‘’हर घर से एक युवक दो या फिर मौत के लिए तैयार हो जाओ......’’ ये फरमान जारी किया है नक्सलियों ने और इस फरमान का असर है कि लोग अपनी धरती, अपना जन्मस्थान और अपनी कर्मस्थली को छोडकर शरणार्थी बन गए हैं। वैसे तो छत्तीसगढ का तकरीबन आधा हिस्सा नक्सल हिंसा की चपेट में है लेकिन कुछ इलाकों में तो ऐसा लगता है कि नक्सलियों की ही सरकार है.....! ऐसा लगता है उन इलाकों में लोकतांत्रित तरीके से काम कर रही सरकार की पहुंच से ज्यादा नक्सलियों की पहुंच है! ! उन इलाकों में नक्सली जो चाहते हैं, कर जाते हैं और इसके बाद सरकार लकीर पीटती नजर आती है! ! ! लोगों में सरकार पर विश्वास से ज्यादा नकसलियों का भय है! ! ! ! स्िथति देखकर लगता है कि हम जो सुरक्षित हैं, वो इसलिए नहीं कि सुरक्षातंत्र तगडा है, इसलिए कि नक्सली कुछ करना नहीं चाहते.... वरना.......!!!!!!! छत्तीसगढ में नक्सल हिंसा ने उन इलाकों में रहने वाले लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। तकरीबन हर दिन कहीं न कहीं से नक्सल आतंक से धरती लाल हो रही है।
ताजा मामला है राजनांदगांव और कवर्धा जिले से जुडा। इस इलाके के नक्सल प्रभावित गांव बकरकट्टा का करीब 25 परिवारों वाला गांव कांशीबहरा इस समय वीरान हो गया है। इन 25 परिवारों में करीब 115 सदस्य हैं। सबके सब अपना गांव छोड चुके हैं और कवर्धा जिले के वनांचल के गांव तेंदूटोला में खुले मैदान में शरणार्थी की हैसियत से रह रहे हैं। वजह यह कि नकसलियों ने इस गांव के हर परिवार से एक एक सदस्य की मांग अपने संगठन के विस्तार के लिए की, वरना अंजाम भुगतने की धमकी दी। नकसलियों के इस फरमान के चलते ग्रामीण अपना बरसो पुराना आशियाना छोड खुले मैदान के नीचे जीवन काटने मजबूर है। तकरीबन दस दिनों से ये ग्रामीण इस हालात में हैं पर प्रशासन की आंख नहीं खुली। प्रशासन जागा आज, जब मीडिया ने इन ग्रामीणों के दर्द को सामने रखा और अब आनन फानन में प्रशासन के नुमाइंदे इन ग्रामीणों के पास पहुंचे और उन्हें गांव वापस लौटने कहा, पर ये ग्रामीण किसी कीमत पर वापस गांव नहीं जाना चाहते।
इस पूरे मामले का सबसे दुर्भाग्यजनक पहलू यह है कि राजनांदगांव प्रदेश के मुख्यमंत्री का निर्वाचन जिला है और कवर्धा गृह जिला। इसके बाद भी इन ग्रामीणों की सुध लेने के लिए प्रशासन को मीडिया में सुर्खियों बनने तक का इंतजार करना पडा। एक दुर्भाग्यजनक तथ्य यह भी कि शुक्रवार को इन पीडित ग्रामीणों का एक दल राजनांदगांव जिला मुख्यालय पहुंचा था, सांसद से मिलने और साथ में मुख्यमंत्री से मिलने पर शुक्रवार को सांसद और मुख्यमंत्री राजनांदगांव में ही रहते हुए भी इनसे नहीं मिले। दरअसल में ये दोनों एक जलसे में व्यस्त थे। जलसा था राजनांदगांव में करीब 70 लाख रूपए (विपक्षी पार्टी कांग्रेस के आरोपों की मानें तो करीब तीन करोड रूपए) की लागत से बने एक और सीएम हाऊस में मुख्यमंत्री के गृह-प्रवेश का। एक और सौ से ज्यादा ग्रामीण अपने आशियाने को छोड भटक रहे थे और दूसरी ओर प्रदेश के मुखिया नए आवास में प्रवेश का जश्न मना रहे थे.......!!!!!!! हालांकि सांसद ने यह सफाई जरूर दी कि उन्होंने उनके कार्यालय में पहुंचे ग्रामीणों से मिलने के लिए अफसरों को वहां भेजा था, पर वे खुद क्यों नहीं मिले ग्रामीणों से ये वो नहीं बता पाए।
