16 अगस्त 2012

आश्वासनों और उम्मीदों का सब्जबाग ही आजादी नहीं!

उडीसा के एक ग्राम पंचायत में 15 अगस्‍त को नक्‍सलियो द्वारा फहराया गया काला झंडा
भय और दहशत के बीच पूरे जोशो-खरोश के साथ देश ने अपना 65 वां जन्मदिन मनाया। विचारणीय विषय है कि आजादी के इतने साल हो जाने के बाद भी हम दहशत के माहौल में जी रहे हैं। हर स्वतंत्रता दिवस के पहले देश भर में एक अलर्ट सा जारी होता है और पूरा देश खुशियां जरूर मनाता है, पर आशंकाओं के बीच और जब यह दिन ठीक-ठाक बीत जाता है, राहत महसूस करता है। हर साल इस तरह की स्थिति बनती है, क्या इस पर कोई विचार होता है? इस पर कोई चिंता करता है? या फिर इसे सिर्फ औपचारिक और जरूरी मान कर चला जा रहा है। ऐसा क्यों है?
आजादी का जश्न पूरे देश ने मनाया। देश में मुख्य समारोह देश की राजधानी दिल्ली में मना और लालकिले पर प्रधानमंत्री ने झंडा फहराया। हर प्रदेश की राजधानी में मुख्यमंत्रियों ने तिरंगे को फहराकर सलामी ली। जिला मुख्यालयों में जन प्रतिनिधियों ने और हर गांव, हर गली में देशवासियों ने झंडा फहराकर आजादी के जश्न में खुद को शामिल किया। हर बार की तरह खुशहाली की बात की गई। प्रधानमंत्री ने दिल्ली के लालकिले से देशवासियों के जीवन स्तर को उठाने की बात की। आर्थिक विकास पर बात की। आतंरिक सुरक्षा को मजबूत करने की बात की। महंगाई कम करने की जरूरत बताई। एक और बात उन्होंने की, गरीब तबकों को लेकर, मैला ढोने की प्रथा को खत्म करने, ऐसे लोगों के  जीवन स्तर को ऊंचा उठाने को लेकर। कुछ इसी तरह  की बात और आम लोगों को सौगातें देने की बात तकरीबन हर मुख्यमंत्री ने अपने प्रदेश में की। कुल मिलाकर सबने सब्जबाग दिखाए।
हमारा कहना है कि यह सब 15 अगस्त या फिर 26 जनवरी के भाषणों में ही क्यों दिखाई देता है? क्यों इन बातों को कहने वाले इस पर अमल नहीं करते? 65 साल हो गए, देश को यही सब सुनते, पर सुधार नहीं हुआ। क्या सिर्फ कहने को रहे इसलिए इन बातों को, इन मुद्दों को जिंदा रखा गया है, ताकि कहने में अच्छा लगे और लोगों को सुनने में!
65 साल पहले देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जब पहली बार झंडा फहराने के बाद लालकिले से भाषण दिया था, उसमें भी मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने और ऐसे लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने की बात थी और अब भी यह मुद्दा जिंदा है। तो क्या इन 65 सालों में कुछ नहीं हुआ? ऐसा नहीं है। बहुत कुछ हुआ है। देश ने काफी तरक्की कर ली है। चांद तक हमारी पहुंच हो गई है और अब मंगल में जीवन तलाशने का अभियान चलने की तैयारी है पर अफसोस इस बात का है कि धरती में रहने वालों का जीवन स्तर उठ नहीं पाया है। इस दिशा में कोई काम नहीं हो पाए हैं। यह बड़ी शर्मनाक स्थिति है।
आजादी के 65 साल बाद भी देश के कुछ हिस्सों में सरकार नहीं है। कुछ हिस्सों में आतंक का राज अब भी कायम है और वहां तिरंगा नहीं फहराया जाता। स्वतंत्रता दिवस के विरोध में काले झंडे फहराए जाते हैं। आज भी आतंकी एक विस्फोट कर पूरी की पूरी आबादी को दंगे की आग में झोंक देने में कामयाब हो जाते हैं। इन  विसंगतियों को दूर करने की जरूरत है तब तो स्वतंत्रता के मायने पूरे होंगे, सिर्फ लाल किले से झंडा फहरा देना और देशवासियों को आश्वासनों, उम्मीदों के सब्जबाग दिखाना ही आजादी नहीं!

12 टिप्‍पणियां:

  1. मैने आपका ब्लॉग देखा बड़ा ही सुन्दर लगा .
    बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...
    बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!
    शुभकामनायें.

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  2. अगर राजनेता ये सब घोषणायें पूरी कर दें तो अगला भाषण तैयार करने में उनको बहुत सोचना पड़ेगा ....... वैसे भी देश बचे न बचे मुद्दे जरूर बचे रहने चाहिए ......

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  3. सिर्फ लाल किले से झंडा फहरा देना और देशवासियों को आश्वासनों, उम्मीदों के सब्जबाग दिखाना ही आजादी नहीं!
    आपकी बात से सहमत हूँ ...

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  4. vade agar poore hone lagen to phir kahane ko kuchh rah hi nahin jayega . phir kis mudde ke bal par rajneeti hogi. desh ka bhala kaun chahta hai? sab chahte hain ki mudde bane rahen aur ham desh se kamate khate rahen.
    aajadi ka jashn ka arth unase poochho jo isa din bhi riksha chalate hain, bojha dhote hain aur tab unaka chulha jalata hai. unako kab ek chhutti kee aajadi milegi.

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  5. लिखा लिखाया भाषण पढ़ना वो भी प्रधानमन्त्री का सब कुछ कह देता है ...
    १५ अग्स्स्त की बधाई ...

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    साझा करने के लिए धन्यवाद!

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  7. सचमुच कुछ भी तो नहीं बदला है....
    सार्थक चिंतन...
    सादर।

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  8. असली चेहरा बहुत कुरूप दीखता है ..
    आजादी जाने कहाँ गुम होती जा रही है ..
    बहुत बढ़िया सार्थक चिंतन ..

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  9. सटीक विश्लेषण ...इस प्रकार के विचार ज़रूर सामने आने चाहिए

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