दो खबरें एक साथ पढऩे मिलीं। पहले में लगातार ढप हो रही लोकसभा को चलने देने का आग्रह था यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी का तो दूसरे में एक संस्था की रिपोर्ट थी जिसमें जानकारी दी गई थी कि संसद में कौन किस हद तक मुखर होता है, चर्चा करता है। सोनिया ने कोल ब्लाक मामले में विपक्ष के प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग को लेकर संसद ढप किए जाने और किसी प्रकार की चर्चा न होने पर प्रहार करते हुए कहा कि संसद को चलने दें, मामले में चर्चा हो जाए और इसके बाद दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा, लेकिन दूसरी खबर बता रही है कि सोनिया खुद संसद की गतिविधियों में कितना हिस्सा लेती हैं। एक साल में सोनिया सिर्फ एक बार चर्चा में शामिल हुई है।
बड़ी विकट स्थिति है। संसद का मौजूदा सत्र लगातार कोयले की भेंट चढ़ रहा है और कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों के लोग सत्र को चलाने की दिशा में गंभीर नहीं दिख रहे हैं। एक ओर जहां विपक्षी दल प्रधानमंत्री का इस्तीफा मांग रहे हैं, वहीं सत्ताधारी दल का कहना है कि इस पर चर्चा करा ली जाए। अब चर्चा यदि हो भी जाए तो जो तथ्य सामने आ रहे हैं, उससे क्या बेहतर की उम्मीद की जा सकती है? स्थिति यह है कि कोयले की दलाली में सबके हाथ काले हैं और कोई भी इस पर चर्चा करने तैयार नहीं दिख रहा है। सब सिर्र्फ टालने में लगे हैं। ऐसा लगता है कि सत्ताधारी और विपक्ष दोनों को इस बात का डर है कि कहीं कोयले की दलाली में उनके काले मुंह सामने न आ जाए।
फिलहाल बात हो रही है संसद में कामकाज में हिस्सा लेने और उस पर पेश होने वाले मुद्दों पर चर्चा की तो इस मामले में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी अव्वल नम्बर पर हैं। आडवाणी की संसद में हाजिरी सौ फीसदी है और उनके अलावा पीएल पुनिया ही ऐसे सासंद हैं, जो संसद में हर वक्त मौजूद रहे हैं। राहुल गांधी, नवजोत सिंह सिद्धू और अखिलेश यादव उन सांसदों में शामिल रहे हैं, जो कभी कभी संसद पहुंचे। हालांकि अब अखिलेश यादव संसद से इस्तीफा दे चुके हैं और वे उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बन चुके हैं लेकिन एक से ज्यादा बार सांसद की पारी खेल चुके सिद्धू और राहुल गांधी की संसद में कम मौजूदगी चिंता की बात है।
राहुल गांधी ने साल 2011-12 में संसद में एक भी सवाल नहीं पूछा। वे संसद में पूरी तरह मौन रहे। उनके अलावा मौन रहने वाले एक और सांसद हैं, जसवंत सिंह। जसवंत भाजपा के दिग्गज नेता हैं। उनका भी संसद में मौन रहना कई सवाल खड़ा करता है। इन दोनों के अलावा करीब 65 सांसद ऐसे हैं, जिन्होंने संसद में सवाल पूछने की जहमत ही नहीं उठाई।
बेटा तो बेटा मां भी संसद में ज्यादातर समय चुप ही रहती हैं। सोनिया गांधी ने 2011-12 में संसद में सिर्फ एक बार चर्चा में हिस्सा लिया है। यह अपने आप में चिंता की बात है कि जिस गठबंधन की सरकार केन्द्र में काबिज है उस गठबंधन की मुखिया ही संसद में चुप रहे। यह भी बड़ा सवाल है कि सोनिया कह रही है कि विपक्ष संसद चलने दे, वहां सब दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा, जब वो संसद में खामोश रहेंगी तो वे किस मुंह से इस तरह का बयान दे रही हैं?