कवर्धा में काम कर रहे पत्रकार साथी सतीश तंबोली से मिली जानकारी के मुताबिक खुले मैदान और पेड के नीचे अपना जीवन निर्वाह कर रहे आदिवासी ग्रामीण दरअसल बरसों से नक्सलियों के आतंक को सहते आ रहे हैं। अब नक्सलियों ने इन ग्रामीणों के प्रत्येक घर से एक सदस्य को अपने संगठन में शामिल होने का दबाव बना रहे हैं। इनकी बात नही मानने पर इन्हे प्रताडित कर रहे हैं और गोली मारकर हत्या करने की बात कह रहे हैं। नक्सलियों के आतंक और धमकी के चलते इन्हें अपना आशियाना छोडना पडा। नक्सलियों के डर से ग्रामीणों ने गांव खाली कर दिया है और अपने साथ जरूरी सामान और कुछ आनाज साथ लेकर आये हैं जिनसे उनका गुजारा हो रहा है। साथ लाया अनाज कुछ दिन ही और चल पाएगा। उसके बाद क्या होगा, इस बात की चिंता इन्हे अभी से सता रही है।
नक्सलियों ने स्कूली बच्चों को भी नही बक्शा है। उन्हे अपने साथ चलने को कहा जाता है। मना करने पर इनसे मारपीट की जाती है। नक्सलियों का खौफ उनके चेहरो पर देखा और जुबान से सुना जा सकता है । बच्चे नक्सली संगठन मे शामिल नहीं होना चाहते, पढाई कर नेक रास्ते में चलना चाहते हैं। नक्सलियों के लगातार परेशान करने के बाद भी यहां के लोगों को वहां के पुलिस से कोई सहायता नही मिल पा रही है। ग्रामीणों की माने तो इन इलाकों में तैनात सुरक्षाकर्मी भी इनका कोई सुध नही लेते। यहां बताना लाजमी होगा कि इस वनांचल क्षेत्र में जंगली जानवर बहुतायत हैं। आये दिन जंगली जानवरों द्वारा यहां के पालतू मवेशियों को अपना आहार बना लिया जाता है। ऐसे में खुले मैदान में छोटे छोटे बच्चों के साथ इनका जीवन कितना सुरक्षित है इसका अंदाजा लगया जा सकता है।
दस दिनों बाद जब मीडिया के माध्यम से यह खबर सुर्खियों में आया, इसके बाद राजनांदगांव और कवर्धा के प्रशासन की नींद खुली और आनन फानन में कुछ प्रशासनिक नुमाइंदे इन ग्रामीणों के पास पहुंचे पर अब ये ग्रामीण किसी कीमत पर अपने गांव नहीं लौटना चाहते। उनका कहना है कि वे किसी भी तरह किसी और जगह अपनी जिंदगी काट लेंगे पर उस जगह नहीं लौटेंगे जहां उनके सिर में नक्सलियों के फरमान की तलवार लटकी है। क्षेत्र के तहसीलदार स्वीकार करते हैं कि ग्रामीण अब कांशीबहरा नहीं जाना चाहते। उन्होंने बताया कि प्रभावित ग्रामीणों में से करीब 40 लोगों को वहां से लाकर साल्हेवारा के पंचायत भवन में रखा गया है और उन्हें साल्हेवारा से लगे कुछ गांवों में बसाने की कोशिश की जाएगी और बाकी लोगों को भी कहीं और बसाने के लिए लाया जाएगा लेकिन ग्रामीण अपने गांव में नहीं लौटना चाहते। तहसीलदार का कहना है कि फिलहाल तो ग्रामीणों की व्यवस्था कहीं और की जाएगी पर उम्मीद है कि समय बीतने के साथ वे अपने गांव लौट जाएंगे।
बहरहाल, नक्सलियों के भय के चलते पूरे गांव के गांव के खाली हो जाने का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कई इलाकों के ग्रामीण अपना घर छोडकर दूसरी जगह जा चुके हैं। यह अलग बात है कि काफी समय बीतने के बाद वो अपने आशियाने में लौटे भी, पर सरकार, सुरक्षा तंत्र और लोकतंत्र पर सवालिया निशान छोड जाते हैं इस तरह के वाक्ये.....!!!!!!!!!
