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20 सितंबर 2017

कौन लोग हैं ये?

file photo
सरकार ने किसानों के लिए एक बडा़ ऐलान हाल के दिनों में किया था। 2100 करोड़ रुपए की राशि की घोषणा। प्रति क्विंटल 3 सौ रुपए का  बोनस। इस ऐलान से किसान-जगत इतना उत्साहित हुआ कि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का उनके विधानसभा मुख्यालय में नागरिक अभिनंदन तक हो गया। हजारों की संख्या में जुटे लोगों ने राजनांदगांव में मुख्यमंत्री को फूल-मालाओं से लाद दिया। ये अलग बात है कि स्कूली बसों, दिगर संसाधनों से भर-भर कर भीड़ आई। कहा गया ये किसान थे।

जब अभिनंदन के पहले हजारों की संख्या में मोटर-साइकलों की रैली निकल गई... जब किसानों ने ऐतिहासिक रूप से अपने मुख्यमंत्री का अभिनंदन किया... जब किसान सरकार की घोषणाओं से इतना उत्साहित थे... जब सब कुछ अच्छा-अच्छा हो रहा है तो फिर बड़ा सवाल खड़ा होता है कि आखिर ये लोग कौन हैं जिनने पूरे सरकारी तंत्र को हलाकान कर दिया? ये कौन लोग हैं जो किसानों के लिए फायदे (?) के लिए इतनी बड़ी घोषणा करने वाले सरकार को परेशान किए हुए हैं? ये कौन हैं, जिनको रोकने के लिए सरकार को धारा 144 लगाना पड़ गया? ये कौन लोग हैं, जिनको एक जगह जमा होने से पहले उनके घरों में नजरबंद कर दिया गया... रास्ते से उठा लिया गया... जेल भेज दिया गया...? आखिर कौन लोग हैं ये?

कहा जा रहा है कि ये किसान हैं जो सरकार की वादाखिलाफी के विरोध में राजधानी कूच करने वाले थे। कहा जा रहा है कि ये किसान हैं जो सरकार से बीते तीन साल के बोनस की मांग कर रहे हैं, जिसकी सरकार ने खुद घोषणा की थी। ये किसान हैं, जो लगातार आत्महत्याएं कर रहे किसानों को उनकी फसल का वाजिब हक दिलाने संघर्ष कर रहे हैं। ये किसान हैं, जिनका संघर्ष एक दिन का नहीं, महीनों या ये कहें, साल भर से ज्यादा समय से चल रहा है।

फिर सवाल खड़ा होता है कि आखिर वे कौन लोग थे जिन लोगों ने मुख्यमंत्री का अभिनंदन किया? क्या वे किसान नहीं थे? किसान ही थे तो क्या वे किसान किसी दल विशेष के थे? किसानों की समस्याएं भी क्या दल के आधार पर तय होती हैं? किसानों की मांगें भी क्या दल विशेष के आधार पर बदलती रहती हैं?

यदि वे भी किसान थे, जिन लोगों ने अभिनंदन किया... यदि वे लोग भी किसान थे जो राजधानी कूच करना चाहते थे... तो फिर सवाल खड़ा होता है कि ये रोकना, नजरबंद करना किसलिए? बहुत सारे सवाल हैं... सारे सवालों का जवाब सरकार को देना होगा...

