नक्सल प्रभावित सीतागांव में ग्रामीणों के बीच 19 अप्रैल 2011 को चौपाल लगाए बैठे मुख्यमंत्री डा रमन सिंह की फाईल तस्वीर। |
प्रति,
डा रमन सिंह जी,मुख्यमंत्री,
छत्तीसगढ़ शासन।
मैं मदनवाड़ा हूं और मेरा पड़ौसी सीतागांव है। हम दोनों आपसे कुछ कहना चाहते हैं। बड़े भारी मन से कहना चाहते हैं। हम आपको बताना चाहते हैं कि आपने दो साल पहले मुझ पर जो ‘कृपा’ बरसाई थी और पिछले साल इसी अप्रैल महीने में मेरे पड़ौसी सीतागांव पर जो तोहफों की बरसात की थी, वो सिर्फ कागजों तक सीमित रह गए! हुआ कुछ नहीं। हम काफी निराश हैं और इसी निराशा में हम अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहे हैं। बुरा लगे तो माफ करना।
बुधवार यानि 18 अप्रैल से आप फिर ‘कृपा’ बरसाने गांव-गांव घूमेंगे। आपका उडख़टोला आपको लेकर फिर कई गांवों में उतरेगा और आप वहां सपने दिखाएंगे। विकास की बातें करेंगे। गांव और गरीब की बातें करेंगे। हमारे कुछ साथी फिर छलावे में आएंगे। मन में कई तरह की कल्पनाएं करेंगे। और फिर जब आप धूल उड़ाते हुए ‘उड़’ जाएंगे, तो वो धूल के गुबार में खोकर रह जाएंगे।
सपनों का टूट जाना कैसा होता है? ये हमने देखा है। हम जानते हैं जब कोई उम्मीद बंधाए और वो पूरी न हों तो कैसी तकलीफ होती है। हम इस दर्द को महसूस कर सकते हैं कि अभावों के बीच उम्मीदों का आना कैसा होता है और फिर उनका टूट जाना कैसा अहसास कराता है। इस खुशी से भी झूम गए हैं कि जब कोई हमारी ओर ध्यान नहीं दे और ऐसे में प्रदेश के मुखिया हमारी सुध ले। हम इस बात से भी आल्हादित हो गए हैं कि मुखिया के साथ पूरा अमला हमारी तकलीफों से दो चार होने लगे। साथ ही इस बात से भी दो-चार हो गए हैं कि कैसे फिर अचानक सब कुछ खाली हो गया। एक ‘बदनाम’ गांव में आपका आना कितना सुखद अहसास करा गया था हमें पर अब वो लम्हे हमें किसी सुखद सपने से लगते हैं, जो शायद कभी पूरे नहीं हो सकते!
हां, हम बदनाम हो गए हैं। देश के सबसे बड़े नक्सली वारदात के नाम पर। हमारे ही सीने में खून बहा था, वीर जवानों का। हमने ही अपनी आंखों से वो मंजर देखा था, जिससे पूरा प्रदेश-देश हिल गया था। हम गवाह हैं, उस घटना के जिसमें नक्सलियों ने अपनी क्रूरता से पुलिस के 30 जवानों की जान ले ली थी। 12 जुलाई 2009 की वो तारीख थी। इसके बाद से हम इस कदर बदनाम हुए कि कोई हम तक पहुंचने की भी नहीं सोचता था। सब हमसे ऐसा बर्ताव करते थे मानो हम कोई छूत हों। फिर भी ऐसा नहीं कि हम अकेले हों। हमारे पास एक बड़ी फोर्स थी। फिर भी। हमारी स्थिति ऐसी थी कि फोर्स को भी हमारे साथ रहना सजा जैसा लगता था। यानि कि हर दृष्टि से हम बदनाम ही थे।
