सरकार ने आखिरकार डीजल के दाम बढ़ा दिए। संभवत: मई 2011 के बाद पहली बार डीजल के दाम बढे हैं। एक मुश्त पांच रूपए। इससे पहले पेट्रोल के दाम लगातार बढ़ते रहे हैं। इस सरकार के काबिज होने के बाद से करीब 13 दफा। रसोई गैस सिलेंडर की कीमतों में भी परिवर्तन हुआ है लेकिन उपभोक्ता पर तब ज्यादा भार पड़ेगा जब वह साल भर में छह से ज्यादा सिलेंडर उपयोग करे। छह सिलेंडर तक वही पुरानी कीमत यानि 420 रूपए चुकानी पड़ेगी और इसके बाद के सिलेंडर के लिए 747 रूपए देने होंगे। ये दोनों है तो वैसे महंगाई बढऩे की खबरें। सामान्य तौर पर यही चर्चा की जा रही है और इसी बात को लेकर सरकार को कोसने का काम हो रहा है, पर पिछले दिनों आई एक खबर को इस खबर के साथ जोड़कर हम देख रहे हैं और यह एक तरह से भारतीय संस्कृति, भारतीयता की ताकत पर हमले की तरह है।
कुछ दिनों पहले खबर आई थी कि भारत सरकार का महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय इस बात पर विचार कर रहा है कि महिलाओं को अपने पति की कमाई में से एक हिस्सा हर माह मिले। यानि कि पति अपनी कमाई से दस या बीस फीसदी पत्नी को दे। अब तक होता यह आया है कि (जैसा कि हर भारतीय परिवार में परंपरा है) पति अपनी पूरी पगार सीधे अपनी पत्नी के हाथों में दे देता है और पत्नी घर का खर्चा चलाती है लेकिन सरकार पत्नियों को घर की मालकिन से सीधे कर्मचारी बनाने पर विचार कर रही है। इस मंत्रालय के प्रस्ताव में भी ऐसा ही जिक्र है कि पति अपनी पत्नियों को परिवार के लिए किए कामों की कीमत दे। सरकार का तर्क है कि यह प्रस्ताव महिलाओं को, गृहणियों को आर्थिक रूप से मजबूत करेगा लेकिन हमारा सोचना है कि ऐसा कर सरकार एक पत्नी, जिसे भारतीय परंपरा में अर्धांगिनी कहा जाता है, को महज वेतन के लिए परिवार के लोगों का ख्याल रखने वाला बनाना चाहती है।
अब रसोई गैस सिलेंडर की कीमतों में फेरबदल पर बात की जाए तो यह भी संयुक्त परिवार पर हमले की तरह है। एक साल में छह सिलेंडर से उन घरों में आसानी से काम निकल सकता है जो संयुक्त परिवार से अलग रहते हैं। पति, पत्नी और एक या दो बच्चों वाले परिवार में एक सिलेंडर डेढ़ से दो महीने आसानी से चल जाता है यानि इस परिवार के लिए साल में छह सब्सिडी वाले सिलेंडर पर्याप्त हैं। पर संयुक्त परिवार जहां माता पिता, एक से ज्यादा भाईयों का परिवार एक साथ रहता है, वहां एक सिलेंडर महीने भर या पखवाड़ा भर चल जाए तो बड़ी बात है। यानि कि यहां चौथे महीने के बाद ही सिलेंडर 747 रूपए में लेने पड़ेंगे। इससे बचने ये परिवार कागजों में खुद को अलग दिखाएंगे और अलग अगल भाई अलग अलग रसोई दर्शाकर सिलेंडर लेंगे। कुछ रूपए बचाने कागजों में अलग हुआ संयुक्त परिवार आने वाले वक्त में दिल से भी जुदा हो जाए तो आश्चर्य नहीं।
मेरा मानना है कि सरकार ने पेट्रोल, डीजल, रसाई गैस की कीमतों में बढ़ोत्तरी कर आम आदमी को तो महंगाई की आग में झुलसाने का काम किया ही है, इस बहाने भारतीय परंपरा, भारतीय संस्कृति को भी चोट करने का काम किया गया है, जिसका असर आने वाले समय में दिखेगा। सरकार को यदि घाटे की ही चिंता है तो उसे सब्सिडी का खेल बंद कर देना चाहिए और पहला सिलेंडर ही सीधे 747 रूपए में मिले, यह आदेश जारी करना चाहिए, इससे उसकी नीयत में खोट भी नहीं नजर आएगी और भेदभाव का भाव भी लोगों में नहीं रहेगा। वरना संयुक्त परिवार और आदर्श व्यवस्था की जो मिसाल भारत में मौजूदा समय में है, वह सिर्फ किताबों में दर्ज हो जाएगी और इसके लिए इतिहास इस सरकार को कभी माफ नहीं करेगा।
