एक तरफ देश को आर्थिक संकट से उबारने के लिए जनता पर बोझ पर बोझ डाला जा रहा है और दूसरी तरफ जनता की गाढ़ी कमाई (टैक्स) से नेता ऐश कर रहे हैं। घोटाले पर घोटाले कर रहे हैं। नेताओं के अविश्वसनीय आंकड़ों वाले घोटाले लगातार सामने आ रहे हैं और जनता पर डीजल के दामों में बढ़ोत्तरी कर बोझ डाला जा रहा है। रसोई गैस सिलेंडरों की संख्या सीमित कर घर का बजट बिगाडऩे का काम किया जा रहा है और सरकारी पैसे से नेता विदेशों में घूम-घूमकर करोड़ों रूपए बरबाद कर रहे हैं। किसी भी विदेश यात्राओं से यदि कुछ बेहतर निकलकर आता तो फिर भी इन खर्चों को कुछ हद तक जायज ठहराया जा सकता था लेकिन हो कुछ नहीं रहा है और ये यात्राएं महज धन की बरबादी के अलावा कुछ नहीं है।
एक आरटीआई कार्यकर्ता के सवालों के जवाब में यह खुलासा हुआ है कि देश को अर्थशास्त्र की परिभाषा समझाने और देश को आर्थिक संकट से उबारने के लिए कड़े कदमों की जरूरत बताने वाले अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के 'कुनबों' ने करीब पौने सात सौ करोड़ रूपए विदेश यात्राओं पर फूंक डाले हैं। जानकारी के मुताबिक पैसे पेड़ों पर नहीं उगते कहने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी पिछले दो साल में जमकर विदेश दौरे किये। प्रधानमंत्री मॉस्को, मालदीव, न्यूयॉर्क बाली के दौरों पर गए। विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने 28 विदेश दौरे किए। कृष्णा ने न्यूयॉर्क, इस्लामाबाद, बीजिंग, बाली, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, इजरायल और फिलस्तीन का दौरा किया। बताया जाता है कि विदेश दौरों पर खर्चे में बढ़ोतरी इसलिए हुई क्योंकि कई बार मंत्रियों ने चार्टर्ड प्लेन से यात्राएं की। मसलम विदेश मंत्री एसएम कृष्णा के पाकिस्तान दौरे के लिए एयर इंडिया के एयरबस और वायुसेना के एम्ब्रेयर को किराये पर लिया गया। वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने आठ बार स्वीट्जरलैण्ड,दक्षिण अफ्रीका,पाकिस्तान और फ्रांस की यात्रा की। रक्षा मंत्री एके एंटनी ने पिछले दो साल में 6 विदेश दौरे किए.सुबोध कांत सहाय ने पांच देशों की यात्राएं की। यह सब आधिकारिक दौरे थे। कुल मिलाकर 2011-12 में मंत्रियों के विदेश दौरों पर यूपीए सरकार ने 678 करोड़ रूपए फूंके। 2010-11 से यह 12 गुना ज्यादा है। 2010-11 में मंत्रियों के विदेश दौरों पर सिर्फ 56.1 करोड़ रूपए खर्च हुए थे।
सवाल उठता है कि विदेशों में जाकर इन लोगों ने क्या किया? क्या देश के लिए कोई नई नीति लेकर आए, कोई सुधार लेकर आए या फिर सिर्फ जुबानी लफ्फाजी करने के अलावा कुछ नहीं किया। इनसे यदि पूछा जाएगा तो ये बड़ी बड़ी बातें कहेंगे और बताएंगे कि विदेशों से इन लोगों ने देश की तरक्की के रास्ते लाए हैं लेकिन हकीकत इससे अलग है। वास्तव में हुआ कुछ नहीं। हर विदेश यात्राओं के बाद के परिदृश्य पर नजर डालें तो कुछ भी हासिल हुआ हो, नहीं दिखेगा। मसलन, विदेश मंत्री एसएम कृष्णा पाकिस्तान गए और इस यात्रा के लिए उन्होंने चाटर्ड प्लेन किराए पर लेकर करोड़ों फूंके। पाकिस्तान आज भी भारत पर चोरी छिपे आतंक फैलाने का काम कर रहा है। सीमा पर युद्ध विराम का उल्लंघन कर रहा है। फिर कृष्णा ने वहां क्या किया? और क्या पाकिस्तान जाने के लिए चार्टर्ड प्लेन की जरूरत थी, पड़ौस के देश में क्या कम खर्चे में यात्रा नहीं की जा सकती थी? ऐसे कई सवाल हैं, जिसके जवाब घोटालों और धन की बरबादी करने वाले इन नेताओं के पास नहीं हैं। मनमोहन सिंह जी, पैसे पेड़ पर नहीं लगते यह लोगों को बताने की नहीं, आपको और आपके मंत्रियों को समझने की जरूरत है।
