फांसी की सजा पाने वालों की फेहरिश्त में एक और दुश्मन आ गया। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर यानि संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरू को फांसी की सजा दिए जाने के बाद से उसे अब तक लटकाया नहीं गया है, अलबत्ता उसकी फांसी के मसले को लटकाकर रखा गया है और अब सुप्रीम कोर्ट ने भारत के खिलाफ जंग छेडऩे का घोर अपराधी मानकर अजमल कसाब को दी गई फांसी की सजा को बरकरार रख दिया है। इन दोनों मोस्ट वांटेड आतंकियों की फांसी का इंतजार पूरे देश को है।
मौत की सजा को लेकर देश में लंबे समय से बहस होती रही है और कुछ तबके का मानना है कि सभ्य समाज में इस तरह की सजा का प्रावधान नहीं होना चाहिए जबकि एक बड़ा तबका यह कहता है कि सजा की प्रकृति को देखते हुए सजा का प्रकार तय होना चाहिए और इस तरह की सजा के हकदार ये अपराधी हैं। दुनिया भर में अपराधियों को मौत सजा देने के कई तरीके हैं, इनमें से भारत में मौत की सजा का तरीका फांसी ही है। दुनिया के कुछ देश ऐसे भी हैं जहां मौत की सजा अपराधी को तड़पा-तड़पा कर दी जाती है लेकिन हमारे देश में फिर भी बेहतर तरीका है। इस पर भी सवाल खड़ा किया जा रहा है और कई उपायों से कई बार सजा को टालने की कोशिश होती है।
भारत में आखिरी बार फांसी की सजा करीब आठ साल पहले पश्चिम बंगाल में दी गई थी। उस समय एक अपराधी धनंजय चटर्जी को एक युवती का बलात्कार कर उसकी हत्या का दोषी पाए जाने के बाद सजा दी गई थी। उस समय भी इस मामले को लंबा खींचा गया था लेकिन आखिरकार अपराध की प्रकृति को देखते हुए मुकर्रर की गई सजा को अमल में लाया गया।
ताजा मामलों की बात करें तो देश इस समय दो फांसी की सजा पाए लोगों को सजा मिलने का इंतजार कर रहा है। दोनों अपराधी देश की अखंडता को चोट पहुंचाने का काम कर चुके हैं, पर दुर्भाग्य है कि इतना गंभीर अपराध होने के बाद भी दोनों की सजा का मामला लंबे समय से लंबित है। संसद में हमले के दोषी अफजल गुरू को तो काफी पहले फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है और कानूनी प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद उसका मामला राष्ट्र्रपति के पास दया याचिका के रूप में लंबित है। राष्ट्रपति ने इस पर अब तक कोई फैसला नहीं दिया है लेकिन मामले ने इससे पहले राजनीतिक रूप ले लिया और एक वर्ग विशेष की भावनाओं का ख्याल रखते हुए इस मामले को लंबा खींचा जा रहा है।
दूसरा मामला मुंबई में हमले का है। इस मामले में पकड़े गए एकमात्र जिंदा आतंकी अजमल कसाब का मामला लंबे समय तक चला और इसके बाद उसे फांसी की सजा सुनाई गई। सुप्रीम कोर्ट में कसाब ने सजा के खिलाफ अपील की और अब सुप्रीम कोर्ट का भी फैसला आ गया है। सजा बरकरार रखी गई है। तर्क भी दिए गए हैं कि यह अपराध देश के खिलाफ युद्ध छेडऩे का अपराध है और इसमें सजा कम नहीं की जा सकती। इसके बाद अब कसाब के सामने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर करने का ही रास्ता बचता है।
पर देश इस मामले में कुछ और ही चाह रहा है। देश चाहता है कि इस मामले में जल्द से जल्द फैसला हो और जो अफजल गुरू के मामले में हो रहा है, वह यहां न हो। संसद में हमले के दौरान मारे गए लोगों और मुंबई हमले के दौरान मारे गए लोगों के परिवारों की संंतुष्टि के लिए और मृतकों को श्रद्धांजलि तभी मिल सकती है जब फांसी के मसले को लटकाने के बजाय आरोपियों को फांसी पर लटकाया जाए।
मौत की सजा को लेकर देश में लंबे समय से बहस होती रही है और कुछ तबके का मानना है कि सभ्य समाज में इस तरह की सजा का प्रावधान नहीं होना चाहिए जबकि एक बड़ा तबका यह कहता है कि सजा की प्रकृति को देखते हुए सजा का प्रकार तय होना चाहिए और इस तरह की सजा के हकदार ये अपराधी हैं। दुनिया भर में अपराधियों को मौत सजा देने के कई तरीके हैं, इनमें से भारत में मौत की सजा का तरीका फांसी ही है। दुनिया के कुछ देश ऐसे भी हैं जहां मौत की सजा अपराधी को तड़पा-तड़पा कर दी जाती है लेकिन हमारे देश में फिर भी बेहतर तरीका है। इस पर भी सवाल खड़ा किया जा रहा है और कई उपायों से कई बार सजा को टालने की कोशिश होती है।