कुछ दिनों पहले खबर आई थी कि भारत सरकार का महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय इस बात पर विचार कर रहा है कि महिलाओं को अपने पति की कमाई में से एक हिस्सा हर माह मिले। यानि कि पति अपनी कमाई से दस या बीस फीसदी पत्नी को दे। अब तक होता यह आया है कि (जैसा कि हर भारतीय परिवार में परंपरा है) पति अपनी पूरी पगार सीधे अपनी पत्नी के हाथों में दे देता है और पत्नी घर का खर्चा चलाती है लेकिन सरकार पत्नियों को घर की मालकिन से सीधे कर्मचारी बनाने पर विचार कर रही है। इस मंत्रालय के प्रस्ताव में भी ऐसा ही जिक्र है कि पति अपनी पत्नियों को परिवार के लिए किए कामों की कीमत दे। सरकार का तर्क है कि यह प्रस्ताव महिलाओं को, गृहणियों को आर्थिक रूप से मजबूत करेगा लेकिन हमारा सोचना है कि ऐसा कर सरकार एक पत्नी, जिसे भारतीय परंपरा में अर्धांगिनी कहा जाता है, को महज वेतन के लिए परिवार के लोगों का ख्याल रखने वाला बनाना चाहती है।
अब रसोई गैस सिलेंडर की कीमतों में फेरबदल पर बात की जाए तो यह भी संयुक्त परिवार पर हमले की तरह है। एक साल में छह सिलेंडर से उन घरों में आसानी से काम निकल सकता है जो संयुक्त परिवार से अलग रहते हैं। पति, पत्नी और एक या दो बच्चों वाले परिवार में एक सिलेंडर डेढ़ से दो महीने आसानी से चल जाता है यानि इस परिवार के लिए साल में छह सब्सिडी वाले सिलेंडर पर्याप्त हैं। पर संयुक्त परिवार जहां माता पिता, एक से ज्यादा भाईयों का परिवार एक साथ रहता है, वहां एक सिलेंडर महीने भर या पखवाड़ा भर चल जाए तो बड़ी बात है। यानि कि यहां चौथे महीने के बाद ही सिलेंडर 747 रूपए में लेने पड़ेंगे। इससे बचने ये परिवार कागजों में खुद को अलग दिखाएंगे और अलग अगल भाई अलग अलग रसोई दर्शाकर सिलेंडर लेंगे। कुछ रूपए बचाने कागजों में अलग हुआ संयुक्त परिवार आने वाले वक्त में दिल से भी जुदा हो जाए तो आश्चर्य नहीं।
मेरा मानना है कि सरकार ने पेट्रोल, डीजल, रसाई गैस की कीमतों में बढ़ोत्तरी कर आम आदमी को तो महंगाई की आग में झुलसाने का काम किया ही है, इस बहाने भारतीय परंपरा, भारतीय संस्कृति को भी चोट करने का काम किया गया है, जिसका असर आने वाले समय में दिखेगा। सरकार को यदि घाटे की ही चिंता है तो उसे सब्सिडी का खेल बंद कर देना चाहिए और पहला सिलेंडर ही सीधे 747 रूपए में मिले, यह आदेश जारी करना चाहिए, इससे उसकी नीयत में खोट भी नहीं नजर आएगी और भेदभाव का भाव भी लोगों में नहीं रहेगा। वरना संयुक्त परिवार और आदर्श व्यवस्था की जो मिसाल भारत में मौजूदा समय में है, वह सिर्फ किताबों में दर्ज हो जाएगी और इसके लिए इतिहास इस सरकार को कभी माफ नहीं करेगा।
बेहतरीन विश्लेषण अतुल जी...इस पहलू पर शायद ही किसी का ध्यान गया हो...
जवाब देंहटाएंगरीबों को लुटने का नया -नया प्लान
जवाब देंहटाएंहै सरकार का..
