टेलीविजन में इन दिनों एक ही खबर दिख रही है। ये कह सकते हैं, एक ही खबर बिक रही है। बिक रही है, इसलिए कह रहा हूं कि हमारे देश के न्यूज चैनलों को खबरों से उतना ज्यादा सरोकार नहीं है, जितना इस बात से कि कौन सी खबर रेटिंग में उसे नम्बर एक कर सकती है। हां इस बार यह अच्छे के लिए हो रहा है। सारे के सारे न्यूज चैनल अन्ना अन्ना कर रहे हैं। अच्छा है। अन्ना के बहाने कम से कम देश की सोई हुई जनता को जगाने का काम किया जा रहा है। और यह काम कर रहे हैं, हमारे देश के न्यूज चैनल। अरे भाई न्यूज चैनलों को हमेशा बुरा मत समझो! कभी कभी ये अच्छा भी करते हैं। ईमान जगाने का काम कर रहे हैं। एक करीब 75 साल के ‘युवा’ ने कम से कम वो काम कर दिया, जो बरसों में कोई नहीं कर पाया। सोच सबकी है, ईमानदारी, भ्रष्ट्राचार से मुक्ति, स्वस्थ शासन, स्वस्थ प्रशासन। पर पहल किसी ने नहीं की। खैर पहल तो हो रही है। अच्छी बात है.....
अब आता हूं उस बात पर जिसने मुझे आज यह पोस्ट लिखने को प्रेरित किया। बीती रात मैं टीवी देख देख रहा था। ब्रेक में न्यूज चैनल बदला तो देखा सबमें अन्ना की खबरें। कुछ देर खबरों पर ध्यान देने के बाद फिर मनोरंजन चैनल में आया तो एक विज्ञापन चल रहा था। विज्ञापन में कुछ पुलिस वाले एक तेज रफ्तार कार चलाने वाले युवाओं को रोकते हैं। कार का शीशा खुलवाने पर सिपाही उन युवाओं से बात करने की कोशिश करता है और फिर उनके मुंह से शराब की दुर्गंध आने की बात अपने अफसर से कहता है। अफसर उन लडकों को डांटता इससे पहले वो युवा पांच सौ रूपए का नोट अफसर को थमा देता है। अफसर उस नोट को परखता है कि कहीं नकली तो नहीं और फिर उस युवा को उसका नोट वापस करता है और साथ में चालान की परची थमा देता है। विज्ञापन का पंच लाईन इसके बाद आता है, ‘जियो शान से... क्योंकि आप हो असली आफिसर’। और फिर टीवी स्क्रीन में आता है आफिसर च्वाईस.......... !
अरे ये क्या? सरकार ने तो शराब के विज्ञापनों के प्रदर्शन पर तो बैन लगा दिया है ना। फिर ये शराब का विज्ञापन! ‘नहीं ये शराब का विज्ञापन नहीं है’, कंपनियों के पास अपने तर्क हैं। वो कह सकते हैं कि ये तो सोडा का विज्ञापन है। यानि....... ! बैगपाईपर का विज्ञापन देख लीजिए, ‘जमेगा रंग जब मिल बैठेंगे तीन यार मैं आप और बैगपाईपर’ .....! एक बियर बनाने वाली कंपनी का पंच लाईन है, ‘जोश है तो हैवर्ड है’ । ये सब क्या है...... ! क्या सरकार को ये सब नहीं दिख रहा।
एक तरफ अन्ना। भूखे प्यासे, इस देश के भविष्य के लिए भोजन त्याग कर बैठे हैं और दूसरी ओर कंपनियां इमानदारी और कर्मठता के लिए सोडा के रास्ते शराब का विज्ञापन कर रही हैं। और इस पर तुर्रा यह कि शराब पियेंगे तो आपके भीतर कर्मठता, इमानदारी और जोश आएगा..... वाह रे इंडिया................ !!!!!!
बहुत सही कहा आपने।
जवाब देंहटाएंयह इंडिया की तस्वीर और उसका विज्ञापन है।
तभी तो भारत आज सड़कों पर आन्दोलन कर रहा है।
सोच सबकी है, ईमानदारी, भ्रष्ट्राचार से मुक्ति, स्वस्थ शासन, स्वस्थ प्रशासन। पर पहल किसी ने नहीं की। खैर पहल तो हो रही है। अच्छी बात है..... -- बिलकुल सच्ची बात है ...
जवाब देंहटाएंइसी को कहते है आफिसर चोईस, अगर आप फिर उसी चैनल पर जाएँ तो किसी अन्य विज्ञापन के बात मत लिखिए नहीं तो हमें शर्म आयगी
जवाब देंहटाएंहमारे यहाँ दुखद ये है की यहाँ कथनी और करनी में अंतर बहुत है। बातें ऊंची और विज्ञापन ऐसे जो देश के अच्छे खासे वर्ग को बहका दें। एक जागरूक करता उम्दा आलेख।
जवाब देंहटाएंपहले तो यह सीधे सीधे ही कहते थे. अब थोडा घूमा कर कह रहे हैं.
जवाब देंहटाएंयही है इंडिया सिर्फ कहते हैं करते कुछ नहीं...शायद सरकार तक सन्देश नहीं पहुंचा होगा अभी तक... सन्देश देते हुए प्रेरक लेख के लिए आपका बहुत बहुत आभार...
जवाब देंहटाएंyour view is very right .agree
जवाब देंहटाएंye aaj ka yuva hai aur anna ko isliye yuva n kahen to jyada theek rahega kyonki aaj ka yuva kuchh bhatakne me laga hai.nice post atul ji.
जवाब देंहटाएंभाई अतुल इस बार काफी हद तक चैनलों ने अपनी सकारात्मक भूमिका का निर्वहन किया है। शराब का विज्ञापन के लिए तो अब क्या कहे, यह तो देश के युवाओं की पहली पसन्द है।
जवाब देंहटाएंएक बात और, मैं 9 सितम्बर शाम से 13 सितम्बर सुबह तक रायपुर में हूँ। 10 को बिलासपुर जाना है, शेष वहीं हूँ, क्या मिलने का अवसर बन सकता है?
पोस्ट को देरी से पढने का कारण भी प्रवास ही था, बस आज ही आयी हँ।
अजीत जी प्रणाम।
जवाब देंहटाएंजरूर। आप आईएगा तो फोन कर दीजिएगा। किस ट्रेन से आ रही हैं और फिर वापसी किस ट्रेन से कब है। यहां राजनांदगांव में भी समय दीजिएगा, आपको मुक्तिबोध जी का स्मारक दिखाना है।
आपसे मिलकर अच्छा लगेगा।
लाख रूपये की बात अभिनेताओं से लेकर खिलाड़ी तक जब करोड़पति होने के बावजूद भी ये एड करते हों ऐसे मे एक गरीब परिवार से आये क्लर्क या सिपाही से इमानदारी की उम्मीद बेमानी सी ही लगती है
जवाब देंहटाएंयह ही तो सरकार की कथनी और करनी में फर्क है|
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति , आभार .
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.