मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने एक बार फिर जनता को साधने की शुरूआत करने की तैयारी कर ली है। वे फिर से जनदर्शन नाम की पुरानी 'फिल्म' लेकर जनता के पास आ रहे हैं। वैसे तो वे राजधानी में अपने निवास में बरसों से जनदर्शन करते आ रहे हैं लेकिन जनता के पास जाकर जनदर्शन की शुरूआत करने का प्रचार सरकारी अमला इन दिनों पूरी ताकत से कर रहा है लेकिन वास्तविकता यह है कि यह कोई नया काम नहीं है और अपने विधानसभा क्षेत्र में मुख्यमंत्री काफी पहले ऐसा कर चुके हैं और जनता की समस्याएं सुनने का यह तरीका फ्लाप भी हो चुका है। चुनाव नजदीक है, सो फिर से ऐसी कवायद करने की तैयारी की जा रही है।
मुख्यमंत्री ने यहां जनदर्शन की शुरूआत की थी और करीब दर्जन भर बार यह किया भी। कई समस्याएं आईं। कई का निराकरण हुआ और फिर अचानक यह सब बंद कर दिया गया। अब चुनाव में ज्यादा वक्त नहीं बचा, सो एक बार फिर वे जनता के बीच आ रहे हैं। पूर्व में आई उनकी यह 'फिल्म' कुछ खास नहीं कर पाई थी। अब फिर से इसे 'रिलीज' किया जा रहा है। मुख्यमंत्री सचिवालय ने उनका जिला मुख्यालयों में जाकर जनता की समस्याएं सुनने (जनदर्शन) का कार्यक्रम तैयार किया है। तारीख तय नहीं हुई है लेकिन जनता को साधने की कोशिश फिर से हो रही है। फिर से जनदरबार लगेगा। जनता याचक के रूप में मौजूद होकर अपनी समस्याएं रखेंगे, इस उम्मीद में कि उनकी समस्याओं का निराकरण हो जाएगा। सरकारी विभाग फिर से एक दो आवेदनों पर होने वाले काम पर विज्ञप्तियां जारी करेंगे। मुख्यमंत्री यहां भी आएंगे और लोगों की समस्याएं सुनेंगे। पर बीते जनदर्शन की बात करें तो अनुभव बेहतर नहीं रहा। न ही जनता का और न ही सरकार का। हालांकि सरकारी आंकड़े कहते हैं कि जनदर्शनों में आने वाली समस्याओं में से ज्यादातर का निराकरण हो गया है और कुछ ही समस्याएं लंबित हैं लेकिन वास्तविकता शायद कुछ और ही हो। मुख्यमंत्री के अपने विधानसभा क्षेत्र में यदि जनदर्शन अच्छा खासा चल रहा था और इसमें जनता की समस्याएं सुनी और उसे सुलझाई जा रही थीं तो फिर अचानक इसे बंद करने का कारण समझ नहीं आया? एक प्रशासनिक अफसर ने कुछ समय पहले संकेत दिया था कि जनदर्शन में ज्यादातर आवेदन शिकायतों के या फिर आर्थिक मदद के आते थे और ऐसे आवेदनों के लिए ही जनदर्शन का औचित्य नहीं था, सो इसे अचानक बंद कर दिया गया।
प्रशासनिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने अपने विधानसभा क्षेत्र में जनदर्शन करने की घोषणा 30 मई 2009 को की थी। इस समय तय किया गया था कि महीने के दूसरे शनिवार को यहां जनदर्शन लगाकर जनता की समस्याएं सुनी जाएंगी। पहला जनदर्शन उनकेे कैम्प कार्यालय में 13 जून 2009 को लगा था। इसमें 832 आवेदन आए। उनके यहां स्थापित कैंप कार्यालय इसे मिलाकर कुल पांच जनदर्शन लगे। दूसरा जनदर्शन 11 जुलाई 2009 को लगा। इसमें महज 104 आवेदन आए। तीसरा 8 अगस्त 2009 को लगा, 874 आवेदन आए। चौथा 12 सितम्बर को लगा जिसमें 1056 आवेदन आए। पांचवा 14 नवम्बर 2009 को लगा जिसमें 996 आवेदन आए।
