16 अक्तूबर 2012

रमन साठ के, सठियाए कांग्रेसी!!!

मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने धूम धड़ाके के साथ अपने जन्मदिन का जश्न मनाया। इस मौके पर आयोजित समारोह का कांग्रेस के एक धड़े ने विरोध जताया और दूसरे धड़े ने जन्मदिन और अभिनंदन समारोह में अपनी मौजूदगी से अपने ही साथियों के किए पर 'रायता'  फैलाने का काम किया। ऐसे लोगों ने एक बार फिर बता दिया कि यहां कांग्रेसी किस तरह गुटबाजी और एक दूसरे की टांग खिंचाई में लगे हुए हैं। पिछले चुनाव में मुख्यमंत्री के हाथों शिकस्त खा चुके लेकिन शिकस्त के बाद भी जीत के दौर में मिलने वाले वोटों से ज्यादा वोट पाने की खुशी में ही खुद को भ्रम में रखे हुए उदय मुदलियार ने मुख्यमंत्री के जन्मदिन पर आयोजित समारोह के औचित्य पर बड़ा सवाल खड़ा किया और उनके अभिनंदन को औचित्यहीन करार दिया। उनका तर्क था कि मुख्यमंत्री ने नांदगांव में एक भी ऐसा काम नहीं किया कि उनका अभिनंदन किया जाए, लेकिन यदि उनसे यह पूछा जाए कि वे अपना एक भी काम गिना दें जिससे उनकी बात सुनी जाए तो वे भी कुछ जवाब नहीं दे पाएंगे!
यहां हम मुख्यमंत्री के अभिनंदन पर उठाए मुदलियार के सवाल पर बहस नहीं करना चाहते और न ही मुख्यमंत्री के अभिनंदन की ही पैरवी कर रहे हैं लेकिन किसी के भी आयोजन पर सवाल खड़ा करने के पहले खुद को आईने में देखना चाहिए। चुनाव नजदीक है। सबको अपना राजनीतिक कैरियर दुरूस्त करने का हक है। सो मुख्यमंत्री ने अपने समर्थकों के माध्यम से ये काम किया और उनके समर्थकों ने आयोजन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेकर मुख्यमंत्री की नजर में अपना कद बढ़ाने की कोशिश की। उधर मुदलियार के किए कराए पर तो सुबह से लेकर रात तक पानी फिरता रहा। राजधानी में सुबह उनके बड़े नेताओं ने मुख्यमंत्री निवास जाकर डॉ. रमन को बधाईयां दीं और फिर यहां अभिनंदन समारोह में भी नगर के प्रथम नागरिक से लेकर राजनांदगांव जिले में कांग्रेस की 'इज्जत' बचाने वाले दोनों विधायक पूरे जोशो-खरोश के साथ मौजूद रहे। और फिर सवाल उठता है कि क्या मुदलियार ने कभी अपना जन्मदिन नहीं मनाया? हमें याद है, जब वे विधायक हुआ करते थे, उनका जन्मदिन भी उनके समर्थक पूरे जोशो-खरोश से मनाते थे और वे भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे और फूले नहीं समाते थे! तो फिर इस तरह के विरोध का क्या औचित्य? क्या वे जनता को इस विरोध के माध्यम से कोई संदेश देना चाहते हैं? यदि ऐसा था तो उनको पहले यह संदेश अपनी पार्टी के लोगों तक पहुंचाना था, इसके बाद जनता तक पहुंचने की कोशिश की जाती, लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया गया।
खैर! आयोजनों की आलोचना करने का यहां मकसद नहीं है। सब अपने अपने सामथ्र्य से आयेाजन कर रहे हैं लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि यदि कांग्रेस ने किसी तरह का कार्यक्रम बनाया तो उसका समर्थन कांग्रेसी ही करें, उसके बाद जनता से समर्थन की उम्मीद करें, तो बेहतर। यहां एक ओर मुख्यमंत्री के जन्मदिन पर विरोध में मौन जुलूस निकाला गया और दूसरी ओर उसी मौन जुलूस में आयोजन में शामिल होने की खिचड़ी भी पकती रही। आश्चर्य कि जो विरोध में था, उसने भी अभिनंदन किया मुख्यमंत्री का। हम बात कर रहे हैं महापौर नरेश डाकलिया का। उन्होंने एक ओर तो जन्मदिन के विरोध को समर्थन दिया तो दूसरी ओर अभिनंदन समारोह में पूरे समय मौजूद रहकर अपनी ही पार्टी के लोगों को धता बता दिया। उनके अलावा राजनांदगांव जिले में कांग्रेस की 'नाक' बचाने वाले दो विधायकों खुज्जी के भोलाराम साहू और मोहला मानपुर के शिवराज उसारे ने भी मुख्यमंत्री के जनाधार बताने की कोशिश (कांग्रेसियों के ही शब्दों में) में भरपूर सहयोग देकर अपनी ही पार्टी के विरोध प्रदर्शन को झूठा साबित कर दिया।
मुख्यमंत्री ने अपना 60 वां जन्मदिन पूरे जोशोखरोश के साथ राजनांदगांव में 'लीप बर्थ-डे' के रूप में मनाया। लीप (चार सालों में एक बार आने वाला) इसलिए कहा जा रहा है कि इससे पहले उन्होंने राजनांदगांव में 2008 में इसी उत्साह के साथ जन्मदिन उसी मंडी प्रांगण में मनाया था, जिस जगह इस बार मनाया गया। उसके बाद अब चार साल बाद उनका जन्मदिन मना। साल भर बाद चुनाव का दौर शुरू हो जाएगा। भगवा झंडे से पटा शहर... आदमकट कट आऊट...हर तरफ डॉ. रमन...डॉ. रमन... कुल मिलाकर मुख्यमंत्री ने जन्मदिन के बहाने चुनावी रिहर्सल कर ली और उनके इस रिहर्सल में कांग्रेसियों ने भी उनका खूब साथ दिया। कहने में गुरेज नहीं होना चाहिए कि मुख्यमंत्री साठ साल के हो गए, पर सठिया गई कांग्रेस लगती है!!!

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