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14 नवंबर 2011

माथे पर लिख दिया- दत्‍तक बालिका....!!!!!

सरकारी योजनाएं जनता के भले के लिए होती हैं लेकिन जब सरकारी योजनाओं के माध्‍यम से जनता का मजाक बनने लग जाए या फिर मासूम बचपन को सरकारी योजनाओं के प्रचार का जरिया बना दिया जाए तो इसे क्‍या कहेंगे....?  ऐसा ही कुछ मुझे महसूस हुआ गंडई में। राजनांदगांव जिले के आखिरी छोर गंडई में रविवार को मुख्‍यमंत्री करोडों रूपये के लोकार्पण और शिलान्‍यास के कार्यक्रम में पहुंचे। इस दौरान जिले के विभिन्‍न सरकारी विभागों ने अपनी योजनाओं की ‘झांकी’ मुख्‍यमंत्री के  सामने पेश की। इन झांकियों में कहीं किसानों  को पंप, ट्रेक्‍टर दिए जाने,  कहीं मछुआरों को जाल और नाव दिए जाने का काम किया गया तो कहीं तेंदूपत्‍ता संग्राहकों को बोनस का वितरण किया गया। सब ठीक.....! पर मासूम बचपन के साथ यहां जो खिलवाड  मैंने देखा उसने मुझे इस पोस्‍ट को लिखने मजबूर कर दिया। मौके पर  सरकारी अफसरों से इस रवैये का विरोध करने के बाद भी किसी ने विषय को गंभीरता से नहीं लिया.... ये बडा अफसोसनाक लगा।
आपने दीवार फिल्‍म देखी होगी। इस फिल्‍म में नायक अमिताभ बच्‍चन के हाथों में लिख दिया जाता है, ‘तेरा बाप चोर है....।’ अमिताभ यानि फिल्‍म के नायक विजय के हाथों में लिखने वाले लोग उसके मुहल्‍ले के कुछ गुंडानुमा लोग थे.... पर यहां सरकार ने ब‍च्‍चों के माथे पर लिख दिया..... ‘दत्‍तक बालिका’! वह भी महज 3 सौ रूपए की योजना की खातिर। गंडई के विभिन्‍न मोहल्‍लों की करीब दस बच्चियां सुबह से माथे पर दत्‍तक बालिका लिखी टोपी के साथ आयोजन स्‍थल में बैठी रहीं और इंतजार करती रहीं कि कब ‘मुखिया’ आएंगे और उनको ‘भेंट’ देंगे। करीब चार बजे के आसपास मुख्‍यमंत्री पहुंचे और उन्‍होंने बच्चियों को बस्‍ता भेंट किया। छत्‍तीसगढ के मुख्‍यमंत्री डा रमन सिंह को संवेदनशील इंसान कहा जाता है.....अफसोस बच्चियों के माथे पर इस तरह की टोपी देखकर भी उनकी संवेदना जागृत नहीं हुई.....!!!! 

बच्चियों को भेंट यूं भी दिया जा सकता था.... इस तरह उनको सार्वजनिक रूप से दत्‍तक बालिका का तमगा पहनाकर भेंट देने का  औचित्‍य समझ से  परे रहा। इस संबंध में मौके पर मैंने कुछ सरकारी अफसरों से विरोध भी जताया पर सबने इसे यूं ही मजाक में ले लिया। महिला बाल विकास विभाग के अधिकारी वरूण सिंह नागेश का कहना है कि यह विभाग की योजना है और इसके तहत 10 गरीब बच्चियों को चिन्हित कर  उन्‍हें स्‍कूल का बस्‍ता दिया जाएगा। इस बस्‍ते में एक कापी, एक पेन, कम्‍पास बाक्‍स और पानी की बोतल होगी। कुल जमा तीन सौ रूपए का सामान बच्चियों को दिया जा रहा है। महज तीन सौ रूपयों के लिए बच्‍चों का इस तरह सार्वजनिक प्रदर्शन.....!!!!! 
क्‍या ये बच्‍चों की मासूमियत के साथ खिलवाड नहीं है...? क्‍या ये सरकारी योजनाओं के प्रचार का घटिया तरीका नहीं है...? क्‍या बच्चियों को इस बात का अहसास दिलाए बगैर उन्‍हें मदद नहीं दी जा सकती थी कि वे अपने मां-बाप के अलावा अब सरकारी योजनाओं की दया पर निर्भर हैं.....? शर्म आनी चाहिए, बच्‍चों का इस तरह उपयोग करने वालों को.....। कार्यक्रम के दौरान संचालक बार बार मौजूद भीड से ये नारा लगाते रहे, सबसे बढिया छत्‍तीसगढिया....... पर मेरे जेहन में इन बच्चियों के भीतर का दर्द ही गूंजता रहा, जिसे शायद ये कभी बोल न सकेंगी....। 
रविवार की ये घटना जेहन में लेकर घर पहुंचा पोस्‍ट लिखते लिखते तारीख बदल गई। बच्‍चों का त्‍यौहार यानि 'बाल दिवस' आ गया। उम्‍मीद है कि ये बच्चियां रविवार को खुद को मिले तमगे से आजाद होकर बाल दिवस के उत्‍साह में मगन हो जाएंगी.......।