11 फ़रवरी 2012

शर्मनाक.....शर्मनाक.... शर्मनाक

कैप्‍टन बाना सिंह‍ जी

गर्व की बात  है... हम उस देश में पैदा हुए, जिस देश की मिट्टी को माथे पर लगाया जाता है। गर्व की बात है..... हम उस देश में पैदा हुएजिस देश के संत महात्‍माओं की सीखों से पूरी दुनिया रौशन है। क्‍या किसी और देश की जमींन को मां का दर्जा मिला हुआ है, इस बात पर भी गर्व है कि हमारी धरती हमारी मां है....। एक मां जिसने हमें जन्‍म दिया और दूसरी मां, हमारी धरती। गर्व करने के और  भी कई कारण है..... पूरा ग्रंथ लिखा जा सकता है, इस देश पर गर्व करने के कारणों पर...... पर!!!!!!
अफसोस भी होता है....! अफसोस होता है, इस देश के कर्णधारों को देखकर! ! उनकी हरकतों को देखकर! ! ! कितनी अजीब बात है....., इस देश के कर्णधारों ने आतंकियों को सरेंडर करने पर आकर्षक ‘पैकेज’  घोषित किए हैं, नक्‍सलियों को आत्‍मसमर्पण करने पर दुनिया भर की सुविधाएं देने की बात की जाती है! न सिर्फ बात की जाती है, ऐसा हो भी रहा है! समर्पण तो दूर जिसने देश के सीने में खंजर मारा उस कसाब को वीवीआईपी ट्रीटमेंट दिया जा रहा है, अफजल गुरू को अब तक फांसी  पर नहीं लटका पाई सरकार.... और वो, जिन्‍होंने देश की सेवा की वो अपने हक की लडाई लड रहे हैं.... सरकार ने उनकी ओर से मुंह फेर लिया है....... !
आज फेसबुक पर अर्चना चावजी और लिलि कर्मकार जी के माध्‍यम से एक पोस्‍ट पढने में आया...... पोस्‍ट पढने के बाद गर्व कहीं खो गया और एक ही शब्‍द गूंजने लगा... शर्मनाक.... शर्मनाक... शर्मनाक.......
आप भी पढिए ये पोस्‍ट, 

‘’ सियाचिन की अमानवीय परिस्थितियों में अपूर्व पराक्रम दिखाते हुए 1987 में एक पाकिस्तानी चौकी पर कब्जा जमाने वाले "परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बाना सिंह" आज अपने हालात और सरकारी रवैये से बेहद हताश हैं। इस मेडल के लिए मानदेय के रूप में आज भी 166 रुपये की मासिक रकम पाने वाले कैप्टन सिंह बुरी तरह टूट चुके हैं। वह इस बात पर शर्मिंदा हैं कि कभी उन्होंने इस देश की सेवा की।

सालों तक मातृभूमि की नि:स्वार्थ सेवा करने वाले कैप्टन सिंह ने सियाचिन ग्लेशियर में जिस वीरता का परिचय दिया, उसके लिए उन्हें सर्वोच्च वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने पाकिस्तान की सबसे अहम चौकी 'कैद' पर कब्जा जमाया था। बाद में उनके सम्मान में इस चौकी का नाम बदलकर 'बाना पोस्ट' कर दिया गया। परमवीर चक्र के लिए बाना को 166 रुपये मासिक की मानदेय राशि तय की गई, जो आज भी उतनी ही दी जाती है। उन्होंने यह राशि बढ़वाने के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार से कई बार गुजारिश की। इधर-उधर भी हाथ पैर मारे, लेकिन सभी प्रयास बेकार साबित हुए।

उन्होंने कहा, मुझे शर्म आती है कि मैंने अपने देश की सेवा की। सरकार हमारे साथ ऐसा रूखा बर्ताव करती है, मानो हम भिखारी हों। कैप्टन सिंह कहते हैं, जब एक आतंकवादी सरेंडर करता है, तो उसे 2000 रुपये मिलते हैं और मुझे देश की सेवा के बदले 166 रुपये। मैं अपमानित और असहाय महसूस कर रहा हूं। अगर सरकार का रवैया यही रहा, तो मैं परमवीर चक्र लौटा दूंगा।
इससे प्रमाणित होता है कि किस तरह से हमारे देश के रक्षक सरकार की अवहेलना और उपेक्षाओं के शिकार हैँ।
शर्म करो भारत सरकार !!! शर्म करो भारत सरकार !!! शर्म करो भारत सरकार !!!’’

