं, अदालत है, और भी फोरम हैं पर चैनल के प्रसारण को बंद कराना, पुतले जलाना, अखबार की प्रतियां जलाना, देख लेने की धमकी देना ये कहां तक जायज है, आप इस पर बात करें कृपया।
@ सही कहा रचना जी आपने।
जब चीटीं की मौत आती है तो पंख निकल आते है,...सुंदर पोस्ट..
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना.....
नेताओं की पूजा क्यों, क्या ये पूजा लायक है
देश बेच रहे सरे आम, ये ऐसे खल नायक है,
इनके करनी की भरनी, जनता को सहना होगा
इनके खोदे हर गड्ढे को,जनता को भरना होगा,
आपकी पोस्ट सोचने को बाध्य करती है...सच बात कहता सारगर्भित आलेख
जवाब देंहटाएंसफल राजनेता वही होता है जो अपना धैर्य ना छोड़े। प्रतिबंध लगाने से पूर्व पहले अपने आचरण पर विचार कर लेना चाहिए। यदि आपका आचरण सही है और आपके खिलाफ अनर्गल समाचार प्रकाशित हो रहे हैं तो आप सम्पादक से बात कर सकते हैं। अति होने पर कोर्ट में भी जा सकते हैं।
जवाब देंहटाएंपहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ, आपकी शैली अद्भुत लगी..........................पर एक झटका भी लगा आपके ब्लॉग पर भारत का खंडित नक्शा देखकर :(
जवाब देंहटाएंDon't expect much from these diplomats. They have nothing better to do .
जवाब देंहटाएंक्या बात है, पूरी हकीकत ही आपने सामने ला दिया।
जवाब देंहटाएंअच्छा लेख, सामयिक
दोनों ही नेताओं के कदम अनुचित हैं...
जवाब देंहटाएंसार्थक सामयिक आलेख...
सादर...
@ धीरेन्द्र जी सही कहा आपने।
जवाब देंहटाएं@ संजय जी आभार।
@ मेरे भाव, शुक्रिया।
@ अजीत जी काश नेता आपकी सलाह को समझ पाते।
@ अमित जी शुक्रिया। इस बात के लिए भी धन्यवाद कि आपने नक्शे को लेकर ध्यानाकर्षण कराया। मैंने उसे अपने ब्लाग से हटा दिया है।
@ दिव्या जी आभार।
@ महेन्द्र जी शुक्रिया।
@ हबीब जी आभार।
सार्थक विश्लेषण... (नुकसान हो रहा है उनका , अंगुली टेढ़ी करना चाह रहे हैं -- कहीं फंस ना जाय !. )
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा आलेख!
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