भारत में आखिरी बार फांसी की सजा करीब आठ साल पहले पश्चिम बंगाल में दी गई थी। उस समय एक अपराधी धनंजय चटर्जी को एक युवती का बलात्कार कर उसकी हत्या का दोषी पाए जाने के बाद सजा दी गई थी। उस समय भी इस मामले को लंबा खींचा गया था लेकिन आखिरकार अपराध की प्रकृति को देखते हुए मुकर्रर की गई सजा को अमल में लाया गया।
ताजा मामलों की बात करें तो देश इस समय दो फांसी की सजा पाए लोगों को सजा मिलने का इंतजार कर रहा है। दोनों अपराधी देश की अखंडता को चोट पहुंचाने का काम कर चुके हैं, पर दुर्भाग्य है कि इतना गंभीर अपराध होने के बाद भी दोनों की सजा का मामला लंबे समय से लंबित है। संसद में हमले के दोषी अफजल गुरू को तो काफी पहले फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है और कानूनी प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद उसका मामला राष्ट्र्रपति के पास दया याचिका के रूप में लंबित है। राष्ट्रपति ने इस पर अब तक कोई फैसला नहीं दिया है लेकिन मामले ने इससे पहले राजनीतिक रूप ले लिया और एक वर्ग विशेष की भावनाओं का ख्याल रखते हुए इस मामले को लंबा खींचा जा रहा है।
दूसरा मामला मुंबई में हमले का है। इस मामले में पकड़े गए एकमात्र जिंदा आतंकी अजमल कसाब का मामला लंबे समय तक चला और इसके बाद उसे फांसी की सजा सुनाई गई। सुप्रीम कोर्ट में कसाब ने सजा के खिलाफ अपील की और अब सुप्रीम कोर्ट का भी फैसला आ गया है। सजा बरकरार रखी गई है। तर्क भी दिए गए हैं कि यह अपराध देश के खिलाफ युद्ध छेडऩे का अपराध है और इसमें सजा कम नहीं की जा सकती। इसके बाद अब कसाब के सामने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर करने का ही रास्ता बचता है।
पर देश इस मामले में कुछ और ही चाह रहा है। देश चाहता है कि इस मामले में जल्द से जल्द फैसला हो और जो अफजल गुरू के मामले में हो रहा है, वह यहां न हो। संसद में हमले के दौरान मारे गए लोगों और मुंबई हमले के दौरान मारे गए लोगों के परिवारों की संंतुष्टि के लिए और मृतकों को श्रद्धांजलि तभी मिल सकती है जब फांसी के मसले को लटकाने के बजाय आरोपियों को फांसी पर लटकाया जाए।
इन दोनों को जल्द फाँसी होनी ही चाहिए बस यही और कुछ नहीं दया के ये काबिल नहीं सार्थक प्रस्तुति .कैराना उपयुक्त स्थान :जनपद न्यायाधीश शामली :
जवाब देंहटाएंअजी ये सेकुलर "सेकुलर" दिखना भी तो चाहतें हैं .यहाँ दया याचिका में सब बराबर हैं बलात्कारी मासूम बच्चिओं को हवश का शिकार बना हत्या करने वाले और कसाब जी ,अफज़ल जी ,जिसका जब नम्बर आयेगा यहाँ सब काम नम्बर से होता है नियमानुसार .क़ानून की पाबन्द है सरकार राष्ट्र पति महोदया कई बलात्कारियों को माफ़ कर अपनी पीठ थपथपा गईं ,जब आलोचना हुई कहा गृह मंत्रालय के आदेश पे मोहर लगाईं है कोई अफज़ल कसाब का माई बाप इन्हें भी छोड़ ही देगा .सेकुलर होना बड़ी चीज़ है आलमी शह है राष्ट्र वाद में क्या रख्खा है दिखो तो आलमी ,भू -मंडलीय दिखो .यहाँ भी पधारें -
जवाब देंहटाएंram ram bhai
बृहस्पतिवार, 30 अगस्त 2012
लम्पटता के मानी क्या हैं ?
. यहाँ भी पधारें -
सच्ची बड़ा असहाय महसूस करते हैं....कानून आड़े आता जा रहा है तब लगता है किसी गैर कानूनी तरीके से ही क्यूँ नहीं निबटा देते ...
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट.
अनु
ye atanki to fansi ke layak hi hai
जवाब देंहटाएंinhe fansi se kam to koi saja nahi honi chahiye..
बिल्कुल सही कहा है आपने ... सार्थकता लिए सटीक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (01-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
यह काम जितनी जल्दी हो उतना ही अच्छा हैं .......
जवाब देंहटाएं