जो भी दुख याद ना था याद आया
जवाब देंहटाएंआज ना जाने क्यूँ ये याद आया
तुमने छेड़ा जो ये फसाना अपना
मुझको मेरा गम क्यूँ याद आया
@संजय महापात्रा जी बहुत बढिया।
हटाएंsadak chaudikaran va saundaryikaran ke naam par prashasan logon ko beghar kar raha hai aur jangal gaon naksli dahashat se khali ho rahe hai. badi durbhagyajanak sthiti hai.
जवाब देंहटाएं@राजेश भाई इन तीन तस्वीरों की कल्पना कीजिए, सडक चौडीकरण के नाम पर बेघर लोग, नक्सल आतंक के चलते खाली गांव और प्रदेश के मुखिया का नये बंगले में गृहप्रवेश........!!!!!
हटाएंनक्सलवाद बहुत ही खतरनाक समस्या हो बन गया है। इसका जल्द से जल्द उपाय हो जाना चाहिए। मुझे इस बात का अधिक क्रोध आता है जब कुछ लोग कहते हैं वो तो सताए हुए लोग हैं, सरकार ने शोषण किया इसलिए बंदूक उठा ली। अगर ऐसा है तो ये वहां बच्चों के स्कूल को बम से क्यों उड़ा देते हैं? क्यों किसी के परिवार को ही मौत के हवाले कर देते हैं? क्या क्षेत्र में विकास नहीं होने देते? क्यों सड़कों को खोद डालते हैं?
जवाब देंहटाएं@लोकेन्द्र जी नक्सलवाद अब विचारधारा नहीं रहा। धीरे धीरे यह लूटेरों का संगठन बनता जा रहा है।
हटाएंisliye to inka aadhaar khisak raha he....jine loye larne ki baat karte he usi ko marte he...?
जवाब देंहटाएं@ अरूण जी अब नक्सल संगठन ग्रामीणों के लिए लडने वाला संगठन नहीं रहा। उसके सर्वाधिक शिकार निरीह ग्रामीण ही बन रहे हैं।
हटाएंबहुत बड़ी त्रासद स्थिति है यह ...मगर राज्य अपना मौलिक कर्तव्य भूल गए हैं.हम ऐसी ही संवेदनहीनता के शिकार हैं !
जवाब देंहटाएं@ संतोष जी त्रासद और दुर्भाग्यपूर्ण।
हटाएंsahi kaha
जवाब देंहटाएंबड़ी समस्या बनता जा रहा है 'नक्सलवाद'. 'जन समस्या ' के नाम पर.
जवाब देंहटाएंAankhen kholnewala aalekh hai.
जवाब देंहटाएंएक त्रासदी ही है यह
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 27-02-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
बहुत बड़ी समस्या बनता जा रहा है 'नक्सलवाद'...
जवाब देंहटाएंहाय सब,
जवाब देंहटाएंआप एक व्यवसाय है कि एक कम समय में आप अपनी वित्तीय स्थिति को बेहतर करने के लिए बदल सकते हैं की कल्पना कर सकते हैं?
आप जो व्यवसाय में एक प्रतिशत है, जो है नहीं देने के लिए और हमेशा की तरह, किसी भी निवेश के बिना होगा?
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सचमुच गंभीर समस्या है ..आपने हम सब को भी अवगत कराया..
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.in
देश ऐसे ही न जाने कितने अंगारों पर बैठा है। हम सतर्क है वास्तव में यह बात नहीं है बस वे अभी खामोश है इसी कारण हम सुरक्षित हैं। आप सही कह रहे हैं।
जवाब देंहटाएंनक्सलबाद एक गम्भीर समस्या है,अगर प्रशासन इस पर शक्ती से कदम नही उठाती,तो वो दिन दूर नही
जवाब देंहटाएंजब पूरा छत्तीसगढ़ इसके चपेट में आजायेगा,.....
अति उत्तम,सराहनीय प्रस्तुति,
NEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...
बिहार में भी आये दिन नक्सली वारदात होती रहती है ..कुछ क्षेत्र तो इतना असुरक्षित है कि लोग पलायन कर रहे है और सरकार केवल बात ही कर रही है...
जवाब देंहटाएंशर्म की बात है ... एक तरफ जहां चाँद पर जाने की बात करती है सरकार वहीं दूसरी तरफ नक्सल इलाकों में भी जाने को डरती है सरकार ...
जवाब देंहटाएंक्या गज़ब गडबड झोल है ...
