संसद का मानसून सत्र चल रहा है। वैसे तो यह वाक्य अपने आप में सही है, पर मौजूदा हालात को देखकर ऐसा लगने लगा है कि यह वाक्य कहीं गलत तो नहीं हो रहा। मानसूत्र सत्र में 20 दिनों की कार्रवाई हो चुकी है और आधे से ज्यादा वक्त बरबाद ही हुआ है। यानि कि कहा जाना चाहिए कि मानसूत्र सत्र घिसट-घिसट कर चल रहा है। इस बार का सत्र शुरू से ही हंगामे के नाम रहा। सत्र शुरू होते ही इस पर बाबा रामदेव का रामलीला मैदान में चलने वाले कालाधन के आंदोलन की छाया पड़ती रही तो कुछ दिन बाद कैग के रिपोर्ट ने बचा-खुचा काम कर दिया। कोयला ब्लाक आबंटन में धांधली की इस रिपोर्ट ने संसद को सुलगा दिया और इसका कीमती वक्त हर दिन राख होता जा रहा है।
यह बड़ी चिंता की बात है कि संसद में काम का वक्त कम होता जा रहा है। संसद एक ऐसी जगह है, जहां से देशवासियों के लिये योजनाएं बनती हैं और उसे सही तरीके से क्रियान्वित किया जा रहा है, या नहीं, इस बात का मूल्यांकन किया जाता है। लोकतंत्र में जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है और उसे संसद में भेजती है। इस उम्मीद के साथ कि वह वहां उनकी समस्याओं को उठाने काम करेंगे, उनकी समस्याओं का निराकरण करेंगे और उनके लिए सुविधाएं जुटाने का काम करेंगे, पर हो विपरीत रहा है।
हमारे पास पिछले साल संसद की कार्रवाई के जो आंकड़े हैं, उसके मुताबिक बीते साल 73 दिन संसद की कार्रवाई चली। ये दिन संसद के काम के हिसाब से करीब आठ सौ घंटे होते हैं। संसद में होने वाले काम काज को लेकर रिसर्च करने वाली एक स्वतंत्र संस्था के आंकड़े कहते हैं कि इन घंटों में से करीब 30 प्रतिशत समय हंगामे की भेंट चढ़ गया था। पिछले साल कुल 54 विधेयकों को कानून बनाने की योजना थी, लेकिन मूर्तरूप ले पाए सिर्फ 28। संसद की कार्रवाई जब खत्म हुई उस वक्त 97 विधेयक लंबित पड़े थे। इस साल की शुरूआत बीते साल से बेहतर रही। इस साल जब बजट सत्र शुरू हुआ, तो एक भय था बीते साल का लेकिन फिर अच्छा नजर आने लगा। मार्च से लेकर मई के बीच हुए बजट सत्र का करीब 90 फीसदी समय उपयोगी रहा और 12 विधेयक पारित किए गए। 17 नए विधेयक आए। इस तरह करीब सौ विधेयक लंबित रहे। सब कुछ ठीक चल रहा था कि बीते साल का भूत फिर निकलकर आ गया और संसद का समय बरबाद होता जा रहा है।
इस बार मानसून सत्र की शुरूआत से ही कुछ न कुछ अड़चनें पैदा होते रहीं और आखिर में कोयले की आंच में सब कुछ सुलगने लगा। कैग के रिपोर्ट में टू जी से बड़े गड़बड़झाले का मामला सामने आने के बाद से संसद में कोई काम नहीं हो रहा है। विपक्ष प्रधानमंत्री के इस्तीफे से कुछ कम में मानने को तैयार नहीं है और सत्ता पक्ष इस्तीफे की मांग को सिरे से नकार कर कैग रिपोर्ट पर चर्चा करने की बात कह रहा है। शुक्रवार को इस उम्मीद के साथ कार्रवाई थमी थी कि सोमवार से सदन ठीक ठाक काम करने लगेगा। सत्ता पक्ष इस बात को लेकर विपक्ष के नेताओं से भी बात कर चुका है, अब देखना यह है कि सोमवार की सुबह उजाला लेकर आता है या फिर सदन में कालिख पुती नजर आएगी।