बड़ी विकट स्थिति है। संसद का मौजूदा सत्र लगातार कोयले की भेंट चढ़ रहा है और कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों के लोग सत्र को चलाने की दिशा में गंभीर नहीं दिख रहे हैं। एक ओर जहां विपक्षी दल प्रधानमंत्री का इस्तीफा मांग रहे हैं, वहीं सत्ताधारी दल का कहना है कि इस पर चर्चा करा ली जाए। अब चर्चा यदि हो भी जाए तो जो तथ्य सामने आ रहे हैं, उससे क्या बेहतर की उम्मीद की जा सकती है? स्थिति यह है कि कोयले की दलाली में सबके हाथ काले हैं और कोई भी इस पर चर्चा करने तैयार नहीं दिख रहा है। सब सिर्र्फ टालने में लगे हैं। ऐसा लगता है कि सत्ताधारी और विपक्ष दोनों को इस बात का डर है कि कहीं कोयले की दलाली में उनके काले मुंह सामने न आ जाए।
फिलहाल बात हो रही है संसद में कामकाज में हिस्सा लेने और उस पर पेश होने वाले मुद्दों पर चर्चा की तो इस मामले में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी अव्वल नम्बर पर हैं। आडवाणी की संसद में हाजिरी सौ फीसदी है और उनके अलावा पीएल पुनिया ही ऐसे सासंद हैं, जो संसद में हर वक्त मौजूद रहे हैं। राहुल गांधी, नवजोत सिंह सिद्धू और अखिलेश यादव उन सांसदों में शामिल रहे हैं, जो कभी कभी संसद पहुंचे। हालांकि अब अखिलेश यादव संसद से इस्तीफा दे चुके हैं और वे उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बन चुके हैं लेकिन एक से ज्यादा बार सांसद की पारी खेल चुके सिद्धू और राहुल गांधी की संसद में कम मौजूदगी चिंता की बात है।
राहुल गांधी ने साल 2011-12 में संसद में एक भी सवाल नहीं पूछा। वे संसद में पूरी तरह मौन रहे। उनके अलावा मौन रहने वाले एक और सांसद हैं, जसवंत सिंह। जसवंत भाजपा के दिग्गज नेता हैं। उनका भी संसद में मौन रहना कई सवाल खड़ा करता है। इन दोनों के अलावा करीब 65 सांसद ऐसे हैं, जिन्होंने संसद में सवाल पूछने की जहमत ही नहीं उठाई।
बेटा तो बेटा मां भी संसद में ज्यादातर समय चुप ही रहती हैं। सोनिया गांधी ने 2011-12 में संसद में सिर्फ एक बार चर्चा में हिस्सा लिया है। यह अपने आप में चिंता की बात है कि जिस गठबंधन की सरकार केन्द्र में काबिज है उस गठबंधन की मुखिया ही संसद में चुप रहे। यह भी बड़ा सवाल है कि सोनिया कह रही है कि विपक्ष संसद चलने दे, वहां सब दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा, जब वो संसद में खामोश रहेंगी तो वे किस मुंह से इस तरह का बयान दे रही हैं?
sansad chalne de kahkar to sonia ji kuchh galat nahi kah rahi hain bas kami ye hai ki ve kam upasthit rahti hain charcha me .aur fir jahan tak koyla dalali kee bat hai to jab koyla khanan hua hi nahi hai to bekar me babal uthye hi kyon ja rahe hain aur rahi bat aadvani ji kee upasthiti kee to atul ji ve filhal vipaksh me hain aur satta me aane ka unka koi mauka lag nahi raha aur unka man satta ke galiyaron me hi rahne vala hai to aise me yahi ek rasta bachta hai.nice presentation. कैराना उपयुक्त स्थान :जनपद न्यायाधीश शामली :
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंएक लम्बे अंतराल के बाद कृपया इसे भी देखें-
जमाने के नख़रे उठाया करो