13 मई 2012

मां..... जाने कहां गई

मार्च 1973 की तस्‍वीर। जब मैं दो महीने का था.... अपनी मां की गोद में। बगल में मेरा 2 साल का भाई बैठा है। यूं ही ननिहाल में पुराने एलबम पलटते समय बडे भाई को यह तस्‍वीर मिल गई और उसने मुझे भेज दिया। शायद मेरी मां के साथ मेरी यह इकलौती तस्‍वीर है........


मां। दुनिया का सबसे प्‍यारा शब्‍द। इस एक शब्‍द में सारी दुनिया समाई हुई है। दुनिया में कई रिश्‍ते होते हैं लेकिन शायद ही ऐसा कोई रिश्‍ता होगा जो सिर्फ एक अक्षर में सिमटा हो, लेकिन उस रिश्‍ते की ताकत दुनिया के हर रिश्‍ते से बडी होती है। भगवान का नम्‍बर भी शायद इस रिश्‍ते के बाद आता है। ये रिश्‍ता है मां का। 
मां। तुम बहुत याद आ रही हो। वैसे तो एक पल भी ऐसा नहीं बीता होगा जब तुम जेहन में न रहती हो... पर इंसानों के बनाए इस मदर्स डे में तुम्‍हारी याद और भी आ रही है और तुम्‍हे व्‍यक्‍त करने के लिए मेरे पास शब्‍द नहीं हैं..... 
मां। एक गजल जो मैं अक्‍सर सुनता हूं... उसे यहां रख  दे रहा हूं.... क्‍यों‍कि मुझे कोई शब्‍द नहीं सूझ रहे हैं तुम्‍हे व्‍यक्‍त करने को....। 

निदा फाजली जी की लिखी एक गजल पेश है.... 
 
बेसन की सौंधी रोटी पर खटटी चटनी जैसी मां
याद आती है चौका बर्तन चिमटा फुंकनी जैसी मां
 
बान की खुलरी खाट के ऊपर
हट आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी थकी दुपहरी जैसी मां
 

बेसन की सौंधी रोटी पर खटटी चटनी जैसी मां
याद आती है चौका बर्तन चिमटा फुंकनी जैसी मां

चिडियों की चहकार में गूंजे
कभी मुहम्‍मद कभी अली
मुर्गे की आवाज से खुलती घर की कुंडी जैसी मां

बेसन की सौंधी रोटी पर खटटी चटनी जैसी मां
याद आती है चौका बर्तन चिमटा फुंकनी जैसी मां

बीवी बेटी बहन पडौसन
थोडी थोडी सी सबमें
दिन भर एक रस्‍सी के ऊपर चलती नटनी जैसी मां


बेसन की सौंधी रोटी पर खटटी चटनी जैसी मां
याद आती है चौका बर्तन चिमटा फुंकनी जैसी मां

बांट के अपना चेहरा माथा आखें
जाने कहां गई
फटे पुराने एक एलबम में चंचल लडकी जैसी मां
बेसन की सौंधी रोटी पर खटटी चटनी जैसी मां
याद आती है चौका बर्तन चिमटा फुंकनी जैसी मां


 


21 टिप्‍पणियां:

  1. माँ की तुलना कभी किसी से नहीं की जा सकती ...और माँ तो हर पल हर दिन के लिये है एक दिन के लिये नहीं ..

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  2. apki baat padhkar Farmane Bari Ta'ala yad aa gaya (Copy)-

    तुम्हारे रब ने फ़ैसला कर दिया है कि उसके सिवा किसी की बन्दगी न करो और माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो। यदि उनमें से कोई एक या दोनों ही तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहुँच जाएँ तो उन्हें 'उँह' तक न कहो और न उन्हें झिड़को, बल्कि उनसे शिष्टतापूर्वक बात करो(23) और उनके आगे दयालुता से नम्रता की भुजाएँ बिछाए रखो और कहो, "मेरे रब! जिस प्रकार उन्होंने बालकाल में मुझे पाला है, तू भी उनपर दया कर।" (24) जो कुछ तुम्हारे जी में है उसे तुम्हारा रब भली-भाँति जानता है। यदि तुम सुयोग्य और अच्छे हुए तो निश्चय ही वह भी ऐसे रुजू करनेवालों के लिए बड़ा क्षमाशील है(25)

    सूरा बनी इसराईल

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  3. माँ बस माँ .....हृदयस्पर्शी पोस्ट

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  4. माँ... उसे हम कैसे भूल सकते हैं, वो हमारे जीवन का हिस्सा है और हम उसके कलेजे का टुकड़ा...

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  5. बेसन की सौंधी रोटी पर खटटी चटनी जैसी मां कहीं नहीं जाती ... उसका प्यार हमेशा रहता है

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  6. चिडियों की चहकार में गूंजे
    कभी मुहम्‍मद कभी अली
    मुर्गे की आवाज से खुलती घर की कुंडी जैसी मां

    बेसन की सौंधी रोटी पर खटटी चटनी जैसी मां
    याद आती है चौका बर्तन चिमटा फुंकनी जैसी मां

    .हृदयस्पर्शी पोस्ट

    MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...

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  7. माँ दिवस पर बहुत ही बढ़िया पोस्ट है सर .....
    सुन्दर गीत के साथ,,,,,बढ़िया पोस्ट:-)

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  8. आज मै भी व्यक्त नही कर सकी ……माँ को शत- शत नमन ……सुन्दर प्रस्तुति। देखिये यहाँ ……http://redrose-vandana.blogspot.com

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  9. प्रभावशाली रचना...हृदयस्पर्शी प्रस्तुति

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  10. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.


    माँ के लिए ये चार लाइन
    ऊपर जिसका अंत नहीं,
    उसे आसमां कहते हैं,
    जहाँ में जिसका अंत नहीं,
    उसे माँ कहते हैं!

    आपको मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

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  11. सचमुच माँ हमेँ ईश्वर की सर्वोत्तम देन है।
    बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....


    इंडिया दर्पण
    की ओर से मातृदिवस की शुभकामनाएँ।

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  12. माँ सिर्फ एक दिन नहीं , हर पाल याद रहे तो बात बने !
    शुभकामनायें !

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  13. कोमल भावों से लिखी सुन्दर ....हृदयस्पर्शी प्रस्तुति
    happy mother's day....

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  14. जाने कैसे ये पोस्ट देखने से रह गयी.......
    तस्वीर और निदा फाजली जी की गज़ल...दोनों मन को छू गए....
    हम भी माँ के घर से जब तब पुरानी तस्वीरे चोरी चोरी ले आते हैं....
    एक खजाना पाया हो जैसे.

    सादर.

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  15. माँ को समर्पित इस रचना का एक एक शब्द माँ को बयान कर रहा है पर इन पंक्तियों में जैसे सभी माँ सजीव हो उठी हों...
    बांट के अपना चेहरा माथा आखें
    जाने कहां गई
    फटे पुराने एक एलबम में चंचल लडकी जैसी मां

    माँ भी कभी एक चंचल लड़की रही होगी जिसकी अपनी दुनिया अपने ख्वाब... पर अब माँ के अतिरिक्त कुछ और संबंध-संबोधन में खो जाता है उसका अपना परिचय.
    मदर्स डे के कारण ही सही माँ को सभी लोग याद कर लेते हैं. शुभकामनाएँ.

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