यह बड़ी चिंता की बात है कि संसद में काम का वक्त कम होता जा रहा है। संसद एक ऐसी जगह है, जहां से देशवासियों के लिये योजनाएं बनती हैं और उसे सही तरीके से क्रियान्वित किया जा रहा है, या नहीं, इस बात का मूल्यांकन किया जाता है। लोकतंत्र में जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है और उसे संसद में भेजती है। इस उम्मीद के साथ कि वह वहां उनकी समस्याओं को उठाने काम करेंगे, उनकी समस्याओं का निराकरण करेंगे और उनके लिए सुविधाएं जुटाने का काम करेंगे, पर हो विपरीत रहा है।
हमारे पास पिछले साल संसद की कार्रवाई के जो आंकड़े हैं, उसके मुताबिक बीते साल 73 दिन संसद की कार्रवाई चली। ये दिन संसद के काम के हिसाब से करीब आठ सौ घंटे होते हैं। संसद में होने वाले काम काज को लेकर रिसर्च करने वाली एक स्वतंत्र संस्था के आंकड़े कहते हैं कि इन घंटों में से करीब 30 प्रतिशत समय हंगामे की भेंट चढ़ गया था। पिछले साल कुल 54 विधेयकों को कानून बनाने की योजना थी, लेकिन मूर्तरूप ले पाए सिर्फ 28। संसद की कार्रवाई जब खत्म हुई उस वक्त 97 विधेयक लंबित पड़े थे। इस साल की शुरूआत बीते साल से बेहतर रही। इस साल जब बजट सत्र शुरू हुआ, तो एक भय था बीते साल का लेकिन फिर अच्छा नजर आने लगा। मार्च से लेकर मई के बीच हुए बजट सत्र का करीब 90 फीसदी समय उपयोगी रहा और 12 विधेयक पारित किए गए। 17 नए विधेयक आए। इस तरह करीब सौ विधेयक लंबित रहे। सब कुछ ठीक चल रहा था कि बीते साल का भूत फिर निकलकर आ गया और संसद का समय बरबाद होता जा रहा है।
इस बार मानसून सत्र की शुरूआत से ही कुछ न कुछ अड़चनें पैदा होते रहीं और आखिर में कोयले की आंच में सब कुछ सुलगने लगा। कैग के रिपोर्ट में टू जी से बड़े गड़बड़झाले का मामला सामने आने के बाद से संसद में कोई काम नहीं हो रहा है। विपक्ष प्रधानमंत्री के इस्तीफे से कुछ कम में मानने को तैयार नहीं है और सत्ता पक्ष इस्तीफे की मांग को सिरे से नकार कर कैग रिपोर्ट पर चर्चा करने की बात कह रहा है। शुक्रवार को इस उम्मीद के साथ कार्रवाई थमी थी कि सोमवार से सदन ठीक ठाक काम करने लगेगा। सत्ता पक्ष इस बात को लेकर विपक्ष के नेताओं से भी बात कर चुका है, अब देखना यह है कि सोमवार की सुबह उजाला लेकर आता है या फिर सदन में कालिख पुती नजर आएगी।
janta ke paise kee barbadi hi honi hai chahe sarkar kare ya vipaksh .nice presentation.iतुम मुझको क्या दे पाओगे?
जवाब देंहटाएंye ummid ki somwar jarur ummid puri kare..
जवाब देंहटाएं:-)aaj se sabhi kamkaj apni gati par ho...
:-)
उम्मीदों का सूरज बहुत देर से उगता है ..बस अँधेरा ही अँधेरा नजर आ रहा है ..
जवाब देंहटाएंअब देखना यह है कि सोमवार की सुबह उजाला लेकर आता है या फिर सदन में कालिख पुती नजर आएगी। Pata nahee subah kya nazare dikhayegee!
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