इसके बाद अचानक जनदर्शन को बंद कर दिया गया। न कोई कारण बताया गया और न किसी प्रकार की जानकारी दी गई। फिर अचानक खबर आई कि मुख्यमंत्री घूम घूमकर जनदर्शन करेंगे। कार्यक्रम भी आ गया। इसी कड़ी में वे 8 मई 2010 को मोखला गांव पहुंचे। यहां 612 आवेदन आए। फिर 10 जुलाई 2010 को शहर के प्यारेलाल स्कूल में मुख्यमंत्री का दरबार सजा, आवेदन आए छह सौ। सुकुलदैहान में 9 अक्टूबर 2010 को लगे दरबार में भी छह सौ आवेदन आए। फिर 13 नवम्बर 2010 को सिंघोला में 750 आवेदन आए। इसके बाद मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम में कुछ फेरबदल किया और जनदर्शन को जनसम्पर्क का रूप दिया। अंजोरा में वे जनसम्पर्क में पहुंचे और उनको मिले 205 आवेदन।
यानि अब तक मुख्यमंत्री की जनता को साधने की कवायद में कुल 9622 आवेदन आए हैं और सरकारी आंकड़े इनमें से 8949 को निराकृत बता रहे हैं। यानि सिर्फ 673 आवेदन लंबित हैं। हालांकि यह आंकड़ा सही नहीं होना चाहिए क्योंकि सरकारी रिकार्ड में उन आवेदनों को भी निराकृत की श्रेणी में डाल दिया जाता है जिनमें विभागों की टीम लिखकर आ जाती है, किसी नियमावली को लेकर। समस्या भले ही यथावत रहे, सरकारी आंकड़ों में इसे निराकृत मान लिया जाता है।
बहरहाल, लोकतंत्र में जनता का वक्त पांच साल में एक बार आता है और इस दौरान वह सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है। हमारे लोकतंत्र की बड़ी खासियत यह है कि यहां जनता खुद अपना भाग्यविधाता चुनती है पर कमजोरी यह है कि इस चुनाव में जनता के पास कुछ ज्यादा विकल्प नहीं होता। जनता को उन्हीं में से अपना प्रतिनिधि चुनना होता है, जो राजनीतिक दल उनके सामने पेश करते हैं और वे कैसे भी हों, जनता मजबूर रहती है उनको चुनने। खैर अब देखना होगा कि जनता को साधने की फिर से शुरू हो रही कवायद कितना रंग लाती है? और यह पुरानी फिल्म जनता को कितना पसंद आती है?
मुख्यमंत्री ने यहां जनदर्शन की शुरूआत की थी और करीब दर्जन भर बार यह किया भी। कई समस्याएं आईं। कई का निराकरण हुआ और फिर अचानक यह सब बंद कर दिया गया। अब चुनाव में ज्यादा वक्त नहीं बचा, सो एक बार फिर वे जनता के बीच आ रहे हैं। पूर्व में आई उनकी यह 'फिल्म' कुछ खास नहीं कर पाई थी। अब फिर से इसे 'रिलीज' किया जा रहा है। मुख्यमंत्री सचिवालय ने उनका जिला मुख्यालयों में जाकर जनता की समस्याएं सुनने (जनदर्शन) का कार्यक्रम तैयार किया है। तारीख तय नहीं हुई है लेकिन जनता को साधने की कोशिश फिर से हो रही है। फिर से जनदरबार लगेगा। जनता याचक के रूप में मौजूद होकर अपनी समस्याएं रखेंगे, इस उम्मीद में कि उनकी समस्याओं का निराकरण हो जाएगा। सरकारी विभाग फिर से एक दो आवेदनों पर होने वाले काम पर विज्ञप्तियां जारी करेंगे। मुख्यमंत्री यहां भी आएंगे और लोगों की समस्याएं सुनेंगे। पर बीते जनदर्शन की बात करें तो अनुभव बेहतर नहीं रहा। न ही जनता का और न ही सरकार का। हालांकि सरकारी आंकड़े कहते हैं कि जनदर्शनों में आने वाली समस्याओं में से ज्यादातर का निराकरण हो गया है और कुछ ही समस्याएं लंबित हैं लेकिन वास्तविकता शायद कुछ और ही हो। मुख्यमंत्री के अपने विधानसभा क्षेत्र में यदि जनदर्शन अच्छा खासा चल रहा था और इसमें जनता की समस्याएं सुनी और उसे सुलझाई जा रही थीं तो फिर अचानक इसे बंद करने का कारण समझ नहीं आया? एक प्रशासनिक अफसर ने कुछ समय पहले संकेत दिया था कि जनदर्शन में ज्यादातर आवेदन शिकायतों के या फिर आर्थिक मदद के आते थे और ऐसे आवेदनों के लिए ही जनदर्शन का औचित्य नहीं था, सो इसे अचानक बंद कर दिया गया।
