पाकिस्तान ने बड़े समय बाद एक अच्छा काम किया है। शहीदे आजम भगत सिंह को हमारे देश में आदर्श की तरह पूजा जाता है और पाकिस्तान का आवाम भी उनको उतनी ही इज्जत देता है। वहां भी उनको अंग्रेजों के शासन के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंकने वाला नायक माना जाता है। शहीद भगत सिंह की ज्यादातर यादें पाकिस्तान से जुड़ी हुई हैं। उनको फांसी भी लाहौर जेल में दी गई थी। जिस जगह पर उनको फांसी दी गई थी, वह उनके चाहने वालों के लिए काफी महत्वपूर्ण जगह है और उनकी इस जयंती पर उनके भारत के चाहने वालों को हालांकि वहां जाकर अपने नायक को श्रद्धासुमन अर्पित करने का सपना वीजा न मिलने के कारण पूरा नहीं हो पाया लेकिन इसके बाद पाकिस्तान के अफसरों ने उस लाहौर चौक का नामकरण भगत सिंह चौक करने की घोषणा कर एक अच्छा कदम उठाया है।
पाकिस्तान ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भगत सिंह की क्रांतिकारी भावना और इस उप महाद्वीप में अंग्रेजों (ब्रिटेन) के शासन के खिलाफ उनकी भूमिका का मान रखते हुए लाहौर के पुराने लाहौर चौक (अब शदमान चौक) का नामकरण भगत सिंह चौक रखने की घोषणा की है। इसी जगह पर लाहौर जेल था, जहां मार्च 1931 को भगत सिंह को फांसी दी गई थी। बाद में इस जगह पर लाहौर चौक बना दिया गया जो अब से भगत सिंह के नाम से जाना जाएगा। हालांकि इस चौक का नाम किसी अन्य के नाम पर रखने का आवेदन भी प्रशासन के पास पहुंचा था लेकिन वहां के प्रशासनिक प्रमुख ने एक कड़ा पत्र लिखकर कहा है कि भगत सिंह जैसी शख्सियत के नाम पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
यह एक अच्छा कदम है। हम इस कदम की प्रशंसा करते हैं और इसका स्वागत करते हैं। साथ ही यह उम्मीद जाहिर करते हैं कि भगत सिंह जैसे सर्वमान्य शहीद को पाकिस्तान में वही सम्मान मिलना और आदर से उनके नाम का इस्तेमाल करना एक बेहतर संदेश देगा। इस कदम को सिर्फ एक चौक के किसी शहीद के नाम पर करने के प्रशासनिक निर्णय के तौर पर नहीं देखना चाहिए। वैसे भी जिस वक्त भगत सिंह शहीद हुए थे, न पाकिस्तान का वजूद था और न ही भारत विभाजित था। वे इस पूरे उपमहाद्वीप की आजादी के लिए लड़े थे और उनका सपना पूरे उप महाद्वीप को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराना था। इस लिहाज से वे भारत, पाकिस्तान सहित उस समय उपमहाद्वीप के हिस्से रहे सभी जगहों पर समान रूप से आदरणीय थे और रहेंगे।
हम यह भी उम्मीद करते हैं कि भगत सिंह को सम्मान देकर पाकिस्तान ने जो कदम उठाया है, उसके बाद वह भगत सिंह के आदर्शों पर भी चलने का काम करेगा। देशों की सरहद बंट चुकी है और अब भारत-पाकिस्तान में अलग अलग हुकुमतें आ गई हैं लेकिन उनके बीच तनाव का माहौन हमेशा बना रहता है। दोनों पड़ौसी देश सुकून से नहीं रह पाते हैं और कभी घोषित तो निरंतर अघोषित युद्ध की स्थिति बनी रहती है। भगत सिंह यह कभी नहीं चाहते तो दोनों देशों में अमन और चैन कायम हो, यह प्रयास अब होने चाहिए। पाकिस्तान को अपने देश में रहने वाले हिंदू नागरिकों के साथ भी सद्भावनापूर्वक व्यवहार करने की पहल करनी चाहिए, तभी भगत सिंह जैसे शहीदों को दिए जाने वाले सम्मान का सही सम्मान हो पाएगा।
आमीन....
