मान गए आपको। जज्बा हो तो ऐसा। आपके जज्बे को देखकर लगता है कि आपको बंगाल टाईगर ऐसे ही नहीं कहा जाता। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी ने नक्सलियों को सीधे तौर पर चेतावनी देते हुए कहा है कि वे विकास या हिंसा में से किसी एक रास्ते को चुन लें। उन्होंने नक्सलियों को सात दिनों का अल्टीमेटम देते हुए कहा है कि उनकी सरकार बातचीत के लिए तैयार हैं लेकिन बातचीत और हिंसा एक साथ नहीं चल सकता।
इसी तरह के जज्बे की जरूरत है। नक्सल इलाकों का दर्द क्या है, यह मैं अच्छी तरह समझता हूं। कई मांओं की गोद सूनी होते मैंने देखी है। सुहागिनों की मांग का सिंदूर मिटते देखा है। मासूम बच्चों के सिर से पिता का साया उठते देखा है। इसके अलावा विकास की दौड में ये इलाके किस कदर पीछे रह जाते हैं इस दर्द को भी करीब से जाना है। छत्तीसगढ के कई इलाके नक्सल हिंसा के आंतक से जूझ रहे हैं और इस प्रदेश को भी ऐसे ही जज्बे की जरूरत है पर अफसोस कि यहां के रहनुमाओं को ज्यादा फिक्र होती नहीं दिखती। जवानों की हर शहादत के बाद सिर्फ एक ही रटा-रटाया बयान सुनाई दे जाता है, ‘शहीदों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी’ .... बस..... इसके बाद इंतजार अगली शहादत का......
ममता बनर्जी ने शनिवार को पश्चिम मिदनापुर जिले के झारग्राम स्टेडियम में एक रैली को सम्बोधित करते हुए कहा, ‘’मैं आप सबको सात दिनों का समय देती हूं। इस पर विचार कीजिए। यदि आप समस्या का शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं तो फिर कोई मुद्दा नहीं है। हम चाहते हैं कि बातचीत का दरवाजा खुला रहे।‘’ उन्होंने साफ कहा कि यह अंतिम मौका है और खूनी संघर्ष और बातचीत एकसाथ संभव नहीं। हमें विकास और हत्यायों में से एक को चुनना होगा। अगर आप विकास चाहते हैं तौ में स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, सड़कें और सभी प्रकार का आधारभूत ढांचा उपलब्ध कराने के लिए तैयार हूं, लेकिन खून की बूंद नहीं।
ममता ने भावनात्मक अंदाज में भाषण देते हुए कहा कि शांति की प्रक्रिया में रुकावट डालने के लिए ‘सुपारी हत्यारों’ का प्रयोग किया जा रहा है लेकिन ऐसे मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया जायेगा। उन्होंने इस अवसर पर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लिए कई विकास परियोजनाएं शुरू करने की घोषणा की। बनर्जी ने क्षेत्र के लोगों का आह्वान किया कि वे नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा बलों का साथ दें। उन्होंने कहा, "लोगों को आगे आना चाहिए और नक्सलियों के खिलाफ खड़े होना चाहिए। वे बाहर से आते हैं, और लोगों की हत्या करने के लिए भाड़े के हत्यारों का इस्तेमाल करते हैं। वे केवल बंदूक के बल पर धन उगाही करते हैं।"
छत्तीसगढ में नक्सल हिंसा ने कई जानें ली हैं। बस्तर में सीआरपीएफ के 70 जवानों को एक साथ मार डालने के अलावा राजनांदगांव में एसपी सहित 30 जवानों की शहादत और तकरीबन हर दिन किसी न किसी क्षेत्र में सुरक्षा बलों को नुकसान पहुंचाने, सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसी घटनाएं नक्सली करते रहे हैं पर हमारे नेताओं ने शहीदों के तिरंगे में लिपटे ताबूत पर फूल मालाएं डालने और घटना पर अफसोस जाहिर कर भविष्य में ऐसा न होने का झूठा ढांढस बंधाने के अलावा कुछ नहीं किया।