ऐसे में आप हमारे यहां आए। 2009 की घटना के करीब आठ नौ महीने बाद यानि अप्रैल 2010 में आप मेरे पास आए। आपके आने से मैं कितना खुश था, बता नहीं सकता। ऐसा लगा था कि जमाने भर की खुशियां मिल गई हों, पर ये खुशियां ज्यादा समय तक नहीं टिक सकीं। आप गए और इसी के साथ ही आपके लिए वादे चले गए। आप पर पूरे प्रदेश का दायित्व है। आपको शायद याद नहीं। मैं आपको याद दिला देता हूं। आपने मेरे गांव के एक पेड़ के नीचे चौपाल लगाकर मेरी बरसों पुरानी मांग बसेली पर पुल निर्माण कराने की घोषणा की थी। स्कूल बनाने की घोषणा की थी। बाजार शेड की बात की थी। थाने के निर्माण को स्वीकृति दी थी। आप आए तो आपका सरकारी अमला भी आया। कुछ दिनों तक हम ‘वीआईपी’ हो गए। खूब पूछ-परख हुई, फिर हालात वैसे ही हो गए, जैसा पहले था। फोर्स के लिए थाना तो बन गया है। बाजार में शेड का निर्माण भी जैसे-तैसे हो गया, पर हमारे बच्चों के लिए स्कूल नहीं बन पाया है। आधा-अधूरा पड़ा है। बसेली पर पुल तो सपना ही रह गया है।
सीतागांव भी आपके आने से बहुत खुश था। उसे उम्मीद थी कि आपने उसे जो सौगातें(?) दी थीं, उससे उसके दिन बहुर जाएंगे, पर वो भी अब बहुत दु:खी है। आपने सीतागांव में ग्रामीणों की मांग पर हाथीकसा नाला पर 25 लाख रुपए की लागत से स्टापडेम बनाये जाने की मंजूरी दी थी। इस स्टॉपडेम के बनने से ग्रामीणों को निस्तार व सिंचाई की सुविधा मिलने की उम्मीद थी। सीतागांव के पटेलपारा में पेयजल की समस्या को देखते हुए दो हैंडपंप स्थापित किए जाने की घोषणा की थी। ग्रामीणों ने जब आपको यह बताया कि उन्हें धान बेचने अथवा सोसायटी से बीज, खाद लेने के लिए लगभग 20 किमी दूर औंधी अथवा मानपुर सोसायटी जाना पड़ता है तो आपने सीतागांव में धान खरीदी केन्द्र एवं आगामी शिक्षा सत्र से वहां हाईस्कूल खोलने का ऐलान किया था। सीतागांव के ग्रामीणों की मांग पर वहां के बस स्टैण्ड में यात्री प्रतीक्षालय, ग्राम पंचायत के लिए नये भवन का निर्माण तथा चंवरगांव पहुंच मार्ग में 10 लाख की लागत से पुलिया का निर्माण कराए जाने की भी स्वीकृति आपने दी थी। आपने सीतागांव में नल-जल योजना के विस्तार की मंजूरी देते हुए मुझे यानि मदनवाड़ा में बीएसएनएल का टॉवर स्थापित कराये जाने का भरोसा दिलाया था।
आपको बताते हुए अत्यंत दुख हो रहा है कि इनमें से आधे से ज्यादा में कोई काम नहीं हो पाया है। सीतागांव में नल जल योजना पर कोई काम नहीं हो सका है। स्टापडैम का काम अधूरा पड़ा है। हाईस्कूल भवन नहीं बन पाया है। पंचायत भवन की भी यही स्थिति है। यात्री प्रतीक्षालय नहीं है। हां, दो हैंडपम्प लग गए हैं और आपने जितने किसानों के खेतों के समतलीकरण को स्वीकृति दी थी, उनमें से करीब आधे का काम हो गया है। आप ही सोचिए, जहां आप खुद पहुंचे हों, वहां इस तरह की स्थिति होनी चाहिए क्या? हमें तो लगा था कि आपके आने के बाद हमारी सारी तकलीफें, सारी समस्याएं हल हो जाएंगी, पर हमें निराशा हाथ लगी।
आदरणीय मुख्यमंत्री जी, पता नहीं आपसे यह कहना ठीक है या नहीं, पर अपनी स्थिति देखकर कहना पड़ रहा है कि यदि आपके आने से उम्मीदें बंधने के बाद इस तरह टूटती हैं तो उम्मीदों का न बंधना ही ठीक है! आपका ‘उडऩखटोला’ आए और विकास के बयार चलने के बजाय धूल का गुबार उड़ाकर सपनों को तोड़कर चला जाए तो उसका न उतरना ही ठीक है! दुखी मन से आपसे निवेदन है कि यदि आपका आना महज सपने दिखाना है, उसे पूरा करना नहीं, तो आपका न आना ही ठीक है!