महाभारत की एक कथा याद आ गयी जहां एक राक्षस गाँव वालों से हुए समझौते के तहत प्रति दिन गाँव के एक व्यक्ति को अपना भोजन बनाता था... लगता है भीम के मारे वह राक्षस मरा नहीं बल्कि उसकी संख्या बढ़ गयी और खुराक भी.... अब उसे हर घर से एक व्यक्ति अपने भोजन को चाहिए....
जवाब देंहटाएंजनता तो खैर मजबूर है मगर सरकार...??
ये कटु सच्चाई की तस्वीर है, त्रासदी है,
जवाब देंहटाएंyah aek katu sachhai hae.jo naxlites haen neta aaj bhi unke sudhar ki baten hi kar rhe haen jabki ve ISI se hath mila chuke haen.sval yah uthta hae ki ve vastav men visthapit log haen ya naxal gatividhiyon ka sach kuchh or hi he,bina?sarthak post hae aapki Atulji.aabhar.
जवाब देंहटाएंस्थिति यक़ीनन दुखद है..... नागरिकों के मन में पालने वाला आक्रोश कितने दिन दबा रहेगा ...... हद है संवेदनहीनता की....
जवाब देंहटाएंनक्सलवाद आज की समय बड़ी समस्या बनता जा रहा है सरकार भी डरती है नक्सलवाद
जवाब देंहटाएंनक्सलवाद एक खतरनाक समस्या है..सरकार को बहुत गंभीरता से इसका हल ढूंढना चाहिए
जवाब देंहटाएंरोज ही अखबारों में नक्सलवादियों द्वारा निरपराध लोगो के मारे जाने की ऐसी ख़बरें होती हैं कि रोंगटे खड़े हो जाते हैं...
आपने विस्तार से इस समस्या की अंदरूनी जानकारी दी है..आभार
सार्थक तथा सामयिक पोस्ट, आभार.
जवाब देंहटाएंआपका मेरे ब्लॉग meri kavitayen की नवीनतम प्रविष्टि पर स्वागत है.
एक और सौ से ज्यादा ग्रामीण अपने आशियाने को छोड भटक रहे थे और दूसरी ओर प्रदेश के मुखिया नए आवास में प्रवेश का जश्न मना रहे थे.......!!!!! sharmnak...
जवाब देंहटाएं....uf..bhagwan kisi ko gareeb na banayen....
bahut samvedansheel aur sarthak chintan manan karti prastuti hetu aabhar!
सचमुच यह सब दुखद है...
जवाब देंहटाएंसच को रेखांकित करते इस लेख हेतु हार्दिक बधाई..
बहुत ही गंभीर और दुखद घटना है..
जवाब देंहटाएंनक्सलवाद हमारे देश के लिए तो बहुत बड़ा खतरा है :-)
आपकी पोस्ट हमेशा ही सामाजिक रहती है..
देश की भलाई के बारे में होती है...
बहुत अच्छा है..
नक्सलवाद को खतम करने के सरकार को शक्ती से कदम उठाना चाहिए,..
जवाब देंहटाएंNEW POST...फिर से आई होली...
मनन योग्य पोस्ट है ...
जवाब देंहटाएंरंगोत्सव पर शुभकामनायें
आपकी पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (३३) में शामिल की गई है /आप आइये और अपने विचारों से अवगत करिए /आपका स्नेह और आशीर्वाद इस मंच को हमेशा मिलता रहे यही कामना है /आभार /
जवाब देंहटाएंइसका लिंक है
http://hbfint.blogspot.in/2012/03/33-happy-holi.html
sach me sochne ko vivash krti hai aapki rachna.
जवाब देंहटाएंसोये हुओं को भी जगाने वाला आलेख .........
जवाब देंहटाएंsachmuch bahut sharmnak hai ye hamari sarkar ke liye...bahut vicharneey lekh
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंआपको सपरिवार रंगों के पर्व होलिकोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ......!!!!
बहुत कुछ जानने को मिला पर पढकर बहुत अफ़सोस हुआ की जिस नेता को जनता इतने विश्वास से चुनकर इतना सम्मान दिलाती है वही कुर्सी मिलजाने पर उनकी सुध तक नहीं ले लेते बहुत गंभीर विषय पर चर्चा पर कुछ भी कर सकने में असमर्थ |
जवाब देंहटाएंजो फर्ज था हमारा, हमने निभा दिया।
जवाब देंहटाएंभूखों को रोटियों का नगमा सुना दिया।
कलम का जो फर्ज होता है उसे
आपने बखूबी निभाया है
साधुवाद।
आनन्द विश्वास
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जवाब देंहटाएंFor More Information Visit Here : Indian Current Affairs