सरकार ढोल पीट रही है कि उसने सुकमा के कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन की रिहाई का रास्ता आखिर तय कर लिया। सब कुछ ठीक रहा तो गुरूवार को मेनन सुरक्षित अपने घर भी आ जाएंगे, पर उनका क्या जो गए तो थे नक्सल मोर्चे पर अमन शांति कायम करने की उम्मीद के साथ और घर उनका निर्जीव शरीर लौटा! इस वक्त भी जब सरकार खुशी से फूले नहीं समा रही है, कि उसने कलेक्टर को सुरक्षित लाने में सफलता हासिल कर ली, नक्सलियों ने लाशें बिछाने में देरी नहीं की। क्या जवानों का कसूर सिर्फ इतना है कि वे मामूली जवान हैं, आईएएस जैसा ओहदा उनके साथ नहीं है? कहां हैं, वे लोग जिन लोगों ने कलेक्टर की रिहाई के लिए कैंडल मार्च किया? रैलियां निकालीं? प्रार्थनाएं कीं? कहां हैं? अफसोस.......!
क्या कर रहे हैं, वे मध्यस्थ जो नक्सलियों का दूत बनकर आए? क्या उन लोगों ने जो मसौदा तैयार किया उसमें ऐसा कुछ था कि कलेक्टर रिहा होना चाहिए, चाहे कुछ भी कीमत लगे? बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं बीडी शर्मा और जी हरगोपाल, सरकारी मेहमान बनकर बैठे हैं सुयोग्य मिश्र और निर्मला बुच। क्या उन लोगों ने ऐसा कुछ ही तय किया था कि कलेक्टर की रिहाई होनी चाहिए, बस! अफसोस.......!
मंगलवार को जब मुख्यमंत्री ने कहा था कि 48 घंटे में कलेक्टर रिहा हो जाएंगे। किसी नक्सली को नहीं छोड़ा जाएगा। हां, विचाराधीन नक्सली बंदियों को लेकर हाईपावर रिव्यू कमेटी बनाई जाएगी। ... और इस पर जब नक्सलियों के दोनों दूतों ने सहमति जताई थी तो लगा था कि अब नक्सल आतंक से छत्तीसगढ़ को मुक्ति मिल सकती है। एक बेहतर प्रयास हो रहा है। छत्तीसगढ़ सरकार के इस कदम की हमने सराहना भी की थी, और ऐसा लगा था कि एक नई शुरूआत हो रही है, लेकिन! अफसोस......!
नक्सलियों ने इस सहमति की स्याही भी नहीं सूखी, अपनी औकात दिखा दी है। बस्तर के बचेली के साप्ताहिक बाजार में नक्सलियों की गोली से दो जवानों की मौत हो गई। क्या यही समझौता हुआ था, सरकार और नक्सलियों के दूतों के बीच! क्या समझौता सिर्फ कलेक्टर तक सीमित था? जवानों और आम लोगों की जान की कोई कीमत नहीं रह गई है? अफसोस.....!
सुकमा के अगवा कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन गुरूवार को नक्सली चंगुल से आजाद हो जाएंगे। एक बड़ा सवाल चर्चा में है, कि ऐसा क्या जादू हुआ कि कलेक्टर का अपहरण कर सरकार को बेकफुट पर लाने वाले नक्सली अचानक खुद क्यों बेकफुट पर आ गए? कल तक जो सरकार नक्सलियों के सामने मिमियाती नजर आ रही थी, वह अचानक दहाडऩे कैसे लगी? नक्सलियों ने कलेक्टर का अपहरण कर पहले अपने आठ साथी मांगे, फिर संख्या बढ़कर 17 हुई और फिर 80 के आसपास पहुंची। एक नक्सली भी रिहा नहीं हो रहा है और नक्सली नेता ने एसएमएस कर कहा है कि गुरूवार को वे कलेक्टर को छोड़ रहे हैं! यह चमत्कार कैसे हुआ?