43 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे शर्म आती है
    is se adhik kuchh likh nahee saktaa

    जवाब देंहटाएं
  2. दुखद है ऐसा व्यवहार देश सेवा में अपना जीवन देने वालों के लिए .....

    जवाब देंहटाएं
  3. रहनुमा चाटुकार, ऐसा क्यूँ होता है !
    कातिल पहरेदार, ऐसा क्यूँ होता है !

    घोड़ो को खाने के लाले पड़े हुए हैं ,
    गधे मलाईदार, ऐसा क्यूँ होता है !

    जवाब देंहटाएं
  4. यही इस लोकतंत्र का इतिहास है तात्या टोपे और उधम सिंह के वंसज भूखों मरते हैं और सिंधिया जैसे गद्दार राज भोगते हैं..

    जवाब देंहटाएं
  5. सच में मुझे भी बहुत शर्म आ रही है कि मैं ऐसे देश के खोखले लोकतंत्र का हिस्सा हूँ...

    जवाब देंहटाएं
  6. देश के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले कभी कुछ पाने के लिए
    मर मिटने की तमन्ना नहीं रखते इसीलिये बेशर्म सर्कार उन्हें केवल
    झूठे पुरूस्कार का झुनझुना थमा देती है और इस सम्मान से
    आँखों में धुल झोंक दी जाती है कि सरकार कितना ख्याल
    रखती है

    जवाब देंहटाएं
  7. बाना सिंह जी की यह बात तथ्‍यों सहित उपयुक्‍त संबंधित के ध्‍यान में लाई जाए तो मुझे लगता है कि बात बनेगी.

    जवाब देंहटाएं
  8. सरकार की ऐसी हरकतों पर बड़ा अफ़सोस होता है ....आपने एक चिंतनीय पहलू को उजागर किया है ....राहुल सिंह जी की बात महत्वपूर्ण है ...!

    जवाब देंहटाएं
  9. सच कह रहे हैं आप कि लोकतंत्र और देश के सच्चे प्रहरियों की दुर्दशा के जिम्मेदार वो ही हैं जो लोकतंत्र लोकतंत्र जपते हैं मगर उसे ही शार्मसार करते हैं

    जवाब देंहटाएं
  10. सच है अफ़सोस होता है, ऐसा देखकर ना जाने कितना खर्च कर चुकी है सरकार अभी तक उनपर जो देश के लिए खतरा हैं...

    जवाब देंहटाएं
  11. देश की रक्षा करनेवाले . अपने प्राणों का बलिदान करनेवालो के साथ सरकार का ऐसा रुखा बर्ताव बहुत ही शर्मनाक है ....
    विचारणीय पोस्ट .....

    जवाब देंहटाएं
  12. हमारे पास सिर्फ अफ़सोस है और इन बेशर्मो के पास कुटिलता , और पीड़ित भुगत ही रहा है !

    जवाब देंहटाएं
  13. सरकार क्यों नहीं पुरूकारों के साथ पेंशन देती. क्यों यूं ही खाली ज़ुबानी जमा खर्च से ही पुरूस्कार बांटती घूमती है.

