कोल ब्लाक आबंटन में देश का करोड़ों का नुकसान हुआ यह विपक्ष का आरोप है और इस पर सरकार का जवाब है कि अभी सिर्फ आबंटन ही हुए हैं, कहीं से किसी प्रकार की खुदाई नहीं हुई है तो अभी से नुकसान की बात सही नहीं। सरकार और विपक्ष की बातों को छोड़ भी दिया जाए तो एक तथ्य पूरी तरह सही है कि देश की जनता की गाढ़ी कमाई का 117 करोड़ रूपए बरबाद हो गया है। ये रूपया बरबाद हुआ है, सदन न चलने देने के कारण। लोकसभा और राज्यसभा की कार्रवाई 13 दिनों तक बाधित रही। हंगामा होता रहा और इसकी वजह से देश के 117 करोड़ रूपए पर पानी फिर गया।
विपक्षी नेता तर्क देते हैं कि उन्होंने सदन की कार्रवाई को बाधित कर कुछ करोड़ रूपयों का तो नुकसान किया है लेकिन इस नुकसान की कीमत पर वे देश का करोड़ों, अरबों रूपये बचाने का काम कर रहे हैं। ये रूपये कोल ब्लाक आबंटन में धांधली को रोककर बचा रहे हैं। मेरा मानना है कि उनका यह तर्क अपने किए पर पर्दा डालने जैसा है। देश के सर्वोच्च सदन की कीमत को बरबाद कर वो क्या कुछ बचा लेंगे। सदन की मर्यादा को तार तार करने के बाद यदि कुछ बचा भी तो क्या बचा? लोकसभा में प्रश्रों के बदले रूपए लेने, नोट लहराने, मारपीट और धक्का-मुक्की की घटनाएं, इस तरह सदन की कार्रवाई को हंगामे की भेंट चढ़ा देना कहीं से उचित नहीं कहा जा सकता।
पिछले दिनों यहां आए भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहनवाज हुसैन का कहना था कि सदन को बाधित कर विपक्ष ने 30 करोड़ रूपए का नुकसान किया तो उसके पीछे वजह यह थी कि देश का 3 हजार करोड़ रूपए बचा लिया जाए। अब जब आंकड़ा सामने आ गया है कि सदन की कार्रवाई बाधित होने से 117 करोड़ रूपए खर्च हुए हैं तो इससे हुसैन के 30 करोड़ के ख्याली पुलाव के आंकड़े खुद ब खुद झूठे साबित हो गए और इसके साथ ही उन पर यह भरोसा करने की वजह कहीं से नहीं रही कि इस नुकसान के कारण कैसे 3 हजार करोड़ रूपए बच जाएंगे। यहां यह तथ्य भी गौर करने वाली है कि सरकार ने कोल ब्लाक आबंटन को रद्द न करने की जिद ठान ली है और वो विपक्ष से इस पर सदन में बहस करने की ही बात करती रही।
हमारा यह मानना है कि लोकसभा और राज्यसभाओं में किसी भी मुद्दे को लेेकर बहस होनी ही चाहिए। इन सदनों के माध्यम से देश की जनता के लिए कानून बनाए जाते हैं। देश की जनता के फायदे और नुकसान को लेकर चर्चा की जाती है। योजनाओं को मूर्तरूप देने का काम इन सदनों के माध्यम से होता है, लेकिन यदि इन सदनों को ठप कर दिया जाए तो फिर कहां चर्चा की उम्मीद की जाए?
विपक्ष को अपनी बात करने का हक है। वह सड़क पर उतर कर आंदोलन कर सकती है। जनता के बीच जाकर सरकार की कमजोरियों और कारगुजारियों को रख सकती है। पर जो काम सदन में हो सकता है, वह सड़क में नहीं हो सकता। लोकतंत्र में भरोसा रखने वाले और चुनकर लोकसभा और राज्यसभा में जाने वाले लोग यदि सदन को इस तरह बाधित करने का काम करेंगे तो यह न ही सदन की मर्यादा के लिए उचित है और न देश के लिए। कोल ब्लाक को लेकर यदि कुछ गलत हुआ है तो इसे सदन में चर्चा कर भी सुधारा जा सकता था लेकिन सदन की कार्रवाई ठप होने से जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई कौन करेगा?