अब जब मेनन रिहा होने वाले हैं और नक्सल वारदातें नहीं थमी हैं, ऐसा लग रहा है, कहीं यह सब सोझी समझी 'स्क्रिप्ट' का हिस्सा तो नहीं! कहीं ऐसा तो नहीं कि नक्सलियों ने किसी बड़े सौदे की प्रत्याशा में कलेक्टर का पहले अपहरण किया और इसी की अगली कड़ी हो कलेक्टर की रिहाई! नक्सली कल जन अदालत लगाएंगे और जन अदालत में कलेक्टर को छोडऩे का फैसला लेंगे... यदि यह खबर सही है तो अभी से कलेक्टर को रिहा करने की बात कैसे आई? फैसला तो जन अदालत में होना है!
बेहतर हो, ऐसा न हो। वरना छत्तीसगढ़ में नासूर बन चुका नक्सलवाद शायद ही कभी थमें। सरकारें अपने फायदे के लिए नक्सलियों से समझौता करती रहें और इस आग में आम आदिवासी, आम आदमी, आम पुलिस वाला झुलसता रहे तो किसी दिन पूरा छत्तीसगढ़ श्मशान बनकर रह जाएगा और फिर क्या समझौता? कैसी शांति? कैसी रिहाई?
कलेक्टर के अपहरण के बाद से जितने भी लोगो ने समाचार पत्र या टीवी न्यूज लगातार देखे है वो अगर इस ब्लाग के क्या समझौता? कैसी शांति? कैसी रिहाई? पढ ले तो शायद पिछले समाचारों का कोई वजूद ही ना रहे क्यो कि इस एक पेज के ब्लाग में सारी सच्चाई सामने आ रही है
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया अतुल दादा
...पर सरकार की रिहाई कब होगी ?
जवाब देंहटाएंबहुत से विचारणीय प्रश्न उठाये हैं अपने इस पोस्ट के माध्यम से गाहे बगाहे ऐसी हरकतों से यह सरकारें बाज नहीं आती ....!
जवाब देंहटाएंvicharniy post...... kal se mai bhi bas yahi soch rahi hu ki aakhir aisa kya hua ki SAAP bina been k nachne lage..aam janta ko bhi pata ho ki kya sauda hua???? collector sahab ki bhoomika unki wapsi k baad saaf hogi aur rahi baat jawano ki to unki badkismati hai ki wo INDIA me hai....
जवाब देंहटाएंfilahal to apko dhanyvad itni achhi post k lie
बिल्कुल सही .....सटीक,सार्थक आलेख
जवाब देंहटाएंवाजीव सवाल, पर जबाब कौन देगा, नक्सल समस्या भी तो सरकार की ही देन है..
जवाब देंहटाएंकलेक्टर के रिहाई में सरकार और नक्सलियों के बीच नगदी सौदे की बू आ रही है,....
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
VERY SAD THAT OUR GOVT.NEVER HAVE TAKEN STRONG STEPS .GREAT ARTICLE .
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही आकलन है ऐसा भी संभव है हर पहलु को देखना चाहिए ......!!आपका विश्लेषण गलत नहीं है..!
जवाब देंहटाएंसही आकलन
जवाब देंहटाएंआपने गजब मुद्दे उठाये हैं मै भी यही सोच रहा था कि मिया फ़ोकट मे कुछ नही होता और यहा तो अपहरण से लेकर रिहाई तक सब फ़ोकट मे होती नजर आ रही है। मरे वो दो गरीब जिनका मरना शायद नाटक की स्क्रिप्ट मे मजबूरी बन गया था। आखिर सुपर फ़िल्मी सीन के लिये जान स्टंट मेन ही गवाते हैं।
जवाब देंहटाएंसटीक सवाल उठाए हैं
जवाब देंहटाएंकुछ ना कहना भी मेरा , मेरी सदा हो बैठा .. अतुलनीय :)
जवाब देंहटाएंbahut achchha
जवाब देंहटाएंकलक्टर को छोड देंगे यह पहले दिन से तय था...... पर इस तरह और इतनी जल्दी छोडेंगे यह उम्मीद नही थी....??
जवाब देंहटाएं