एक आरटीआई कार्यकर्ता के सवालों के जवाब में यह खुलासा हुआ है कि देश को अर्थशास्त्र की परिभाषा समझाने और देश को आर्थिक संकट से उबारने के लिए कड़े कदमों की जरूरत बताने वाले अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के 'कुनबों' ने करीब पौने सात सौ करोड़ रूपए विदेश यात्राओं पर फूंक डाले हैं। जानकारी के मुताबिक पैसे पेड़ों पर नहीं उगते कहने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी पिछले दो साल में जमकर विदेश दौरे किये। प्रधानमंत्री मॉस्को, मालदीव, न्यूयॉर्क बाली के दौरों पर गए। विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने 28 विदेश दौरे किए। कृष्णा ने न्यूयॉर्क, इस्लामाबाद, बीजिंग, बाली, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, इजरायल और फिलस्तीन का दौरा किया। बताया जाता है कि विदेश दौरों पर खर्चे में बढ़ोतरी इसलिए हुई क्योंकि कई बार मंत्रियों ने चार्टर्ड प्लेन से यात्राएं की। मसलम विदेश मंत्री एसएम कृष्णा के पाकिस्तान दौरे के लिए एयर इंडिया के एयरबस और वायुसेना के एम्ब्रेयर को किराये पर लिया गया। वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने आठ बार स्वीट्जरलैण्ड,दक्षिण अफ्रीका,पाकिस्तान और फ्रांस की यात्रा की। रक्षा मंत्री एके एंटनी ने पिछले दो साल में 6 विदेश दौरे किए.सुबोध कांत सहाय ने पांच देशों की यात्राएं की। यह सब आधिकारिक दौरे थे। कुल मिलाकर 2011-12 में मंत्रियों के विदेश दौरों पर यूपीए सरकार ने 678 करोड़ रूपए फूंके। 2010-11 से यह 12 गुना ज्यादा है। 2010-11 में मंत्रियों के विदेश दौरों पर सिर्फ 56.1 करोड़ रूपए खर्च हुए थे।
सवाल उठता है कि विदेशों में जाकर इन लोगों ने क्या किया? क्या देश के लिए कोई नई नीति लेकर आए, कोई सुधार लेकर आए या फिर सिर्फ जुबानी लफ्फाजी करने के अलावा कुछ नहीं किया। इनसे यदि पूछा जाएगा तो ये बड़ी बड़ी बातें कहेंगे और बताएंगे कि विदेशों से इन लोगों ने देश की तरक्की के रास्ते लाए हैं लेकिन हकीकत इससे अलग है। वास्तव में हुआ कुछ नहीं। हर विदेश यात्राओं के बाद के परिदृश्य पर नजर डालें तो कुछ भी हासिल हुआ हो, नहीं दिखेगा। मसलन, विदेश मंत्री एसएम कृष्णा पाकिस्तान गए और इस यात्रा के लिए उन्होंने चाटर्ड प्लेन किराए पर लेकर करोड़ों फूंके। पाकिस्तान आज भी भारत पर चोरी छिपे आतंक फैलाने का काम कर रहा है। सीमा पर युद्ध विराम का उल्लंघन कर रहा है। फिर कृष्णा ने वहां क्या किया? और क्या पाकिस्तान जाने के लिए चार्टर्ड प्लेन की जरूरत थी, पड़ौस के देश में क्या कम खर्चे में यात्रा नहीं की जा सकती थी? ऐसे कई सवाल हैं, जिसके जवाब घोटालों और धन की बरबादी करने वाले इन नेताओं के पास नहीं हैं। मनमोहन सिंह जी, पैसे पेड़ पर नहीं लगते यह लोगों को बताने की नहीं, आपको और आपके मंत्रियों को समझने की जरूरत है।
अतुल जी ये यात्रायें देश के हित में ज़रूरी होती हैं हाँ ये अवश्य हो सकता है की सरकार देश की चादर देख पांव फैलाये.सार्थक प्रस्तुति.,,, उत्तर प्रदेश सरकार राजनीति छोड़ जमीनी हकीकत से जुड़े
जवाब देंहटाएंशीश घुटाले प्यार से, टोपी दे पहनाय |
जवाब देंहटाएंगुलछर्रे के वास्ते, लेते टूर बनाय |
लेते टूर बनाय, काण्ड कांडा से करते |
चूना रहे लगाय, नहीं ईश्वर से डरते |
सात हजारी थाल, करोड़ों यात्रा भत्ता |
मौज करें अलमस्त, बाप की प्यारी सत्ता ||
जवाब देंहटाएंसार्थक और सामयिक पोस्ट, आभार.
मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर आप सादर आमंत्रित हैं.
सार्थक सटीक पोस्ट,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : गीत,
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (30-09-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
सार्थक पोस्ट..
जवाब देंहटाएंविदेशो में घूमने के सिवा और कुछ नहीं किया इन लोगो ने..