#हिन्दी_ब्लॉगिंग

04 सितंबर 2015

सब पर भारी एक डाक्टर

राजनांदगांव के जिला अस्पताल को मेडिकल कॉलेज का दर्जा मिल गया है। पिछले साल बड़ी तेजी से काम कर ऐसा किया गया। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने इसके लिए तब के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल और स्वास्थ्य विभाग के राजधानी में बैठे अफसरों की खूब पीठ थपथपाई थी। काम भी अच्छा था। पर मुख्यमंत्री के माननीय मंत्री और उनके अफसरों की कार्यक्षमता पर उस समय सवाल खड़े हो जाता है, जब यह खबर सामने आती है कि मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र में ही एक डॉक्टर का प्रकरण छह साल से बिना जांच के पड़ा हुआ है। वह डाक्टर निलंबित हो जाता है। सरकार से 75 प्रतिशत गुजारा भत्ता लेना शुरू कर देता है और फिर जिला अस्पताल के सामने ही नर्सिंग होम खोलकर सरकारी अस्पताल की खामियों का फायदा उठाते हुए वहां के मरीजों को अपने यहां खींचना शुरू कर देता है। 
राजनांदगांव के जिला अस्पताल में भेषज्ञ विशेषज्ञ डॉ. दिवाकर रंगारी को सितम्बर 2009 में मेडिकल सर्टिफिकेट बनाने के बदले रिश्वत लेने के आरोप में अक्टूबर 2009 में निलंबित किया गया था। इसके बाद राज्य सरकार ने जांच बिठा दी। जांच न जाने किस मुहुर्त में बिठाई गई, वह अब  तक शुरू ही नहीं हो पाई है। व्यवस्था की खामी ऐसी है कि अब डॉ. रंगारी का 'अपराध' सामान्य लगने लगा है। छह सालों में जांच क्यों शुरू नहीं हो पाई, इस पर यदि जांच हो जाए तो संभवत: राजनांदगांव से लेकर राजधानी तक के स्वास्थ्य अमले के कई अफसरों पर गाज गिर सकती है। सबने इस प्रकरण को लटकाकर सरकारी धन की बर्बादी में अपना अपना पर्याप्त योगदान दिया है।
डॉ. दिवाकर रंगारी का प्रकरण अपने आप में अजूबे की तरह है। पूरा शहर चर्चा करता है कि डॉ. रंगारी अपने निलंबन को बनाए रखने हर जतन करते हैं। कलक्टर शासन को पत्र लिखकर कहते हैं कि प्रकरण में कोई जांच करना नहीं चाहता। वो यह भी कहते हैं कि डॉ. रंगारी खुद सबसे फायदे की स्थिति में हैं। तीन साल पहले जीवनदीप समिति की बैठक में स्वास्थ्य मंत्री के सामने मामला लाया जाता है। मंत्री जल्द से जल्द निपटारे का निर्देश देते हैं, पर होता कुछ नहीं। डॉ. रंगारी कहते हैं कि वो खुद याचक की भूमिका में हैं। वो तर्क देते हैं कि यदि जांच को वो रोक सकते हैं तो समझ लीजिए कि सरकार में डॉ. रंगारी की कितनी चलती है। 
सवाल सिर्फ यह नहीं है कि एक डॉक्टर मेडिकल सर्टिफिकेट लेने के आरोप में निलंबित होता है और उसके प्रकरण में छह साल तक जांच ही शुरू नहीं हो पाती। सवाल यह भी नहीं है कि वह डॉक्टर बिना काम किए आधे से ज्यादा पगार पा रहा है। सवाल यह भी नहीं है कि वह सरकारी अस्पताल के सामने ही निजी नर्सिंग होम खोलकर सरकारी अस्पताल के मरीजों को अपने यहां खींचने का काम कर रहा है। सवाल यह है कि जब मुख्यमंत्री के क्षेत्र में स्वास्थ्य जैसे मसले पर अफसर इस तरह से लापरवाही से काम करते हैं, तो प्रदेश के दूसरे इलाकों में क्या होता होगा? विभागों में क्या होगा? लगता है, अफसरों पर सीएम का डर खत्म हो गया है। यह हाल तब है, जब सीएम के पुत्र अभिषेक  सिंह  स्वयं राजनांदगांव के सांसद हैं। 

24 अगस्त 2013

गुणवत्‍ता वर्ष का काम पानी में बहा....



बडे दिनों बाद ब्‍लाग लिख रहा हूं..... पहले कुछ व्‍यक्तिगत और फिर तकनीकी कारणों से अचानक ब्‍लाग लेखन से दूर हो गया था और फिर ऐसा व्‍यस्‍त हुआ कि कई विषय चूक गए, लिख ही नहीं पाया.... आज से फिर वापसी हो रही है.... इस उम्‍मीद के साथ कि अब यह काम नियमित चलता रहेगा...... 

