किसी समय भारतीय जनता पार्टी के थिंक टैंक यानि चाणक्य समझे जाने वाले विचारक केएन गोविंदाचार्य ने बड़ी मार्के की बात की है। उन्होंने कांग्रेस और भाजपा को साथ मिलकर अगला चुनाव लडऩे की सलाह दी है। उनकी बातों का निहितार्थ समझने की जरूरत है। उन्होंने अपनी बात के जरिए यह बताने की कोशिश की है कि मौजूदा दौर की राजनीति में आम आदमी की आवाज को उठाने वाला कोई नहीं है और देश की दो सबसे बड़ी पार्टियां एक ही रास्ते पर चल रही हैं, सामंतवाद के रास्ते पर और जब दोनों एक ही रास्ते पर हैं तो एक साथ मिलकर चुनाव लडऩे से दोनों का परहेज नहीं करना चाहिए।
गोविंदाचार्य तीखा और कड़वा बोले जाने के लिए जाने जाते हैं। उनकी इसी आदत के कारण वो फिलहाल किसी दल में नहीं हैं। उन्होंने भाजपा से किनारा कर लिया है लेकिन उनकी बातें अब भी सुनी जाती हैं। कारण यह है कि वे सब कुछ ठोंक-बजाकर बोलते हैं और उनकी बातों का मर्म देश की राजनीति में फैली गंदगी को लेकर दर्द ही दर्शाता है। उत्तरप्रदेश के बलिया में गोविंदाचार्य ने कुछ ऐसा बोला कि वह आम आदमी की आवाज बनकर उभरा। यह अलग बात है कि गोविंदाचार्य आज किसी पद पर नहीं हैं, इसलिए उनकी बात मीडिया में इतनी सुर्खियां बटोर नहीं पाई, पर की उन्होंने मार्के की बात।
गोविंदाचार्य कहते हैं कि देश में सत्ता और विपक्ष का भेद खत्म हो गया है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियां विदेशी और अमीर परस्त नीतियों को बढ़ावा दे रही हैं और संसद में गरीबों की आवाज नहीं उठ रही है। उन्होंने कहा कि नीतियों में समानता की वजह से भाजपा और कांग्रेस को अगला लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लडऩा चाहिये, ताकि संसद में विपक्ष की जगह खाली हो और गरीबों की चिंता करने वाले दलों के प्रतिनिधि संसद में पहुंचकर निर्धन लोगों की आवाज उठाएं। उनकी बातों में गहरा दर्द है। यह दर्द उन लाखों-करोड़ों भारतीयों का दर्द है, जो देश की संसद में चुनकर जाने वाले नेताओं की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखते हैं कि वे वहां उनसे जुड़े मुद्दे उठाएंगे, पर उन्हें गहरी निराशा तब होती है, जब संसद में पहुंचने के बाद उनके प्रतिनिधि वहां तरह तरह के घोटाले करते हैं और जन समस्याओं से दूर हो जाते हैं।
हमारा मानना है कि विचारक के रूप में गोविंदाचार्य एक अहम स्थान रखते हैं और उनका यह विचार एक आम भारतीय का दर्द होना चाहिए। देश का हर नागरिक अपने चुने हुए प्रतिनिधियों को संसद में सुर में सुर मिलाता देख यही सोचता होगा? जनहित के मुद्दे पर या किसी ऐसे विधेयक पर जिसमें जनता का भला होता हो, उस पर संसद में घंटों बहस होती है, लेकिन जहां सांसदों के हितों की बात हो, पगार बढ़ाने या भत्ता बढ़ाने की बात हो, पलक झपकते ही बिल पास हो जाता है। संसद में खुले आम नोट उछाले जाते हैं। सवाल पूछने के बदले रूपए लिए जाने के मामले आते हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों के नेता इन सबमें समान रूप से शामिल होते हैं तो फिर जब दोनों की नीतियां समान हैं तो उन्हें आपस में मिलकर चुनाव लड़ ही लेना चाहिए।
गोविंदाचार्य तीखा और कड़वा बोले जाने के लिए जाने जाते हैं। उनकी इसी आदत के कारण वो फिलहाल किसी दल में नहीं हैं। उन्होंने भाजपा से किनारा कर लिया है लेकिन उनकी बातें अब भी सुनी जाती हैं। कारण यह है कि वे सब कुछ ठोंक-बजाकर बोलते हैं और उनकी बातों का मर्म देश की राजनीति में फैली गंदगी को लेकर दर्द ही दर्शाता है। उत्तरप्रदेश के बलिया में गोविंदाचार्य ने कुछ ऐसा बोला कि वह आम आदमी की आवाज बनकर उभरा। यह अलग बात है कि गोविंदाचार्य आज किसी पद पर नहीं हैं, इसलिए उनकी बात मीडिया में इतनी सुर्खियां बटोर नहीं पाई, पर की उन्होंने मार्के की बात।