प्रशासनिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने अपने विधानसभा क्षेत्र में जनदर्शन करने की घोषणा 30 मई 2009 को की थी। इस समय तय किया गया था कि महीने के दूसरे शनिवार को यहां जनदर्शन लगाकर जनता की समस्याएं सुनी जाएंगी। पहला जनदर्शन उनकेे कैम्प कार्यालय में 13 जून 2009 को लगा था। इसमें 832 आवेदन आए। उनके यहां स्थापित कैंप कार्यालय इसे मिलाकर कुल पांच जनदर्शन लगे। दूसरा जनदर्शन 11 जुलाई 2009 को लगा। इसमें महज 104 आवेदन आए। तीसरा 8 अगस्त 2009 को लगा, 874 आवेदन आए। चौथा 12 सितम्बर को लगा जिसमें 1056 आवेदन आए। पांचवा 14 नवम्बर 2009 को लगा जिसमें 996 आवेदन आए।
इसके बाद अचानक जनदर्शन को बंद कर दिया गया। न कोई कारण बताया गया और न किसी प्रकार की जानकारी दी गई। फिर अचानक खबर आई कि मुख्यमंत्री घूम घूमकर जनदर्शन करेंगे। कार्यक्रम भी आ गया। इसी कड़ी में वे 8 मई 2010 को मोखला गांव पहुंचे। यहां 612 आवेदन आए। फिर 10 जुलाई 2010 को शहर के प्यारेलाल स्कूल में मुख्यमंत्री का दरबार सजा, आवेदन आए छह सौ। सुकुलदैहान में 9 अक्टूबर 2010 को लगे दरबार में भी छह सौ आवेदन आए। फिर 13 नवम्बर 2010 को सिंघोला में 750 आवेदन आए। इसके बाद मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम में कुछ फेरबदल किया और जनदर्शन को जनसम्पर्क का रूप दिया। अंजोरा में वे जनसम्पर्क में पहुंचे और उनको मिले 205 आवेदन।
यानि अब तक मुख्यमंत्री की जनता को साधने की कवायद में कुल 9622 आवेदन आए हैं और सरकारी आंकड़े इनमें से 8949 को निराकृत बता रहे हैं। यानि सिर्फ 673 आवेदन लंबित हैं। हालांकि यह आंकड़ा सही नहीं होना चाहिए क्योंकि सरकारी रिकार्ड में उन आवेदनों को भी निराकृत की श्रेणी में डाल दिया जाता है जिनमें विभागों की टीम लिखकर आ जाती है, किसी नियमावली को लेकर। समस्या भले ही यथावत रहे, सरकारी आंकड़ों में इसे निराकृत मान लिया जाता है।
बहरहाल, लोकतंत्र में जनता का वक्त पांच साल में एक बार आता है और इस दौरान वह सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है। हमारे लोकतंत्र की बड़ी खासियत यह है कि यहां जनता खुद अपना भाग्यविधाता चुनती है पर कमजोरी यह है कि इस चुनाव में जनता के पास कुछ ज्यादा विकल्प नहीं होता। जनता को उन्हीं में से अपना प्रतिनिधि चुनना होता है, जो राजनीतिक दल उनके सामने पेश करते हैं और वे कैसे भी हों, जनता मजबूर रहती है उनको चुनने। खैर अब देखना होगा कि जनता को साधने की फिर से शुरू हो रही कवायद कितना रंग लाती है? और यह पुरानी फिल्म जनता को कितना पसंद आती है?
बेचारी जनता को सब पसंद हैं : )
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