हमें आजाद हुए 65 साल हो गए और छैंसठवें वर्ष में हम प्रवेश कर गए। यह वक्त सोचने का है कि इतने वर्षों में हम क्या हासिल कर पाए? जिन ख्वाबों को लेकर, जिन उम्मीदों को लेकर आजादी के दीवानों ने रण में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए, क्या उन उम्मीदों पर हम खरा उतरे हैं? वास्तविकता तो यह है कि हम और भी पीछे जा रहे हैं। 1947 को देश की जमीन का बंटवारा हुआ था और अब इस दौर में इंसानों में, भावनाओं में और हर उस चीज में बंटवारा निरंतर जारी है, जिसका मानवीय सरोकार है।
मौजूदा दौर में सत्ता की लड़ाई इस कदर हावी हो गई है कि इसके सामने सब कुछ बौना नजर आने लगा है। आम आदमी की क्या जरूरतें हैं, इस पर किसी का ध्यान नहीं है, बस सब के सब अपना वोट बैंक मजबूत करने के काम में लगे हुए हैं। इस आपाधापी में आम भारतवासी की उम्मीदें, आम भारतवासी की भावनाएं कितनी आहत हो रही हैं, इस दिशा में सोचने की किसी को फुर्सत नहीं।
हाल के दिनों में देश ने दो बड़ा आंदोलन देखा। दोनों आंदोलन को देश की दशा और दिशा बदलने वाला बताया गया। एक आंदोलन की शुरूआत एक योगी ने की। लोगों को योग सिखाने वाले बाबा रामदेव ने देश के बाहर जमा काला धन को वापस देश में लाने की मांग को लेकर आंदोलन का आगाज किया और उन्होंने सपना दिखाया कि इससे भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलेगी, देश में महंगाई खत्म हो जाएगी और देश के हर आम आदमी को आसानी से दो वक्त की रोटी नसीब होगी। उनके आंदोलन में लोग जुटे। फिर अचानक उनके आंदोलन को कुचल दिया गया। बाबा दोबारा रामलीला मैदान में पूरी ताकत के साथ आए और पांच दिनों तक उनकी लीला चलती रही। अपनी रणनीति को गोपनीय रखने की बात कहकर खूब भीड़ जमा की और आखिर में कांग्रेस को 'निपटाने' के संकल्प के साथ उन्होंने अपना अनशन खत्म कर दिया।
इन सबके बीच उभरे अन्ना हजारे। भारतीय सेना के पूर्व जवान और मौजूदा समय में बूढ़े हो चले अन्ना हजारे ने देश के लिए लडऩे का एक जज्बा पैदा किया। जन लोकपाल की मांग को लेकर लड़ाई शुरू की। उनका भी उद्देश्य था, भ्रष्टाचार का खात्मा, पर धीरे धीरे उनका जादू खत्म होता गया। इसके पीछे उनकी ही टीम के लोग शामिल थे। उनकी टीम के लोगों ने एक ऐसा मायाजाल बिछाया कि जनता पहले तो उसमें फंसती चली गई और जब जनता को होश आया तो इस टीम से उसका मोह भंग हो गया। आखिर में राजनीतिक दल के गठन की बात कर अन्ना का आंदोलन समाप्त हो गया और जनता एक बार फिर ठगी रह गई। अब टीम अन्ना भंग हो गई है और सब अलग अलग राग गा रहे हैं।
कितने दुर्भाग्य की बात है कि एक का आंदोलन राजनीतिज्ञों के सहयोग के साथ खत्म हो गया और दूसरे का आंदोलन राजनीतिक दल बनाने की बात को लेकर समाप्त हो गया। यदि सब कुछ राजनीति से ही संभव है तो फिर राजनीति को लेकर इतनी कड़वाहट क्यों दिखाई इन लोगों ने? क्यों देश की संसद को, क्यों देश के संविधान को कोसने का काम किया गया? इसका जवाब आने वाले वक्त में अन्ना हजारे की टीम और बाबा रामदेव को देना होगा।
बात अन्ना और रामदेव से हटकर करें तो सरकार भी क्या कर रही है। सिर्फ जनता को ठगने के अलावा कुछ नहीं किया जा रहा है। पिछले 65 सालों से देश में जनता के लिए वो सारी चीजें सपने की तरह हैं, जो आजादी के समय देखी और दिखाई गई थीं। आज भी देश की पूरी आबादी को दो वक्त का खाना मयस्सर नहीं हो रहा है और भ्रष्टाचार जो पहले सैकड़ों और हजारों में था, उसने करोड़ों और अरबों, खरबों तक का सफर तय कर लिया है।
महंगाई चरम पर है। पुराने समय में कहा जाता था कि जेब में रूपए ले जाएं और बाजार से थैला भर सामान लाएं पर अब स्थिति यह है कि थैले में रूपए ले जाने पर जेब भर सामान ही आ पाता है। दाल, रोटी, चावल का भाव आसमान को छू रहा है। जो गरीब हैं, उनको सब्सिडी में सब कुछ दिया जा रहा है। अमीरों को महंगाई से खास फर्क नहीं पड़ रहा है और इन सब के बीच पिस रहा है मध्यमवर्ग।
दंगोंं में कोई कमी नहीं आई है। देश के तकरीबन हर हिस्से में जात पात, ऊंच नीच के नाम पर अत्याचार हो रहे हैं। मुंबई जल रहा है। दिल्ली अछूती नहीं। गुजरात के दंगे पूरे देश का अमन छीन लेते हैं। असम में बोडो उग्रवाद का आतंक है तो छत्तीसगढ़ सहित देश के आधे से ज्यादा राज्य नक्सलवाद की खूनी क्रांति में जल रहे हैं। लिंग भेद हावी है। बेटियों को जलाया जा रहा है।
आज के दौर में सब कुछ महंगा है, सस्ती है तो इंसानी जान!