पाकिस्तान ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भगत सिंह की क्रांतिकारी भावना और इस उप महाद्वीप में अंग्रेजों (ब्रिटेन) के शासन के खिलाफ उनकी भूमिका का मान रखते हुए लाहौर के पुराने लाहौर चौक (अब शदमान चौक) का नामकरण भगत सिंह चौक रखने की घोषणा की है। इसी जगह पर लाहौर जेल था, जहां मार्च 1931 को भगत सिंह को फांसी दी गई थी। बाद में इस जगह पर लाहौर चौक बना दिया गया जो अब से भगत सिंह के नाम से जाना जाएगा। हालांकि इस चौक का नाम किसी अन्य के नाम पर रखने का आवेदन भी प्रशासन के पास पहुंचा था लेकिन वहां के प्रशासनिक प्रमुख ने एक कड़ा पत्र लिखकर कहा है कि भगत सिंह जैसी शख्सियत के नाम पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
यह एक अच्छा कदम है। हम इस कदम की प्रशंसा करते हैं और इसका स्वागत करते हैं। साथ ही यह उम्मीद जाहिर करते हैं कि भगत सिंह जैसे सर्वमान्य शहीद को पाकिस्तान में वही सम्मान मिलना और आदर से उनके नाम का इस्तेमाल करना एक बेहतर संदेश देगा। इस कदम को सिर्फ एक चौक के किसी शहीद के नाम पर करने के प्रशासनिक निर्णय के तौर पर नहीं देखना चाहिए। वैसे भी जिस वक्त भगत सिंह शहीद हुए थे, न पाकिस्तान का वजूद था और न ही भारत विभाजित था। वे इस पूरे उपमहाद्वीप की आजादी के लिए लड़े थे और उनका सपना पूरे उप महाद्वीप को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराना था। इस लिहाज से वे भारत, पाकिस्तान सहित उस समय उपमहाद्वीप के हिस्से रहे सभी जगहों पर समान रूप से आदरणीय थे और रहेंगे।
हम यह भी उम्मीद करते हैं कि भगत सिंह को सम्मान देकर पाकिस्तान ने जो कदम उठाया है, उसके बाद वह भगत सिंह के आदर्शों पर भी चलने का काम करेगा। देशों की सरहद बंट चुकी है और अब भारत-पाकिस्तान में अलग अलग हुकुमतें आ गई हैं लेकिन उनके बीच तनाव का माहौन हमेशा बना रहता है। दोनों पड़ौसी देश सुकून से नहीं रह पाते हैं और कभी घोषित तो निरंतर अघोषित युद्ध की स्थिति बनी रहती है। भगत सिंह यह कभी नहीं चाहते तो दोनों देशों में अमन और चैन कायम हो, यह प्रयास अब होने चाहिए। पाकिस्तान को अपने देश में रहने वाले हिंदू नागरिकों के साथ भी सद्भावनापूर्वक व्यवहार करने की पहल करनी चाहिए, तभी भगत सिंह जैसे शहीदों को दिए जाने वाले सम्मान का सही सम्मान हो पाएगा।
आमीन....
भगतसिंह भारत और पाकिस्तान के लिए नहीं दुनिया भर के मुक्तिकामी लोगों के लिए एक आदर्श हैं।
जवाब देंहटाएंसही कहा अतुल भाई....
जवाब देंहटाएंशहीदों का नमन
जवाब देंहटाएंचलिए साहब कुछ तो रचनात्मक काम करे पाकिस्तान
जवाब देंहटाएंशहीदों का सम्मान होना चाहिए , सरहदें हमने खड़ी की है. वो तो एक देश छोड़ कर गए थे.
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार लेख, आभार
Pata nahee aise logon ko banana bhagwaan ne kyon band kar diya?
जवाब देंहटाएंसचमुच श्री वास्तव जी सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंआगे आपने जो लिखा है वह खबर जब समाचार पत्र के द्वारा मैने पढ़ी तो सच मानो वड़ी ही खुशी हुयी कि भाई कम से कम एक अच्छा काम भारत के इस कुपूत पाकिस्तान के होथों हुआ।सच में महामानव एक कौम के लिए न तो पैदा होते हैं और न ही वे किसी एक कौम के लिए मरते है वे तो शाश्वत कर्म करते हैं जो पूरी मानव जाति के लिए अनुकरणीय होता है।
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