गोविंदाचार्य कहते हैं कि देश में सत्ता और विपक्ष का भेद खत्म हो गया है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियां विदेशी और अमीर परस्त नीतियों को बढ़ावा दे रही हैं और संसद में गरीबों की आवाज नहीं उठ रही है। उन्होंने कहा कि नीतियों में समानता की वजह से भाजपा और कांग्रेस को अगला लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लडऩा चाहिये, ताकि संसद में विपक्ष की जगह खाली हो और गरीबों की चिंता करने वाले दलों के प्रतिनिधि संसद में पहुंचकर निर्धन लोगों की आवाज उठाएं। उनकी बातों में गहरा दर्द है। यह दर्द उन लाखों-करोड़ों भारतीयों का दर्द है, जो देश की संसद में चुनकर जाने वाले नेताओं की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखते हैं कि वे वहां उनसे जुड़े मुद्दे उठाएंगे, पर उन्हें गहरी निराशा तब होती है, जब संसद में पहुंचने के बाद उनके प्रतिनिधि वहां तरह तरह के घोटाले करते हैं और जन समस्याओं से दूर हो जाते हैं।
हमारा मानना है कि विचारक के रूप में गोविंदाचार्य एक अहम स्थान रखते हैं और उनका यह विचार एक आम भारतीय का दर्द होना चाहिए। देश का हर नागरिक अपने चुने हुए प्रतिनिधियों को संसद में सुर में सुर मिलाता देख यही सोचता होगा? जनहित के मुद्दे पर या किसी ऐसे विधेयक पर जिसमें जनता का भला होता हो, उस पर संसद में घंटों बहस होती है, लेकिन जहां सांसदों के हितों की बात हो, पगार बढ़ाने या भत्ता बढ़ाने की बात हो, पलक झपकते ही बिल पास हो जाता है। संसद में खुले आम नोट उछाले जाते हैं। सवाल पूछने के बदले रूपए लिए जाने के मामले आते हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों के नेता इन सबमें समान रूप से शामिल होते हैं तो फिर जब दोनों की नीतियां समान हैं तो उन्हें आपस में मिलकर चुनाव लड़ ही लेना चाहिए।
चाणक्य गोविंदाचार्य ने,रक्खा अहमं सवाल
जवाब देंहटाएंक्या दोनों के मिल पायेगे,आपस में ख्याल,,,,,,
RECENT POST ...: जिला अनुपपुर अपना,,,
राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी तो नहीं मगर हां,जनहित में कही बात समझ आती है...
जवाब देंहटाएंआभार
अनु
Ye bbaaten jantake hitme hain!
जवाब देंहटाएंchaliye rajneegya ne hi sahi bat to sahi kahi .yadi ye dono partiyan mil jayen to sare anya dalon ka to bhatta hi baith jayega.ha ha ha ha janpad nyayadheesh shamli:kairana upyukt sthan
जवाब देंहटाएंगोविन्द जी कडवी मगर बहुत गूढ़ बातें कहते हैं.
जवाब देंहटाएंशुक्र है सभी पार्टियों को मिलकर बंदरबाट कर लेने की सलाह नहीं दी।:)
जवाब देंहटाएंअपने ये गोविन्द जी, रहे कबड्डी खेल |
जवाब देंहटाएंशाखा पर खेले बहुत, उलटबासियाँ पेल |
उलटबासियाँ पेल, कहें पाले में घुसकर |
नीति नियम अंदाज, एक तो रहिये मिलकर |
दोनों का सिरदर्द, टूट जायेंगे सपने |
मिलकर लड़ो चुनाव, नतीजे भुगतो अपने ||
कभी प्रो बलराज माधोक जनसंघ (अब भाजपा )को 'कांग्रेस की B टीम'कहते थे उसी बात को गोविंदाचार्य ने दूसरे ढंग से दोहरा दिया है। आर्थिक और राजनीतिक रूप से दोनों पार्टियां यू एस ए की पिछलग्गू हैं। लेकिन दोनों चालाकी से जनता को मूर्ख बनाने हेतु अलग-अलग ही चुनाव लड़ेंगी। हो सकता है कोई एक ज़रूरत पड़ने पर कुछ समय के लिए किसी तीसरे को समर्थन देकर बाद मे धड़ाम कर दे।
जवाब देंहटाएंक्या देश हित के लिए ऐसा हो पायेगा..?
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