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जब अभिनंदन के पहले हजारों की संख्या में मोटर-साइकलों की रैली निकल गई... जब किसानों ने ऐतिहासिक रूप से अपने मुख्यमंत्री का अभिनंदन किया... जब किसान सरकार की घोषणाओं से इतना उत्साहित थे... जब सब कुछ अच्छा-अच्छा हो रहा है तो फिर बड़ा सवाल खड़ा होता है कि आखिर ये लोग कौन हैं जिनने पूरे सरकारी तंत्र को हलाकान कर दिया? ये कौन लोग हैं जो किसानों के लिए फायदे (?) के लिए इतनी बड़ी घोषणा करने वाले सरकार को परेशान किए हुए हैं? ये कौन हैं, जिनको रोकने के लिए सरकार को धारा 144 लगाना पड़ गया? ये कौन लोग हैं, जिनको एक जगह जमा होने से पहले उनके घरों में नजरबंद कर दिया गया... रास्ते से उठा लिया गया... जेल भेज दिया गया...? आखिर कौन लोग हैं ये?
कहा जा रहा है कि ये किसान हैं जो सरकार की वादाखिलाफी के विरोध में राजधानी कूच करने वाले थे। कहा जा रहा है कि ये किसान हैं जो सरकार से बीते तीन साल के बोनस की मांग कर रहे हैं, जिसकी सरकार ने खुद घोषणा की थी। ये किसान हैं, जो लगातार आत्महत्याएं कर रहे किसानों को उनकी फसल का वाजिब हक दिलाने संघर्ष कर रहे हैं। ये किसान हैं, जिनका संघर्ष एक दिन का नहीं, महीनों या ये कहें, साल भर से ज्यादा समय से चल रहा है।
फिर सवाल खड़ा होता है कि आखिर वे कौन लोग थे जिन लोगों ने मुख्यमंत्री का अभिनंदन किया? क्या वे किसान नहीं थे? किसान ही थे तो क्या वे किसान किसी दल विशेष के थे? किसानों की समस्याएं भी क्या दल के आधार पर तय होती हैं? किसानों की मांगें भी क्या दल विशेष के आधार पर बदलती रहती हैं?
यदि वे भी किसान थे, जिन लोगों ने अभिनंदन किया... यदि वे लोग भी किसान थे जो राजधानी कूच करना चाहते थे... तो फिर सवाल खड़ा होता है कि ये रोकना, नजरबंद करना किसलिए? बहुत सारे सवाल हैं... सारे सवालों का जवाब सरकार को देना होगा...
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