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सरकार लूटती रहेगी गरीब लुटते रहेंगे
जवाब देंहटाएंQeematen to sada badhtee hee rahee hain...ghateen kab? Ya sthir kab raheen? Chahe koyee bhee sarkaar kyon na ho....lekin gas cylinder 2 maah ke liye mere gharme to chal pana mushkil hai..mai swayam chahe jitnee koshish kar lun,jab tak ghar ke any sadasy sahkaary nahee karte,ye namumkin hai.
जवाब देंहटाएंलेकिन एक परिवार का मतलब संयुक्त परिवार नहीं होता है, बल्कि पति-पत्नी और बच्चे ही होता है... अगर आप संयुक्त परिवार में रह रहे होतें हैं तब भी परिवार की यही परिभाषा होती है... और मेरे विचार से सिलेंडर भी इसी परिभाषा के अंतर्गत ही मिलने चाहिए?
जवाब देंहटाएंसिलेंडर सिर्फ उपभोक्ता की परिभाषा के अंतर्गत मिलना चाहिए शाहनवाज जी, परिवार की परिभाषा के तहत नहीं
हटाएंहां परिवार का मतलब पति, पत्नी और बच्चे भी होते हैं पर परिवार का मतलब संयुक्त परिवार भी होता है........ (जहां तक मेरी समझ है)
जहाँ तक पेट्रोल / डीज़ल की कीमतों की बात है, तो यह तो आने वाले समय में और भी तेज़ी से बढेंगी... चाहे कोई भी सरकार आए...
जवाब देंहटाएंमेरे विचार है कि जब बाजार में तेल के रेट बढ़/घट जाएँ तो उसके साथ-साथ ही देश में भी रेट घट/बढ़ जाने चाहिए...
लोग/सरकारें जितनी जल्दी इन पर निर्भरता से पीछा छुटा ले उतना ही बेहतर है... अन्य विकल्पों की खोज और तेज होनी चाहिए....
बिल्कुल कीमतें बढती ही रहेंगी पर भेदभाव नहीं होना चाहिए.... ये सब्सिडी का खेल खत्म होना चाहिए....
हटाएंhttp://rhytooraz.blogspot.in/2012/09/blog-post_2440.html
जवाब देंहटाएंसालों घर को सजा के, सजा भोगती अन्त ।
रक्त-मांस सर्वस्व दे, जो जीवन पर्यंत ।
जो जीवन पर्यंत, उसे वेतन का हिस्सा ।
लाएगी सरकार, नया बिल ताजा किस्सा ।
रविकर-पत्नी किन्तु, हड़पती कुल कंगालों ।
कुछ तो करो उपाय, एक बिल लाना सालों ।।
प्रोसेस्ड खाने का करे, अब प्रचार सरकार-
हटाएंसिली सिलिंडर सनसनी, मेहरबान मक्कार |
प्रोसेस्ड खाने का करे, अब प्रचार सरकार |
अब प्रचार सरकार, पुरातन भोजन भूलो |
पाक कला त्यौहार, भूल कर केक कुबूलो |
फास्ट फूड भरमार, तरीके नए सोचिये |
पाई फुर्सत नारि, सतत अब नहीं कोंचिये ||
आग लगे डीजल जले, तले *पकौड़ी पन्त -
हटाएंचाटुकार *चंडालिनी, चले चाट सामन्त ।
आग लगे डीजल जले, तले *पकौड़ी पन्त ।
तले पकौड़ी पन्त, कीर्ति मँहगाई गाई ।
गैस सिलिन्डर ख़त्म, *कोयले की अधमाई ।
*इडली अल्पाहार, कराये भोजन *जिंदल ।
इटली *पीजा रात, मनाते मोहन मंगल ।।
प्रश्न : तारांकित शब्दों के अर्थ बताएं ।।
पैदा खुदरा पूत, आठवां कृष्णा नामा-रविकर
जवाब देंहटाएंसुवन सातवाँ सिलिंडर, माया लड़की रूप ।
छूट उड़ी आकाश की, वाणी सुन रे भूप ।
वाणी सुन रे भूप, कंस कंगरसिया मामा।
पैदा खुदरा पूत, आठवां कृष्णा नामा ।
लेगा तेरे प्राण, यही वह पुत्र आठवाँ ।
किचेन देवकी जेल, कहे है सुवन सातवाँ ।।
बहुत सूक्ष्मता से किया गया विश्लेषण
जवाब देंहटाएंबेहद गहन विश्लेषण किया है आपने ... जो कि सार्थक भी है और सशक्त भी
जवाब देंहटाएंaapki baton se poornataya sahmat ...!!
जवाब देंहटाएंvicharpoorn aalekh ...
abhar .