नक्सल मोर्चों पर पुलिस के सिपाही किन परिस्थितियों में तैनात हैं और उनकी मन:स्थिति क्या है.... यह जानने का प्रयास शायद ही किसी नेता ने किया हो.... प्रदेश के गृहमंत्री का हाल तो और भी जुदा है.... उनको सट्टा और जुआं के प्रकरणों पर ‘बहादुरी’ दिखाने से फुर्सत नहीं.... पुलिस अमले को मजबूत करने और अमले के मनोबल को मजबूत करने की दिशा में कुछ करना तो दूर... उन्हें विभाग की गतिविधियों की भी जानकारी नहीं। शनिवार को जब ममता बनर्जी बंगाल में दहाड रहीं थीं, संभवत: उसी समय प्रदेश के गृहमंत्री राजनांदगांव में थे और उनसे मैंने एक सवाल किया, पुलिस इंस्पेक्टरों की डीपीसी और नक्सल इलाकों में तैनात पुलिस अफसरों के तबादले और इस पर होने वाली राजनीति को लेकर... इस पर उनका जवाब था कि डीपीसी के बाद प्रमोशन की सूची जारी कर दी गई है और तबादलों में कोई भेदभाव नहीं किया जाता जबकि हकीकत यह है कि जून महीने में डीपीसी होने के बाद अब तक प्रमोशन की सूची जारी नहीं की गई है.... ऐसे में नक्सल मोर्चों में तैनात पुलिस अफसरों का मनोबल कैसे ऊंचा रहेगा यह सोचने वाली बात है। गृहमंत्री के बयान से यह भी साबित होता है कि या तो वो सफेद झूठ बोल रहे हैं या फिर उनको उनके ही विभाग की जानकारी नहीं।
करीब सवा दो साल पहले का एक वाक्या मुझे याद आ रहा है, जब राजनांदगांव जिले के मानपुर इलाके में एसपी सहित 30 जवान शहीद हो गए थे। इसके बाद जंगलों के थानों में पुलिस के जवान बेहद घटिया माहौल में रहने मजबूर थे। बारिश का समय था, टूटी छतों से पानी के टपकने के कारण जवान बसों में सोने मजबूर थे। उनके लिए खाने के समानों का अभाव था। उस समय वारदात के बाद प्रदेश के गृहमंत्री क्षेत्र के दौरे पर थे, उनसे जब जवानों की तकलीफों पर बात की गई थी तो उनके जवाब देने से पहले पुलिस के एक अफसर ने जवाब दे दिया था कि हमने जंगल में थाने खोले हैं..... टेंट डाले हैं... फाईव स्टार होटल नहीं खोले हैं....!!!! ऐसे गृहमंत्री और ऐसे अफसरों के सामने मनोबल की उम्मीद बेमानी थी.... पर फिर भी जवानों ने हौसले का परिचय दिया और डटे रहे मोर्चों पर।
पश्चिम बंगाल के छोटे से गांव नक्सलबाडी से 1967 में भूमि सुधार के नाम पर शुरू हुआ एक आंदोलन इस समय देश के अधिकतर राज्यों के लिए एक बडी समस्या बन गया है पर इससे निपटने के लिए उस जीजिविषा के दर्शन अब तक नहीं हुए हैं जो सरकार में दिखाई देना चाहिए। ऐसे में ममता बनर्जी का यह बयान न सिर्फ नक्सल आंदोलन को कमजोर करने की दिशा में एक बडा कदम साबित हो सकता है बल्कि सुरक्षा बलों के हौसलों को भी बुलंद कर सकता है।
Really very gud for West Bengal. But so many state also need this type straight, bold & forward CM.
जवाब देंहटाएंI hope & pray to GOD for al those kind of people....No more comment for Naxalites.
Atul ji aapka ye blog padte hi laga ki jis ilaake ka pani jaisa hoga waisa waha ka rahan sahan aur sooch hogi...hum abhao me jeene ke aur har gum ko pee lene ka aadi ho gayee hai aur agle aane wale gum ka intejaar karte hai,kabhi samasya se takraane ki nahi sochte aag ke upar raakh dhaank dene ke baad ye soch kar kinaare se aage nikal jaate hai ki aag bujh chuki hai aur yahi hamaari sabse badi bhool hai.
