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दस साल का अनिकत पुलिस की वरदी में |
आज बरबस ही निदा फाजली साहब के गजल की चंद पंक्तियां जेहन में आ गईं। पंक्तियां थीं,
‘’घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो,
यूँ कर लें,
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये’’
आमतौर पर पुलिस को संवेदनहीन कहा जाता है, पर गुजरात के अहमदाबाद की पुलिस ने निदा साहब की इन पंक्तियों को याद दिलाने का काम किया है। एक दस साल का बच्चा आज एक दिन के लिए अहमदाबाद पुलिस का बडा अफसर बना और उसने दिन भर अफसर की दिनचर्या को जिया। यह बच्चा था अनिकेत। अहमदाबाद में गरीबी का जीवन बिता रहे एक टैक्सी चालक के बेटे अनिकेत को केंसर की बीमारी है और उसकी जिंदगी और मौत का फासला लगातार कम होता जा रहा है..... पर उसके दिल में कहीं एक हसरत छुपी हुई थी, जो पूरी हो गई।
अनिकेत एक दिन के लिए अहमदाबाद पुलिस का कमिश्नर बना। दरअसल में अनिकेत के पुलिस अफसर बनने की इच्छा जब एक स्वयंसेवी संस्था ‘मेक ए विश’ को पता चली तो इस संस्था ने पुलिस से संपर्क किया। बच्चे की इस तमन्ना और उसकी स्थिति देखकर पुलिस उसकी इच्छा पूरी करने राजी हो गई। फिर क्या था...... अनिकेत को वर्दी में तैयार कर कमिश्नर ऑफिस लाया गया। सलामी के बाद अनिकेत जिप्सी से शाहीबाग पुलिस स्टेशन पहुंचा, वहां उसने लोगों की समस्याएं सुनीं।
राजनीति, अपराध और दिगर तमाम तरह की खबरों की भीड के बीच यह एक खबर सुकून देने वाली है और संदेश देने वाली है कि अनिकेत जैसे न जाने कितने बच्चे होंगे जो तमाम तरह की उम्मीदें, हसरतें पाले रहते हैं पर उनकी इच्छाएं दबकर रह जाती हैं, ऐसे में वैसी ही संवेदनशीलता का परिचय देना चाहिए जैसा गुजरात पुलिस ने दिया है। इस बात की कल्पना ही नहीं की जा सकती कि अनिकेत के चेहरे में किस कदर मुस्कान बिखरी होगी..... सलाम है गुजरात पुलिस को।