आज स्वतंत्रता की वर्षगांठ है। यह अवसर आत्ममंथन का है। यह विचारने का है कि देश में व्याप्त तमाम तरह की विसंगतियों से किस तरह छुटकारा पाया जा सके? किस तरह उन सपनों को साकार किया जा सके, जिसे आजादी के दीवानों ने देखा था। आखिर में सब अच्छा हो, इसी उम्मीद के साथ, इसी कामना के साथ स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं...
स्वतंत्रता के सही मायने समझने होंगें , अधिकार चाहने के साथ ही कर्तव्य भी निभाने की सोच लानी होगी शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंसही नीयत से किया गया कोई काम बेकार नहीं जाता जिस देश में प्रधान मंत्री ही रोबोट हो जाए मोहन सिंह को लोग मौन सिंह कहने मानने लगें वहां एक आन्दोलन उठा मैं भी अन्ना तू भी अन्ना ....आंच कभी बेकार नहीं जाती....आंच होनी चाहिए ...वरना आदमी क्या राष्ट्र ठंडा हो जाता है .विचारणीय पोस्ट है आपकी .यौमे आज़ादी मुबारक .
जवाब देंहटाएंकृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बुधवार, 15 अगस्त 2012
TMJ Syndrome
TMJ Syndrome
http://veerubhai1947.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंस्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
सादर
स्वंत्रता हमें कई मायनों में समझनी होगी ।
जवाब देंहटाएंआजादी दिवस की शुभकामनाएँ ।
रहने को अब घर ही घर है ... प्रकृति नहीं हमारी , जमीन और ज़मीर मर गई हमारी .... फिर भी , दिल है हिन्दुस्तानी !
जवाब देंहटाएंहोठों को गोल गोल करके जितनी अंग्रेजी बोल लो , अंग्रेज लिबास पहन लो - कहलाओगे हिन्दुस्तानी ...
इसी बात पर वन्दे मातरम
सार्थक चिंतन
जवाब देंहटाएंयह वक्त है आत्ममंथन करने का यह विचारने का है कि देश में व्याप्त तमाम तरह की विसंगतियों से किस तरह छुटकारा पाया जा सके? किस तरह उन सपनों को साकार किया जा सके, जिसे आजादी के दीवानों ने देखा था।
सहमत हूँ आपकी बात से..
बदलेगा सब इसी आशा और विश्वास के साथ
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाये..
:-)
सटीक आकलन करती प्रस्तुति……………स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंbeautiful presentation Atul ji. Happy Independence Day to you too:)
जवाब देंहटाएंKal net khula nahee isliye swatantrata diwas kee shubh kamnayen aaj de rahee hun.
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने ...
जवाब देंहटाएंस्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
एक सटीक सार्थक सामयिक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसटीक टिप्पणी है, साधुवाद
जवाब देंहटाएंदेश की गरीब जनता को आज भी राज्नीते में बैठे लोग घर , पैसा ,आदि का लोभ दे कर वोते मांग रहे हैं..पांच साल में एक बार चेहरा दिखाने वाले ये नेता ठग हैं ..
जवाब देंहटाएंगरीब लोगों को आज भी नहीं पता की उनका भला किस पार्टी को वोट देने से होगा..उन्हें कौन समझाएगा ..?
आज ६५ वर्ष पश्चात भी कुछ नहीं बदला ..धरातल पर सब कुछ वैसा ही है ..
कुर्सी पर तब भी लुटेरे थे ,अब भी लुटेरे हैं ..
कैसे वंदन करूं आज स्वतंत्र तंत्र का ..