जवाब देंहटाएंममता बनर्जी के साहस को नमन। राजनीति साहस के बल पर ही की जाती है। यदि आज राजनेताओं में इसी प्रकार का साहस उत्पन्न हो जाए तो ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका हल नहीं। ममता बनर्जी हो या फिर मायावती, वे ऐसे निर्णय इसलिए ले लेती हैं कि अपनी दल की मालकिन हैं, जबकि अन्य दलों में निर्णय लेना किसी भी अकेले की बूते की बात नहीं है। बहुत अच्छा आलेख।
जवाब देंहटाएंsahi baat hai hinsa se keval kam bigadte hai..
जवाब देंहटाएंkisi bhi masale ka hal bat chit se sambhav hai..
mamta banerji isi tarah sahas se kam kare to kuch sahi hone ki sambhavana hai
bahut hi accha visay liya hai apne.
कुछ उम्मीद सी तो जग रही है ........
जवाब देंहटाएंउम्मीद तो बहुत है ममता बनर्जी या नितीश कुमार से .लेकिन जब नक्सली रुकेंगे तब ही विश्वास होगा . सार्थक पोस्ट..
जवाब देंहटाएंGreat post Atul ji. Wonderfully written !
जवाब देंहटाएंकाश ! ऐसा जज्बा हर किसी में होता ......! एक प्रासंगिक पहल और प्रासंगिक पोस्ट ...आभार आपका
जवाब देंहटाएंइच्छा शक्ति की कमी है वरना आन्ध्रप्रदेश मे कोई फिरंगी फौज़ नही है , हमारे ही जवानो ने उन्हे काबू किया है...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लेख....
जवाब देंहटाएंममता बनर्जी जमीनी नेत्री हैं , उनका यह कदम देश हित में अतिसराहनीय है |
जब वहां हो सकता है तो यहाँ भी हो सकता है जरुरत है ममता बनर्जी की तरह अदम्य साहस की...
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसाधारण जीवन शैली अपनाते हुए एक बडे उदेश्य की सफलता के लिये ममता जी सदैव प्रयत्नशील रही हैं. इस लिये वह हमेशा बधाई की पात्र रहेंगी. बंगाल उनके नेतृत्व में दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति करे.
जवाब देंहटाएंअच्छा है ...ऐसी दृढ इच्छाशक्ति ही समस्याओं का हल खोजेगी ....
जवाब देंहटाएं/ममता बनर्जी जी नारी होकर भी जिस साहस का परिचय दे रही हैं /वह एक मिसाल है /बहुत अच्छे से वो काम कर रही हैं और बंगाल के सुधार के लिए पूरी प्रयत्न शील हैं /बहुत अच्छा लेख लिखा आपने बहुत बधाई आपको /मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद /आशा है आगे भी आपका आशीर्वाद मेरी रचनाओं को मिलता रहेगा /
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पोस्ट ... ममता बनर्जी के हिम्मत और जज्बे को सलाम .. काश नक्सली समझ सकें और शांतिपूर्ण ढंग से अपनी समस्या का हल विचार विमर्श कर निकले ...
जवाब देंहटाएंबहुत निष्पक्ष और विषद विश्लेषण..विभिन्न सरकारों की टालमटोल प्रवृति के कारण ही यह समस्या इतना भीषण रूप धारण कर चुकी है..बहुत सुन्दर और सार्थक आलेख..
जवाब देंहटाएंbhot acha hai ..aur ममता बनर्जी ki bhi tarif honi chahiye ...vry nice
जवाब देंहटाएंरचना चर्चा-मंच पर, शोभित सब उत्कृष्ट |
जवाब देंहटाएंसंग में परिचय-श्रृंखला, करती हैं आकृष्ट |
शुक्रवारीय चर्चा मंच
http://charchamanch.blogspot.com/
फौलादी इरादों से ही जीती जाती है कोई भी जंग .
जवाब देंहटाएंacchi racha.himmat hai to sab hai.mamta banerjee ke bare me padhkar accha laga.
जवाब देंहटाएंbahut badiya samyik saarthak prastuti hetu aabhar!
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंबढ़िया लगा यह आलेख। ममता जी में कुछ तो बात है।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लेख....
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील लेख
जवाब देंहटाएंसादर...