जुबान का क्या भरोसा, फिसल जाती है। देश के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे की जुबान भी फिसल गई और बाद में जब उनकी फिसली जुबान के बाद हंगामा मचा तो उन्होंने पलटी मार दी। नेताओं में पहले बयान देने और बाद में उससे मुकर जाने और पलटी मार देने की यह कोई नई बात नहीं है। पर नेता यह भूल जाते हैं कि जब जनता पलटी मारेगी तो उनका क्या हाल होगा? शिंदे साहब ने रविवार को पहले कहा था कि वे जिस तरह बोफोर्स के मुद्दे को देश भूल गया उसी तरह कोयले का मुद्दा भी भूला दिया जाएगा। बाद में जब उनके बयान पर हंगामा हुआ और विपक्ष ने पलटवार किया कि शिंदे को नहीं भूलना चाहिए कि बोफोर्स के बाद कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई थी और फिर दोबारा उसे अकेले के दम पर कभी बहुमत नहीं मिला, तो शिंदे ने यह कहकर खुद का बचाव किया कि उन्होंने यह बात मजाक में कही थी।
विपक्ष के इस तर्क को अलग कर दें और शिंदे के इस बयान को मजाक भी मान लें तो भी यह बड़ी विकट स्थिति है। एक तरह केन्द्र सरकार पर इतने बड़े घोटाले में शामिल होने का आरोप लग रहा है और दूसरी तरफ इस मुद्दे को लेकर सदन से लेकर सड़क तक गर्म हो रहा है, ऐसे में इस तरह का मजाक करना भी अपने आप में जले पर नमक छिड़कने जैसा है। इस समय देश की अर्थव्यवस्था चरमरा सी गई है। एक के बाद एक आ रहे घोटालों ने और बढ़ती महंगाई ने देश के अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा कर दिया है और वे चौतरफा आरोपों से घिरे हुए हैं, ऐसे में उनके एक जिम्मेदार मंत्री सार्वजनिक कार्यक्रम में मजाक करें यह उस जनता के गाल पर तमाचे की तरह है जिसने उन्हें चुना है और उनके हाथों में अपनी तकदीर का फैसला करने का दायित्व सौंपा है।
मुद्दा शिंदे नहीं है। मुद्दा बोफोर्स भी नहीं है। और न ही मुद्दा कोयला है। मुद्दा है, एक जनप्रतिनिधि का मजाकिया रवैया और उस जनता की तकलीफों पर एक खुला अट्टाहास!!!! यह बड़ी गंभीर बात है। विपक्ष ने गृहमंत्री को आईना दिखाने का काम किया है। वह अपना धर्म निभा रही है। बोफोर्स के बाद कांग्रेस की हुई दुर्गति कांग्रेस को याद दिलाने के बहाने वह यह बताना चाह रही है, यह उम्मीद कर रही है कि कोयले के बाद भी यही होगा और उसे सत्ता में आने का अवसर मिलेगा, लेकिन इस सब में जनता का जो नुकसान हो रहा है, जनता को जो सहना पड़ रहा है, उसकी भरपाई कौन करेगा? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है।
शिंदे ने कहा था कि जनता की याददाश्त कमजोर होती है। वो जल्द ही सब भूल जाती है। पहले जनता ने बोफोर्स को भूला और अब कोयले के मुद्दे को भूल जाएगी। हमारा कहना है कि जनता किसी बात को नहीं भूलती और शिंदे को भी यह याद रखना चाहिए कि जनता अपने साथ किए मजाक को भी नहीं भूलती। हां, जिस दिन जनता मजाक करने उतर जाएगी उस दिन शिंदे जैसे लोग जरूर अपनी याददाश्त को याद रखने के काबिल नहीं रहेंगे।
