27 सितंबर 2013

हर एक ''वोट'' जरूरी होता है.....




साभार : फेसबुक पेज 'प्रतिज्ञा'
मत का दान भले ही हमने 18 वर्ष (पहले यह 21 वर्ष था) की उम्र से किया हो, पर प्रायमरी स्‍कूल में ही यह पढने मिल गया था, कि मताधिकार हर नागरिक का अधिकार है... कर्तव्‍य  है। वैसे तो मतदाताओं के लिए एक सुविधा यह भी थी कि वह यदि चुनाव मैदान में उतरे उम्‍मीदवारों में से किसी को पसंद नहीं करता तो वह उनमें से किसी को भी नहीं चुनने के अपने अधिकार का इस्‍तेमाल कर सकता है। ऐसा करने के लिए वह मतदान केन्‍द्र में जाकर मतदान की सारी प्रक्रिया पूरी करने के बाद पीठासीन अधिकारी से अपनी बात कह उससे एक फार्म की मांग कर सकता है, जिसे फार्म 49 ‘ओ’ के नाम से जाना जाता है। हालांकि ज्‍यादा जागरूकता नहीं होने के कारण और इस तरह के मतदान होने पर उसकी गिनती नहीं होने पर यह ज्‍यादा प्रचलन में नहीं आ पाया लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले ने मतदाताओं के इस ‘अधिकार’ को लेकर एक अच्‍छी और बडी पहल की है।
सुप्रीम कोर्ट ने मतदाताओं को ‘राईट टू रिजेक्‍ट’ यानि सभी उम्‍मीदवारों को खारिज करने का अधिकार दे दिया है और चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि वह वोटिंग मशीनों (ईवीएम) में एक बटन ‘इनमें से कोई नहीं’ का भी दर्ज करे। शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि वह इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर एक ऐसा बटन लगाए जिसके जरिए मतदाता सभी उम्मीदवारों को खारिज कर सके, यानी मशीन में 'इनमें से कोई नहीं' का विकल्प होना चाहिए। अदालत ने इस तरह की व्यवस्था इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से ही शुरू करने कहा है और यदि सब कुछ ठीक रहा तो इस फ़ैसले का लाभ इस साल दिसंबर में दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में होने वाले विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को मिलेगा। अदालत ने यह फ़ैसला पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टी (पीयूसीएल) की 2004 में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया। पीयूसीएल ने मतदाताओं के लिए निगेटिव वोटिंग की मांग की थी।
सभी उम्मीदवारों को नकारने की मौजूदा व्यवस्था में मतदाता मतदान केंद्र पर जाकर पीठासीन अधिकारी से 49 ओ नाम के एक फार्म की मांग करता है और उसे भर कर वापस कर देता है, लेकिन इस तरह के फार्म की गिनती नहीं होती है। यही वजह है कि यह प्रक्रिया न ही ज्‍यादा कारगर थी औ न ही इसका ज्‍यादा प्रचार ही हो पाया। साफ है कि मतदाता जागरूक नहीं हो पाए और जो जानते थे, उन्‍होंने भी इसलिए खामोश रहना ही बेहतर समझा कि इससे चुनाव परिणाम पर कोई खास असर तो होगा नहीं और उसका यह प्रयास भी गोपनीय नहीं रह पाएगा, लिहाजा इस तरह की सोच रखने वाले मतदाता, मतदान केन्‍द्र से दूर ही रहे और यही वजह थी कि मतदान का प्रतिशत कभी सौ फीसदी नहीं रह पाया। कई बार  तो मतदान पचास फीसदी से कम ही रहा।  
संयोग की बात है कि अभी छत्‍तीसगढ के राजनांदगांव जिले में एक अभियान शुरू किया गया है।  शत प्रतिशत मतदान बने राजनादगांव का अभिमान’ के नाम से एक अभियान गति पर है। इसका नाम रखा गया है, ‘प्रतिज्ञा’। एक अच्‍छा प्रयास हो रहा है और इसके जरिए कोशिश की जा रही है कि मतदाताओं को जागरू‍क किया जाए मतदान केन्‍द्रों में जाने के लिए ताकि वह अपनी पसंद की सरकार चुनने में अपना योगदान दे सके। जब यह अभियान मेरी जानकारी में आया तो मन में सवाल आया कि आखिर क्‍यों हम उस सीख को भूल जा रहे हैं जो हमने बचपन में ही पढ लिया था, क्‍यों हम चुनाव को लेकर बेरूखी अपनाए रखते हैं और क्‍यों मतदान के अपने अधिकार का इस्‍तेमाल नहीं करते.... जवाब में यही कहा जा सकता है कि कई बार हम चुनाव मैदान में मौजूद उम्‍मीदवारों में से किसी को भी पसंद नहीं करने के कारण मतदान केन्‍द्र तक जाने की जहमत नहीं उठाते तो कई बार हम जान बूझकर इस महत्‍वपूर्ण काम से खुद को दूर कर देते हैं लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए..... यदि किसी की तकलीफ उम्‍मीदवारों को लेकर है तो उनकी यह चिंता तो लगभग दूर होने वाली है, वे सभी उम्‍मीदवारों को दरकिनार करते हुए अपनी बात सामने रख सकते हैं.....
दुनिया के  करीब 25 देशों  ने अपने यहां मतदान अनिवार्य कर रखा है। इन देशों  में आस्ट्रेलिया, अर्जन्टीना, इटली, ब्राजील, मैक्सिको, तुर्की, थाइलैण्ड और सिंगापुर शामिल हैं। इनमें से कुछ देशों ने तो यह व्‍यवस्‍था कर रखी है कि जिस नागरिक के पास मतदान करने का सबूत है, उसे ही सरकारी सुविधाओं, सब्सिडी का लाभ मिल सकता है.....
मतदान को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने का काम वैसे तो चुनाव आयोग की ओर से लगातार होता है और इस कडी में  राजनांदगांव की ‘’प्रतिज्ञा’’ का प्रयास भी सराहनीय है लेकिन जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने ‘राईट टू रिजेक्‍ट’ की बात की है, उसने भी एक बेहतर कल का संकेत दिया है......

3 टिप्‍पणियां:

  1. दुनिया के करीब 25 देशों ने अपने यहां मतदान अनिवार्य कर रखा है। इन देशों में आस्ट्रेलिया,अर्जन्टीना, इटली, ब्राजील, मैक्सिको, तुर्की, थाइलैण्ड और सिंगापुर शामिल हैं। इनमें से कुछ देशों ने तो यह व्‍यवस्‍था कर रखी है कि जिस नागरिक के पास मतदान करने का सबूत है, उसे ही सरकारी सुविधाओं, सब्सिडी का लाभ मिल सकता है.....

    बहुत सुन्दर पहल गाँव राजनंद की। कभी यह गाँव सागर कुमार बादल कुमार के फरमाइशी गानों के लिए जाना जाता था फ़र्माइश्करने वालोँ का गाँव कहलाता था अब इस नै पहल के लिए इसे नमन।

    आपने एक अत्यंत महत्व की बात उजागर की है ,जानकारी परक अद्यतन सामग्री के लिए साधुवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही महत्वपूर्ण लेख ... जागरूकता लानी चाहिए समाज में ...

    जवाब देंहटाएं