फोटो : अमित चटर्जी 

मुख्‍यमंत्री ने अपने विधानसभा क्षेत्र में पिछले साल जुलाई में करीब 13 करोड रूपए की लागत से शिवनाथ नदी पर बने एक पुल का लोकार्पण किया था और इस अगस्‍त में यानि कल इस पुल के एप्रोच रोड को शिवनाथ नदी ने उसकी औकात बता दी..... बह गया एप्रोच रोड!!!!! मुझे नहीं लगता ठेकेदार ने इतनी लापरवाही सिर्फ अपनी कमाई के लिए की होगी.... उपर से नीचे तक के अफसरों और फिर नेताओं को कमीशन बांटने वाले ठेकेदारों से इमानदारी से काम की उम्‍मीद हम कैसे कर सकते हैं?
मुख्‍यमंत्री के लोकार्पण के दस दिन के भीतर ही इस सडक पर गडढे हो गए थे, जिसके बाद कांग्रेस ने इन गडढों पर धान का रोपा लगाकर विरोध जताया था.... इस विरोध के बाद जांच की बात की गई लेकिन जांच में क्‍या हुआ यह पता नहीं चल पाया और अब जब सडक बारिश में बह गई है, एक बार फिर जांच शुरू हो गई है। महाराष्‍ट्र के कोटगुल से लगे गोंडरी पहाडी से निकलने वाली शिवनाथ नदी राजनांदगांव के वनांचल से होते हुए राजनांदगांव शहर और फिर दुर्ग की ओर जाती है। यह इस जिले की जीवनदायिनी नदी है लेकिन इन दिनों इसके गुस्‍से से सब सहमे हुए हैं।
एक बात और... चुनाव नजदीक है, इसलिए मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र में प्रदेश के पहले एस्‍ट्रोटर्फ स्‍टेडियम के निर्माण का काम भरे बरसात में चल रहा है.... बरसते पानी में सीमेंटीकरण हो रहा है, डामरीकरण जारी है..... आचार संहिता के पहले मुख्‍यमंत्री इसका भी लोकार्पण जैसे तैसे कर देंगे..... हां उनके लिए सुकून की बात यह हो सकती है कि अगले साल यदि यह भी बारिश की भेंट चढा तो भी, इससे चुनावी फायदा तो तब तक मिल ही जाया रहेगा उनको.......!!!
राजनांदगांव छत्‍तीसगढ का सबसे वीआईपी जिला है। वीवीआईपी कहें तो भी गलत नहीं होगा। 13 साल की उमर वाले छत्‍तीसगढ का पिछले दस सालों से मुख्‍यमंत्री इसी जिले से जो है। पहले पांच साल जिले के डोंगरगांव का विधायक मुखिया रहा और फिर अब राजनांदगांव विधानसभा का विधायक प्रदेश का मुखिया है। डा रमन सिंह के रूप में। लोगों को लगता होगा, प्रदेश का मुखिया जिस जिले का है, वहां की तो बल्‍ले-बल्‍ले होगी, लेकिन क्‍या वास्‍तव में ऐसा है। न्‍यूज चैनलों में सरकार की तारीफों के पुल बांधते हुए कई विज्ञापन रोज चल रहे हैं, एक विज्ञापन देखा, राजनांदगांव जिले और राजनांदगांव शहर की तरक्‍की को लेकर तो सोचने लगा कि क्‍या वास्‍तव में दृश्‍य ऐसा ही है.... जो मैं देख रहा हूं, महसूस कर रहा हूं, क्‍या वह मेरा वहम है....मेरी नजर में जो दिख रहा है... जो मैं महसूस कर रहा हूं.... काश वह वहम ही होता... पर जनाब हकीकत ऐसा नहीं है....... जहां नजर दौडाऊं.... कमियां ही दिखती हैं, कहीं से नहीं लगता कि मुखिया का जिला है!  बुरा लगे तो मुझे माफ करना डाक्‍टर साहब, पर हकीकत वही है.... जो शायद आपको नहीं दिखती या आप देखना नहीं चाहते.... शायद इसीलिए आपने पिछली बार अपना विधानसभा क्षेत्र बदल लिया था और शायद अब भी.....