अपह़त कलेक्टर मेनन |
आत्मप्रशंसा, आत्ममुग्धता में घिरी सरकार के लिए यह अवसर सोचने का है कि उसने प्रदेश की जनता को क्या दिया है? गांव-गांव में फोर्स बिठाने के बाद भी नक्सली किसी कलेक्टर को उठाकर ले जाते हैं और सरकार को नुमाइंदे देखते रह जाते हैं। कलेक्टर कोई बुधारू, समारू या इसी तरह के नाम वाला कोई आम आदमी नहीं होता। वह जिलों में सरकार का चेहरा होता है और जब सरकार के चेहरे तक नक्सलियों की पहुंच हो सकती है तो फिर आम लोग कितने सुरक्षित हैं, आम नागरिकों की जिंदगी कितनी सस्ती है, एक बड़ा सवाल है।
नक्सल आतंक प्रदेश में सिर चढ़कर बोल रहा है। छत्तीसगढ़ की धरती अब तक हजारों जवानों के खून से रंग चुकी है। तकरीबन हर दिन छत्तीसगढ़ के किसी न किसी हिस्से से नक्सल आतंक की खबरें आती हैं। सरकारी सम्पत्ति को नक्सली नुकसान पहुंचाते हैं। आम लोगों को मारते हैं। पुलिस को निशाना बनाते हैं, पर सरकार है कि वह इस आत्मप्रशंसा से नहीं उबर पा रही है कि उसने ‘राम राज’ लाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
‘जब रोम जल रहा था, नीरो बंसी बजा रहा था।’ बड़ा चर्चित वाक्य है और यह वाक्य आज फिर याद आ रहा है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री उस वक्त भी गांव-गांव घूम रहे होंगे, जिस वक्त कलेक्टर सुकमा का अपहरण हुआ होगा! मुख्यमंत्री उस वक्त भी अपनी उपलब्धियों का बखान कर रहे होंगे, जिस वक्त कलेक्टर को नक्सली उठाकर ले गए होंगे! बड़ी अचंभे की बात है। नक्सली एक गांव में पहुंचते हैं। वहां किसान सभा चल रही होती है। वो पूछते हैं, कलेक्टर कौन है? और इसके बाद कलेक्टर के गार्डों को गोली मारकर कलेक्टर को उठा ले जाते हैं। गार्ड गरीब थे, उनकी मौत हो जाती है, पर कलेक्टर नक्सलियों के चंगुल में पड़ जाते हैं। कलेक्टर का अपहरण सिर्फ नक्सलियों की दहशत फैलाने की रणनीति नहीं हो सकता, वो कलेक्टर के गार्ड को मारकर या फिर किसी और को मारकर भी अपनी दहशत का अहसास करा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने कलेक्टर का अपहरण किया। अब शुरू होगा, खेल सौदेबाजी का।
शनिवार को दोपहर बाद साढ़े चार बजे के आसपास नक्सलियों ने कलेक्टर का अपहरण किया है, और नक्सली कलेक्टर को जंगल की ओर ले गए हैं। हाल ही में नक्सली उड़ीसा के एक विधायक को उठाकर ले गए हैं। विधायक झीना हिकाका के अपहरण के बाद नक्सलियों ने अपने साथियों को छुड़ाने की मांग की। अब ऐसी ही मांग यहां उठेगी। एक-एक नक्सलियों को पकडऩे सुरक्षा बलों को जान से खेलना पड़ता है और पकडऩे के बाद लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद किसी नक्सली को सजा मिलती है, ऐसे में किसी का अपहरण कर नक्सली अपने साथियों को छुड़ाने की मांग करते हैं, उसमें कामयाब भी रहते हैं, यह भी चिंता का विषय है। राज्य सरकार के चेहरे को इस बार नक्सलियों ने निशाना बनाया है। सरकार के गिरेबान में झांकने का वक्त है यह, और उसे यह करना चाहिए।
नक्सलवादी हरकतों को सरकार की गलत नीतियाँ और बढावा दे रही है, जब इतने बड़ा प्रशासनिक अधिकारी जिसके हाथ में जिले की कानून व्यवस्था की जिमेदारी होती है उसका अपाहरण हो गया,फिर आम नागरिक का क्या?...
जवाब देंहटाएंदुखद है......खौफनाक है................
जवाब देंहटाएंकब से ये समस्या पल रही है.....२० साल पहले हमारे पापा वहाँ पोस्टेड थे तब एक गनमैन मिलता था इंटीरिअर (सुकमा,कोंटा आदि) के गाँव में दौरे के वक्त............
और हमे बड़ा ग्लेमरस लगता था........कमअक्ल थे तब.....आज सोच कर भी घबराते हैं....
:-(
बीस साल पहले,एक गनमैन मिलने वाले मुद्दे पर अपनी ग्लेमरस वाली फीलिंग बनाये रखिये , उन दिनों समस्या आज जितनी विकट नहीं थी !
हटाएं...बहुत दुखद है यह खबर...!
जवाब देंहटाएंअत्यंत दुखद समाचार है।
जवाब देंहटाएंनक्सलवाद एक राष्ट्रीय समस्या है। इस पर केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर एक सामूहिक सोच और सर्वमान्य नीति विकसित करने की आवश्यकता है। राजनैतिक नफा नुकसान की भावना ऐसी समस्या को बढ़ावा ही देती है।
दुखद है !
जवाब देंहटाएंअत्यंत दुखद विचारणीय आलेख,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...
बहुत दुखद!
जवाब देंहटाएंबहुत दुखद है यह
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 23-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-858 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
देश की एक ज्वलंत समस्या
जवाब देंहटाएंनिरामिष: अहिंसा की गंगोत्री
मनमोहन सिंह जी ने यह बात बिलकुल सच बोली थी -नक्सल वाद एक बड़ी समस्या है समाधान भी राष्ट्रीय स्तर पर निकलना चाहिए .प्रभावित राज्य आत्म श्लाघा ग्रस्त तो हो सकता है अकेले कुछ कर नहीं सकता .हाँ अवशोषित हो सकता है ब्लेक मेल हो सकता है नक्सलियों के हाथों .
जवाब देंहटाएंइस तरह की घटनाएं मन को आहत कर जाती हैं ...
जवाब देंहटाएंनक्सलवादी नक्सलवादी नक्सलवादी
जवाब देंहटाएंबहुत दुखद है यह
नक्सलवाद देश का सबसे बड़ा दुश्मन है....
जवाब देंहटाएंपता नहीं इस पर कब और कैसे रोक लग सकती है....
गंभीर एवं दुखद घटना....
नक्सलवाद एक राष्ट्रीय समस्या बन् चुकी है और अब यह सिर्फ़ किसी एक राज्य की समस्या नहीं है..लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी से इसका कोई हल नहीं निकल पा रहा...लगभग १५ साल पहले दांतेवाडा, बस्तर आदि के गहन जंगलों से जीप में यात्रा करना कितना सुखद और अलौकिक अनुभव था लेकिन अब ये जंगल अपना सौंदर्य खो कर दहशत का पर्याय बन् चुके हैं..
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