आपका
Badi himmat se likha hai aur bada zabardast!
जवाब देंहटाएंइस सार्थक लेखन के लिए बधाई................
जवाब देंहटाएंवाकई बद से बदतर होता जा रहा है बस्तर..........कभी सारी उम्र वहीँ गुज़ार देने का सोचा करते थे हम......
अनु
इस सार्थक लेखन के लिए बधाई................
जवाब देंहटाएंवाकई बद से बदतर होता जा रहा है बस्तर..........कभी सारी उम्र वहीँ गुज़ार देने का सोचा करते थे हम......
अनु
@ expression, आभार आपका।
हटाएंसच कहा, बस्तर बद से बदतर होता जा रहा है। वैसे पूरा छत्तीसगढ बेहाल हो गया है। यह हकीकत बस्तर से काफी दूर राजनांदगांव जिले के एक गांव की है। उस जिले के एक गांव की, जहां से मुख्यमंत्री खुद विधायक हैं।
ओह! अच्छा.................
हटाएंनक्सलवाद पढते ही हमारे ज़हन में बस्तर ही कौंधता है.....जबकि मुझे लगा कि इन गाँवों का नाम ख़याल क्यूँ नहीं आ रहा मुझे....
सच में अब तो पूरा छत्तीसगढ़ ही उनकी चंगुल में है.
सादर.
अनु
ओह! अच्छा.................
हटाएंनक्सलवाद पढते ही हमारे ज़हन में बस्तर ही कौंधता है.....जबकि मुझे लगा कि इन गाँवों का नाम ख़याल क्यूँ नहीं आ रहा मुझे....
सच में अब तो पूरा छत्तीसगढ़ ही उनकी चंगुल में है.
सादर.
अनु
:) poora patra gajab ka hai...sach hai jhoothe sabzbaag dikhane se accha hai neta samne hi na aae
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा है आपने ... सार्थकता लिए हुए सटीक लेखन ।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने "यदि आपका आना महज सपने दिखाना है, उसे पूरा करना नहीं, तो आपका न आना ही ठीक है!" झूठे वादे सपनो जैसे ही होते हैं आँख खुली और टूट गए, फिर मन यही कहता है कि सपना देखा ही ना होता तो अच्छा था... काश ये सपना न हो... शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएं....शायद ही सी एम के आँख-कान हों :-(
जवाब देंहटाएंवादे अनेक ,पर काम अधूरे या किये ही नहीं..
जवाब देंहटाएंसंपूर्ण देश का भी यही हाल है ..
कलमदान
बहुत बढ़िया,इन नेताओं द्वारा सिर्फ कोरे आश्वासन देने की, गाँव की दर्द भरी प्रस्तुति,....
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
हाँ बरसों से महज सपने दिखाना भर ही तो रह गया है राजनेताओं का कम.... खरी खरी ....
जवाब देंहटाएंये राज नेता ऐसे ही होते है वादे तो अनेक करते है पर काम एक भी सही नहीं करते....इनके सभी कार्य अधूरे ही रहते
जवाब देंहटाएंपूरे देश में और हर राज्य में यही हाल है
सार्थक लेखन अतुल जी कम से कम जनता तो जाग्रत होगी
संजय भास्कर
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकरारा व्यंग आज की प्रशासनिक व्यवस्था पर,
जवाब देंहटाएंsarthak lekhan ke liye aabhar
जवाब देंहटाएंकुछ कहने के लिए छोडा ही नही तूने ..शानदार
जवाब देंहटाएंYe to cm ki baat h. Agr PM bhi aa jaye en gaov m to aaj kuch nh hone wala. Lalipop de jayege. Aur ham fir inhe hi vote de dege.
जवाब देंहटाएंआज भी सभी समस्या जस की तस
एक बात समझ मे आज तक नहीं आयीं ।
हटाएंजब बिना बताये साहब किसी भी गांव मे उडनखटोला से उतरते हैं तो जिले के बडे अफसर कैसे पहुँच जाते हैं ?
लिखते रहें........
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