विपक्ष के इस तर्क को अलग कर दें और शिंदे के इस बयान को मजाक भी मान लें तो भी यह बड़ी विकट स्थिति है। एक तरह केन्द्र सरकार पर इतने बड़े घोटाले में शामिल होने का आरोप लग रहा है और दूसरी तरफ इस मुद्दे को लेकर सदन से लेकर सड़क तक गर्म हो रहा है, ऐसे में इस तरह का मजाक करना भी अपने आप में जले पर नमक छिड़कने जैसा है। इस समय देश की अर्थव्यवस्था चरमरा सी गई है। एक के बाद एक आ रहे घोटालों ने और बढ़ती महंगाई ने देश के अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा कर दिया है और वे चौतरफा आरोपों से घिरे हुए हैं, ऐसे में उनके एक जिम्मेदार मंत्री सार्वजनिक कार्यक्रम में मजाक करें यह उस जनता के गाल पर तमाचे की तरह है जिसने उन्हें चुना है और उनके हाथों में अपनी तकदीर का फैसला करने का दायित्व सौंपा है।
मुद्दा शिंदे नहीं है। मुद्दा बोफोर्स भी नहीं है। और न ही मुद्दा कोयला है। मुद्दा है, एक जनप्रतिनिधि का मजाकिया रवैया और उस जनता की तकलीफों पर एक खुला अट्टाहास!!!! यह बड़ी गंभीर बात है। विपक्ष ने गृहमंत्री को आईना दिखाने का काम किया है। वह अपना धर्म निभा रही है। बोफोर्स के बाद कांग्रेस की हुई दुर्गति कांग्रेस को याद दिलाने के बहाने वह यह बताना चाह रही है, यह उम्मीद कर रही है कि कोयले के बाद भी यही होगा और उसे सत्ता में आने का अवसर मिलेगा, लेकिन इस सब में जनता का जो नुकसान हो रहा है, जनता को जो सहना पड़ रहा है, उसकी भरपाई कौन करेगा? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है।
शिंदे ने कहा था कि जनता की याददाश्त कमजोर होती है। वो जल्द ही सब भूल जाती है। पहले जनता ने बोफोर्स को भूला और अब कोयले के मुद्दे को भूल जाएगी। हमारा कहना है कि जनता किसी बात को नहीं भूलती और शिंदे को भी यह याद रखना चाहिए कि जनता अपने साथ किए मजाक को भी नहीं भूलती। हां, जिस दिन जनता मजाक करने उतर जाएगी उस दिन शिंदे जैसे लोग जरूर अपनी याददाश्त को याद रखने के काबिल नहीं रहेंगे।
bahut accha ;lekh
जवाब देंहटाएंइस विषय पर हमने भी लिखा लेकिन आपका अंदाज निराला है।
जवाब देंहटाएंबहुत सराहनीय प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंजनता जब मजाक करेगी तो बहुत महँगा पड़ेगा!
जवाब देंहटाएंलौह कील तलुवे घुसी, सन अस्सी की बात ।
जवाब देंहटाएंचीखा चिल्लाया बहुत, सच में पूरी रात ।
सच में पूरी रात, सुबह टेटनेस का टीका ।
डाक्टर दिया लगाय, किन्तु अटपटा सलीका ।
नया दर्द यह घोर, पुराना दर्द भुलाता ।
वाह वाह कोयला, तुम्हारी महिमा गाता ।।
अतुल जी, शिंदे साहब ने ये तमाचा ऐसे ही नहीं मारा है, बहुत सोच समझ के मारा है. वास्तव में अगर देखा जाए तो बोफोर्स का हश्र क्या हुआ, क्वात्रोची उलटे अपने सारे पैसे भी अपने अकाउंट से निकाल ले गया. उसे पैसे निकलने का अधिकार किसने दिया ? सीधा सा जवाब है "जनता ने". क्यों? क्योंकि जनता ने ये सरकार चुनी है. जब जनता चोर मुंसिफ चुनेगी तो वो चोरी ही करेगा ना. साहूकारी तो करेगा नहीं. सरकार गलत है तो उसे गलत लोगों ने चुना है. जब जनता एक बोतल शराब और ५०० में बिकेगी तो ऐसे ही लोग सामने आएँगे. दोष जनता का है सरकार का नहीं. जानते समझते हुए भी लोगों ने गलत को चुना है. और शिंदे साहब ने बहुत पते की बात कही है, विद्वान् देश की बेवकूफ जनता है ये. और बहुत सारे बेवकूफों ने चोर को मुंसिफ चुन लिया है. नतीजा गेहूं के साथ हम आप जैसे घुन भी पिस रहे हैं और ब्लॉग और टिप्पणी लिख के अपना खून जला रहे हैं
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