विपक्षी नेता तर्क देते हैं कि उन्होंने सदन की कार्रवाई को बाधित कर कुछ करोड़ रूपयों का तो नुकसान किया है लेकिन इस नुकसान की कीमत पर वे देश का करोड़ों, अरबों रूपये बचाने का काम कर रहे हैं। ये रूपये कोल ब्लाक आबंटन में धांधली को रोककर बचा रहे हैं। मेरा मानना है कि उनका यह तर्क अपने किए पर पर्दा डालने जैसा है। देश के सर्वोच्च सदन की कीमत को बरबाद कर वो क्या कुछ बचा लेंगे। सदन की मर्यादा को तार तार करने के बाद यदि कुछ बचा भी तो क्या बचा? लोकसभा में प्रश्रों के बदले रूपए लेने, नोट लहराने, मारपीट और धक्का-मुक्की की घटनाएं, इस तरह सदन की कार्रवाई को हंगामे की भेंट चढ़ा देना कहीं से उचित नहीं कहा जा सकता।
पिछले दिनों यहां आए भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहनवाज हुसैन का कहना था कि सदन को बाधित कर विपक्ष ने 30 करोड़ रूपए का नुकसान किया तो उसके पीछे वजह यह थी कि देश का 3 हजार करोड़ रूपए बचा लिया जाए। अब जब आंकड़ा सामने आ गया है कि सदन की कार्रवाई बाधित होने से 117 करोड़ रूपए खर्च हुए हैं तो इससे हुसैन के 30 करोड़ के ख्याली पुलाव के आंकड़े खुद ब खुद झूठे साबित हो गए और इसके साथ ही उन पर यह भरोसा करने की वजह कहीं से नहीं रही कि इस नुकसान के कारण कैसे 3 हजार करोड़ रूपए बच जाएंगे। यहां यह तथ्य भी गौर करने वाली है कि सरकार ने कोल ब्लाक आबंटन को रद्द न करने की जिद ठान ली है और वो विपक्ष से इस पर सदन में बहस करने की ही बात करती रही।
हमारा यह मानना है कि लोकसभा और राज्यसभाओं में किसी भी मुद्दे को लेेकर बहस होनी ही चाहिए। इन सदनों के माध्यम से देश की जनता के लिए कानून बनाए जाते हैं। देश की जनता के फायदे और नुकसान को लेकर चर्चा की जाती है। योजनाओं को मूर्तरूप देने का काम इन सदनों के माध्यम से होता है, लेकिन यदि इन सदनों को ठप कर दिया जाए तो फिर कहां चर्चा की उम्मीद की जाए?
विपक्ष को अपनी बात करने का हक है। वह सड़क पर उतर कर आंदोलन कर सकती है। जनता के बीच जाकर सरकार की कमजोरियों और कारगुजारियों को रख सकती है। पर जो काम सदन में हो सकता है, वह सड़क में नहीं हो सकता। लोकतंत्र में भरोसा रखने वाले और चुनकर लोकसभा और राज्यसभा में जाने वाले लोग यदि सदन को इस तरह बाधित करने का काम करेंगे तो यह न ही सदन की मर्यादा के लिए उचित है और न देश के लिए। कोल ब्लाक को लेकर यदि कुछ गलत हुआ है तो इसे सदन में चर्चा कर भी सुधारा जा सकता था लेकिन सदन की कार्रवाई ठप होने से जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई कौन करेगा?
Aapki baat se ittefak rakhta hoon
जवाब देंहटाएंसंसद की कार्यवाही बाधित रही , लेकिन इससे कुछ मामले जो तेजी से आगे बढ़ाने लगे है उसके लिए अच्छा है. कोई नहीं चाहता कि संसद का काम ठप रहे लेकिन कुछ सकारात्मक होना भी तो चाहिए. अपनी निरंकुश नीतियों को रूप देने के लिए वे चाहे कि सब छुप होकर बैठे रहें तो फिर लोकतंत्र की जरूरत ही क्या है? कहाँ हाहाकार नहीं मचा है ? बस घोटाले और घोटाले - सत्ता दल को मुँह बजाने के अलावा कुछ आता नहीं है . अपने हाथ से अपने मस्तक पर तिलक करके स्वयं भू बने हुए हैं.
जवाब देंहटाएंवैसे पिछले १० वर्षों में बहस के अलावा संसद ने और किया ही क्या है ... समस्याओं पर बहस के बाद क्या सुधार हुवा इसके आंकड़े यदि सामने आयें तो कुछ बात बने ...
जवाब देंहटाएंये सब मैच फिक्सिंग है ... मिल बाँट के खाने की जुगाड ...
भरपाई तो सरकार हमी से करेगी ..होने जा रही है न रसोई गैस ,पेट्रोल डीजल के दामों में वृद्धी
जवाब देंहटाएंhumse hi vasool legi sarkaar
जवाब देंहटाएंआपसे सहमत,सार्थक मुद्दे को उठाया आपने,,,,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST - मेरे सपनो का भारत