    जवाब देंहटाएं
  14. आप पत्रकारिता से जुड़े हुये है कुछ नियमो का पालन होना ही चाहिये पहली है खबर का स्त्रोत और जब बात सेना के सम्मान की हो और देश वासियो की आस्था की हो तो ऐसे गंभीर आरोप हल्के पन से लगाना पीत पत्रकारिता के अंत्रगत आता है। सो आपसे अनुरोध है कि खबर का पु्ट स्त्रोत दें और साथ ही अगर यह खबर सच हो तो पीटीआई और प्त्रकार संगठनो के माध्यम से इस प्रश्न को खुले तौर पर राजनैतिक दलो के सामने उठाये। युवा बच्चे जिनमे देश भक्ति की भावना और सेवा का भाव होता हैओ ऐसी खबरे पढ़ हतोसाहित हो सकते है। और आदरणीय बाना सिंग भी अगर असंतुष्ट हैं तो खुद ही एक बड़ा बवाल खड़ा कर सकते है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अरूणेश जी। खबर पूरी तरह सच है और कैप्‍टन बाना सिंह जी ने खुद ही अपनी पीडा व्‍यक्‍त की है इस संबंध में। हां मैंने श्रोत का लिंक नहीं दिया, इस बात से सहमत हूं, लेकिन मैंने इस खबर के संबंध में काफी जगह पढा। सबसे पहले यह मुझे फेसबुक में पढने मिला, लेकिन फेसबुक में कई बार गलत सामग्री भी रहती है, इसलिए मैंने इस संबंध में नेट में काफी खोजबीन की।
      सबसे पहले मैंने नवभारत टाईम्सa पर इस खबर को पढा और इसके बाद हिंदी वेबसाईट
      पर इसे पढा।
      इस पोस्‍ट का उद्देश्‍य देशभक्ति की भावना को कम करना या किसी को हतोत्‍साहित करना नहीं है, बल्कि सच को सामने लाना है कि किस तरह सरकारें भेदभाव करती हैं।
      आपने इस ओर ध्‍यान दिलाया इसके लिए आभार।

      हटाएं
  15. परमवीर चक्र को 166 रुपये, रहस्‍योद्घाटन जैसा है यह तो.

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 13-02-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

    जवाब देंहटाएं
  17. 'शर्म' की पराकाष्ठा है यह-'परमवीर चक्र को 166 रुपये, दुखद है.

    जवाब देंहटाएं
  18. shrmnaak k saath hi dukhad bhi hai... jaane desh k chalaane walo ko kab akal aaegi ya fir unka dil hi nahi hai???
    apki post ne sochne par mazboor kar diya

    जवाब देंहटाएं
  19. सही कहा आपने ...अभी भी हमारे देश में कई ऐसी विसंगतियां हैं जिनसे हमें शर्म महसूस होती है ..
    kalamdaan.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं
  20. I salute your bravery , courage and loyalty towards nation.Although medals
    are priceless but price is needed to whom ,who deserve to keep priceless medal.It is a cowardice and shameful to ignore the medal and medal holder.A
    patriot of nation ,sheer soul can know the value of medal [param veer chakra]. Deceivers only know the language of corruption ,injustice & bifurcation.

    जवाब देंहटाएं
  21. देश को आज़ादी क्या इसके लिए मिली थी ?
    हम आज नहीं सोचेंगे तो कल हमारा नहीं रहेगा !

    जवाब देंहटाएं
  22. सरकार को पुरस्कार के स्थान पर एक कटोरा ही दे देना चाहिए..

    जवाब देंहटाएं
  23. सरकार को इस विषय पर गंभीरता से सोचना चाहिए,....
    बहुत अच्छी प्रस्तुति,

    MY NEW POST ...कामयाबी...

    जवाब देंहटाएं
  24. sach ! yah baat bahut hi dukhad lagti hai.jaane yah kram kab tak chalta rahega-------
    poonam

    जवाब देंहटाएं
  25. आज तो केवल राजनेता बनने में ही सुख रह गया है। किस किस बात पर शर्म करें, अब तो गर्व करने को कुछ शेष ही कहां रहा है।

    जवाब देंहटाएं
  26. बहुत दुखद और शर्मनाक स्तिथि...

    जवाब देंहटाएं
  27. सचमुच बहुत शर्म की बात है....

    जवाब देंहटाएं
  28. आपकी बात से पूर्णत: सहमत हूं ... उत्‍कृष्‍ट लेखन के लिए आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  29. बहुत सही लिखा है| अच्छा लेख |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  30. आपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (३१) में शामिल की गई है/आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप इसी तरह लगन और मेहनत से हिंदी भाषा की सेवा करते रहें यही कामना है /आभार /

    जवाब देंहटाएं
  31. सार्थक पोस्ट, आभार.
    मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर आप सादर आमंत्रित हैं.

    जवाब देंहटाएं
  32. एक आम आदमी जरूर शर्मसार हो सकता है पर ये सरकार और ढीठ नौकरशाह ... इनको तो शर्म नहीं आएगी ...

    जवाब देंहटाएं
  33. दुखद...और शर्मनाक भी....
    सार्थक पोस्ट...
    शुक्रिया .

    जवाब देंहटाएं
  34. .सरकार को इस विषय पर गंभीरता से सोचना चाहिए,

    जवाब देंहटाएं