विदेश दौरे भी जरुरी होते है लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि हमारे नेताओं ने जनता के बीच विश्वास खो दिया है जिसके कारण इनकी हर गतिविधि संशय के घेरे में है जिसके लिए जिम्मेदार ये खुद हैं !!
जवाब देंहटाएं६५ साल का हासिल बतला दो क्या रहा है इन विदेश यात्राओं का .पाकिस्तान और चीन के हमले,अमरीका के सांतवें बेड़े की धमकी ?अलबता विश्व बैंक की दलाली ज़रूर बढ़ी है .पीज़ा और पास्ता का चलन बढा है . नफासत तो बिलकुल भी नहीं सीखी इन लोगों ने इन दौरों से आज भी संसदीय कूप में कूदते हैं .और तो और संसद को ही नहीं चलने देते .क्या प्रासंगिकता है इन दौरों की .वह भी केटिल क्लास से चलने में इनकी नाक कटी है ये ईस्ट इंडिया कम्पनी के नव अवतार चार्टर्ड प्लेन से चलते हैं .भारत की शान अगर किसी ने बढ़ाई और उसे आलमी स्तर पर मान्यता दिलवाई है तो वह विदेश में बसे आ -प्रवासियों ने अपने उद्यम से दिलवाई है .
जवाब देंहटाएंये चर्चा मंच का स्पैम बोक्स बे -तहाशा टिप्पणी लील रहा है कोयले की तरह .चेक करो भैया .
जवाब देंहटाएं६५ साल का हासिल बतला दो क्या रहा है इन विदेश यात्राओं का .पाकिस्तान और चीन के हमले,अमरीका के सांतवें बेड़े की धमकी ?अलबता विश्व बैंक की दलाली ज़रूर बढ़ी है .पीज़ा और पास्ता का चलन बढा है . नफासत तो बिलकुल भी नहीं सीखी इन लोगों ने इन दौरों से आज भी संसदीय कूप में कूदते हैं .और तो और संसद को ही नहीं चलने देते .क्या प्रासंगिकता है इन दौरों की .वह भी केटिल क्लास से चलने में इनकी नाक कटी है ये ईस्ट इंडिया कम्पनी के नव अवतार चार्टर्ड प्लेन से चलते हैं .भारत की शान अगर किसी ने बढ़ाई और उसे आलमी स्तर पर मान्यता दिलवाई है तो वह विदेश में बसे आ -प्रवासियों ने अपने उद्यम से दिलवाई है .
जवाब देंहटाएं६५ साल का हासिल बतला दो क्या रहा है इन विदेश यात्राओं का .पाकिस्तान और चीन के हमले,अमरीका के सांतवें बेड़े की धमकी ?अलबता विश्व बैंक की दलाली ज़रूर बढ़ी है .पीज़ा और पास्ता का चलन बढा है . नफासत तो बिलकुल भी नहीं सीखी इन लोगों ने इन दौरों से आज भी संसदीय कूप में कूदते हैं .और तो और संसद को ही नहीं चलने देते .क्या प्रासंगिकता है इन दौरों की .वह भी केटिल क्लास से चलने में इनकी नाक कटी है ये ईस्ट इंडिया कम्पनी के नव अवतार चार्टर्ड प्लेन से चलते हैं .भारत की शान अगर किसी ने बढ़ाई और उसे आलमी स्तर पर मान्यता दिलवाई है तो वह विदेश में बसे आ -प्रवासियों ने अपने उद्यम से दिलवाई है .
जवाब देंहटाएं६५ साल का हासिल बतला दो क्या रहा है इन विदेश यात्राओं का .पाकिस्तान और चीन के हमले,अमरीका के सांतवें बेड़े की धमकी ?अलबता विश्व बैंक की दलाली ज़रूर बढ़ी है .पीज़ा और पास्ता का चलन बढा है . नफासत तो बिलकुल भी नहीं सीखी इन लोगों ने इन दौरों से आज भी संसदीय कूप में कूदते हैं .और तो और संसद को ही नहीं चलने देते .क्या प्रासंगिकता है इन दौरों की .वह भी केटिल क्लास से चलने में इनकी नाक कटी है ये ईस्ट इंडिया कम्पनी के नव अवतार चार्टर्ड प्लेन से चलते हैं .भारत की शान अगर किसी ने बढ़ाई और उसे आलमी स्तर पर मान्यता दिलवाई है तो वह विदेश में बसे आ -प्रवासियों ने अपने उद्यम से दिलवाई है .
जवाब देंहटाएंउम्दा समसामयिक लेख |
जवाब देंहटाएंइस समूहिक ब्लॉग में पधारें और इस से जुड़ें |
काव्य का संसार
सार्थक पोस्ट बिलकुल सही कहा आपने यही हो रहा है अपने देश में
जवाब देंहटाएंसमसामयिक लेख।
जवाब देंहटाएंप्रतीक संचेती
बिल्कुल,
जवाब देंहटाएंसभी बातों से सहमत हूं
बढिया लेख